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भौतिकी विज्ञान क्या है , परिभाषा, इतिहास, अनुप्रयोग, प्रकार (Physics Definition, Types, Uses, History in hindi)

भौतिकी कई अलग-अलग शाखाओं के साथ एक बड़ा और जटिल क्षेत्र है। यह हजारों वर्षों से है, और यह केवल एक विज्ञान नहीं है। हम कह सकते हैं कि भौतिकी मानव जीवन का अभिन्न अंग बन गई है।

हम इस लेख में भौतिकी के कुछ पहलुओं के बारे में चर्चा करेंगे। भौतिकी क्या है? भौतिकी के अनुप्रयोग क्या हैं? यह कैसे काम करता है? यह कैसा दिखता है?

भौतिकी क्या है( What is Physics)

भौतिकी एक विज्ञान है जो प्राकृतिक दुनिया से संबंधित है। यह पदार्थ और गति का अध्ययन है, और इसमें परमाणुओं, अणुओं और प्राथमिक कणों का अध्ययन शामिल है। भौतिकी शब्द के बहुत सारे अर्थ हैं, लेकिन कुछ दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं।

भौतिकी  की परिभाषा (Physics Definition)

भौतिकी प्राकृतिक विज्ञान की एक शाखा है जो पदार्थ और ऊर्जा के अध्ययन से संबंधित है। यह पदार्थ और ऊर्जा की मौलिक प्रकृति से संबंधित है। इस क्षेत्र में परमाणु, आणविक और ब्रह्माण्ड संबंधी भौतिकी सहित भौतिकी के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।

भौतिकी के विषय-क्षेत्र एवं इसके ज्ञान-अर्जन की ललक (रोमांच) (Scope and Excitement of Physics)

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Mysterious science and medical technology of the future

मानव मस्तिष्क के लिए जिज्ञासा (curiosity) सर्वोपरि वरदान है जिसके कारण मानव जाति अनादि काल से निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर होती जा रही है। विश्व में प्रेक्षित (observed) घटनाओं; जैसे—दिन-रात की पुनरावृत्ति (recurrence), ऋतुओं का वार्षिक चक्र (annual cycle), समुद्र में ज्वार-भाटे (tides), चंद्रमा की कला (phase) में आवर्ती परिवर्तन (periodic changes), इंद्रधनुष (rainbows) की छवि, ज्वालामुखी (volcanoes), भूकंप (earthquakes) तथा सुनामी (tsunami) का कहर आदि के कारण को जानने की मानव को हमेशा से प्रवृत्ति रही है। प्रकृति में घटित ऐसी परिघटनाओं (phenomena) के अर्थपूर्ण स्पष्टीकरण (logical explanation) के लिए विज्ञानियों (scientists) ने अनेकानेक साधनों का निर्माण किया। मानव समाज के ऐसे ही निरंतर प्रयासों के कारण आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (modern science and technology) का मार्ग प्रशस्त हुआ है। 20 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) का चंद्रमा की सतह पर पहुँचने से लेकर भारतीय मूल की महिला सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) का कई माह तक अंतरिक्ष (space) में रहकर प्रौद्योगिकी कार्यों में संलग्न रहना सचमुच में विज्ञान की आर्श्यजनक प्रगति है। इसी क्रम में हम भारतीय, कल्पना चावला की विज्ञान के क्षेत्र में योगदान एवं प्रयासों को कदापि भूल नहीं सकते।

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मूलतः किसी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान (science) कहते हैं। विज्ञान की विभिन्न शाखाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है— भौतिक विज्ञान (physical science) और जैव विज्ञान (biological science)। भौतिक विज्ञान में निर्जीव (nonliving) पदार्थों का अध्ययन किया जाता है जबकि जैव विज्ञान का संबंध सजीव (living) पदार्थों से है।

आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व विज्ञान का अधिक विस्तार नहीं हुआ था। इसलिए किसी एक वैज्ञानिक के लिए यह आसान था कि वह भौतिक विज्ञान एवं जैव विज्ञान दोनों ही क्षेत्रों में निपुण हो । यही कारण था कि उस युग में भौतिक विज्ञान के विशिष्ट वैज्ञानिक अच्छे चिकित्सक और जीवविज्ञानी (biologist) भी थे। उस समय भौतिक विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के बीच निश्चित और स्पष्ट विभाजन नहीं था जैसा कि आज के युग में है। विज्ञान की इन सभी शाखाओं के सम्मिश्रण को प्राकृतिक दर्शन (natural philosophy) कहा जाता था। अरस्तू (Aristotle), आर्किमीडीज (Archimedes), गैलीलियो, न्यूटन आदि प्राकृतिक दार्शनिक (natural philosophers) माने जाते थे।

