- जन्म-30 अगस्त, 1871
- जन्म स्थान—स्प्रिंग ग्रोव, न्यूजीलैंड
- निधन-19 अक्टूबर, 1937
- निधन स्थान-कैम्ब्रिज, इंग्लैंड
परमाणु के अंदर झांककर देखने वाले इस महान वैज्ञानिक ने अल्फा तथा बीटा किरणों की खोज की। उन्होंने परमाणु के अंदर नाभिक का भी पता लगाया।इन्होंने सबसे पहले एक तत्त्व को दूसरे तत्त्व में बदलकर दिखाया।
लॉर्ड रदरफोर्ड का जन्म-Ernest Rutherford biography in hindi
विज्ञान के शुरुआती दौर से लेकर आज तक परमाणु(atom) वैज्ञानिकों के विभिन्न अनुसंधानों का प्रमुख विषय रहा है। उन्नीसवीं सदी तक परमाणुाओं की आंतरिक संरचना(atomic structure) ज्ञात करना वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती बन गई थी।
इस चुनौती का सामना किया महान वैज्ञानिक रदरफोर्ड (Ernest Rutherford biography)ने। उन्होंने अपने अनेक प्रयोगों के माध्यम से यह सिद्ध कर दिखाया कि प्रत्येक परमाणु का एक केंद्र होता है जिसे नाभिक कहा जा सकता है।
नाभिक सदैव ही धनात्मक आवेश से युक्त होता है।
इस महान वैज्ञानिक का जन्म 30 अगस्त, 1871 को न्यूजीलैण्ड में रिंपग ग्रोव (Spring Grove) नामक स्थान पर हुआ था। ये अपने मां-बाप के चौथे पुत्र थे।
होनहार विरवान के होत चीकने पात वाली कहावत को चरितार्थ करता है इनका बचपन । बचा से ही वे बहुत प्रतिभाशाली व थे। इनकी गणित, भौतिकी.और रसायन शास्त्र में गहरी रुचि थी। वे दिन रात पढ़ने-लिखने में मग्न रहते थे।
17 वर्ष की उम्र में रदरफोर्ड को विश्वविद्यालय की जूनियर छात्रवृत्ति मिली और वह क्राइस्ट चर्च नामक एक बड़े शहर में चले गए। चार साल में वहां से उन्होंने बी.ए. पास किया।
परमाणु के अंदर नाभिक की खोज -atomic theory of Ernest Rutherford
19वीं सदी का अंतिम दशक शुरू हो चुका था। मानवता के इतिहास में इसे महान आविष्कारों के दशक के रूप में जाना जाता है। उन्हीं दिनों जर्मनी के हेनरिक हर्टज विद्युत-चुम्बकीय तरंगों पर काम कर रहे थे।
रदरफोर्ड(Ernest Rutherford biography in hindi ) का ध्यान इन तरंगों की ओर गया और अपने विश्वविद्यालय के ठंडे तहखाने में उन्होंने विद्युत-चुम्बकीय तरंगे (Electromagnetic Waves) पैदा करने वाला एक यंत्र बना डाला।
इस विषय पर उन्होंने वैज्ञानिक विवरण प्रकाशित कराए और इस 24 वर्षीय न्यूजीलैण्डबासी की ओर विश्व के अनेक भौतिकविदों का ध्यान आकर्षित हो गया। उसी वर्ष उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड में एक छात्रवृत्ति प्राप्त हो गई और वे सन् 1895 में कैविंडिश (Cavendish) प्रयोगशाला में चले गए, जहां प्रसिद्ध वैज्ञानिक और इलैक्ट्रॉन का शोध करने वाले जे.जे. थाम्पसन (J.J. Thompson) ने इनका स्वागत किया।
कैम्ब्रिज की कैविंडिश प्रयोगशाला में उन्होंने रेडियोधर्मिता (Radioactivity) पर काम करना आरम्भ किया। उन्होंने देखा कि विभिन्न रेडियोधर्मी पदार्थों से विभिन्न प्रकार की किरणें निकलती हैं। उन्होंने इन किरणों का नाम अल्फा (Alpha) तथा बीटा (Beta) किरणें रखा जो आज भी इसी नाम से जानी जाती हैं।
