- जन्म-1778 दिसम्बर
- जन्म स्थान-ब्रिटेन
- निधन-1826 ई.
डेवी(Humphry Davy)ने आर्कलाइट का आविष्कार करके सबको चकित कर दिया। उन्होंने विद्युत रसायन विधि से सोडियम हाइड्रॉक्साइड यानी कास्टिक सोडे से सोडियम को पृथक किया। साथ ही सिद्ध किया कि हीरा वास्तव में शुद्ध कार्बन है।
हम्फ्री डेवी का विज्ञान के क्षेत्र मे योगदान-Humphry Davy biography in hindi
कोयला आज भी ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है। परंतु जब तक पेट्रोल जैसे पदार्थों का आविष्कार नहीं हुआ था कोयला ऊर्जा का एकमात्र मुख्य स्रोत था। 19वीं सदी के आरम्भ तक कोयला खदानें मजदूरों के लिए किसी भयानक कब्र से कम नहीं थीं।
आए दिन खदानों में दुर्घटनाएं होती रहती थीं और मजदूर मरते रहते थे। इन दुर्घटनाओं में अधिकांश दुर्घटनाएं आग लगने से होती थी। वस्तुतः धरती के गर्भ में जिन लैम्पों की सहायता से काम करते थे वे लैम्प अपनी लौ से ताप उत्पन्न करते थे।
उन लैम्पों से अक्सर खादानों में फैली मिथेन गैस आग पकड़ लेती थी और दुर्घटना घट जाती। इन दुर्घटनाओं से मुक्ति दिलाई डेवी के अभयदीप ने। अभयदीप का आविष्कार सर हम्फ्री डेवी ने 1815 में किया था।
डेवी (Biography of Humphry Davy in hindi) उन दिनों ब्रिटेन के जाने-माने रसायनज्ञ थे। जब उन्होंने खान मजदूरों की समस्या को देखा। उन्होंने इस समस्या पर विचार किया और एक ऐसा सुरक्षित लैंप विकसित करने का इरादा किया, जो आक्सीजन को तो अंदर ले सके, लेकिन उसकी लौ से पैदा होने वाली गर्मी के कारण कोयला खानों में आग न लगे।
उन्हें पता था.कि किसी भी लैम्प की लौ को जलने के लिए आक्सीजन का होना अनिवार्य है लेकिन लौ से निकलने वाली ऊष्मा के कारण इसके चारों ओर उपस्थित ज्वलनशील गैस में सामान्यतः आग लग जाएगी। उनके मस्तिष्क में यह विचार आया कि यदि तेल से जलने वाली लैंप की लौ को किसी तार की जाली से चारों ओर से घेर दिया जाए तो आग लगने की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।
उन्हें पता था कि जाली में से लौ तक वायु तो पहुंच सकती है लेकिन लौ से पैदा होने वाली गर्मी बाहर की गैसों के सम्पर्क में आने से पहले ही जाली के तार की ऊष्मा चालकता के कारण समाप्त हो जाएगी।
इस प्रकार की व्यवस्था में लैम्प से निकलने वाला प्रकाश तो थोड़ा-सा जरूर कम हो गया लेकिन जाली से निकलने वाला प्रकाश खानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए फिर भी पर्याप्त था।
डेवी (Biography of Humphry Davy in hindi) द्वारा निर्मित इस प्रकार के लैम्प आज भी प्रयोग किए जाते हैं। यद्यपि विद्युत बल्ब के आविष्कार के बाद इनका प्रयोग काफी कम हो गया
आजकल इन लैम्पों (Humphry Davy lamp) का प्रयोग मुख्य रूप से खतरनाक गैसों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है क्योंकि इन लैम्पों की लौ पर ज्वलनशील गैसों का प्रभाव पड़ता है।
सर हम्फ्री डेवी द्वारा नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrious Oxide) पर किये गए शोध -Humphry Davy invention in hindi
सर हम्फ्री डेवी (Humphry Davy) के आविष्कार केवल अभयदीप तक ही सीमित नहीं थे। उन्होंने अपना वैज्ञानिक जीवन सन् 1797 से आरम्भ किया। इन्होंने अपने को जोखिम में डालकर रोगियों को बेहोश करने के लिए काम में आने वाले पदार्थ नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrious Oxide) यानी लॉफिंग गैस पर बहुत से अनुसंधान किए।
इन्होंने गैस की कुछ मात्रा तैयार की और उसे एक रेशमी थैले में बंद कर नाक को बिना बंद किए उसमें आधे मिनट तक सांस ली। पहले उन्हें चक्कर आने लगा और बाद में वे अचेत हो गए। गैस में कुछ और अधिक देर तक सांस लेने के बाद उन्हें ऐसा लगा जैसे वे हंस रहे हों। उन्हें यह अवस्था बहुत ही आनंददायक लगी।