जैसे-जैसे तीव्रगति से विज्ञान की प्रगति एवं उत्तरोत्तर उसका विस्तार होने लगा, किसी एक वैज्ञानिक (scientist) का कार्य क्षेत्र भी सीमित होने लगा, क्योंकि वह क्षेत्र स्वयं अपने आप में बहुत अधिक विकसित हो गया था। आज एकही भौतिकविद् के लिए यह असंभव है कि उसे भौतिक विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में हो रही प्रगति के विषय में पूरी जानकारी हो। आज के युग में भौतिक विज्ञान को अनेक शाखाओं एवं प्रशाखाओं में बाँटा गया है, जैसे- भौतिकी (physics), रसायन (chemistry), खगोलविज्ञान (astronomy), भूविज्ञान (geology), इंजीनियरी (engineering) आदि। इतना ही नहीं, भौतिकी (physics) के भी अनेक क्षेत्र हो गए हैं। भौतिकी के अध्ययन के लिए उसे सामान्यतः निम्नलिखित भागों में बाँटा जाता है

(a) सामान्य भौतिकी (General physics) – इसमें यांत्रिकी (mechanics) और द्रव्य के गुणों (properties of matter) का अध्ययन किया जाता है। (b) ऊष्मा (Heat)

(c) ध्वनि (Sound)

(d) प्रकाश (Light)

(e) स्थिर वैद्युत (Electrostatics)

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(f) धारा विद्युत (Current electricity)

(g) चुंबकत्व (Magnetism)

(h) आधुनिक भौतिकी (Modern physics) —इसमें परमाणु और सूक्ष्म कणों के रहस्यों का अध्ययन किया जाता है।

इनके अतिरिक्त भौतिकी की और भी कई शाखाएँ हैं; जैसे- इलेक्ट्रॉनिकी (electronics), कंप्यूटर विज्ञान (computer science), खगोल भौतिकी (astrophysics), रोबोट विज्ञान (robotics) आदि।

वर्तमान युग एक वैज्ञानिक युग है। अतः, विज्ञान और विशेषकर भौतिकी का अध्ययन हमारे जीवन का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। भौतिकी में हम भौतिक तथ्यों तथा वैज्ञानिकों के अनुभवों का अध्ययन तो करते ही हैं, इसके साथ ही स्वयं के व्यक्तिगत अनुभवों से विज्ञान के प्रति हमारी रुचि भी बढ़ती है।

भौतिकी के अध्ययन से हम रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन (दूरदर्शन), रॉकेट, हवाई जहाज आदि की कार्य-प्रणाली का ज्ञान प्राप्त करते हैं। चर्च में झूलते हुए लैंप की दोलनी गति देखकर गैलीलियो ने समय की माप की विधि निकाली। पेड़ से सेब का गिरना तथा चंद्रमा की गति देखकर न्यूटन ने गुरुत्व और गुरुत्वाकर्षण के नियमों को बताया। भाप के कारण केतली के ढक्कन की गति देखने से जेम्स वाट को भाप इंजन का आविष्कार करने की प्रेरणा मिली। इसी प्रकार दूरस्थ तारों से आनेवाले प्रकाश के स्पेक्ट्रमी विश्लेषण (spectral analysis) से तारों के अनेक गुणों का पता चलता है। मनुष्य का चंद्रमा पर उतरना, अंतरिक्ष की यात्रा करना आदि भी भौतिकी के अध्ययन के ही फल हैं। ब्रह्मांड में जीवन के अस्तित्व (existence of life in the universe) की संभावना के क्रम में खगोलविज्ञानियों (astronomers) ने एक ऐसे ग्रह (GL 581C) की खोज की है जो पृथ्वी जैसा ही है तथा हमारे सौरमंडल से बाहर, पृथ्वी से लगभग 20.5 प्रकाश-वर्ष दूर है। इस ग्रह का ताप (temperature) 0°C से 40°C के बीच है जो जल एवं जीवन की संभावना के अनुकूल है।

