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रॉबर्ट हुक की जीवनी – Biography of Robert hook in hindi

  • जन्म-18 सितम्बर, 1635
  • जन्म स्थान – वाइट द्वीप, इंग्लैंड
  • निधन-3 मार्च, 1703

रॉबर्ट हुक को कमानीदार तुला, वायुदाबमापी, वर्षामापी और आर्द्रतामापी जैसे अनेक उपयोगी यंत्रों के निर्माणकर्ता के रूप में जाना जाता है। बहुप्रतिभाशाली हुक ने कई छोटे बड़े लेंसों की सहायता से कम्पाउंड माइक्रोस्कोप भी तैयार किया और समुद्र की गहराई मापने का यंत्र भी बनाया।

रॉबर्ट हुक का जन्म -Biography of Robert hook in hindi

रॉबर्ट हुक का जन्म 18 सितम्बर, 1635 को इंग्लैंड के दक्षिणी तट से कुछ परे, वाइट द्वीप में हुआ था। रॉबर्ट अभी 13 वर्ष के ही थे कि उनके पिता की मृत्यु गई, जिसका परिणाम यह हुआ कि रॉबर्ट को घर छोड़ कर लंदन जाना पड़ा-जहां उन्हें उन दिनों के माने हुए पोट्रेट-चित्रकार सर पीटर लेली के यहां नौकरी मिल गई।

चित्रकला में भी उनकी प्रतिभा कुछ कम न थी, किंतु रॉबर्ट ( Biography of Robert hook in hindi ) अक्सर बीमार रहा करते, और चित्रकारी में प्रयुक्त होनेवाले रंगों-तेलों को उनकी प्रकृति बरदाश्त नहीं कर सकती थी।

किंतु कला में यह ‘प्रारम्भिक’ दीक्षा भी आगे चलकर उनके काम आई। सौभाग्य से पिता पीछे उनके लिए 100 पौंड छोड़ गए थे। उन दिनों यह रकम काफी मानी जाती थी और, इसी के बल पर, राबर्ट वैस्टमिन्स्टर स्कूल में दाखिल हो गए। 18 वर्ष की आयु में उन्हें ऑक्सफोर्ड में दाखिला मिल गया।

कालिज की.पढ़ाई के लिए उन्हें कुछ काम-धाम भी करने पड़े—क्राइस्ट चर्च में सम्मिलित गान, छोटी-मोटी चपरासगीरी और इसी तरह के छुट-पुटे सम्बद्ध-असम्बद्ध कुछ दूसरे काम । कितने ही क्षेत्रों में उन्होंने कुछ न कुछ दक्षता प्राप्त कर रखी थी। नक्शाकशी, किताबों में चित्र जुटाना, लकड़ी और धातु पर काम, और इन सबसे बढ़कर वह एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी भी थे।

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रॉबर्ट हुक और रॉयल सोसाइटी मे नौकरी -robert hooke information

प्रख्यात विचारक रेन के घर में उन दिनों आए दिन इंग्लैंड के माने हुए वैज्ञानिक इकट्ठे हुआ करते। यही वस्तुतः ‘अदृश्य कुल’ का संकेत-स्थान था, वही ‘अदृश्य कुल’ जो आगे चलकर वैज्ञानिकों की रॉयल सोसायटी बन गया।

एक अजीब ढंग की नौकरी हुक (Biography of Robert hook in hindi ) को रॉयल सोसायटी में मिली हुई थी, जिसके लिए तनख्वाह उन्हें एक पैसा भी नहीं मिलती थी। वह यह कि सोसायटी के हरअधिवेशन से पहले जो भी परीक्षण दरशाते, उसके सदस्यों को अभीष्ट होते उन सबका प्रबंध हुक के जिम्मे था।

रॉयल सोसायटी के पास उन दिनों लम्बी-लम्बी चिट्ठियां आये-दिन आया करती थीं जिनमें ल्यूवेनहॉक की—जीवाणुओं-कीटाणुओं के जीवन की छोटी-सी दुनिया के ब्यौरे छिपे रहते।

रॉबर्ट हुक और उनके अविष्कार -robert hooke discovery

ल्यूवेनहॉक ने उस समय तक लगभग 400 माइक्रोस्कोपिक लैंस बना लिए थे लेकिन वह किसी भी कीमत पर एक भी लैंस किसी को देने के लिए तैयार न थे। रॉयल सोसायटी ने यह काम रॉबर्ट हुक (Robert hook) के जिम्मे लगाया कि वह एक ऐसा माइक्रोस्कोप तैयार करें जिससे ल्यूवेनहॉक के दावों की परीक्षा की जा सके।

हुक ( Biography of Robert hook in hindi ) ने दो-दो, तीन-तीन लैंस मिलाकर कुछ कम्पाउण्ड माइक्रोस्कोप तैयार किए और जो कुछ उनके द्वारा प्रत्यक्ष किया उसके कोई साठ-एक रेखा-चित्र भी तैयार किए।

उनकी आरम्भिक दीक्षा चित्रकला में हुई भी थी। मक्खी की आंख, डिम्ब का.कायान्तर, पंखों की आन्तर रचना, जूएं, मक्खियां—इन सबके चित्र जो असल को कहीं बढ़ा-चढ़ाकर लेकिन ‘हुबहू’ पेश किए गए ताकि इन वस्तुओं के सम्बंध में कुछ.ज्ञान हासिल हो सके। इन अद्भुत चित्रों की प्रकाशन-व्यवस्था भी 1664 में कर दी गयी.

