ऊष्मागतिकी(Thermodynamic)भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत हम उष्मीय ऊर्जा का यात्रिक ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा और विद्युत ऊर्जा आदि के साथ संबंध ज्ञात करते हैं
उष्मागतिक निकाय- Thermodynamic system in hindi
चलिए ऊष्मागतिकी निकाय को समझते हैं इसको हम परिभाषा से बहुत ही आसानी से समझ सकते हैं।
“अत्यधिक बड़ी संख्या में कणों का ऐसा समूह जिसके ताप, दाब तथा आयतन के कुछ निश्चित मान हो, मतलब कि जिसको ताप, दाब या आयतन के रूप में व्यक्त किया जा सके उष्मागतिक निकाय कहलाता है “जैसे- एक बर्तन में भरी गैस।
उष्मागतिक प्रक्रम-Thermodynamic process in hindi
जब किसी निकाय में t समय के साथ परिवर्तन हो रहा होता है। तब उस प्रक्रम को उष्मागतिक प्रक्रम कहते है जैसे -(1) समतापीय प्रक्रम, (2) समदाबीय प्रक्रम, (3)समआयतनिक प्रक्रम, (4) रुद्धोष्म प्रक्रम।
(1)समतापीय प्रक्रम-Isothermal process in hindi
यदि किसी ऑब्जेक्ट में कोई परिवर्तन इस प्रकार हो की ऑब्जेक्ट का ताप पूरी क्रिया के दौरान कांस्टेंट रहे तब इस परिवर्तन को हम समतापीय प्रक्रम कहते हैं।
(2)समदाबीय प्रक्रम-Isobaric process in hindi
यदि किसी ऑब्जेक्ट में होने वाले परिवर्तन के दौरान दाब स्थिर हो तब उसे हम समदाबीय प्रक्रम कहते हैं। जैसे – गाड़ी के इंजन में भाग का गर्म होना, पानी का जमुना।
(3)समआयतनिक प्रक्रम-Isochoric process in hindi
यदि किसी ऑब्जेक्ट में होने वाले परिवर्तन के दौरान आयतन निश्चित हो तब उसे हम समआयतनिक प्रक्रम कहते हैं। चुकी इस प्रोसेस में आयतन में परिवर्तन नहीं हो रहा है इसलिए पदार्थ/ऑब्जेक्ट द्वारा भी कोई कार्य नहीं किया जाता।
इस प्रोसेस में दी गई ऊष्मा डायरेक्ट पदार्थ के आंतरिक ऊर्जा के रूप में सेव हो जाती है।
रुद्धोष्म प्रक्रम-Adiabatic process in hindi
यदि किसी पूरी परिवर्तन के दौरान कोई पदार्थ न बाहरी माध्यम को उष्मा दे और ना ही उससे कोई उष्मा ले मतलब की पूरी प्रक्रिया के दौरान पदार्थ का ताप कांस्टेंट रहे तब इस प्रक्रम को रुद्धोष्म प्रक्रम कहते है।
उष्मा और कार्य को समझे- Understand heat and work in hindi
किसी वस्तु का ताप दो प्रकार से बढ़ाया जा सकता है। पहला वस्तु को सीधे उस्मा देकर और दूसरा वस्तु पर यांत्रिक कार्य करके जैसे- हाथों को गर्म जल में डुबोकर या फिर दोनों हाथों को रगड़ कर गर्म किया जा सकता है।
यहां पहली स्थिति में हम सीधे उस्मा देकर गर्म कर रहे हैं। जबकि दूसरे स्थिति में वस्तु पर कुछ कार्य करके उसे गर्म कर रहे हैं।
किसी वस्तु की अवस्था में परिवर्तन भी दो प्रकार से किया जा सकता है। पहला उस वस्तु को उस्मा देकर और दूसरा उस वस्तु पर कार्य करके जैसे- जब बर्फ के दो टुकड़ों को आपस में रगड़ा जाता है तब वह पिघल जाते हैं।
अब आप समझ गए होंगे कि उस्मा और कार्य से वस्तु की अवस्था में परिवर्तन किया जा सकता है लेकिन वस्तु में यह परिवर्तन आने के बाद हम पता नहीं लगा सकते है। यह किस विधि द्वारा किया गया है। इसका सीधा अर्थ बनता है। कि उस्मा और कार्य दोनों एक ही है और दोनों ऊर्जा का रूप है।
जूल ने अपने प्रयोग के दौरान यह देखा 4180 जूल कार्य करने से उतनी ही ताप वृद्धि होती है जितनी कि 1 किलो कैलोरी ऊष्मा से, इस प्रयोग से यह स्पष्ट हो गया कि दोनों ही ऊर्जा के रूप है।
आंतरिक ऊर्जा – Internal energy in hindi
