About Season in india-हेलो दोस्तों नमस्कार आज इस आर्टिकल में हम भारतीय ऋतु के बारे में जानने वाले हैं। भारत मे कौन कौन सी ऋतू पायी जाती है। Season in india क्या है, season in india कौन कौन सी है। Summer season in india कब से शुरू होती है। सभी का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे।
भारतीय मानसून क्या है भारतीय मानसून की विशेषता(What is monsoon season in India?)
भारतीय मानसून और इसकी विशेषताएँ ‘मानसून’ शब्द अरबी भाषा के ‘मौसम’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ऋतु (season)। मानसून का प्रयोग ऐसी ऋतु के लिए किया जाता है जिसमें पवन-दिशा पूरी तरह उलट जाती है।
मानसून का प्रसार 20°N और 20°S अक्षांशों के बीच स्थित उष्ण कटिबंधीय भूभागों पर मिलता है, किंतु भारतीय उपमहाद्वीप में यह हिमालय के विस्तार से अधिक प्रभावित है। भारत में अधिकतर वर्षा (80%) मानसूनी पवनों से हुआ करती है(जून से सितंबर तक)।मानसून के रचनातंत्र में जेट वायुधाराओं की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। अब इसकी भविष्यवाणी तक की जाने लगी है।
मानसून की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित है(What happens during monsoon)
- उच्च तापमान मिलना, खासकर मई-जून में जबकि सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं (औसतन 30°C)। दिन में उच्चतम तापमान 48°C तक मिलना; दिसंबर में जब सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं, तापमान 15°C या इससे भी कम आ जाता है।
- गर्मी और जाड़े की स्पष्ट ऋतुएँ होना
- वर्षा की ऋतु गर्मी के बाद; इसमें मूसलधार वर्षा होना; संसार की अधिकतम वर्षा मानसून जलवायु में ही मिलती है।
- ऋतु-परिवर्तन के साथ इसमें हवा की दिशा उलट जाती है।
- वर्षा पर्वतीय प्रकार की होती है। चक्रवातीय वर्षा भी हुआ करती है।
- वर्षा की अनियमितता और अनिश्चितता; फलस्वरूप, कभी-कभी अकाल की स्थिति उत्पन्न होना; धान और जूट की फसलें मानसून जलवायु की ही देन है।
विभिन्न ऋतुएँ ,वार्षिक ऋतु चक्र(What are the seasons in India)
भारतीय जलवायु की एक विशेषता यह है कि यहाँ वर्षभर ऋतुओं का चक्र चलता रहता है। प्रत्येक ऋतु की अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं। ऋतुएँ चार है-1. शीत,2. ग्रीष्म, 3. वर्षा (बढ़ते मानसून की ऋतु) और 4. शरद (लौटते मानसून की ऋतु) ।
• भारत में छह ऋतुएँ पाई जाती है(the 6 seasons in India)
1.वसंत 2. ग्रीष्म 3. वर्षा 4, शरद,5.हेमंत एवं 6. शिशिर।
1.शीतऋतु(Autumn season in India)
Autumn season in India-इस ऋतु का समय मध्य नवंबर से मध्य मार्च तक माना जाता है जब उत्तरी भारत मे उच्च वायुदाब का क्षेत्र रहता है और यहाँ औसत तापमान 10°C से 18°C तक मिलता है। दिसंबर और जनवरी सबसे सर्द महीने होते हैं। सूर्य दक्षिणायन रहने के कारण दक्षिण भारत मे अधिक तापमान मिलता है। (25°C), फिर भी सारे देश में ठंडी मौसमी स्थिति बनी रहती है। हवाएँ उत्तरी उच्च दाब से विषुवतीय निम्न दाब की ओर (N-E trade winds) चला करती है, जो स्थल से आने के कारण शुष्क और ठंडी होती हैं।
गंगा के मैदान में ये हवाएँ उत्तर या उत्तर-पश्चिम की ओर से चलती हैं और बंगाल की खाड़ी पार करते समय उत्तर-पूर्व की ओर। इनसे वर्षा केवल उस समय होती है जब ये तमिलनाडु (पूर्वी कोरोमंडल तट) पहुँचती हैं। भारत के अधिकतर भाग शीतऋतु में शुष्क रहते हैं।