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‘माइक्रोफजिया’ के प्रामाणिक पृष्ठों में। हुक ने माइक्रोस्कोप की रचना का सिद्धांत (robert hooke microscope) तथा कार्य सार्वजनीन कर दिखाया, किंतु इतिहास सूक्ष्मेक्षण-विज्ञान (father of microbiology ) का जनक ल्यूवेनहॉक को ही मानता है।

वैज्ञानिक उपकरणों के निर्माण में हुक ( Robert hook) की दक्षता अद्भुत थी। दृष्टि-विज्ञान में उनका खासा प्रवेश था, जिसका उपयोग उन्होंने नक्षत्र-सम्बंधी गणनाओं में कर दिखाया। समुद्रयात्रा की सुविधा के लिए भी उन्होंने कुछ उपयोगी उपकरण तैयार किए—समुद्र की विभिन्न गहराइयों से पानी इकट्ठा करने के लिए, उन गहराइयों को शब्द-गति द्वारा सही-सही जानने के लिए भी। मौसम का हाल मालूम करने के लिए भी उनके अपने ईजाद किए कुछ साधन थे—वायु की गतिविधि मापने का एक तेज, डायल-पाइप बैरोमीटर और वर्षामापक तथा आर्द्रता-यापक यंत्र।

यही नहीं, रॉयल सोसायटी के प्रश्रय में उन्होंने ऋतु-सम्बंधी सूचनाओं के प्रकाशन की भी कुछ व्यवस्था की ऋतु-सम्बंधी इन पूर्व सूचनाओं का हम हुक को एक प्रकार से प्रवर्तक ही मान सकते हैं। सिद्धांत की दृष्टि से हुक ( Robert hook) का विचार था कि इन ऋतु-परिवर्तनों के मूल में सूर्य का प्रकाश-विकिरण तथा पृथ्वी की परिक्रमा-ये प्रमुख होते हैं।

1676 में हुक ने अपना ‘इलैस्टिसिटी का नियम’ अपने एक वैज्ञानिक निबंध में.एक बिलकुल ही दूसरे अभिप्राय से किया था। इसे प्रकाशित करने के पीछे उनका ध्येय यही था कि ‘एक वैज्ञानिक स्थापना’ सबसे पहले मैंने दुनिया को दी है।

पुस्तक पर अंकित वर्ष उनके इस दावे के समर्थन में एक अकाट्य प्रमाण था। नियम का प्रयोग हुक (Robert hook)ने एकदम एक स्प्रिंग बैलेन्स बनाने में कर दिखाया। तराजू तैयार करके हुक उसे सेंट पाल के गिर्जे पर ले गए, और एक ज्ञात भार भी साथ लेते गए, यह दिखाने के लिए कि हम जितना अधिक ऊंचाई पर पहुंचते जाते हैं

गुरुत्वाकर्षण का बल वहां उतना ही कम होता जाता है। इस वस्तुस्थिति के मूल में जो सिद्धांत काम कर रहा होता है वह यह है कि पृथ्वी के केंद्र के निकटतर पड़े द्रव्य पर यह आकर्षण अपेक्षया अधिक होना चाहिए, और केंद्र से दूर कम। स्प्रिंग की गतिविधि का विश्लेषण करके, अब वे उसके आधार पर, घड़ियां बनाने की ओर प्रवृत्त हुए। उन दिनों पेंडुलम घड़ियों का इस्तेमाल आम था। घड़ी को, बस,
किसी जगह पर रख दिया, कहीं उठाकर ले नहीं जा सकते।

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इसके अलावा, जहाजों पर इसका प्रयोग अक्सर एक समस्या हो जाता, क्योंकि वहां गुरुत्वाकर्षण जो कम
हो जाता है इसलिए पेंडुलम को हटाकर हुक ने उसकी जगह एक बैलेंस हील, और बाल-नुमा एक महीन स्प्रिंग, का प्रयोग शुरू कर दिया। हुक का विचार यह था कि यह स्प्रिंग अपने केंद्रबिंदु के गिर्द एक ही रफ्तार से स्पन्दन करता रहेगा।

किंतु यहां भी हुक को सफलता नहीं निराशा ही मिली, क्योंकि फ्रांस में क्रिश्चन ह्यूजेन्स इसी तरह की कुछ व्यवस्था प्रस्तुत करके उसे 1676 में पेटेंट करा चुका था। हुक ने सिद्ध कर दिखाया कि पहले-पहल यह विचार उन्हीं के दिमाग से निकला था ह्यूजेन्स के दिमाग से नहीं, किंतु ह्यूजेन्स का पेटेंट फिर भी बदस्तूर चलता ही रहा।

रॉबर्ट हुक की मृत्यु – robert hooke Death

आखिर हुक रॉयल सोसायटी के सेक्रेटरी भी बन गए। 1682 में उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी। किंतु विज्ञान-सम्बंधी उनके निबंध उसके बाद भी सोसायटी को बाकायदा मिलते रहे। 1703 में उनकी मृत्यु के दो साल बाद उनके नोट्स प्रकाशित हुए। इन 400,000 शब्दों में उस महान वैज्ञानिक की अभिरुचियों की व्यापकता एवं परिपूर्णता प्रमाणित है।

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