About Cannonball tree- प्राकृति विविधताओं से भरी हुई है। इसमें तरह-तरह के जीव और पौधे अपनी अलग पहचान के साथ मौजूद हैं। कुछ तो इतनी विचित्रता से भरे हैं कि बरबस ही किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं।
ऐसा ही विचित्रतायुक्त एक वृक्ष है जिसे तोप के गोलों वाला वृक्ष कैनन बॉल ट्री कहा जाता है क्योंकि इसके फल तोप के गोलों जैसे दिखाई देते हैं। कैनन बॉल यानी तोप के गोलों जैसे फलों वाले इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम कुरुपिटा ग्वायनेन्सिस (Couroupita guianensis) है और यह पौधों के लेसीथिडेसी परिवार का सदस्य है। अपने विशेष फलों के कारण कैनन बॉल वृक्ष के नाम से प्रसिद्ध यह वृक्ष फूलों या फलों को धारण करने पर किसी को भी आकर्षित कर लेता है।
Cannonball tree का स्थान और आकार
इसे दक्षिणी अमरीका का देशज माना जाता है। यह अपने देश में भी पाया जाता है लेकिन इनकी संख्या अन्य वृक्षों की तुलना में कम है। यह आर्द्र क्षेत्रों में अच्छी तरह बढ़ता है।
इसके वृक्षों की ऊँचाई 35 मीटर तक होती है और इसके तने का घेरा ढाई फुट से अधिक तक पाया गया है। इसके वृक्ष सदाबहार वृक्षों की श्रेणी में आते हैं। हालाँकि यह अपनी पत्तियों को एक साथ गिरा देता है लेकिन नई पत्तियां इतनी जल्दी निकल आती हैं कि लगता है जैसे इसकी पत्तियां गिरी ही नहीं थीं। नई पत्तियों का रंग हल्का हरा होता है और ये खूब चमकीली होती हैं। कुछे दिनों के बाद नई पत्तियां गाढ़े हरे रंग की हो जाती हैं,
साथ ही इनकी चमक कम हो जाती है। ये पत्तियां शाखाओं के शीर्ष भाग पर समूह में लगी होती हैं पूर्ण विकसित पत्तियों की लम्बाई दस से पन्द्रह इंच तक होती है। इसे एक सजावटी वृक्ष के तौर पर बाग-बगीचों, उद्यानों आदि में लगाया जाता है।
Cannonball tree का फूल
इस वृक्ष के फूल और फल मुख्य तने से निकलने वाली विशेष प्रकार की शाखाओं पर लगते हैं। इस प्रकार की शाखाएं मुख्य तने के निचले भाग के चारों ओर की छाल से निकलती हैं। फूल व फल उत्पन्न करने वाली शाखाएं काफी लम्बी होती हैं।
इन शाखाओं की लम्बाई दो से तीन मीटर तक होती है। इसके फूल बहुत ही आकर्षक चमक, रंग और सुगंध वाले होते हैं। फूलों का आकार बड़ा होता है तथा इनका घेरा सात से आठ सेमी. तक होता है। इसके फूल में छह बड़ी-बड़ी पंखुड़ियां पाई जाती हैं जो काफी मोटी होती हैं। इन पंखुड़ियों के घेरे में नर जननांग पुंकेसर और मादा जननांग जायांग पाए जाते हैं।
Cannonball tree की धार्मिक मान्यता
इसके फूलों को हिन्दी में ‘शिवलिंग पुष्प’ तथा ‘नाग चम्पा’, कन्नड़ और तमिल में ‘नागलिंग पुष्प’ और तेलगू में ‘मल्लिकार्जुन पुष्प’ के नाम से जाना जाता है। हिन्दू इसे पवित्र, धार्मिक तथा भगवान शंकर से सम्बन्धित वृक्ष मानते हैं। पंखुड़ियों के बीच में मौजूद जायांग की आकृति शिवलिंग की तरह होती है और इसे घेरे हुई पंखुडियां इस तरह मुड़ी होती हैं मानो नाग के फन हों। देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कई नाग अपने फनों को उठा कर शिवलिंग को घेरे हुए हों।
इसे शिवकमल या कैलाशपति भी कहा जाता है। परागण इस वृक्ष के फूलों में मकरन्द नहीं होता है इसलिए इस पर आने वाले कीटों को सिर्फ पराग प्राप्त होता है। इसके फूलों में दो तरह के पराग पाए जाते हैं। एक संतति की उत्पत्ति के योग्य तथा दूसरे अनुर्वरक होते हैं।
फूलों में पाए जाने वाले दोनों तरह के परागों में से अनुर्वरक परागों को कीट अपने भोजन हेतु एकत्र करने के लिए फूलों पर आते हैं। कीटों के आने पर प्रजनन में सक्षम पराग उनके शरीर से चिपक कर अन्य फूलों तक पहुँच जाते हैं और इस प्रकार परागण की क्रिया सफलतापूर्वक सम्पन्न होती है।
