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धातुकर्म(Metallurgy) का हिन्दी मतलब क्या है, परिभाषा, उपयोग(Metallurgy meaning in hindi)

धातुकर्म(Metallurgy)

अयस्कों से धातुओं के निष्कर्षण एवं उनके शोधन की प्रक्रिया धातुकर्म (metallurgy) कहलाती है।

धातुकर्म में प्रयुक्त होनेवाले कुछ मुख्य पद

गैंग (Gangue)

पृथ्वी की परत से प्राप्त अयस्क में कई प्रकार के अवांछनीय पदार्थ (बालू, कंकड़ या मिट्टी के टुकड़े आदि) मिश्रित रहते हैं। ये पदार्थ मैंग कहलाते हैं। इन पदार्थों को धातु के निष्कर्षण के पूर्व अयस्क से दूर करना अत्यावश्यक होता है।

अयस्क का सांद्रण (Dressing of the ore)-

अयस्क में विद्यमान अपद्रव्यों को दूर करना अयस्क का सांद्रण कहलाता है।

निस्तापन (Calcination)

अयस्क को उच्च ताप पर वायु की अनुपस्थिति या अपर्याप्त आपूर्ति में उसके द्रवणांक से कम ताप पर गर्म कर धातु को उसके ऑक्साइड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया निस्तापन कहलाती है।

भर्जन (Roasting)-

सल्फाइड अयस्कों को वायु की पर्याप्त आपूर्ति की स्थिति में तीव्रता से गर्म करके धातु को ऑक्साइड में परिवर्तित करने की प्रक्रिया भर्जन कहलाती है।

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गालक (Flux)-

गालक वह पदार्थ है जिसे निस्तापित या भर्जित अयस्क एवं कोक के साथ मिश्रित कर मिश्रण को गर्म किया जाता है। ऐसा करने से अयस्क में विद्यमान अगलनीय अपद्रव्य दूर हो जाते हैं।

धातुमल (Slag)

द्रावक अयस्क में उपस्थित अद्रवणशील अपद्रव्यों के साथ संयोग करके उन्हें द्रवणशील पदार्थ में परिवर्तित कर देता है, जिसे धातुमल कहते हैं। यह हल्का होने के कारण पिघली हुई धातु के ऊपर तैरने लगता है, जिसे हटा दिया जाता है।

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सिलिका (SiO2) या फॉस्फोरस पेंटॉक्साइड (P2O5) जैसे अम्लीय अपद्रव्यों को धातु के ऑक्साइड से दूर करने के लिए कैल्सियम ऑक्साइड (CaO) जैसे भास्मिक द्रावक का उपयोग किया जाता है। इसके विपरीत, मैंगनीज मोनोक्साइड (MnO) जैसे भास्मिक अपद्रव्य के उपस्थित रहने पर द्रावक के रूप मे सिलिका का व्यवहार किया जाता है।

प्रगलन (Smelting)-

धातु के ऑक्साइड को कोक के साथ गर्म करके उसे धातु में परिवर्तित करने की प्रक्रिया प्रगलन कहलाती है।

धातुकर्म के सिद्धांत

अयस्क से किसी धातु के निष्कर्षण की प्रक्रिया उस धातु की क्रियाशीलता पर निर्भर करती है।

  1. जो धातुएँ (K, Na, Ca, Mg आदि) क्रियाशीलता श्रेणी के ऊपरी भाग में हैं वे काफी क्रियाशील होती हैं। ये मुक्त अवस्था में नहीं पाई जाती हैं। इन्हें द्रवित अयस्क का वैद्युत अपघटन करके निष्कर्षित किया जाता है।
  2. जो धातुएँ (Zn, Fe, Pb आदि) क्रियाशीलता श्रेणी के मध्य भाग में हैं, ये मंद क्रियाशील होती हैं। इन धातुओं को उनके सल्फाइड या कार्बोनट अयस्कों से निस्तापन या भर्जन की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है।
  3. जो धातुएँ (Au,Ag, Pt, Cu) क्रियाशीलता श्रेणी के निचले भाग में हैं वे सबसे कम क्रियाशील होती इन धातुओं को भर्जन की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। धातुकर्मीय उपक्रम

धातुकर्म में प्रयुक्त विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं।

(A) अयस्क का सांद्रण
(B) सांद्रित अयस्क का धातु के ऑक्साइड में परिवर्तन
(C) धातु के ऑक्साइड से धातु का निष्कर्षण
(D) धातु का शोधन

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