Numbers in Hindi-कहा जाता है कि एक युग था जब गणित और विज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व में सबसे आगे था। यह बात बिल्कुल सच है कि क्योंकि इतिहास इसका गवाह है। जब यूरोप और अमेरिका ज्ञान के अंधकार में डूबे हुए थे तब भारत में गणित और विज्ञान के नए नए अध्याय लिखे जा रहे थे। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम संख्याओं के खोज( Numbers in Hindi) से लेकर भारतीय गणितज्ञ के योगदान के बारे में जानेंगे।
1 से 100 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 1 to 100)
1 से 10 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 1 to 10?)
एक 1 (१)
दो 2 (२)
तीन 3 (३)
चार 4 (४)
पाँच 5 (५)
छ:/छे (६)
सात 7 (७)
आठ 8 (८)
नौ 9 (९)
दस 10 (१०)
11 से 20 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 11 to 20?)
ग्यारह 11 (११)
बारह 12 (१२)
तेरह 13 (१३)
चौदह 14 (१४)
पंद्रह 15 (१५)
सोलह 16 (१६)
सत्रह 17 (१७)
अठारह 18 (१८)
उन्नीस 19 (१९)
बीस 20 (२०)
21 से 30 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 21 to 30?)
इक्कीस 21 (२१)
बाइस 22 (२२)
तेइस 23 (२३)
चौबीस 24 (२४)
पच्चीस 25 (२५)
छब्बीस 26 (२६)
सत्ताइस 27 (२७)
अट्ठाइस 28 (२८)
उनतीस 29 (२९)
तीस 30 (३०)
31 से 40 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 31 to 40)
इक्कतीस 31 (३१)
बत्तीस 32 (३२)
तैंतीस 33 (३३)
चौंतीस 34 (३४)
पैंतीस 35 (३५)
छत्तीस 36 (३६)
सैंतीस 37 (३७)
अँड़तीस 38 (३८)
उंचालीस 39 (३९)
चालीस 40 (४०)
41 से 50 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 41 to 50?)
इकतालीस 41 (४१)
बयालीस 42 (४२)
तैंतालीस 43 (४३)
चौवालिस 44 (४४)
पैंतालिस 45 (४५)
छयालिस 46 (४६)
सैंतालिस 47 (४७)
अड़तालीस 48 (४८)
उंचास 49 (४९)
पचास 50 (५०)
51 से 60 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 51 to 60?)
इक्यावन 51 (५१)
बावन 52 (५२)
तिरेपन 53 (५३)
चौवन 54 (५४)
पचपन 55 (५५)
छप्पन 56 (५६)
सत्तावन 57 (५७)
अट्ठावन 58 (५८)
उन्सठ 59 (५९)
साठ 60 (६०)
61 से 70 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 61 to 70?)
इकसठ 61 (६१)
बासठ 62 (६२)
तिरेसठ 63 (६३)
चौंसठ 64 (६४)
पैंसठ 65 (६५)
छियासठ 66 (६६)
सड़सठ 67 (६७)
अड़सठ 68 (६८)
उन्नहत्तर 69 (६९)
सत्तर 70 (७०)
71 से 80 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 71 to 80?)
इकहत्तर 71 (७१)
बहत्तर 72 (७२)
तिहत्तर 73 (७३)
चौहत्तर 74 (७४)
पिचहत्तर 75 (७५)
छिहत्तर 76 (७६)
सतहत्तर 77 (७७)
अठहत्तर 78 (७८)
उनासी 79 (७९)
अस्सी 80 (८०)
81 से 90 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 81 to 90?)
इक्यासी 81 (८१)
बयासी 82 (८२)
तिरासी 83 (८३)
चौरासी 84 (८४)
पिच्चासी 85 (८५)
छियासी 86 (८६)
सतासी 87 (८७)
अठासी 88 (८८)
नवासी 89 (८९)
नब्बे 90 (९०)
91 से 100 तक गिनती इन हिंदी(What are the numbers from 91 to 100?)