उत्तर-पश्चिमी भारत भूमध्यसागरीय चक्रवातों से, जो फारस की खाड़ी पार कर यहाँ प्रवेश करते हैं, हलकी वर्षा पाता है। इन चक्रवातों को भारत तक लाने में जेट धाराएँ मदद करती हैं। उस समय सतलुज मैदान में तो वर्षा होती है, पर हिमालय के पर्वतीय भाग में हिमपात होता है। इससे तापमान इतना गिर जाता है कि वहाँ से आसपास के क्षेत्रों में शीत लहर चल पड़ती है। शीतकालीन वर्षा से रबी फसलों को बड़ा लाभ पहुँचता है।
ग्रीष्मऋतु(Summer season in India)
About Summer season in India-यह ऋतु मध्य मार्च से मई तक मानी जाती है, जिसमें सूर्य उत्तरायण होता है। इस कारण बेहद गर्मी पड़ती है। मार्च में सबसे अधिक गर्मी दक्षिण भारत में पड़ती है (40°C तक)। मई आते-आते उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान 45°C से भी अधिक पहुँच जाता है।
राजस्थान-स्थित गंगानगर भारत का सबसे गर्म स्थान बन जाता है, जहाँ तापमान 55°C तक पाया जाता है। वहाँ निम्न वायुदाब क्षेत्र का विकास होने लगता है (सूर्य की स्थिति कर्करेखा के निकटतर आने के कारण)। धूलभरी आँधियाँ (जिन्हें ‘लू’ कहा जाता है) चलने लगती हैं और आकाश पीला तथा धूल-धूसरित हो उठता है।
दक्षिणी पठार में ‘लू’ नहीं चलती। वहाँ तथा उसके तटीय प्रदेश में अपेक्षाकृत कम तापमान मिलता है (पठार की ऊँचाई तथा समुद्र की निकटता के कारण)। भीषण गर्मी से बचने के लिए कुछ लोग पहाड़ी स्थानों पर चले जाते हैं। हवाओं की दिशा पर इस मौसमी परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है।
हवाएँ अब समुद्र की ओर से (अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी से) स्थल की ओर बढ़ने लगती हैं। इन दिनों कुछ स्थानीय हवाएँ विकसित होकर बंगाल की खाड़ी से उत्तर और फिर पश्चिम की ओर चल पड़ती हैं, जो ‘काल बैसाखी’ या ‘नॉरवेस्टर’ (Norwester) कहलाती हैं। इन स्थानीय हवाओं से भारी वर्षा होते और ओले तक गिरते देखे जाते हैं।
इनसे पश्चिम बंगाल में काफी हानि पहुँचती है। ऐसी चक्रवातीय वर्षा को दक्षिण भारत में, खासकर केरल और कर्नाटक में, ‘आम बौछार’ (mango shower) कहते हैं, क्योंकि इससे आम पककर जल्द तैयार हो जाते हैं। तमिलनाडु में इससे कहवा फसल को भी लाभ पहुँचता है।
वर्षाऋतु या दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतू(What is monsoon season in India)
यह ऋतु जून से सितंबर तक मानी जाती है, जब भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून का समय रहता है। जून में सूर्य कर्करेखा (जो उत्तर भारत से गुजरती है) पर लंबवत चमकने लगता है और उत्तर भारत के विशाल मैदान में निम्न दाब का जबरदस्त क्षेत्र स्थापित हो जाता है। हवाएँ तेजी से इस ओर बढ़ती हैं और समुद्र से चलने के कारण वाष्पयुक्त होती हैं, अत: भारी वर्षा लाती हैं।
मध्य जून से पहली जुलाई तक सारा भारत मानसून (मौसमी हवा) के प्रभाव में आ जाता है। इस मानसून के आते ही तापमान में गिरावट आ जाती है (तापमान घट जाता है), किंतु आर्द्रता बढ़ने से अजीब उमस का अनुभव होता है। उस समय भारतीय जलवायु की दशा विषुवतीय जलवायु जैसी हो जाती है।
वर्षाऋतु मध्य जून में ही क्यों आरंभ होती है, जून के पहले क्यों नहीं(What causes monsoon)
‘दक्षिण-पश्चिमी मानसून’ वास्तव में दक्षिणी गोलार्द्ध का दक्षिण-पूर्वी पवन है, जो विषुवतरेखा पार करने पर दिशा-परिवर्तन कर बैठता है (फेरेल के नियमानुसार)। अप्रैल-मई में विषुवतरेखा पर विषुवतीय निम्न दाब (LP) पाया जाता है।