देखने से यह प्रतीत होता है कि किसी पदार्थ में कोई यांत्रिक ऊर्जा नहीं होती है लेकिन फिर भी इसमें कार्य करने की क्षमता होती है, मतलब कहा जा सकता है कि पदार्थ में कोई आन्तरिक ऊर्जा होती है, जिसके कारण इसमें कार्य करने की क्षमता होती है। उदाहरणार्थ, हाइड्रोजन व आक्सीजन का मिश्रण कोई बाहरी गतिज या स्थितिज ऊर्जा को प्रदर्शित नहीं करता लेकिन यह मिश्रण विस्फोट द्वारा कार्य कर सकता है। यह आन्तरिक ऊर्जा के ही कारण होता है।
प्रत्येक पदार्थ अणुओं से मिलकर बना होता है और अणुओं में गतिज व स्थितिज दोनो प्रकार की ऊर्जा होती है। गतिज ऊर्जा सिर्फ ताप पर निर्भर करती है, जबकि स्थितिज ऊर्जा अणुओं के बीच दूरी व उनके बीच लगने वाले आर्कषण बल पर निर्भर करती है।
पदार्थ की आन्तरिक ऊर्जा इन दोनो ऊर्जाओं के योग के बराबर होती है। जिन अणुओं में एक ही परमाणु होता है उनके अणु केवल स्थानान्तरीय गति करते हैं। इस कारण एक परमाणुक गैसों की आंतरिक ऊर्जा गैस के अणुओं की गतिज ऊर्जा ही होती है।
जबकि बहुपरमाणुक गैसों की आंतरिक ऊर्जा में स्थानान्तरित, घूर्णीय तथा कम्पनिक गतिज ऊर्जा शामिल होती है। आदर्श गैस/नोबेल गैस के अणुओं के बीच आणविक बल शून्य होने के कारण उनकी स्थितिज ऊर्जा शून्य होती है और उनकी आंतरिक ऊर्जा मुख्यतः उसके अणुओं की गतिज ऊर्जा पर निर्भर करती है।
अणु गति सिद्धान्त के अनुसार पदार्थ के अणुओं की स्थानान्तरीय गतिज ऊर्जा पदार्थ के ताप के अनुक्रमानुपाती होती है। सीसे की गेंद के पृथ्वी से टकराने पर उसका ताप इसलिए बढ़ जाता है कि गेंद के पृथ्वी से टकराने पर गेंद की गतिज ऊर्जा तो शून्य हो जाती है किन्तु उसके अणुओं की स्थानान्तरीय गति ऊर्जा बढ़ जाती है
जिससे गेंद का ताप बढ़ जाता है । यही कारण है कि बंदूक से छूटी हुई गोली का ताप लक्ष्य से टकराने के बाद बढ़ जाता है।
उष्मागतिक का प्रथम नियम -First law of thermodynamic in hindi
उष्मागतिक का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण को दिखाता है इस नियम के अनुसार किसी भी सिस्टम को दी जाने वाली ऊर्जा दो प्रकार के कार्यों में खर्च होती है-
(1) सिस्टम की आंतरिक ऊर्जा बढ़ाने में, जिससे उसका ताप भी बढ़ता है। (2) और बची हुई ऊर्जा बाहर ही कार्य करने में खर्च हो जाती है।
मतलब कि यदि किसी पदार्थ को Q उसमें दी जाए तब थर्मोडायनेमिक्स के प्रथम नियम अनुसार-
Q=d(U)+W,
यहाँ d(U) आंतरिक उर्जा में वृद्धि है तथा W उस पदार्थ द्वारा किया गया बाहरी कार्य है।
उष्मागतिक का द्वितीय नियम-Second law of thermodynamic in hindi
उष्मागतिक(Thermodynamic)का प्रथम नियम उष्मा के प्रभावित होने की दिशा को नहीं व्यक्त करता है जबकि द्वितीय नियम इसकी दिशा को बताता है।
यह नियम दो कथनों पर आधारित है-
(1) केल्विन का कथन- केल्विन के अनुसार” ऊष्मा का पूर्ण रूप से कार्य में परिवर्तन करना असंभव है”
(2) क्लॉसियस का कथन- इस कथन के अनुसार “उष्मा अपने से कम ताप की वस्तु से अधिक ताप की वस्तु की ओर प्रवाहित नहीं हो सकती” जब तक कि कोई बाहरी ऊर्जा का उपयोग न किया जाए।
ये article ” उष्मागतिक क्या है। परिभाषा, उपयोग जानिए हिंदी- Everything about thermodynamic in hindi ” पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया. उम्मीद करता हुँ. कि इस article से आपको बहुत कुछ नया जानने को मिला होगा
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