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प्रोटीन(Protein meaning in hindi)
प्रोटीन शब्द, ग्रीक शब्द प्रोटीओस (proteios) से व्युत्पित है, जिसका अर्थ होता है प्राथमिक महत्व । प्रोटीन जैविक तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण जैव अणु है। ये शरीर के प्रत्येक भाग में पाये जाते हैं एवं जीवन के कार्य तथा संरचना के मौलिक आधार का निर्माण करते हैं।शरीर की वृद्धि तथा नियमन के लिए इनकी आवश्यकता होती है ।
“पेप्टाइड आबंध से संयुक्त अत्यधिक संख्या के विभिन्न ऐमीनो अम्लों द्वारा निर्मित अत्यधिक संकुल नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक यौगिक प्रोटीन कहलाते हैं।”
अतः प्रोटीन प्राकृतिक रूप से प्राप्त पॉलीपेप्टाइड हैं। इसी कारण प्रोटीनों को ऐमीनो अम्लों का बहुलक माना जाता है, जिनमें ऐमीनो अम्ल परस्पर पेप्टाइड बन्धों द्वारा जुड़े रहते हैं। प्रोटीन का जैविक महत्व इस आधार पर समझ सकते हैं कि जीव वसा या कार्बोहाइड्रेट के बगैर बहुत दिनों तक जीवित रह सकते हैं, परन्तु प्रोटीन के बिना नहीं रह सकते हैं। प्रोटीन के मुख्य स्रोत दूध, पनीर, दाल, मछली, सोयाबीन, मांस आदि हैं।
प्रोटीन का वर्गीकरण(Classification of Proteins)
(A) रासायनिक संघटन के आधार पर वर्गीकरण
1)सरल प्रोटीन (Simple proteins) :
वैसे प्रोटीन जो जल-अपघटित होकर केवल a-ऐमीनो अम्ल देते हैं, सरल प्रोटीन कहलाते हैं। उदाहरणार्थ :
(a) ल्बुमिन्स (Albumins) : जल में अविलेय परन्तु लवण विलयन में विलेय होती हैं, ऊष्मा से स्कंदित हो जाते हैं। जैसे— अण्डा, दूध, सोयाबीन आदि ।
(b) ग्लोबूलीन (Globuline) : तनु अम्ल तथा क्षार में विलेय होती है। स्रोत : खाद्यान्नों (Cereals)।
(c) प्रोलामीन्स (Prolamines) :70% ऐल्कोहल में विलेय होती है। स्रोत : मक्का तथा जौ ।
(d) स्कलेरोप्रोटीन्स (Scleroproteins) : सभी विलायकों में अविलेय होते हैं। इनमें सल्फर युक्त ऐमीनो अम्ल अधिक होते हैं। स्रोत : बाल, सिल्क तन्तु
(e) हिस्टोन्स (Histones): जल में विलेय स्रोत : न्यूक्लिक अम्ल
(f) प्रोटामिन्स (Protamines) : अत्यधिक क्षारीय होती है। आर्जिनिन अधिकता में होती है तथा शुक्राणुओं (sperms) की न्यूक्लियोप्रोटीन्स (Nucleoproteins) में पायी जाती है।
2)संयुग्मी प्रोटीन (Conjugated proteins) :
संयुग्मी प्रोटीन जल-अपघटित होकर a ऐमीनो अम्ल तथा अन्य अ-प्रोटीन युक्त पदार्थ देते हैं। इन अ-प्रोटीन भाग को प्रोस्थैटिक समूह (prosthatic group) कहते हैं।
उदाहरणार्थ :
(a) न्यूक्लियोप्रोटीन (Nucleoprotein) : न्यूक्लिक अम्ल + प्रोटीन, उदाहरण : क्रोमोजोम (गुणसूत्र)।
(b) ग्लाइकोप्रोटीन (Glycoprotein) : कार्बोहाइड्रेट + प्रोटीन उदाहरण : हिपेरिन ।
(c) क्रोमोप्रोटीन(Chromoprotein): रंगीन यौगिक + प्रोटीन उदाहरण : हीमोग्लोबिन ।
(d) फॉस्फोप्रोटीन (Phosphoprotein) : फॉस्फोरिक अम्ल + प्रोटीन उदाहरण : केसीन ।
(e) लिपोप्रोटीन (Lipoprotein) : लिपिड + प्रोटीन उदाहरण: कोशिका कला (Cell membrane)।
(f) धात्विक प्रोटीन (Metalloprotein) : धातु + प्रोटीन उदाहरण : कार्बोनिक ऐनहाइड्राइड + जिंक