दक्षिणी गोलार्द्ध के दक्षिण-पूर्वी पवन (S-E trade winds) इसी निम्न दाब तक पहुँचकर अपना अस्तित्व खो बैठते हैं। उन दिनों एक दूसरा निम्न दाब क्षेत्र (LP area) भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में बनना शुरू होता है, जो विषुवतीय निम्न दाब क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है। इन दोनों के बीच अरब सागर में उच्च दाब क्षेत्र रहता है।
भारतीय निम्न दाब क्षेत्र से उठी हुई गर्म वायु विषुवतीय क्षेत्र के ऊपर इकट्ठी होने लगती है और कालांतर में विषुवतीय निम्न दाब क्षेत्र को भर देती है। जून के आरंभ तक यह निम्न दाब क्षेत्र पूरी तरह भर जाता है तो दक्षिणी गोलार्द्ध के दक्षिणी-पूर्वी पवन भारतीय निम्न दाब क्षेत्र तक अग्रसर हो जाते हैं (पहुँचने लगते हैं)।
उस समय विषुवतरेखा पार करते समय वे दिशा-परिवर्तन कर दक्षिण-पश्चिमी मानसून (S-W monsoon) के रूप में भारत पहुँचते हैं और इस तरह उनका पहुँचना अप्रैल-मई में शुरू न होकर जून में होता है। हजारों किलोमीटर की गर्म महासागरीय दूरी पार करके भारत में प्रवेश करने के कारण उनमें अत्यधिक जलवाष्प रहता है और उनसे भारी वर्षा शुरू हो जाती है।
भारत के प्रायद्वीपीय आकार के कारण दक्षिण-पश्चिमी मानसून दो भागों में (शाखाओं में) बँट जाता है—(क) अरब सागर का मानसून और (ख) बंगाल की खाड़ी का मानसून। अरब सागर का मानसून पहले चलता है और अधिक शक्तिशाली होता है,
पर पश्चिमी घाट पार करने में उसकी शक्ति घट जाती है। उसका अधिकतर मेघ वहीं बरस जाता है। इससे सम्मुख ढालों पर 300 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है, पर विमुख ढालों पर मुश्किल से 50 सेंटीमीटर वर्षा हो पाती है। नर्मदा के द्वार से होकर कुछ पवन देश के भीतरी भाग में प्रवेश करते हैं और छोटानागपुर में बंगाल की खाड़ी से आनेवाले पवनों से मिल जाते हैं।
बंगाल की खाड़ी का मानसून अरब सागर के मानसून की अपेक्षा कुछ देर से आता है, पर इससे देश के अधिकतर भागों में वर्षा होती है। पहले यह अराकान तट पर पहुँचता है और तब असम की पहाड़ियों से होकर गुजरता है।
इससे मेघालय पठार पर सर्वाधिक वर्षा होती है। विश्व में सर्वाधिक वर्षा के लिए प्रसिद्ध चेरापूँजी यहीं स्थित है। चेरापूंजी के आसपास वनों के कट जाने से अब वर्षा कुछ कम होने लगी है। सर्वाधिक वर्षा का स्थान अब उससे 16 किलोमीटर पश्चिम स्थित मासिनराम गाँव ने ले लिया है जहाँ 1,392 सेंटीमीटर वर्षा मापी गई है।
इससे 50 किलोमीटर उत्तर शिलंग नामक स्थान है जहाँ मात्र 230 सेंटीमीटर वर्षा होती है, क्योंकि यह वृष्टि-छाया में पड़ जाता है। हिमालय की स्थिति से इस मानसून को उत्तरी भारत में दक्षिण-पूर्वी बनना पड़ता है। फिर, इसे उत्तर-पश्चिम में स्थित निम्न दाब क्षेत्र तक पहुँचना होता है, अत: पश्चिम दिशा की ओर इस मानसून का मुड़ना स्वाभाविक है।
इस मानसून से वर्षा पश्चिम की ओर (गंगाघाटी की ओर) क्रमश: घटती जाती है। राजस्थान तक पहुँचते-पहुँचते वर्षा नाममात्र की होती है और वहाँ थार की मरुभूमि पाई जाती है। राजस्थान में अरब सागर के मानसून से नाममात्र की ही वर्षा होती है,क्योंकि वहाँ उसे अरावली पर्वत नहीं रोक पाता (हवा के समानांतर स्थित होने के कारण)।
वह (मानसून) उत्तर की ओर बढ़ जाता है।भारत में वार्षिक वर्षा औसतन 118 सेंटीमीटर होती है, पर इसके वितरण (मात्रा एवं काल) में स्थिति एवं प्राकृतिक बनावट का प्रभाव स्पष्ट रूप से पड़ता है।
पहाड़ी भागों में तथा वायु के रुख (windward side) पर वर्षा अधिक होती है, जैसे मंगलूर में 300 सेंटीमीटर और मुंबई में 200 सेंटीमीटर। भारत की कुल वर्षा का अधिकांश (80 प्रतिशत) जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर में (आषाढ़ से आश्विन तक) होता है।यही भारत का वर्षाकाल या वर्षाऋतु है। वर्षाऋतु के आने पर ही भारत में कृषि-कार्य आरंभ होता है, अतः यह बड़ी महत्त्वपूर्ण है।
