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दैनिक जीवन में विद्युत-चुंबकीय अन्योन्य क्रिया के अधीन कार्यकारी बलों के कुछ उदाहरण (Some Examples of Common Forces in daily life underlying Electromagnetic Interaction)

आणविक एवं परमाणविक घटनाओं के अतिरिक्त दैनिक जीवन की घटनाएँ भी विद्युत-चुंबकीय बल के कारण होती हैं, जिनके कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं।

दो तलों के बीच संपर्की बल (Contact force between two surfaces) —

दो तलों के एक-दूसरे के संपर्क (contact) में रहने पर उनके परमाणु एक-दूसरे के बहुत निकट आ जाते हैं; फलतः इन परमाणुओं के आवेशित कण परस्पर अत्यधिक बल आरोपित करते हैं। यह बल संपर्क तल के लंबवत (normal to the common surface of contact) दिशा में क्रियाशील होने पर अभिलंब प्रतिक्रिया (normal reaction) के रूप में होता है तथा संपर्की तल के समांतर होने पर (tangential to the surface of contact) घर्षण बल (force of friction) के रूप में होता है। ऐसे सभी बलों का अस्तित्व मूलतः तलों के अणु एवं परमाणुओं के बीच विद्युत-चुंबकीय अन्योन्य क्रिया के कारण है।
हमेशा जोड़े में (in pairs) रहते हैं तथा क्रिया-प्रतिक्रिया के रूप में न्यूटन के गति के तीसरे नियम का पालन करते हैं। इन बलों की प्रकृति विद्युत-चुंबकीय होती है.

2.डोरी में तनाव (Tension in a string) stretched state)

किसी स्थिर डोरी को तनन की अवस्था (in अनुरेख समान परिमाण के बल लगाने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, रस्साकशी (tug of war) में दो टीमें एक ही रस्से को अपनी-अपनी ओर खींचती है जिससे रस्सा तना रहता है और इसकी लंबाई में सूक्ष्म वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति में कहा जाता है कि रस्से में तनाव (tension) है। इसी प्रकार, किसी डोरी से आबद्ध भार के कारण डोरी में तनाव उत्पन्न होता है। डोरी में तनाव की प्रकृति भी मूलतः विद्युत-चुंबकीय होती है। (The tension in a string is basically in nature.)

स्प्रिंग बल (Spring force) –

एकसमान अनुप्रस्थ के सर्पिल (spiral) के रूप में अपनी सामान्य अवस्था में शिथिल (relaxed) रहता है जब इसके सिरों पर कोई बल नहीं लगाया तार को कुंडलित करने पर स्प्रिंग बनता है। किसी क्षैतिज तल पर रखा यह स्प्रिंग जाता है। इसके दोनों सिरों के बीच अक्ष के अनुदिश लंबाई को स्प्रिंग की स्वाभाविक लंबाई (natural length) अथवा शिथिल लंबाई (relaxed length) कहते हैं। इसके दोनों सिरों को विपरीत दिशाओं में खींचने पर स्प्रिंग की लंबाई में प्रसार (extension) होता है तथा दबाने पर संकुचन (contraction) होता है। प्रसार के समय स्प्रिंग दोनों सिरों पर संबद्ध वस्तुओं को अपनी ओर खींचता (pulls) है तथा संकुचन के समय उन्हें धकेलता (pushes) है। यदि प्रसार अथवा संकुचन ±dx) अधिक न हो, तो सामान्यतः सिरों से जुड़ी वस्तुओं पर खिंचाव (pull) या धक्का मान क्रमशः प्रसार (+4x) तथा संकुचन (-4x) का समानुपाती = k[Ax].

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यहाँ नियतांक k को स्प्रिंग नियतांक (spring constant) अथवा कड़ापन (stiffness) कहा जाता है। I K का SI मात्रक Nm-1 है तथा इसकी माप प्रति एकांक प्रसार या संकुचन के लिए आवश्यक बल (force per unit extension or contraction) से होती है। स्प्रिंग बल का अस्तित्व भी तार के पदार्थ में परमाणुओं के बीच लगनेवाले विद्युत-चुंबकीय बल के कारण ही है।

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प्रायः सभी स्थूल वस्तुएँ (macroscopic bodies) सामान्यतः विद्युतीय रूप से उदासीन (neutral) होती है, क्योंकि उनमें धन एवं ऋण आवेशों के परिमाण समान होते हैं। फलतः, उनपर नेट आवेश शून्य होता है। ऐसी दो वस्तुएँ विलंग (separated) रहने पर समान परिमाण का आकर्षण तथा विकर्षण, दोनों बलों का अनुभव करती हैं जो एक-दूसरे को निष्फल कर देते हैं। स्पष्टतः, संपर्क में (in contact) नहीं रहने पर विद्युत-चुंबकीय बल तो नहीं लगता है, परंतु गुरुत्वीय बल आरोपित होता है, क्योंकि यह अनिवार्यतः आकर्षण बल है। उदाहरण के लिए, 2 kg की कोई वस्तु पृथ्वी की सतह से 100m की ऊँचाई पर रहने पर भी 19.6N के आकर्षण बल का अनुभव करती है, जबकि पृथ्वी एवं वस्तु में अत्यधिक संख्या में इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन के रहने पर भी इनके बीच विद्युत-चुंबकीय बल लगभग शून्य होता है।

नाभिकीय बल (Nuclear force) –

पदार्थ के प्रत्येक परमाणु (atom) के नाभिक (nucleus) में न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन, मूल कण (elementary particle) होते हैं तथा नाभिक का 1 आकार (size) परमाणु के आकार का होता है। चूँकि इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन तथा 10²1 न्यूट्रॉन के द्रव्यमान की अपेक्षा नगण्य होता है, अतः परमाणु का कुल द्रव्यमान नाभिक के रूप में बिंदुवत केंद्रित मान सकते हैं।