3)व्युत्पित प्रोटीन (Derived proteins) :
सरल या संयुग्मी प्रोटीनों के अम्लों, क्षारों या ऐन्जाइमों द्वारा आंशिक जल-अपघटन से प्राप्त निम्नीकरण उत्पाद व्युत्पित प्रोटीन कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ : प्रोटियोजेज, पेप्टोन्स तथा पॉलीपेप्टाइड प्रोटीन → प्रोटियोजेज → पेप्टोन → पॉलीपेप्टाइड
आणविक संरचना के आधार पर प्रोटीन्स दो प्रकार के होते हैं-
1)तन्तुमय प्रोटीन (Fibrous Proteins):
“जब पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ समानान्तर चलती हैं एवं परस्पर हाइड्रोजन तथा डाइसल्फाइड बंधन द्वारा जुड़ी रहती हैं तो तन्तु सदृश संरचना निर्मित होती है एवं इसे तन्तुमय प्रोटीन कहते हैं।” इनके अणुओं की आकृति रेखीय तन्तुओं के रूप में होती है, जिनका प्रयोग संयोजन, सहारा तथा जीवधारियों की संरचना में होती है। ये जल में अविलेय परन्तु सान्द्र अम्ल एवं क्षार में विलेय होते हैं |
उदाहरणार्थ : किरेटिन : त्वचा, बाल, नाखून में उपस्थित होती है। मायोसिन : पेशियों में उपस्थित होती हैं। कौलेजन : स्नायु, उपास्थियों (Cartilages) तथा अस्थियों में पायी जाती है।
2)ग्लोब्यूलर प्रोटीन्स (Globular proteins):
यह संरचना तब निर्मित होता है जब पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ कुण्डलित होकर गोलाकार आकृति बनाती हैं। पॉलीपेप्टाइड शृंखलाएँ परस्पर हाइड्रोजन आबन्धन द्वारा संलग्न रहती हैं। ये प्रोटीन्स सामान्यतः जल, अम्ल विलयन, क्षार तथा लवणों
में विलेय होती हैं।
ग्लोब्यूलर प्रोटीन्स जीवित जीवधारियों में जैव प्रक्रियाओं को नियमित करती हैं।
उदाहरणार्थ:
1)एन्जाइम : अमाशय से पेप्सिन, पाचन में सहायक।
2)इन्सुलिन : अग्न्याशय से स्रावित, ग्लूकोज उपापचय का नियमन ।
3)हीमोग्लोबिन : रक्त में उपस्थित, फेफड़ों से 02, का ऊतकों तक परिवहन।
4)एण्टीबॉडीज : बाह्य संक्रमण से शरीर की रक्षा, रक्त में – ग्लोब्यूलिन
5)साइटोक्रोम : रक्त में उपस्थित, इलेक्ट्रॉन वाहक का कार्य करते हैं।
प्रोटीनों की संरचना(Structure of protein)
प्रोटीनों को जैव बहुलक माना जाता है जिनका निर्माण – ऐमीनो अम्लों के संघनन से होता है जो परस्पर पेप्टाइड बंधों से जुड़े होते हैं तथा इनकी संरचना त्रिविमीय होती है।
प्रोटीनों की संरचना अत्यन्त जटिल होती है एवं इनका अध्यय निम्नलिखित स्तरों में किया जाता है –
1) प्राथमिक संरचना (Primary structure)
2) 2)द्वितीयक संरचना (Secondary structure)
3) 3)तृतीयक संरचना (Tertiary structure)
4) 4)चतुष्क संरचना (Quaternary structure)
1)प्राथमिक संरचना(Primary structure)
प्रोटीन में एक या अधिक पॉलीपेप्टाइड शृंखलाएँ होती हैं। प्रत्येक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में अत्यधिक संख्या में -ऐमीनो अम्ल परस्पर विशिष्ट अनुक्रम में संलग्न रहते हैं।
“अणु में उपस्थित विभिन्न प्रकार के ऐमीनो अम्ल अणुओं की संख्या तथा a-ऐमीनो अम्लों का वह अनुक्रम जिसमें वे प्रोटीन अणु में उपस्थित होते हैं, प्रोटीनों की प्राथमिक संरचना कहलाती है।”
