- जन्म-20 अक्टूबर, 1891
- जन्म स्थान-मैनचेस्टर
- निधन-24 जुलाई, 1974
- निधन स्थान-कैम्ब्रिज
परमाणु की आंतरिक जटिल रचना की गूढ़तम समस्या सुलझाकर न्यूट्रान की खोज करने वाले महानतम् विचारक जिन्होंने सर्वप्रथम समस्थानिकों के अस्तित्त्व की भी विवेचना की।
परमाणु की संरचना-Structure of Atom
परमाणु जीवन की संरचना का मूल आधार है। अगर यह कहा जाए कि जीवन का सबसे सूक्ष्मरूप परमाणु है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। भारत में परमाणु के सम्बंध में खोज का इतिहास काफी पुराना है। ईसा से लगभग सात-आठ सौ वर्ष पूर्व ऋषि कणादि ने यह सिद्धांत दिया था कि समस्त जगत एक अणु के अधीन है।
तभी से विचारकों एवं वैज्ञानिकों के लिए अणु की खोज एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव थी। मानव जिज्ञासा जैसे-जैसे बढ़ती गई। प्रकृति वैसे-वैसे अपने द्वार खोलती गई।
अणु के बाद मनुष्य ने परमाणु की तलाश कर ली। परंतु परमाणु की आंतरिक संरचना वैज्ञानिकों के लिए सदा से ही एक जटिल समस्या रही है। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा अनेक प्रयास किए गए।
सन् 1900 के आरम्भ में ही वैज्ञानिकों ने यह पता लगा लिया था कि परमाणु के अंदर ऋणात्मक आवेश से युक्त इलैक्ट्रॉन और धनात्मक आवेशित प्रोटॉन होते हैं, लेकिन इलैक्ट्रॉनों और प्रोटॉनों का कुल द्रव्यमान परमाणु के कुल द्रव्यमान से कम बैठता था।
इससे उन्हें इस बात का संदेह था कि परमाणु के अंदर कुछ उदासीन (Neutral) कण भी होने चाहिए।
शोध चलते रहे। आखिरकार इस तथ्य का सर्वप्रथम आविष्कार सन् 1932 में सर जेम्स चैडविक(james chadwick theory) नामक ब्रिटेन के भौतिकशास्त्री ने किया।
उन्होंने अपने प्रयोगों के आधार पर पता लगाया कि परमाणु के नाभिक (Nucleus) में न्यूट्रॉन नामक उदासीन कण होते हैं। इन कणों का द्रव्यमान प्रोटॉनों के साथ जोड़ने पर समस्त द्रव्यमान परमाण के बराबर हो जाता है ।
न्यूट्रॉन के आविष्कार के लिए चैडविक(james chadwick invention)को सन् 1935 में
भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। आज परमाणु की संरचना से सम्बंधित सभी गुत्थियां सुलझ गई हैं। किसी भी परमाणु के केंद्रीय भाग को नाभिक कहते हैं। नाभिक में धनात्मक आवेश वाले प्रोटॉन होते हैं तथा उदासीन कण न्यूट्रॉन होते हैं।
नाभिक के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं में ऋण आवेशित इलैक्ट्रॉन घूमते रहते हैं। प्रोटॉन का द्रव्यमान न्यूट्रॉन से कुछ कम होता है।
न्यूट्रॉन कणों की खोज विज्ञान में एक वरदान सिद्ध हुई है। परमाणु बम का निर्माण न्यूट्रॉनों के द्वारा ही सम्भव हो पाया। चूंकि ये कण उदासीन होते हैं, अतः करने इनके द्वारा नाभिक का विखंडन सम्भव हो पाया। इससे ही परमाणु ऊर्जा की विधियां विकसित की गईं।
जेम्स चैडविक का जन्म-james chadwick biography in hindi
न्यूट्रॉन की खोज करने वाले इस महान वैज्ञानिक का जन्म सन् 1891 में मैनचेस्टर (Manchester) में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा मैनचेस्टर और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई।
न्यूट्रॉन का अविष्कार-james chadwick | discovery of neutron
सन् 1923 के बाद इन्होंने रदरफोर्ड प्रयोगशाला में तत्त्वों के रूपान्तरण (transmutation) पर कार्य किया। इन अध्ययनों में तत्त्वों के नाभिकों पर एल्फा कणों की बौछार की जाती थी, जिससे एक तत्त्व दूसरे तत्त्व में बदल जाता था।
इन्हीं अध्ययनों में उन्हें परमाणु के नाभिकों का गहराई से अध्ययन करने का मौका मिला। सन् 1927 में चैडविक को रॉयल सोसायटी का फैलो नियुक्त किया गया।
सन् 1932 में चैडविक(james chadwick Discoveries)ने यह प्रदर्शित कर दिखाया कि “वैरिलियम नामक तत्त्व पर एल्फा कणों की बौछार करने से जो कण निकलते हैं, उनका द्रव्यमान लगभग प्रोट्रॉनों के बराबर होता है लेकिन उन पर कोई आवेश नहीं होता। इन्हीं कणों का नाम उन्होंने न्यूट्रॉन रखा। “
चैडविक(james chadwick neutron) ने इन कणों के दूसरे गुणों का भी अध्ययन किया। इसी आविष्कार के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला और वे विश्व-ख्याति के वैज्ञानिक हो गए। न्यूट्रॉनों के आविष्कार के कारण ही परमाणु बम जैसे भयंकर और विनाशकारी शस्त्र का आविष्कार भी सम्भव हुआ क्योंकि इन उदासीन कणों से परमाणु के अंदर प्रवेश करने की क्षमता होती है।
इन्हीं कणों के आविष्कार के आधार पर न्यूट्रॉन बम
का विकास हुआ। इन्हीं कणों के आविष्कार के लिए सन् 1932 में इन्हें ह्यूज मैडल भी प्रदान किया गया।
चैडविक ने जर्मनी के भौतिक शास्त्री हैंस गीगर (Hans Geiger) के साथ भी काम किया। गीगर ने रेडियोधर्मी क्रियाओं को समझने के लिए गीगर काउंटर (Geiger Counter) का आविष्कार किया था।
चैडविक(james chadwick experiment) ने शृंखला प्रक्रियाओं पर भी बहुत काम किया। इन्हीं प्रक्रियाओं के फलस्वरूप परमाणु विखंडन किया गया। इन्होंने सर्वप्रथम समस्थानिकों (Isotopes) के अस्तित्व की भी विवेचना की।
उन्होंने यह बताया कि जब किसी समान प्रोट्रॉनों
की संख्या वाले नाभिकों में न्यूट्रॉनों की संख्या असमान होती है तो ऐसे नाभिक उस तत्त्व के समस्थानिक कहे जाते हैं। समस्थानिकों के उपयोगों ने आज विश्व में तहलका मचा रखा है।
विभिन्न तत्त्वों के समस्थानिकों को रोग निदान एवं रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए कोबाल्ट के कुछ समस्थानिक ग्रंधारोग (Goitre) के उपचार में प्रयोग होते हैं।
इन्हें कृषि विज्ञान में काफी ऊंचे पैमाने पर प्रयोग में लाया जा रहा है। इस समय देश में समस्थानिकों का उत्पादन बम्बई का भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र काफी ऊंचे पैमाने पर कर रहा है।
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