Earthquake in hindi-भूकंप नाम से आप सभी परिचित होंगे। क्या आपने कभी सोचा है भूकंप कैसा आता है। कैसे पूरी धरती हिलने लगती है। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भूकंप से जुड़ी बेसिक जानकारियों को जानेगे।
भूकंप क्या है-What is Earthquake in hindi
हमारी पृथ्वी कई layer से मिलकर बनी हुई है। पृथ्वी का core आज भी सूर्य की तरह धधकता हुआ एक आग का गोला है। पृथ्वी के केंद्र से धधकता हुआ लावा बाहर निकलते समय पृथ्वी की कई परतो से टकराता है। जिससे यह परते खिसकने लगती हैं। जिसके कारण पूरी धरती कांप उठती है। इसे ही हम भूकंप कहते हैं।
भूकम्प में तीन तरह के कम्पन होते हैं-Type of Earthquake in hindi
- प्राथमिक तरंग (Primary wave)—यह तरंग पृथ्वी के अन्दर प्रत्येक माध्यम से होकर गुजरती है। इसकी औसत वेग 8 किमी प्रति सेकण्ड होती है। यह गति सभी तरंगों से
अधिक होती है। जिससे ये तरंगे किसी भी स्थान पर सबसे पहले पहुँचती है । - द्वितीय तरंग (Secondary waves)—इन्हें अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse waves) भी कहते है। यह तरंग केवल ठोस माध्यम से होकर गुजरती है। इसकी औसत वेग 4 किमी प्रति सेकण्ड होती है।
- एल तरंगे (L-wave) इन्हें धरातलीय या लम्बी तरंगों के नाम से भी पुकारा जाता है। इन तरंगों की खोज H. D. Love ने की थी। इन्हें कई बार Love waves
भी पुकारा जाता है। इनका अन्य नाम R-waves (Ray Light waves) है।
ये तरंगें मुख्यतः धरातल तक ही सीमित रहती है। ये ठोस तरल तथा गैस तीनों माध्यमों में से गुजर(Earthquake in hindi) सकती हैं। इसकी 1.5-3 किमी प्रति सेकण्ड है।
भूकम्पीय तरंगों को सिस्मोग्राफ (Seismograph) नामक यन्त्र द्वारा रेखांकित किया जाता है। इससे इनके व्यवहार के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य निकलते हैं
- सभी भूकम्पीय तरंगों का वेग अधिक घनत्व वाले पदार्थों में से गुजरने पर बढ़ जाता है
तथा कम घनत्व वाले पदार्थों में से गुजरने पर घट जाता है। - केवल प्राथमिक तरंगें ही पृथ्वी के केन्द्रीय भाग से गुजर सकती है। परन्तु वहाँ पर उनका वेग कम हो जाता है।
- गौण तरंगें द्रव पदार्थ में से नहीं गुजर सकतीं।
- एल तरंगें केवल धरातल के पास ही चलती हैं।
- विभिन्न माध्यमों में से गुजरते समय ये तरंगें परावर्तित (Reflect) तथा आपर्तित (Refract) होती हैं।
केन्द्र भूकम्प के उद्भव-स्थान को उसका केन्द्र कहते हैं। भूकम्प के केन्द्र के निकट P, S तथा L तीनों प्रकार की तरंगें पहुँचती हैं। पृथ्वी के भीतरी भागों में ये तरंगें अपना मार्ग बदलकर भीतर की ओर अवतल मार्ग पर यात्रा करती हैं।
भूकम्प केन्द्र से धरातल के साथ 11000 किमी की दूरी तक P तथा S-तरंगें पहुंचती है। केन्द्रीय भाग (Core) पर पहुँचने पर S- तरंगें लुप्त हो जाती हैं और P-तरंगें अपवर्तित हो जाती हैं। इस कारण भूकम्प के केन्द्र से 11000 किमी के बाद लगभग 5000 किमी तक कोई भी तरंग नहीं पहुँचती है।
इस क्षेत्र को छाया क्षेत्र (Shadow Zone) कहा जाता है अधिकेन्द्र (Epicentre) भूकम्प के केन्द्र के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर स्थित बिन्दु को भूकम्प का अधिकेन्द्र कहते हैं।
अन्तःसागरीय भूकम्पों द्वारा उत्पन्न लहरों को जापान में सुनामी कहा जाता है।
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