यदि ऐमीनो अम्ल के अनुक्रम में परिवर्तन ला दिया जाय तो एक भिन्न प्रोटीन का निर्माण हो जाता है। प्रोटीन अणु की प्राथमिक संरचना का निर्धारण एन्जाइम या खनिज अम्ल द्वारा उत्तरोत्तर जल-अपघटन से प्राप्त विभिन्न उत्पादों जिनके अणुभार घटते क्रम में हैं, द्वारा किया जाता है, जैसे- प्रोटीन्स > प्रोटियोजेज→ पेप्टोन्स → पॉलिपेप्टाइड→साधारण पेप्टाइड -ऐमीनो अम्ल
उदाहरणार्थ :
हीमोग्लोबिन जो कि रक्त में o,के वाहक का कार्य करता है, में 574 ऐमीनो अम्ल इकाइयाँ होती हैं। अनुक्रम में एक ऐमीनो अम्ल के क्रम में परिवर्तन होने पर सिकल सेल ऐनीमिया (sickle cell anaemia) रोग हो जाता है। इन रोगियों में दोषयुक्त हीमोग्लोबिन के कारण RBCs सिकेल के आकार की हो जाती है तथा कभी-कभी कोशिकाएँ फट जाती हैं।
2) द्वितीयक संरचना(Secondary structure)
“प्रोटीन की द्वितीयक संरचना विशेषकर ऐमीनो ऐसिड अवशेष की स्थायी व्यवस्था से संबंध रखती है, जो एक आदर्श संरचनात्मक पैटर्न देती है।”
यह विन्यास विभिन्न पेप्टाइड बंधों में > C= O तथा
N-H के मध्य H- आबन्धन के कारण होता है। इनके दो भिन्न प्रकार के संरचना होते हैं—-हेलिक्स संरचना एवं 8-प्लीटेड शीट संरचना। प्रोटीन किस प्रकार की द्वितीयक संरचना प्राप्त करेगी,यह ऐल्किल समूह के आकार पर निर्भर करता है। यदि ऐल्किल समूह का आकार बड़ा है तब प्रोटीन -हेलिक्स संरचना प्राप्त करेगी, परन्तु ऐल्किल समूह का आकार अपेक्षाकृत छोटा होने पर प्रोटीन (-प्लीटेड शीट संरचना प्राप्त करेगी
3) तृतीयक संरचना (Tertiary structure) :
‘प्रोटीन की तृतीयक संरचना किसी पॉलीपेप्टाइड के त्रिविमीय फोल्डिंग के सभी पहलुओं का वर्णन करती है।” यह दो मुख्य आणविक आकृति प्रदान करती है—तन्तुमय तथा ग्लोब्यूलर । प्रोटीन के 2° एवं 3° संरचना को स्थायित्व देने वाले मुख्य बल हाइड्रोजन बंधन, डाइसल्फाइड आबन्ध, वाण्डरवाल एवं वैद्युत्आ कर्षण बल हैं। ग्लोब्यूलर प्रोटीन की तृतीय संरचना अधिकांशत गोलाकार होती है।
4) चतुष्क संरचना (Quarternary structure):
कुछ प्रोटीन दो या अधिक पॉलीपेप्टाइड शृंखलाओं जिन्हें उप इकाई (sub units) या प्रोटोमर कहते हैं, का सम्मिलित स्वरूप होता है । “एक दूसरे के सापेक्ष इन उप इकाइयों का आकाशीय सजावट चतुष्क संरचना कहलाती है।”
हीमोग्लोबिन चतुष्क संरचना प्रदर्शित करनेवाली प्रोटीन का उदाहरण है, जो चार प्रोटोमरों का समुच्चय होता है। इन चारों संरचनाओं का चित्रात्मक निरूपण निम्न चित्र में दिया गया है
प्रोटीनों का विकृतीकरण(Denaturation of proteins)
जैविक निकाय में निहित निश्चित विन्यास तथा जैविक सक्रियता वाली प्रोटीन को प्राकृतिक प्रोटीन (native protein) कहा जाता है। विभिन्न कारक जैसे—ऊष्मा, pH में अधिक परिवर्तन, दाब, लवणों की उपस्थिति या विशेष रासायनिक अभिकर्मकों की उपस्थिति से त्रिविमीय संरचना भंग हो जाती है। इस प्रक्रम को प्रोटीन का विकृतीकरण (denaturation of protein) कहते हैं।
प्राकृतिक संरचना को भंग होने पर प्रोटीन में इसकी जैव सक्रियता नष्ट हो जाती है। उबालने पर अंडा के सफेद भाग का स्कंदन प्रोटीन के विकृतीकरण का सामान्य उदाहरण है। दूसरा उदाहरण दूध से दही का जमना है।
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