केपलर के अनुसार सूर्य के इर्द-गिर्द ग्रहो का परिक्रमा मार्ग गोलाकार नहीं अपितु अंडाकार होता है। अपनी-अपनी परिधि में परिक्रमा करते हुए हर ग्रहो की गति में निरंतर परिवर्तन आता रहता है इस महान वैज्ञानिक और गणितज्ञ ने घड़ी-पल सब कुछ गिनकर दिखा दिया कि प्रत्येक नक्षत्र की वास्तविक स्थिति और गतिविधि कब क्या होनी चाहिए।
योहैन्नीज केपलर जन्म -Johannes Kepler Biography in Hindi
योहैन्नीज केपलर का जन्म, 1571 में दक्षिणी जर्मनी के एक शहर वाइल में हुआ था। अभी वह चार साल के ही थे कि चेचक का बड़ी बुरी तरह से शिकार हो गए। इससे उनकी आंखें बहुत कमजोर हो गईं, और हाथों से वह लगभग लूले ही हो गए। उनके पिता एक सिपाही थे और उनकी मां एक सराय-मालिक की बेटी थीं। पिता अक्सर नशे में होते, मां का दिमाग भी अक्सर कोई बहुत ठिकाने न होता। उनकी अपनी आंखें जवाब दे चुकी थीं, हाथ लूले, और बाकी जिस्म भी कमजोर और बेकार था। इन सब बाधाओं के बावजूद योहैन्नीज बचपन योहैन्नीज केपलर की जीवनी (Johannes Kepler Biography in Hindi) से ही एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे।
चर्चों की व्यवस्थापिका संस्था ने उनका भविष्य निर्धारित कर दिया और वह धर्म-विज्ञान का अध्ययन करने के लिए ईसाइयों के ‘गुरुकुल’ में दाखिल हो गए। ट्यूबिंजेन विश्वविद्यालय की एक छात्रवृत्ति मिली। यहां पहुंचकर वह कोपर्निकस के विचारों के सम्पर्क में आए कि किस प्रकार ग्रह-नक्षत्र सूर्य के गिर्द परिक्रमा करते हैं। विज्ञान और गणित के प्रति उनका यह आकर्षण शीघ्र ही एक आंतरिक मोह में परिवर्तित हो गया। उन्होंने पादरी बनने के अपने सभी विचार छोड़ दिए। 23 वर्ष की आयु में ग्रात्स विश्वविद्यालय ने उन्हें निमन्त्रित किया और उन्होंने नक्षत्र-विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में वह नियुक्ति स्वीकार कर ली।
योहैन्नीज केपलर का विज्ञान के प्रति रुझान – Kepler’s Trends in Science in hindi
केपलर ने एक धनी परिवार की लड़की से शादी कर ली, और प्रतीत यही होता था कि उनके जीवन की दिशा अब निश्चित हो चुकी है। परंतु धार्मिक आंदोलन उठ खडे हुए और उनके लिए—वह प्रोटेस्टैंट थे—ग्रात्स में रहना अब असम्भव हो गया। बड़ा आश्चर्य होता है यह जानकर कि वे विज्ञान के एक पुजारी होते हुए भी, सामुद्रिक-शास्त्र में कुछ आस्था रखते थे। तारों और नक्षत्रों की स्थिति अंकित करते हुए.
वे अपने जीवन की दैवी घटनाओं का भी यथावत रिकार्ड रक्खा करते थे, हालांकि उनका अपना कहना यही था कि मुझे ज्योतिष में रत्ती-भर भी विश्वास नहीं है किंतु अतीत के अंध-विश्वासों का प्रभाव उनके विचारों पर कुछ न कुछ निःस्संदेह पड़ा था।
योहैन्नीज केपलर का ग्रहो से सम्बंधित गणनाये
गणित पर आधारित नक्षत्रों की गतिविधि का ‘सूक्ष्म’ अध्ययन जो उनका विषय था,वहां उन्होंने मूर्त-आकृतियों—घन, वर्ग, चतुष्फलक, अष्टफलक, द्वादशफलक तथा विंशतिफलक की पूर्णता के सम्बंध में भी एक अंतःसूत्र-सा, एक ‘स्थूल’ नियम-सा,प्रस्तुत करने की कोशिश की विज्ञान की दृष्टि से यह उनका एक गलत दिशा में कदम था
जिसमें, शायद अनजाने में, वह प्राचीन ग्रीक दार्शनिकों की उस अवैज्ञानिक धारणा का ही अनुसरण कर रहे थे जिसके अनुसार ब्रह्माण्ड पूर्ण आकृतियों का एक पुंज बनकर रह जाता है। केपलर (Johannes Kepler Biography in Hindi) को ग्रात्स छोड़ना पड़ा। उन दिनों डेनमार्क का प्रसिद्ध नक्षत्रविद ताइको ब्राहे भी देश-निर्वासित होकर प्राग में आ बसा था। यहीं दोनों वैज्ञानिकों का सम्मिलन हुआ। किंतु ब्राहे कोपर्निकस का विरोधी था। उसकी आस्था थी कि ईश्वरीय नियमों में और विज्ञान के नियमों में खलल पड़ जाएगा यदि हम यह मान लें कि ब्रह्मांड का केंद्र सूर्य ही है! इसी आस्था के अनुसार उसने पुराने जमाने से चली आ रही इस भ्रांत धारणा को ही वैज्ञानिक रूप में समर्थित करने का प्रयत्न किया.