संपूर्ण भौतिक जगत में एक विशाल विविधता पाई जाती है। अगले अध्याय में लंबाई, द्रव्यमान एवं समय के विशाल परास (enormous range) की जानकारी दी जाएगी। उदाहरण के लिए, अपरमाणविक कणों (subatomic particles) के द्रव्यमान 10-31kg के क्रम के होते हैं जबकि खगोलीय जगत में द्रव्यमान 10 kg के क्रम के होते हैं। खगोलीय दूरियाँ 1026 मीटर के क्रम की तथा समय 10 वर्षों के क्रम का होता है। अपरमाणविक कणों से संबद्ध प्रक्रियाओं में दूरी का क्रम 10-15 मीटर तथा समयांतराल 10-20 सेकंड तक सूक्ष्म होता है। भौतिकी का इतना विशाल परास और इतनी अद्भुत जटिलताओं के रहने पर यह आश्चर्य की बात है कि सभी तथ्यों की व्याख्या बहुत ही कम नियमों के आधार पर की जा सकती है। ऐसे ही नियमों में एक है ऊर्जा-संरक्षण का सिद्धांत। सभी जटिल-से-जटिल प्रक्रियाओं में कुछ ऐसा है जो संरक्षित रहता है और वह है ऊर्जा। ब्रह्मांड में होनेवाली सभी प्रक्रियाओं में ऊर्जा-संरक्षण मान्य होता है।

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भौतिकी के नियमों की प्रकृति (Nature of Laws of Physics)

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illustration of hand holding sphere that represents planets activities, science surreal concept

भौतिकविज्ञानी (physicist) मूलतः प्रकृति में घटित विभिन्न परिघटनाओं (phenomena) से संबंधित प्रयोगों से प्राप्त प्रेक्षणों (observations) के आधार पर वैसे नियमों (laws) की खोज करने का प्रयास करते रहे हैं, जिनके द्वारा सभी प्राकृतिक घटनाओं की स्पष्ट व्याख्या की जा सके। ऐसे नियमों को प्रायः गणितीय समीकरणों से भी व्यक्त किया जाता है जो परमाणविक परास (atomic size) से लेकर दूरस्थ तारों (distant stars) की दूरियों तक के लिए भी मान्य हों।

प्रत्येक भौतिक परिघटना विभिन्न प्रकार के बलों के अधीन घटित होती है जिसमें अनेक भौतिक राशियाँ समय के साथ तो परिवर्तित होती रहती हैं, लेकिन कुछ विशिष्ट भौतिक राशियाँ ऐसी भी होती हैं जो समय के साथ हमेशा अचर (constant) अर्थात संरक्षित (conserved) रहती हैं। ऐसी भौतिक राशियों को प्रकृति की संरक्षित राशियाँ (conserved quantities in nature) कहा जाता है, जिनके आधार पर संरक्षण नियम (conservation laws) बनते हैं और प्रेक्षित परिघटनाओं की गुणात्मक (qualitative) एवं मात्रात्मक (quantitative) व्याख्या स्पष्ट रूप से की जाती है।

उदाहरण के लिए, ऊर्जा-संरक्षण नियम (energy conservation law) पर ही विचार करें। इस नियम के अनुसार, “बाह्य संरक्षी बलों (external conservative forces) के अधीन किसी निकाय (system) की कुल यांत्रिक ऊर्जा (total mechanical energy) संरक्षित रहती है।” यांत्रिक ऊर्जा का अर्थ है : गतिज ऊर्जा (kinetic energy) एवं स्थितिज ऊर्जा (potential energy) का कुल योगफल। गुरुत्व के अधीन निर्बाध रूप से (freely) गिरते हुए पिंड में अर्थात मुक्त-पतन (free fall) में यांत्रिक ऊर्जा संरक्षण नियम का एक सुपरिचित उदाहरण मिलता है। मुक्त-पतन के क्रम में गतिज ऊर्जा में समय के साथ वृद्धि तथा स्थितिज ऊर्जा में ह्रास होता है, परंतु प्रत्येक क्षण इनका कुल योगफल अचर (constant) रहता है।

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ऊर्जा-संरक्षण का व्यापक नियम (general law) सभी प्रकार के बलों के अधीन तथा ऊर्जा रूपांतरणों (energy transformations) के लिए भी मान्य होता है। संपूर्ण विश्व (universe) को यदि एक वियुक्त निकाय (isolated system) मान लें, तो भी अनेक प्रकार की प्रचंड परिघटनाओं के क्रम में विश्व की कुल ऊर्जा अचर (constant) रहती है— केवल ऊर्जा का रूपांतरण होता है, योगफल अपरिवर्तित, अर्थात अचर रहता है। —