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नाभिक के अंदर प्रोटॉनों (धनावेशित कण) के बीच प्रतिकर्षण (repulsion) होता है, जबकि न्यूट्रॉनों द्वारा कोई विद्युतीय बल नहीं लगता। कुल प्रतिकर्षण की तुलना में गुरुत्वीय आकर्षण नगण्य होता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि इस प्रतिकर्षण बल के रहने पर भी नाभिक स्थायी (stable) कैसे रहता है? इस प्रश्न की संतोषप्रद व्याख्या 1935 में वैज्ञानिक युकावा (Yukawa) ने अपने मेशन-क्षेत्र के सिद्धांत (Meson field theory) के आधार पर की। उनके अनुसार नाभिक के न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन अल्प परास तक (up to a short range) एक-दूसरे को अविद्युतीय बल (nonelectric force) द्वारा आकर्षित करते हैं जिसकी प्रकृति गुरुत्वीय बल तथा विद्युत-चुंबकीय बल से बिल्कुल भिन्न होती है। इस बल को नाभिकीय बल (nuclear force) कहते हैं। नाभिकीय बल अल्प परास m से तक ही पर्याप्त होते हैं। उदाहरण के लिए, P-P, n –n या n-p के बीच की दूरी 10^-14 अधिक होने पर नाभिकीय बल का परिमाण कूलंब-बल की तुलना में काफी कम होता है, लेकिन जब यह दूरी कम (लगभग 1 फर्मी = 10^-15 m) होती है, तब नाभिकीय बल (आकर्षण) कूलंब बल से काफी प्रबल (much stronger) होता है जो आकर्षक (attractive) होने के कारण नाभिक को स्थायी रखता है। रेडियोएक्टिविटी तथा नाभिकीय विघटन अथवा संलयन (nuclear fission or fusion) की व्याख्या नाभिकीय बलों के आधार पर ही होती है।

मंद अन्योन्य क्रिया (Weak interaction) –

गुरुत्वीय और नाभिकीय बलों के अतिरिक्त एक अन्य प्रकृति की अन्योन्य क्रिया भी होती है जिसका संबंध इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन के बीच होनेवाली प्रतिक्रिया से है। जब न्यूट्रॉन का विघटन (disintegration) प्रोटॉन में होता है तब इलेक्ट्रॉन के अतिरिक्त एक अन्य कण एण्टिन्यूट्रिनो (antinutrino) भी उत्सर्जित होता है। इसे BT ऐक्टिविटी कहते हैं। इसी प्रकार B+ ऐक्टिविटी में प्रोटॉन का परिवर्तन न्यूट्रॉन में होने पर पोजिट्रॉन (e+) तथा एक न्यूट्रिनो भी उत्सर्जित होते हैं। उपर्युक्त परिवर्तन का होना जिस बल के

कारण होता है उसकी प्रकृति गुरुत्वीय, विद्युत-चुंबकीय तथा नाभिकीय बलों से भिन्न होती है। ऐसे बलों को मंद बल (weak forces) कहा जाता है। मंद बलों का परास बहुत ही कम होता है, यहाँ तक कि प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन के साइज से भी छोटा। स्पष्टतः, मंद बल का अस्तित्व न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉनों के अंदर ही होता है।

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जड़त्व एवं न्यूटन के गति का प्रथम नियम (Inertia and Newton’s First Law of Motion)

साधारण अनुभव से हम जानते हैं कि किसी वस्तु की विरामावस्था तथा एकसमान रैखिक गति की अवस्था (अर्थात एकसमान वेग से गति) दोनों में वस्तु पर कोई नेट बल (net force) नहीं लगता, अर्थात उसपर लगनेवाले सभी बलों का परिणामी (resultant) शून्य होता है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु को किसी रुक्ष क्षैतिज समतल पर एकसमान गति में बनाए रखने के लिए एक बाह्य बल (external force) लगाने की आवश्यकता होती है। यह बल मूलतः घर्षण बल को निष्फल करने के लिए आवश्यक है न कि मात्र एकसमान गति प्रदान करने

के लिए। स्पष्टतः, यदि नेट बल शून्य हो, तो वस्तु की विराम अवस्था (state of rest) अथवा एकसमान वेग से गति की अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता है। वस्तु के इसी गुण को जड़त्व (inertia) कहते हैं, जो वस्तु के द्रव्यमान (mass) पर निर्भर है। जड़त्व का मूल अर्थ है परिवर्तन के प्रति विरोध (resistance to change) अर्थात नेट बाह्य बल शून्य रहने पर विराम अवस्था में रह रही वस्तु विराम में ही रहती है और गतिशील अवस्था में निरंतर एकसमान वेग से गतिशील रहती है। जड़त्व के इसी आधार पर न्यूटन ने गति का प्रथम नियम प्रतिपादित किया। गति का प्रथम नियम (First law of motion) – यदि किसी कण पर लगनेवाले सभी बलों का सदिश योगफल शून्य हो, तब वह कण अत्वरित अवस्था में रहता है, अर्थात या तो कण विराम में रहता है अथवा नियत वेग से गतिशील रहता है। (If the vector sum of all the forces acting on a particle is zero then the particle is said to be unaccelerated state, i.e., remains at rest or moves with constant velocity.) स्पष्टतः कण की अत्वरित अवस्था, अर्थात विराम या एकसमान वेग का अर्थ है उसपर आरोपित बलों का सदिश योगफल अवश्य ही शून्य है।

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