इक्यानवे 91 (९१)
बानवे 92 (९२)
तिरानवे 93 (९३)
चौरानवे 94 (९४)
पिच्चानवे 95 (९५)
छियानवे 96 (९६)
सत्तानवे 97 (९७)
अठानवे 98 (९८)
निन्यानवे 99 (९९)
(एक) सौ 100 (१००)
(एक) सौ 100 (१००)
(एक) हजार 1,000 (१,०००)
(दस) हजार 10,000 (१०,०००)
(एक) लाख 1,00,000 (१,००,०००)
(दस) लाख 10,00,000 (१०,००,०००)
(एक) करोड़ 1,00,00,000 (१०,००,०००)
(एक) अरब 1,00,00,00,000 (१,००,००,००,०००)
दस अरब
खरब
दस खरब
नील
दस नील
पद्म
दस पद्म
शंख
दस शंख
महाशंख
1 से 100 तक रोमन गिनती(roman numbers 1 to 100)
1 | I |
2 | II |
3 | III |
4 | IV |
5 | V |
6 | VI |
7 | VII |
8 | VIII |
9 | IX |
10 | X |
11 | XI |
12 | XII |
13 | XIII |
14 | XIV |
15 | XV |
16 | XVI |
17 | XVII |
18 | XVIII |
19 | XIX |
20 | XX |
21 | XXI |
22 | XXII |
23 | XXIII |
24 | XXIV |
30 | XXX |
40 | XL |
50 | L |
60 | LX |
70 | LXX |
80 | LXXX |
90 | XC |
100 | C |
101 | CI |
102 | CII |
200 | CC |
300 | CCC |
400 | CD |
500 | D |
600 | DC |
700 | DCC |
800 | DCCC |
900 | CM |
1,000 | M |
1,001 | MI |
1,002 | MII |
1,003 | MIII |
1,900 | MCM |
2,000 | MM |
2,001 | MMI |
2,002 | MMII |
2,100 | MMC |
3,000 | MMM |
4,000 | MMMMor M V |
5,000 | V |
About ginti in hindi(numbers in hindi 1 to 100)
0(शून्य) | ० | Sunya |
1(एक) | १ | Ek |
2( दो) | २ | Do |
3(तीन) | ३ | Tin |
4(चार ) | ४ | Char |
5(पांच) | ५ | Panch |
6(छः) | ६ | chhah |
7(सात) | ७ | Sat |
8(आठ ) | ८ | Ath |
9(नौ) | ९ | Nau |
10(दस) | १० | Das |
100(सौ) | १०० | Sau |
1,000(एक हजार ) | १,००० | Ek hajaar |
10,000(दस हजार ) | १०,००० | Das hajar |
1,00,000(एक लाख ) | १,००,००० | Ek lakh |
1,000,000(दस लाख ) | १०,००,००० | Das lakh |
10,000,000(करोड़ ) | १००,००,००० | Ek Krore |
100,000,000(दस करोड़ ) | १०,००,००,००० | Das Krore |
भारत में संख्या का इतिहास(History of numbers in Hindi)
भारत में गणित का अध्ययन ईसा से 2000 वर्ष पहले से चला रहा है यह काल वैदिक काल कहलाता था। इस युग में यज्ञ हुआ करता था। विभिन्न आकृतियों का इस्तेमाल यज्ञवेदियों के निर्माण में किया जाता था। इसी समय ज्यामिति(geometry) का विकास हुआ। जिसे उस समय क्षेत्रमिति कहा जाता था।
क्षेत्रमिति की जानकारी ” सुल्व सूत्र” नामक किताब में पाई जाती है सुल्व का अर्थ होता है रस्सी। वेदियों मे बने आकृतियों को नापने के लिए रस्सीयों की जरूरत पड़ती थी। इसीलिए रस्सीयों का यह गणित सुल्व सूत्र कहा जाने लगा। बाद में इसका नाम रेखा गणित पड़ा।
ज्यामिति शब्द तो अभी 50 वर्ष पहले अंग्रेजी के geometry से विकसित हुआ है। इसी प्रकार के एक शुल्वसूत्र मे जिसकी रचना ऋषि बोधायन ने की थी, उसमे पाइथागोरस( Pythagoras) की प्रसिद्ध प्रमेय देखने को मिलता है। जिसके अनुसार किसी समकोण त्रिभुज के कर्ण का वर्ग अन्य दो भुजाओं के वर्गों के बराबर होता है।
यूनानी गणितज्ञ पाइथागोरस का जन्म ईसा से 300 वर्ष पहले हुआ था। जबकी बोधायन ने अपने शुल्वसूत्र की रचना 800 ई.पू में ही कर ली थी। इस प्रकार पाइथागोरस से 500 साल पहले से भारतीय इस पर प्रमेय को जानते थे।
वैदिक काल में हमें महात्मा लगध के द्वारा लिखित एक अनुपम ग्रंथ देखने को मिलता है। जिसका नाम -वेदांग ज्योतिष है। इस किताब में सबसे पहले “एकीक नियम” देखने को मिलता है। इसके अलावा इसमें बड़ी-बड़ी संख्याओं (Numbers in Hindi)का भी उल्लेख मिलता है।