Cannonball tree के फल
फूलों के परागण के बाद से फल बनने और परिपक्व होने में लगभग आठ-नौ माह का समय लगता है। इसमें लगने वाले फल आमतौर पर सामान्य वृक्षों की सामान्य शाखाओं पर लगने वाले फलों की तरह न लग कर मुख्य तने से बेंतों की तरह निकली हुई लम्बी, लचीली और नीचे की ओर झूलती हुई विशेष शाखाओं के बाहरी छोर की ओर लगे होते हैं।
कुछ फल तो इन लम्बी व विशेष शाखाओं पर लगे रहने के बावजूद भूमि को स्पर्श करते रहते हैं। नीचे के फलों को छोटे-छोटे बच्चे भी आसानी से पा सकते हैं लेकिन ज्ञातव्य है कि इसके फल खाद्य नहीं हैं। इसकी शाखाओं पर फूल और फल एक साथ भी पाए जाते हैं।
पुराने फूल फलों में बदलते रहते हैं और उसी शाखा पर मौजूद आगे की कलियां विकसित होकर फूलों में बदलती रहती हैं। इसकी फल-भित्ति काष्ठीय होती है जिसकी परिधि 15 से 25 सेमी. तक होती है। फलों का आकार और रंग रेशों से मुक्त किए गए कवचयुक्त नारियल के फलों की तरह होता है।
यदि फल ऊँचाई पर होते हैं तो पकने पर गिर कर तेज आवाज के साथ फट जाते हैं। नीचे या भूमि से सटे होने पर ये पक कर यूं पड़े रहते हैं ताजा फटे हुए फलों का गूदा पीले रंग का होता है जो शीघ्र ही वायु में मौजूद ऑक्सीजन से ऑक्सीकृत होकर नील-हरित रंग का हो जाता है।
यह भी एक आश्चर्य ही है कि इसके फूल अत्यन्त अच्छी खुशबू वाले होते हैं और उन्हीं फूलों से पैदा होने वाले फलों से दुर्गन्ध उठती है। इसके फलों के गूदे की दुर्गन्ध कुछ -कुछ किण्वित पदार्थों की तरह होती है। इसके परिपक्व फल तोप के गोलों की तरह दिखाई देते हैं जिसके कारण ही इसका नाम ‘कैनन बॉल (तोप का गोला) वृक्ष’ रखा गया है।
बीजों का प्रकीर्णन
कैनन बॉल वृक्ष के एक परिपक्व फल में 200 से 300 तक बीज होते हैं। इसके बीजों का प्रकीर्णन कुछ ऐसे जीवों से होता है जो इसके फलों के गूदे के साथ-साथ इसके बीजों को भी खा जाते हैं तथा बीजों को अपनी विष्ठा के साथ दूर-दूर तक पहुँचा देते हैं।
इसके बीजों का आवरण रोमयुक्त होता है। आवरण पर पाए जाने वाले ये रोम संभवतः किसी जीव द्वारा बीजों को खाए जाने पर उसके आहार-नाल में सुगमता से सरकने में सहायक होते हैं। बहुत कम ही जीव ऐसे हैं जो इसके फलों को अपने आहार में शामिल करते हैं।
इसके फलों के गूदे को कुछ बड़े पक्षी तथा सुअर आदि खाते हैं। गूदा खाने के दौरान ये जीव इसके बीजों को निगल लेते हैं तथा इनके द्वारा विष्ठा को कहीं दूसरी जगह त्यागे जाने पर बीज जस के तस बिना पचे हुए बाहर आ जाते हैं। इस प्रकार इस वृक्ष की संतति का प्रसार होता है।
Cannonball tree का उपयोग
परम्परागत ज्ञान और शोधों से इस वृक्ष के कई औषधीय गुणों की जानकारी सामने आई है। इस वृक्ष में प्रतिजैविक, प्रतिकवकीय और रोगाणुरोधी गुण पाए जाते हैं। पत्तियों को त्वचा सम्बन्धी विकारों के उपचार में उपयोगी पाया गया है। इसकी नई पत्तियों को दाँतों के दर्द को कम करने में प्रयोग किया जाता है। फलों की दुर्गन्ध की सहायता से भण्डार-गृहों से कीटों को दूर रखा जाता है।
इसकी लकड़ियां बहुत मजबूत नहीं होती हैं अतः इससे सिर्फ हल्के-फुल्के फर्नीचर ही बनाए जाते हैं। इसकी कठोर फल-भित्ति से पात्र तथा खिलौने बनाए जाते हैं। धार्मिक क्षेत्र में इस वृक्ष की बहुत मान्यता है। भगवान शंकर के मन्दिरों के प्रांगण में इसे लगाए जाने की परम्परा है।
सड़कों के किनारे तथा उद्यानों में खड़े इसके वृक्षों के तने पर ‘सावधान’ का बोर्ड लगा दिया जाता है क्योंकि ऊपर के फलों के सिर पर गिरने पर गम्भीर चोट लगने का भय रहता है।
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