शरदऋतु या लौटते मानसून की ऋतु(Winter season in india)
About winter season in india-यह ऋतु अक्टूबर से मध्य नवंबर तक मानी जाती है, जिसमें सूर्य के दक्षिणायन होते ही तापमान में कमी आने लगती है और उत्तर-पश्चिमी भाग में वायुदाब बढ़ने लगता है। साथ ही, बंगाल की खाड़ीवाले भाग में वायुदाब घटने लगता है। परिणामस्वरूप, मानसून वापस आने या पीछे लौटने लगता है।
हवाएँ स्थल की ओर से चलने लगती हैं, अत: शुष्क होती हैं। यह ऐसी ऋतु है जिसमें देश में पूर्ण रूप से न वर्षा ही समाप्त हुई रहती है और न जाड़ा ही आरंभ हुआ होता है। इसे दोनों के बीच का संक्रमणकाल माना जाता है। बंगाल की खाड़ी को पार करते समय लौटते मानसून-पवन आर्द्रता ग्रहण कर दक्षिण-पूर्वी तट (कोरोमंडल तट) पर वर्षा करते हैं।
तमिलनाडु में वर्षभर की अधिकतम वर्षा (44% से 60%) इसी ऋतु में होती है। बंगाल की खाड़ी में बननेवाले चक्रवातों से भी यहाँ वर्षा होती है। वे चक्रवात विनाशकारी होते हैं। उड़ीसा और आंध्र प्रदेश हर साल तबाह हो जाते हैं। केरल तट पर भी दो बार वर्षा होती है -जून-जुलाई में और अक्टूबर-नवंबर में। लौटते मानसून का कुछ अंश (आर्द्रताभरी हवा) दर्रे और घाटी से होकर यहाँ पहुँच जाता है और वर्षा करता है।
वर्षा और तापमान का वितरण(5 types of climate in india)
वर्षा के वितरण के आधार पर भारत को मुख्यत: पाँच जलवायु क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है। 1. अत्यधिक आर्द्र एवं उष्ण क्षेत्र, 2. आर्द्र एवं उष्ण क्षेत्र, 3. साधारण आर्द्र एवं उष्ण क्षेत्र, 4. शुष्क एवं विषम जलवायु क्षेत्र तथा 5. उत्तरी ठंडे क्षेत्र।
अत्यधिक आर्द्र एवं उष्ण क्षेत्र-
पश्चिमी समुद्रतट, निम्न गंगा का मैदान और असम-नगालैंड के निकटवर्ती क्षेत्र, जहाँ औसतन 25°C तापमान और 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है, इस क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
आई एवं उष्ण क्षेत्र-
मध्य गंगा का मैदान और उत्तर-पूर्वी पठारी भाग, जहाँ जनवरी का तापमान 18°C से कम नहीं होता तथा वर्षा 100 से 200 सेंटीमीटर के बीच होती है, इस क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। यहाँ समुद्रतट से दूर जाने पर तापमान की विषमता बढ़ती है और वार्षिक वर्षा घटती है।
साधारण आर्द्र एवं उष्ण क्षेत्र–
इसके अंतर्गत आनेवाले क्षेत्र हैं—(क) दक्षिण-पूर्वी तटीय मैदान (तमिलनाडु क्षेत्र), जहाँ वर्षा 100 सेंटीमीटर से कम होती है, (ख) दक्षिणी लावा क्षेत्र, जो पश्चिमी घाट की वृष्टि-छाया में पड़ने के कारण अत्यल्प वर्षा पाता है और (ग) ऊपरी गंगा मैदान, पंजाब मैदान एवं उत्तरी अरावली क्षेत्र, जहाँ वर्षाऋतु की अपेक्षा शुष्क ऋतु अधिक लंबी है। इस जलवायु क्षेत्र में वर्षा 100 सेंटीमीटर से घटकर 50 सेंटीमीटर तक (पश्चिमी भाग में) आ जाती है।
शुष्क एवं विषम जलवायु क्षेत्र-
पश्चिमी राजस्थान मुख्य रूप से इसके अंतर्गत आता है, जहाँ बेहद गर्मी और कड़ाके की सर्दी पड़ने के कारण तापांतर अधिक मिलता है। वर्षा 40 सेंटीमीटर से भी कम होती है।
उत्तरी ठंडे क्षेत्र–
हिमालय के पर्वतीय भाग इसके अंतर्गत आते हैं, जहाँ पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ने पर वर्षा घटती जाती है और शीतऋतु लंबी होती है। यहाँ वर्ष के अधिकतर दिनों में तापमान 10°C से कम रहता है और जाड़े में हिमपात होता है।
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