Specific Heat in hindi- हेलो दोस्तों हमने अपने पीछे वाले आर्टिकल में विशिष्ट ऊष्मा के बारे में बात किया था। आज इस आर्टिकल में हम विशिष्ट ऊष्मा की परिभाषा, विशिष्ट ऊष्मा की व्याख्या, पानी की विशिष्ट ऊष्मा और भी बहुत सारे पहलुओं पर नजर डालेंगे। और अच्छे से समझने की कोशिश करेंगे विशिष्ट ऊष्मा होता क्या है।
विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat in hindi)-
विशिष्ट ऊष्मा की परिभाषा-“किसी पदार्थ के एकांक द्रव्यमान का ताप 1°C बढ़ाने के लिए जितनी ऊष्मा की आवश्यकता होती है, उसे उस पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं। “
•इसे S से सूचित करते हैं। इसका मात्रक कैलोरी प्रतिग्राम/°C अथवा जूल/किग्रा/°C होता है।
•Q=sm×dt, s=नियतांक है, Q=उष्मा है, m=द्रवमान है, dt =ताप मे वृद्धि।
Basically अब आप यह तो समझ गए होंगे विशिष्ट ऊष्मा होता क्या है अब हम यह जानने की कोशिश करेंगे विशिष्ट ऊष्मा के उदाहरण हमारे रियल लाइफ में कहां-कहां है।
विशिष्ट ऊष्मा की व्याख्या-Explanation of Specific heat in hindi
विशिष्ट ऊष्मा (Specific heat)-यदि एक ग्राम पानी, एक ग्राम मिट्टी का तेल व एक ग्राम कॉपर कमरे के ताप (25°C) पर लेकर प्रत्येक को एक कैलोरी ऊष्मा दी जाय, तो पानी का ताप 25°C, मिट्टी के तेल का ताप 27°C तथा कॉपर का ताप 35°C हो जाता है। अतः इससे पता चलता है कि यदि समान ताप पर समान द्रव्यमान के पदार्थ लेकर उनको ऊष्मा की समान मात्रा प्रदान की जाय तो प्रत्येक के ताप में वृद्धि भिन्न-भिन्न होती है।
दूसरो शब्दों में, “यदि समान द्रवमान के विभिन्न पदार्थों को लिया जाय, जिनका प्रारम्भिक ताप समान है, तो एक निश्चित ताप तक गर्म करने के लिये विभिन्न मात्राओं में ऊष्मा की आवश्यकता होती है। यदि पदार्थ के एक ग्राम हिस्से का द्रव्यमान लेकर इसका ताप एक डिग्री सेण्टीग्रेट बढ़ा दिया जाय तो इस प्रक्रिया में दी गई ऊष्मा को पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा कहा जाता है।”
विभिन्न पदार्थों की विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat in hindi)अर्थात् एक ग्राम पदार्थ का ताप एक डिग्री सेण्डीग्रेट बढ़ाने के लिये आवश्यक ऊष्मा निम्न सारणी में प्रदर्शित है।
पदार्थ(matter) | विशिष्ट ऊष्मा( specific heat) |
पानी | 1.0 |
लोहा | 0.11 |
एलुमिनियम | 0.21 |
मैग्नीशियम | 0.25 |
सीसा | 0.03 |
कार्बन | 0.17 |
जिंक | 0.092 |
संगमरमर | 0.21 |
बर्फ | 0.50 |
पानी की विशिष्ट ऊष्मा (Specific heat of water) –
पानी की विशिष्ट ऊष्मा सभी द्रवों व ठोसों की अपेक्षा अधिक होती है, अर्थात् यदि समान भार के विभिन्न पदार्थों के ताप में समान वृद्धि की जाये तो पानी को सबसे अधिक ऊष्मा की आवश्यकता होगी और यदि समान ताप तक ठण्डा किया जाय तो पानी से सबसे अधिक ऊष्मा की मात्रा प्राप्त होगी।
यही कारण कि शरद ऋतु में कमरे को गर्म करने के लिये पाइपों मे गर्म पानी प्रवाहित किया जाता है। शरीर को सेकने वाली बोतलों में भी गर्म पानी का इस्तेमाल किया जाता है। यदि पानी की विशिष्ट ऊष्मा कम होती तो समुद्र का जल शीघ्र ही वाष्प बन कर उड़ जाता।
दिन में वायु समुद्र की ओर से स्थल की ओर चलती है तथा रात्रि में वायु स्थल से समुद्र की ओर चलती है। यही कारण है कि समुद्र के पास वाले स्थानों में न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न ही अधिक सर्दी। अतः समुद्र तटीय क्षेत्रों का मौसम सुहावना होता है।
दिन में समुद्र की ओर से पृथ्वी की ओर चलने वाली हवाओं को ‘समुद्री समीर’ व रात्रि में पृथ्वी से समुद्र की ओर चलने वाली हवाओं को ‘स्थलीय समीर’ कहते हैं।
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