दोस्तों आपने आइंस्टाइन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc2 के बारे में जरूर सुना होगा। यह छोटा समीकरण दुनिया हिला देने की ताकत रखता है। इस छोटे समीकरण से ही हमें पता चला की एक पोंड पदार्थ को ऊर्जा में बदलने पर 7000000 टन डायनामाइट के जलाने के समतुल्य ऊर्जा पैदा होगी। आज के आर्टिकल में हम इसी समीकरण के बारे में जानेंगे।
सन 1905 मे आइन्सटीन ने द्रव्यमान व ऊर्जा के बीच एक सम्बन्ध स्थापित किया, जिसे आइन्सटीन का द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध भी कहा जाता है। आइन्सटीन द्वारा प्रतिपादित “आपेक्षिकता के सिद्धान्त”(Theory of relativity) से पहले यह अवधारणा थी कि द्रव्यमान व ऊर्जा दो अलग-अलग राशियाँ हैं तथा ऊर्जा संरक्षण (conservation of energy) व द्रव्यमान संरक्षण
(conservation of mass) दो अलग-अलग स्वतंत्र नियम हैं।
आइंस्टाइन के प्रसिद्ध समीकरण E=mc2
1905 में आइन्सटीन ने अपने ‘आपेक्षिकता के सिद्धान्त’ को प्रतिपादित करके यह सिद्ध किया कि द्रव्यमान एवं ऊर्जा एक दूसरे से स्वतंत्र नहीं हैं, बल्कि दोनों एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा प्रत्येक पदार्थ में उसके द्रव्यमान के कारण ऊर्जा भी होती है।
यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान m एवं प्रकाश का वेग c है तो इस द्रव्यमान से उत्पन ऊर्जा, E = mc^2 होती है या यदि किसी वस्तु के द्रव्यमान में Δm की क्षति हो जाय तो इस क्षति हुये द्रव्यमान के कारण उत्पन्न ऊर्जा की मात्रा (Δm)c^2 होती है।
Mass conservation व Energy conversion दो अलग-अलग नियम न होकर एक ही नियम के दो रूप हैं तथा वह नियम (द्रव्यमान + ऊर्जा) संरक्षण का नियम है अर्थात् ब्रह्माण्ड में (द्रव्यमान + ऊर्जा) का कुल परिमाण संरक्षित है। समीकरण E = mc^2 को आइन्सटीन का द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण कहते हैं। सूर्य से पृथ्वी को लगातार ऊर्जा ऊष्मा के रूप में प्राप्त हो रही है जिसके फलस्वरूप सूर्य का द्रव्यमान लगातार घटता जा रहा है।
अर्थात् सूर्य का द्रव्यमान लगातार ऊर्जा के रूप में पृथ्वी को प्राप्त हो रहा है। आँकड़ों के अनुसार सूर्य से पृथ्वी को प्रति सेकेण्ड 4 x 10^26 जूल ऊर्जा प्राप्त हो रही है, जिसके फलस्वरूप इसका द्रव्यमान लगभग 4x 10^26 किग्रा प्रति सेकेण्ड की दर से कम हो रहा है। परन्तु सूर्य का द्रव्यमान इतना अधिक है कि वह पृथ्वी को लगातार एक हजार करोड़ वर्षों तक इसी दर से ऊर्जा देता रहेगा।
द्रव्यमान क्षति (Mass defect) तथा नाभिकीय बन्धन ऊर्जा (Nuclear binding energy)
किसी परमाणु के नाभिक का द्रव्यमान, इसमें उपस्थित न्यूट्रॉनों व प्रोटानों के द्रव्यमानों के योग से सदैव कम होता है।
नाभिक के द्रव्यमान में हुई इस कमी को ही ‘द्रव्यमान क्षति’ के नाम से जाना जाता है। अतः स्पष्ट है कि जब प्रोटान व न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक की रचना करते हैं तो कुछ द्रव्यमान लुप्त हो जाता है। यह लुप्त द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है ।
यदि Δm द्रव्यमान लुप्त होता है तो आइन्सटीन के अनुसार इससे सम्बद्ध ऊर्जा की मात्रा Δmc^2 होगी तथा यही ऊर्जा नाभिकीय कणों, न्यूट्रॉनों व प्रोट्रॉनों को आपस में बाँधे रखती है।
अत: नाभिक को न्यूट्रॉनों व प्रोटानों में तोड़ने के लिये इतनी ही ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा को ही नाभिक की ‘बन्धन ऊर्जा’ (binding energy) कहते हैं। जिस नाभिक की प्रति न्यूक्लियॉन (प्रोट्रॉन + न्यूट्रॉन) बन्धन ऊर्जा जितनी अधिक होती है वह नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होता है।
यह article “द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध क्या है(Mass Energy Relation in hindi)“पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया उम्मीद करता हुँ। कि इस article से आपको बहुत कुछ नया जानने को मिला होगा।