भारतीय गणित का पश्चिमी देशों में संक्रमण-Transition of Indian Mathematics to Western Countries
भारतीय भाषाओं के ना केवल शब्द बल्कि भारतीय गणित के अनेक विधियां अरब के माध्यम से यूरोप पहुंची। और दुनिया को महान भारतीय गणित की जानकारी प्राप्त हुई। अब चाहे वह अंक-गणित हो या बीजगणित या फिर त्रिकोणमिति।
यूनानी गणितज्ञ केवल ज्यामिति के क्षेत्र में निपुण थे। गणित के अन्य शाखाओं में उनका ज्ञान बहुत कम था। आधुनिक त्रिकोणमिति में प्रयुक्त होने वाला Sin(साइन) शब्द। भारतीय भाषा संस्कृत से ही बना है। यही वास्तविकता है।
जब अरब के गणितज्ञ भारतीय गणित का संस्कृत से अरबी में अनुवाद कर रहे थे। तब यह शब्द उनके सामने आया। उन्होंने इस शब्द Sin को ज्यों का त्यों अपना लिया। जब यह अरबी ग्रंथ यूरोप पहुंचा और उनका लेटिन में अनुवाद होने लगा। तभी यूरोपीयंस ने इसे समझा।
आज हम जिस त्रिकोणमिति का अध्ययन करते हैं। वह बुनियादी ढांचे पर खड़ी है। उसकी खोज आज से 2500 साल पहले आर्यभट्ट ने की थी। इस प्रकार भारतीय गणित पहले अरब फिर यूरोप पहुंचा।
महान गणितज्ञ आर्यभट्ट का नंबरों की खोज में योगदान- The great Indian mathematician Aryabhatta contribution in numbers Hindi
आर्यभट्ट ना केवल भारत के बल्कि संपूर्ण विश्व के सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ थे। गणित और ज्योतिष के क्षेत्र में उनके विचार बड़े ही क्रांतिकारी और आधुनिक थे। उनके द्वारा लिखित किताब”आर्यभाटिय” से उनके जन्मकल और जन्म स्थान की जानकारी मिलती है।
इस किताब की रचना आर्यभट्ट ने 499 ई. मे 23 वर्ष की आयु में की थी।अतः उनका जन्म 476 ई. में हुआ था। उन्होंने अपने जन्म स्थान का नाम कुसुमपुर लिखा है। प्राचीन काल में पटना(Patna) को ही कुसुमपुर कहा जाता था। लेकिन कुछ लोगों का यह भी मानना है कि आर्यभट्ट ने दक्षिण भारत में जन्म लिया था।
आर्यभट्ट ने संस्कृत के अक्षरों को संख्या का मान देकर एक नई पद्धति प्रस्तुत की। जैसे -क=1, ख=2, ग=3 तथा अ=1, इ=100, उ=10,000 इत्यादि।
आर्यभट्ट अपनी किताब मे अंकगणित रेखा गणित और बीज गणित के प्रमुख नियम संक्षेप में दिए हैं। साथ ही आर्यभट्ट ने वृत्त के परिधि और व्यास के अनुपात जिसे जिसे हम लेटिन अक्षर पाई(Numbers in Hindi) के नाम से जानते हैं। उसका मान दशमलव के चार स्थानों (3.1416)तक बिल्कुल शुद्ध दिया था।
आर्यभट्ट ने अपनी किताब में समलंब चतुर्भुज के क्षेत्रफल तथा गोले और पिरामिड का आयतन ज्ञात करने की विधिया भी बताई हैं। इसके अलावा और भी बहुत सारे प्रमेय और समीकरणों(ax-by=c) का जानकारी दी है।
महान गणितज्ञ महावीराचार्य और संख्याओं पर उनके खोज- Mathematician mahaviracharya contribution in numbers in Hindi
ईशा की 9 वी सदी में हमारे देश के प्रसिद्ध गणितज्ञ महावीराचार्य का जन्म हुआ। इन्होंने 825 ईसवी में कर्नाटक में जन्म लिया था। महावीराचार्य एक अद्भुत गणितज्ञ थे। पहले भारत में गणित और ज्योतिषी का अध्ययन एक साथ होता था। महावीराचार्य वह पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने इसे अलग किया।
उनकी किताब “गणितसारसंग्रह” जिसकी रचना उन्होंने 850 ईसवी में संस्कृत भाषा में की थी। उस समय गणित की पाठ्यपुस्तक थी। इस किताब मे permutation and combination की संख्या ज्ञात करने के नियम दिए गए हैं।