आइंस्टाइन (Einstein) द्वारा प्रतिपादित आपेक्षिकता के सिद्धांत (theory of relativity) से पहले, पदार्थ या द्रव्य (matter) को अविनाशी (indestructible) माना जाता था और द्रव्यमान-संरक्षण नियम (law of conservation of mass) प्रकृति के मूलभूत नियम (fundamental law) के रूप में मान्य था। अभी भी रासायनिक अभिक्रियाओं (chemical reactions) में द्रव्यमान संरक्षण नियम एक वैध नियम (valid law) है, क्योंकि इन अभिक्रियाओं में परमाणु (atoms) मात्र पुनर्व्यवस्थित (rearranged) होते हैं, नष्ट नहीं होते तथा अभिकर्मकों (reactants) का कुल द्रव्यमान प्रक्रिया के उपरांत प्राप्त उत्पादों (products) के कुल द्रव्यमान के बराबर होता है। के

आइंस्टाइन के अनुसार द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता (mass energy equivalence) के नियम को गणितीय सूत्र E = mc2 से व्यक्त किया जाता है, जहाँ m द्रव्यमान का रूपांतरण E परिमाण की ऊर्जा के तुल्य होता है तथा c(= 3×108 ms-1) निर्वात में प्रकाश की चाल है। इस नियम के अनुसार, नाभिक की बंधन ऊर्जा (binding en gy), नाभिक का स्थायित्व (stability) तथा नाभिकीय अभिक्रियाओं (nuclear reactions) की स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है। नाभिकीय विस्फोटों (nuclear explosions), नाभिकीय शक्ति उत्पादन (nuclear power generation) तथा सूर्य में नाभिकीय संलयन (nuclear fusion) में मूलतः द्रव्यमान का ऊर्जा में रूपांतरण होता है।

ऊर्जा एवं द्रव्यमान अदिश राशियाँ (scalar quantities) हैं जिनके संरक्षण-संबंधी नियमों का वर्णन ऊपर किया जा चुका है, परंतु यह कदापि आवश्यक नहीं है कि संरक्षित (conserved) होनेवाली भौतिक राशियाँ केवल अदिश ही हों। रैखिक संवेग (linear momentum) एवं कोणीय संवेग (angular momentum) सदिश राशियाँ (vector quantities) हैं। यांत्रिकी में किसी वियुक्त निकाय (isolated system) के दोनों सदिश राशियों (रैखिक एवं कोणीय संवेग) के लिए संरक्षण नियम मान्य होता है। इस संरक्षण नियम की वैधता (validity) मात्र यांत्रिकी तक ही सीमित नहीं है। भौतिकी के वैसे क्षेत्र जिसमें न्यूटन के चिरसम्मत नियम (classical laws) मान्य नहीं होते, वहाँ भी रैखिक संवेग एवं कोणीय संवेग का संरक्षण प्रकृति का मूलभूत संरक्षण नियम (basic conservation law) होता है।

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विज्ञान एवं वैज्ञानिक विधि (Science and Scientific Methods)

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sphere is affecting space / time around it .

संस्कृत भाषा के ‘विज्ञान’ शब्द का अर्थ है ‘जानना’ अर्थात ज्ञान। अँग्रेजी भाषा में इसे साइंस (science) कहते हैं जिसका स्रोत (origin) लैटिन भाषा का शब्द सिंटिया (scientia) है और इस शब्द का भी अर्थ ‘ज्ञान’ ही है। विज्ञान मूलतः प्राकृतिक परिघटनाओं (natural phenomena) को समझने का सुव्यवस्थित प्रयास है ताकि प्रकृति के रहस्यों को विधिवत सुलझाया जा सके। इसी क्रम में अन्वेषण के विभिन्न पहलू सम्मिलित होते हैं, जैसे व्यवस्थित प्रेक्षण (systematic observations), नियंत्रित प्रयोग (controlled experiments), गुणात्मक एवं परिमाणात्मक विवेचना (qualitative and quantitative reasoning), गणितीय प्रतिरूपण (mathematical modelling), भविष्य कथन (prediction), सिद्धांतों का सत्यापन (verification) अथवा अन्यथाकरण (falsificaton)। ऐसे सभी पहलुओं के सम्मिश्रण को वैज्ञानिक विधि (scientific method) कहा जाता है।