कि नक्षत्र-मंडल का केंद्र पृथ्वी है। ब्राहे के नक्षत्र-सम्बंधी प्रत्यक्ष तथा सूक्ष्म अंवेषणों की संख्या कितने ही हजार तक पहुंच चुकी थी, और विज्ञान-जगत आज भी 1592 में प्रकाशित तारों की आकाश में आपेक्षिक स्थिति के उसके प्रतिपादन के लिए कृतज्ञ है। सम्भव है उसने स्वयं अनुभव भी किया हो कि वह अब तक गलती पर था—क्योंकि केपलर को उसने अपने सहायक और उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया, यद्यपि केपलर की धारणा यही थी कि ब्रह्मांड का केंद्र सूर्य है, पृथ्वी नहीं। 1601 में ताइको ब्राहे की मृत्यु हो गई। उसके बाद भी केपलर (Johannes Kepler Biography in Hindi )की ग्रह-गणनाएं चलती रहीं। उनकी अध्यक्षता में 228 अन्य तारों का सूक्ष्म अध्ययन किया गया।
ब्राहे के संगृहीत अध्ययनों का विश्लेषण करते हुए ही केपलर ग्रहों की गतिविधि के सम्बंध में कुछ नियम का निर्धारण कर सके, जिनकी व्याख्या न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण मूल सिद्धांत के आधार पर आगे चलकर की। विज्ञान में आज भी केपलर और न्यूटन के उन नियमों का प्रत्याख्यान नहीं हो सका है। यही नियम हैं जो मानव-निर्मित उपग्रहों के भी नियामक हैं।
केपलर की नई खोज यही नहीं थी कि सूर्य के गिर्द नक्षत्रों का परिक्रमा मार्ग अंडाकार होता है, अपितु यह भी थी कि अपनी-अपनी परिधि में परिक्रमा करते हुए हर नक्षत्र की गति में निरंतर परिवर्तन आता रहता है। नक्षत्र ज्यों-ज्यों सूर्य के निकट पहुंचते जाते हैं, उनकी यह गति बढ़ती जाती है। केपलर ने गणना द्वारा यह भी जान लिया कि किसी नक्षत्र को सूर्य की परिक्रमा करने में कितना समय लगता है। जो ग्रह और नक्षत्र सूर्य के निकट होते हैं, उन्हें इस परिक्रमा में समय अपेक्षया कुछ कम ही लगता है।
गणित के नियमों के अनुसार नक्षत्रों के सम्बंध में केपलर (Johannes Kepler Biography in Hindi) ने सब-कुछ गिनकर दिखा दिया कि प्रत्येक नक्षत्र की वास्तविक स्थिति और गतिविधि कब क्या होनी चाहिए। केपलर ने विज्ञान के अन्य सम्बद्ध क्षेत्रों में भी अंवेषण किए। मानव दृष्टि तथा दृष्टि विज्ञान के सम्बंध में जो स्थापनाएं उन्होंने विकसित की उनका प्रकाश के ‘अपसरण’ के क्षेत्र में बहुत महत्त्व है। यहां तक कि नक्षत्रों-ग्रहों के अध्ययन के लिए एक दूरबीन तैयार करने की आधारशिला भी, नियमों के रूप में, वे रखते गए।
गणित के क्षेत्र में उनकी खोजें प्रायः कैल्क्युलस का आविष्कार करने के निकट आ पहुंची थीं और, साथ ही, गुरुत्वाकर्षण तथा समुद्रों के ज्वार के सम्बंध में भी उन्होंने सही-सही कल्पनाएं कर ली थीं।
केप्लर के नियम -kepler’s laws of planetary motion in hindi
केप्लर ने खगोलीय प्रेक्षणों के आधार पर ग्रहों के संबंध में तीन नियम दिए, जो निम्नलिखित हैं
- प्रत्येक ग्रह सूर्य की चारों ओर एक दीर्घ वृत्ताकार (elliptical) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य एक फोकस पर होता है।
- ग्रह का क्षेत्रीय वेग (area velocity) नियत रहता है।
- ग्रह के परिक्रमणकाल का वर्ग उसकी सूर्य से मध्यमान दूरी के तृतीय घात अथवा घन के अनुक्रमानुपाती होता है
योहैन्नीज केपलर के अंतिम पल – Last moment of Johannes Kepler
योहैन्नीज केपलर की मृत्यु 1630 में, आइजक न्यूटन के जन्म से 12 वर्ष पूर्व, हुई। न्यूटन ने अपने महान कार्य को ग्रंथबद्ध करने के लिए कम से कम एक पैर विज्ञान के इस दिग्गज के कंधों पर रखा था।
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