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सह-सम्बन्ध का मतलब, परिभाषा, प्रकार सम्पूर्ण जानकारी (Correlation meaning in hindi)

सह-सम्बन्ध का मतलब (Correlation meaning in hindi)

Correlation meaning in hindi-मात्राओं के माध्य, अपकिरण के माप, विषमता आदि द्वारा आर्थिक सामाजिक व वैज्ञानिक क्षेत्र में दो घटनाओं में पाये जाने वाले सम्बन्ध का ज्ञान नहीं हो पाता है। व्यावहारिक जीवन में बहुत सी घटनाएं परस्पर सम्बन्धित होकर परिवर्तित होती रहती हैं अतः कभी-कभी यह जानना आवश्यक हो जाता है कि दो पदमालाओं में कुछ सम्बन्ध है कि नहीं और यदि है तो किन अंशों तक।

कभी-कभी एक श्रेणी का परिवर्तन दूसरी श्रेणी में परिवर्तन उत्न करता है जैसे, किसी वस्तु की पूर्ति अधिक होने पर मूल्य कम हो जाता है । इसलिए यह कह सकते हैं कि जब दो चरों में इस प्रकार का सम्बन्ध हो कि एक में कमी या वृद्धि होने से दूसरे में भी उसी या विपरीत दिशा में परिवर्तन.हो जाये तो वे सह-सम्वन्धित कहलायेंगे। देश में यह सामान्य अनुभव है कि कृषि उत्पादन का स्तर मानसून पर निर्भर करता है। अच्छी वर्षा वाले वर्ष में कृषि उत्पादन अधिक होता है और जब वर्षा नहीं होती तो कृषि उत्पादन कम होता है।

ज्ञातव्य है कि जिन खेतों में सिंचाई का अच्छा प्रबन्ध है वहाँ असिंचित खेतों की अपेक्षा आमतौर पर प्रति हेक्टेयर उत्पादकता अधिक होती है। उपरोक्त उदाहरण में दो चरों के बीच संबन्ध की चर्चा की गई है। प्रायः सम्बन्ध तीन या अधिक चरों में भी हो सकते हैं। सांख्यिकी का एक महत्वपूर्ण कार्य चरों के बीच पाए जाने वाले सम्बन्ध की प्रकृति और मात्रा को ज्ञात करना है तथा प्रयोग सिद्ध रूप में यह जाँच भी करना है कि इन चरों में सम्बन्ध कारणात्मक है या नहीं।

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दो चरों में केवल संबंध होने का यह अर्थ नहीं कि यह संबंध एक दूसरे की वजह से है। अधिकांश देशों में एक अवधि में जनसंख्या तथा राष्ट्रीय आय दोनों में वृद्धि हुई है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि जनसंख्या या राष्ट्रीय आय में वृद्धि समय के वीत जाने के कारण हुई है। स्पष्ट है कि समय की अवधि के अतिरिक्त कुछ अन्य तत्व भी उनकी वृद्धि के लिए उत्तरदायी हैं। चरों में संबंध की मात्रा का माप सह-सम्बन्ध कहलाता है तथा गुणों में सम्बन्ध की मात्रा और दिशा को दर्शाता है।

सह-संबंध निम्न में से एक अथवा अधिक कारणों से स्थापित हो जाता है

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(1) दोनों श्रेणियों में कारण-परिणाम का सम्बन्ध हो ।
(2) दोनों श्रेणियों में सह-सम्बन्ध किसी तीसरे सामान्य कारण से हो जैसे आय की अधिकता के कारण लोग कार भी रखें तथा टेलीफोन भी लगवाएं अर्थात् कार रखने और टेलीफोन लगवाने में संबंध हैं।
(3) दोनों चर मूल्यों में एक-दूसरे के कारण परिवर्तन हो जैसा शिक्षा पर व्यय में व्यय में वृद्धि या कमी और प्रति व्यक्ति व्यय में वृद्धि या कमी में संबंध।
(4) दो चर-मूल्यों में प्रत्यक्ष संबंध न होते हुए भी दैव योग से संबंध स्थापित हो जाय। उदाहरण के लिए, यदि भारत में कोयले का मूल्य कम हो जाय और साथ ही अमरीका में स्वर्ण का मूल्य कम हो जाय तो यहाँ सह-संबंध स्पष्ट होने पर भी सह-सम्बन्ध नहीं कहलायेगा। इसका कारण है कि ऐसा दैव योग या आकस्मिक रूप से हुआ है।

सह-संबंध के प्रकार (Types of Correlation)

सम्वन्धित चरों के मध्य परिवर्तन की दिशा, अनुपात तथा समंक मालाओं की संख्या के आधार पर सह-सम्बन्ध निम्न प्रकार का हो सकता है-

1)धनात्मक तथा ऋणात्मक सह-संबंध (Positive and Negative Correlation)