भौतिकी में प्रयोगों से प्राप्त प्रेक्षणों के गुणात्मक एवं परिमाणात्मक अध्ययन करने पर मौलिक सिद्धांतों के ढाँचे (models) बनाए जाते हैं और उन सिद्धांतों में प्रगति के क्रम में संशोधन (modification) भी किया जाता है। यहाँ, हम गुरुत्वाकर्षण-संबंधी प्रेक्षणों के आधार पर सिद्धांतों में किए गए संशोधनों पर विचार करते हैं।

गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) – निकोलस कोपरनिकस (Nicolaus Copernicus: 14731543) ने सर्वप्रथम सौरमंडल संबंधी सूर्यकेंद्री सिद्धांत (heliocentric theory) की कल्पना की जिसके अनुसार सभी ग्रह (planets) संकेंद्रीय (concentric) वृत्ताकार कक्षाओं (orbits) में घूमते रहते हैं जिनके केंद्र पर सूर्य स्थिर रहता है।

प्रेक्षण के क्रम में टाइको ब्राह (Tycho Brahe: 1546–1601) ने ग्रहों की गति को देखकर विस्तृत आँकड़े (data) एकत्रित किए तथा इन्हीं आँकड़ों के आधार पर जोहान्नेस केप्लर (Johannes Kepler: 1571-1630) ने सूर्यकेंद्री सिद्धांत में संशोधन किया तथा बताया कि सौरमंडल में ग्रहों की कक्षा वृत्ताकार नहीं होती हैं, बल्कि दीर्घवृत्तीय (elliptical) होती है जिसके एक फोकस (focus) पर सूर्य स्थित रहता है। वस्तुतः, ऐसा संशोधन (अर्थात दीर्घवृत्तीय कक्षा) इसलिए किया गया ताकि ब्राह द्वारा संकलित आँकड़े दीर्घवृत्तीय कक्षा के सिद्धांत के साथ मेल में हों। अंततः, न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के आधार पर विश्लेषणात्मक विधि (analytical method) से ग्रहों की दीर्घवृत्तीय कक्षा को प्रमाणित किया गया जो आज भी मान्य है।

भौतिकी में विविध भौतिक परिघटनाओं की व्याख्या कुछ संकल्पनाओं (postulates) एवं नियमों को आधार मानकर की जाती है। इसी संदर्भ में भौतिकविज्ञानी प्रकृति के मूल बलों के एकीकरण (unification) करने के प्रयास में लगे हैं।

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भौतिकी, प्रौद्योगिकी एवं समाज (Physics, Technology and Society)

भौतिकी एवं विज्ञान की अन्य शाखाओं के प्रायोगिक अनुप्रयोगों (practical applications) से शिल्पविज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में काफी विस्तार होता जा रहा है। विज्ञान के विकास ने मानव-जीवन को बहुत प्रभावित किया है। प्रारंभ में भाप इंजन तथा विद्युत-मोटर के आविष्कार से औद्योगिक क्रांति (industrial revolution) आई। उच्च तरंगदैय के विद्युत-चुंबकीय तरंगों का उपयोग रेडियो, टेलीविजन तथा बेतार संचार (wireless communication) में होने लगा। भूस्थिर उपग्रह (geostationary satellite) द्वारा अन्य देशों के टेलीविजन प्रोग्राम का सीधा प्रसारण (live telecast) देखा जाने लगा। इन उपग्रहों के द्वारा मौसम-संबंधी पूर्वानुमान किया जाने लगा तथा भूगर्भ में छिपे खनिज एवं तेल के भंडार का भी पता लगाया जाने लगा।

भौतिकी के क्षेत्र में एक नवीन प्रौद्योगिकी (technology) के जन्म का एक अन्य उदाहरण है— सिलिकन चिप (silicon chip), जिसने कम्प्यूटर क्रांति को प्रेरित किया तथा संपूर्ण विश्व के विभिन्न भागों को इंटरनेट (internet) द्वारा एक-दूसरे से जोड़ दिया।

जैसे-जैसे शिल्पविज्ञान के विकास का क्रम जारी रहा, ऊर्जा के अन्य स्रोतों की खोज होने लगी। सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा के स्रोतों का विकास हुआ ताकि पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव में कमी हो।