शीघ्र ही वे बेहेश हो गए और उन्हें लगा कि जैसे वे एक नई दुनिया में पहुंच गए हों। लॉफिग गैस में सांस लेने के आनंद का समाचार चारों ओर फैल गया। इस गैस में सांस लेने के लिए एक महिला को राजी किया गया।
कुछ देर सांस लेने के बाद वह युवती मकान से बाहर निकलकर दौड़ लगाती हुई एक कुत्ते के ऊपर से कूद गई।
सौभाग्यवश उसे एक व्यक्ति ने पकड़कर बचा लिया।
इस गैस के आविष्कार (Humphry Davy discoveries) के साथ डेवी का यश लंदन तक फैल गया। इस आधार पर सन् 1800 में उन्हें रॉयल इंस्टीट्यूट में प्राध्यापक नियुक्त किया गया।
उन्होंने इस गैस के गुणों के विषय में एक सार्वजनिक व्याख्यान दिया। कुछ श्रोताओं ने गैस में सांस ली और एक विशेष अनुभव का आनंद प्राप्त किया।
कई वर्षों तक इस गैस का उपयोग मनोविज्ञान सम्बंधी पार्टियों में होता रहा। झगड़ालू पत्नियों का इलाज करने के लिए इस गैस को प्रयोग में लाया जाने लगा।
एक पार्टी में हौरास वेल्स नामक एक दंत चिकित्सक ने इस गैस को सूंघा। उसी पार्टी में उस डॉक्टर ने देखा कि जिस नवयुवक को यह गैस दी गई थी, वह एक बैंच से टकराया जिससे उसकी पिंडली की खाल उतर गई लेकिन उस नवयुवक को चोट का कुछ पता न लगा।
इस घटना से वेल्स को विश्वास हो गया कि इस गैस को बिना दर्द के दांत निकालने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। शीघ्र ही गैस को बिना दर्द के दांत निकालने के लिए प्रयोग किया जाने लगा। इतना ही नहीं बाद में अनेक सर्जन ऑप्रेशन के लिए इस गैस को मरीजों को बेहोश करने के लिए प्रयोग करने लगे।
आज भी इस गैस का व्यापक रूप से इस काम के लिए प्रयोग होता है लंदन के रॉयल इन्स्टीट्यूशन के अनुसंधानकर्ता और वैज्ञानिक के रूप में उनकी ख्याति विश्व भर में फैल गई। उन्होंने धातु रंजन, कृषि रसायन और वोल्टीय सैलों पर काफी अनुसंधान किए, जिनसे उन्हें और भी अधिक मान्यता प्राप्त हुई।
सन् 1813 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक फैराडे ने इनके सहायक के रूप में काम करना आरम्भ किया। उसी वर्ष उन्होंने एक विधवा से विवाह कर लिया। सन् 1860 में उन्होंने सोडियम और पोटैशियम को विद्युत विश्लेषण द्वारा प्राप्त किया और सन् 1809 में इसी विधि से उन्होंने दूसरी धातु प्राप्त की। सुहागे (Borex) को पोटैशियम के साथ गर्म करके उन्होंने बोरोन प्राप्त की।
उन्होंने क्लोरीन की रंग उड़ाने की क्रिया को समझाया और यह सिद्ध किया कि क्लोरीन एक तत्त्व है। इसी वर्ष ये दोनों यूरोप की यात्रा पर निकले । इस यात्रा के दौरान इन्होंने आयोडीन का अध्ययन किया और यह सिद्ध किया कि हीरा कार्बन का ही एक रूप है।
बाद वे वर्षों में फैराडे के साथ इनके द्वारा किए गए अनुसंधान मुख्यतः विद्युत चुम्बकत्व सम्बंधित थे। बाद में इन दोनों वैज्ञानिकों में काफी मतभेद हो गया था।
डेवी ने ‘एलिमेंट्स ऑफ कैमिकल फिलॉसफी’ (Elements of chemical Philosophy) नामक पुस्तक का प्रथम खंड प्रकाशित कराया। इन्होंने ज्वालामुखियों के फटने और समुद्री पानी में तांबे की उपस्थिति के सम्बंध में भी अध्ययन किया।
हम्फ्री डेवी की मृत्यु-Humphry Davy death
डेवी (Humphry Davy) को अपने जीवनकाल में अनेक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए। सन् 1812 में इन्हें ‘सर’ की उपाधि से विभूषित किया गया। सन् 1820 में इन्हें रॉयल सोसायटी का अध्यक्ष चुना गया। सर हम्फ्री डेवी की मृत्यु 1826 में 48 साल की उम्र में हुई।
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