यदि दो पद मालाओं का परिवर्तन एक ही दिशा में होता है तो उनके सह-संबंध को प्रत्यक्ष, अनुलोम अथवा धनात्मक कहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि किसी वस्तु की माँग की वृद्धि के साथ-साथ उस वस्तु के मूल्य में वृद्धि होती है तो उनके बीच के सम्बन्ध को धनात्मक सह-सम्बन्ध कहेंगे।

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इसके विपरीत यदि दो पद मालाओं में परिवर्तन एक ही दिशा में न होकर दो विपरीत दिशाओं में होता है तो उन मालाओं के सह-संबंध को प्रतीप अप्रत्यक्ष, विलोम या ऋणात्मक कहते हैं। उदाहरणार्थ यह देखा जाता है कि पूर्ति की वृद्धि के साथ-साथ मूल्य घटता है। इसलिए पूर्ति व मूल्य में ऋणात्मक सम्बन्ध है।

2)रेखीय और वक्र रेखीय सह-संबंध (Linear and Curvilinear Correlation)

जब दो चरों में परिवर्तन का अनुपात स्थाई रूप से एक समान होता है तो इस प्रकार के सह-संबंध को रेखीय कहते हैं। इसे यदि बिन्दु रेखीय पत्र पर अंकित किया जाय तो एक सीधी रेखा बनेगी। इस प्रकार का सह-संबंध भौतिक तथा गणितीय विज्ञानों में पाया जाता है। सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में यह संभव नहीं। उदाहरण स्वरूप, यदि किसी कारखाने में मजदूरों की संख्या को दूना कर देने पर उत्पादन भी दूना हो जाय तो इसे रेखीय सह-संबंध कहेंगे।

इसके विपरीत, जब परिवर्तन का अनुपात स्थायी रूप से समान नहीं रहता तब सह-संबंध को वक्र रेखीय कहते हैं। यदि इसे बिन्दु रेखीय पत्र पर अंकित किया जाय तो एक वक्र रेखा बनेगी। जैसे, विज्ञापन-व्यय और बिक्री में सामान्यतः वक्र रेखीय सह-संबंध होगा, क्योंकि बहुत कम सम्भावना है कि दोनों चरों के परिवर्तन के अनुपात में स्थायित्व होगा ।

3)सरल, बहुगुणी एवं आंशिक सह-संबंध (Simple, Multiple and Partial Correlation)

दो चर मूल्यों के बीच में पाये जाने वाले सह-संबंध को सरल सह-संबंध कहते हैं। इन दो चर-मूल्यों में से एक कारण या स्वतन्त्र कहलाता है और दूसरा परिणाम या आश्रित । बहुगुणी सह-संबंध तब होता है जब दो या दो से अधिक स्वतंत्र चर-मूल्य होते हैं और आश्रित चर मूल्य केवल एक होता है इन सभी स्वतन्त्र चर मूल्यों का आश्रित चर-मूल्यों पर सम्मिलित प्रभाव पड़ता है। आंशिक सह-संबंध तव होता है जब दो से अधिक चर-मूल्यों का अध्ययन तो किया जाता है परन्तु अन्य चर-मूल्यों के प्रभाव को स्थिर रखकर केवल दो चर-मूल्यों से सह-संबंध निकाला जाता है।

उदाहरण के लिए, यदि वर्षा और खाद दोनों के गेहूँ की उपज पर सामूहिक प्रभाव का गणितीय अध्ययन किया जाय तो वह बहुगुणी सह-संबंध कहलायेगा। इसके विपरीत,यदि एक स्थिर वर्षा की मात्रा में खाद की मात्रा व गेहूँ की उपज के संबंध का विवेचन किया जाय तो वह आंशिक सह-संबंध कहलायेगा। सहसंबंध की मात्रा सहसंबंध गुणांक की सहायता से निकाली जाती है।

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सहसंबंध के कुछ प्रकार इस प्रकार हैं जो इसके गुणांक पर निर्भर करते हैं।

(i) पूर्ण सहसंबंध (Perfect correlation)-

अगर दो पदमालाओं के धनात्मक या ऋणात्मक परिवर्तन समान अनुपात में हो रहे हों तो इस प्रकार का सहसंबंध पूर्ण धनात्मक अथवा पूर्ण ऋणात्मक होता है तथा सहसंबंध गुणा का मान +ा होगा।

(ii) सहसंबंध का अभाव (Absence of correlation)

जब दो पदमालाओं के मूल्यों के परिवर्तन में कोई संबंध नहीं है तो सहसंबंध का अभाव होता है और इसका गुणांक शून्य होगा।

(iii) निम्न सहसंबंध (Low correlation)

जब दो पदमालाओं में परिवर्तन बहुत कम मात्रा अर्थात् जिसका सहसंबंध गुणांक 0.5 से कम होता है तो पदमालाओं के मूल्यों में निम्न सहसंबंध होगा।

(iv) सामान्य सहसंबंध (Moderate correlation)

जब दो पदमालाओं में गुणांक 0.5 से अधिक तथा + 0.699 के बीच होता है तो इस प्रकार के संबंध को सामान्य सहसंबंध कहा जाता है।

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