घरों में तथा उद्योग में प्रतिदिन जिस विद्युत ऊर्जा का उपयोग होता है उसे शक्ति संयंत्रों (power plants) में अन्य ऊर्जाओं को विद्युत-ऊर्जा में रूपांतरित कर प्राप्त किया जाता है। ताप-विद्युत संयंत्रों (thermal power plants) में अतितप्त भाप (superheated steam) की ऊष्मा ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है। इसी प्रकार पनबिजली संयंत्र (hydroelectric power plant) में ऊँचाई पर इकट्ठा किए गए पानी के भंडार में निहित गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (gravitational potential energy) को विद्युत-ऊर्जा में रूपांतरित किया जाता है। नाभिकीय रिऐक्टर में नाभिकीय विखंडन (nuclear fission) से विमुक्त ऊर्जा से बिजली पैदा की जाती है। ऐसे सभी विकास शिल्पविज्ञान को आगे ले जा रहे हैं। इनका संबंध मूलतः भौतिकी के सिद्धांतों पर ही आधारित है और शिल्पविज्ञान को भौतिकी के विकास से कदापि अलग नहीं किया जा सकता है।

आधुनिक समाज में ऊर्जा की बढ़ती हुई आवश्यकता की पूर्ति के लिए वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों (alternative energy sources) के विकास की दिशा में भौतिकविज्ञानियों का प्रयास हमेशा से रहा है और रहेगा। उदाहरण के लिए, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा (geothermal energy) आदि का रूपांतरण विद्युत-ऊर्जा के रूप में किया जा रहा है। काफी कुछ प्रगति होने के बाद भी भौतिकविज्ञानियों का सतत प्रयास समाज की प्रगति एवं मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निरंतर जारी रहेगा।

अगले पृष्ठ के सारणी A में कुछ प्रमुख प्रौद्योगिकियों तथा उनसे संबद्ध भौतिकी के सिद्धांतों की सूची दी गई है तथा सारणी B में कुछ महान भौतिकविज्ञानियों के प्रमुख योगदानों का उल्लेख है। B

अंत में इस तथ्य का उल्लेख करना अत्यावश्यक है कि भौतिकी द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का यदि हम मनमाने ढंग से उपयोग करें तो इसके परिणाम प्रलयंकारी भी हो सकते हैं। पर्यावरण प्रदूषण एवं नाभिकीय युद्ध की आशंका का उल्लेख इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है। हिरोशिमा पर नाभिकीय बम द्वारा जो क्षति हुई वह मानव-जाति पर एक अमिट कलंक है। आज संपूर्ण विश्व को एकजुट होकर शांति बनाए रखने की दिशा में प्रयत्नशील रहने की आवश्यकता है।

प्राकृतिक विपदा (natural calamities) भी मानव-जाति के लिए एक अद्भुत चुनौती रही है। आज से लाखों वर्ष पूर्व किसी विशाल धूमकेतु (comet) के पृथ्वी से टक्कर के कारण डायनोसोर (dinosaurs) का अस्तित्व पूर्णतः विलीन हो गया था। जुलाई 1992 में वृहस्पति (Jupiter) के प्रबल गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण शूमेकर लेवी (Shoemaker Levy) नामक धूमकेतु इक्कीस टुकड़ों में टूटकर वृहस्पति की ओर तेजी से गिरने लगा था। 16 जुलाई, 1994 से 22 जुलाई, 1994 के बीच इसके सभी टुकड़े वृहस्पति से टकराकर उसमें विलीन हो गए थे। इस महत्त्वपूर्ण अंतरिक्षीय घटना में विमुक्त ऊर्जा का परिमाण विश्व के समस्त नाभिकीय बमों की विध्वंसक क्षमता से कई गुना अधिक था। टक्कर के बाद उत्पन्न ऊष्मा से वृहस्पति का कई हजार किलोमीटर चौड़ा क्षेत्र आग के गोले के रूप में बदल गया था। अब भौतिकविज्ञानियों का यह प्रयास रहेगा कि यदि कोई विध्वंसकारी धूमकेतु पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश करे तो टक्कर के पूर्व ही उसे नाभिकीय बमों द्वारा अंतरिक्ष में ही विलीन कर दिया जाए ताकि मानव-जाति को प्रलयंकारी क्षति से बचाया जा सके।

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