एक्स किरणों की सहायता से उन्होंने परमाणु के अंदर विद्यमान नाभिक का पता लगाया और यह सिद्ध करके दिखाया कि परमाणु का समस्त भार नाभिक (nucleus) में ही निहित होता है।
सन् 1907 में रदरफोर्ड मैनचेस्टर (Manchester) विश्वविद्यालय में चले गए। ये उनके जीवन के सबसे अधिक सुख के दिन थे। सन् 1908 में उन्हें उनके रेडियोधर्मिता सम्बंधी कार्यों के लिए रसायन शास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
अपने अनेक प्रयोगों के आधार पर उन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया कि एल्फा किरणें(alpha rays) एक प्रकार के कण होते हैं जो हीलियम नाभिक के समतुल्य होते हैं।
सोने की एक पतली पत्ती पर एल्फा किरणों की बौछार करके सन् 1911 में जब इन्होंने परमाणु में नाभिक (atomic nucleus) के अस्तित्व का क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किया तो सारी दुनिया में तहलका मच गया।
यद्यपि आज यह जाना-माना तथ्य है कि परमाणु में
नाभिक होता है लेकिन सन् 1911 में यह एकदम नवीन विचार था। सन् 1912 में नील्स बोहर (Neils Bohr) नामक विश्वविख्यात वैज्ञानिक भी रदरफोर्ड के साथ काम करने आ गए और दोनों ने मिलकर परमाणु सम्बंधी खोजों
को नये आयाम दिए।
सन् 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया। इस प्रयोगशाला से वैज्ञानिक जहां-तहां चले गए। रदरफोर्ड(Ernest Rutherford biography hindi)भी वापिस कैविंडिश प्रयोगशाला में आ गए।
सन् 1817 में रदरफोर्ड ने विश्व को फिर एक नया वैज्ञानिक उपहार दिया। उन्होंने सर्वप्रथम एक तत्त्व को दूसरे तत्त्व में बदल कर दिखाया। उन्होंने एल्फा कणों(alpha particle)की बौछार करके नाइट्रोजन परमाणुओं को आक्सीजन परमाणुओं में बदल कर दिखाया।
इस प्रकार वैज्ञानिकों को एक तत्त्व को दूसरे तत्त्व में बदलने का रास्ता रदरफोर्ड)ने ही प्रशस्त किया। सन् 1919 में रदरफोर्ड कैविंडिश प्रयोगशाला के अध्यक्ष बन गए।
सन् 1920 में रदरफोर्ड ने हाइड्रोजन के नाभिक का नाम प्रोटॉन (Proton) रखा। उनकी देख-रेख में कैविंडिश प्रयोगशाला खूब फलती-फूलती रही।
रदरफोर्ड की मृत्यु-Ernest Rutherford death
रदरफोर्ड उन लोगों में से थे जो काम करते हुए कभी नहीं थकते। अपने वैज्ञानिक योगदानों के कारण वे सन् 1925 से 1930 तक रॉयल सोसायटी (Royal Society) के अध्यक्ष रहे । सन् 1931 में उन्हें ‘बैरन रदरफोर्ड ऑफ नेल्सन’ (Baron Rutherford of Nelson) का सम्मान दिया गया। उनकी ख्याति सारे विश्व में फैल चुकी थी।
कुछ दिनों की बीमारी के बाद 19 अक्टूबर, 1937 में इस महान वैज्ञनिक का देहांत हो गया। इन्हें आदर के साथ वैस्टमिनिस्टर ऐबे (Westminister Abbey) में दफनाया गया।
104 परमाणु संख्या वाले एक तत्त्व का नाम लॉर्ड रदरफोर्ड को आदर देने के लिए ‘रदरफोर्डियम’
(Rutherfordium) प्रस्तावित किया गया। इस तत्त्व के एक समस्थानिक (Isotope) का नाम कुर्चाटोवियम (Kurchatovium) है। इस महान वैज्ञानिक के योगदानों को हम कभी भी न भुला सकेंगे।
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