19वीं शताब्दी के महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का संख्याओं मे योगदान- the great Indian mathematician Ramanujan contribution in numbers in Hindi
19वीं शताब्दी में हमें जिस महान गणितज्ञ के दर्शन हुए वह हैं श्रीनिवास रामानुजन। personally मैं खुद इनका बहुत बड़ा फैन हूं। इनके द्वारा संख्याओं पर किया गया कार्य( Discovery of numbers in Hindi) किसी जादू से कम नहीं है।
इनके द्वारा किया गया गणित में अधिकतर कार्य संख्या सिद्धांत ( numbers theory in Hindi)के अंतर्गत आता है। गणित के राजकुमार रामानुजन संख्या सिद्धांत में genius थे।
चलीए पहले इनके बारे में थोड़ा जानते हैं- रामानुजन का जन्म उनके ननिहाल तमिलनाडु में 22 दिसंबर 1887 को हुआ था। वह अल्पजीवी थे। 32 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन इन 32 सालों में उन्होंने वह कर दिखाया। जिसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते।
इनका एक इक्वेशन तो मुझे इतना पसंद था। जिसने इन्होंने infinite नंबर्स को calculate करके दिखाया था। संख्याओं पर किया गया इनका ज्यादातर खोज infinity से जुड़े हुए थे।
जब यह सातवीं कक्षा में थे तब उन्होंने arithmetic progression, geometric progression और harmonic progression का ध्यान कर लिया था। जब वह दसवीं कक्षा में थे तब उन्होंने synopsis of pure mathematics जिसके लेखक इंग्लैंड के गणितज्ञ जॉर्ज शोब्रिज थे। को हल कर डाली थी। इसी समय उन्होंने magic square की खोज की थी।
सन 1913 को रामानुजन ने इंग्लैंड के कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज के professor Hardy को एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने स्वामी द्वारा निर्मित कुछ सूत्र और प्रमेय भेजे और उन पर hardy की राय चाही।
Professor Hardy रामानुजन की इन गणनायों को देखकर आश्चर्यचकित रह गए। वे समझ गए कि रामानुजन के प्रतिभा कोई साधारण नहीं है। फिर तुरंत Hardy ने रामानुजन को 1914 में इंग्लैंड बुला लिया। वहां 5 वर्षों तक उन्होंने hardy के साथ मिलकर संख्याओं के सिद्धांत पर काम किया।
इंग्लैंड में रामानुजन भारतीय तौर तरीकों से रहते थे और अपना खाना खुद बनाते थे। जिसके कारण वह बीमार हो गए। इंग्लैंड के एक अस्पताल में रामानुजन का जब इलाज चल रहा था। professor Hardy एक टैक्स में बैठकर उनसे मिलने गए।
बातचीत के दौरान प्रोफेसर हार्डी ने कहा” मैं जिस टैक्सी में बैठ कर आया था उसका नंबर 1729 है जो बड़ा अप्रिय और अशुभ है” Hardy ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि इस संख्या का एक ही गुणनखंड 13 है। जिसे अशुभ संख्या माना जाता है। बिस्तर पर लेटे लेटे रामानुजन ने जवाब दिया “नहीं professor Hardy यह एक अद्भुत संख्या है। यह वह सबसे छोटी संख्या है जिसे दो घन संख्याओं के योग के रूप में दो प्रकार से लिखा जा सकता है।
1729=10^3+9^3=12^3+1^3
इंग्लैंड में रहते समय रामानुजन है जो शोधपत्र प्रकाशित किए। उनमें सबसे बड़ा निबंध अतिभाज्य संख्याओं के विषय में है। इस सिद्धांत में यह जाने का प्रयास किया जाता है। कि किसी पूर्णाक(Numbers in Hindi) को छोटे-छोटे संख्याओं के योग के रूप में कितने प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है।
रामानुजन ने इस विषय में कई महत्वपूर्ण अनुमान प्रस्तुत किए और बाद में उन्हें prove किया। साथ ही रामानुजन ने पाई का दशमलव के कई स्थानों तक शुद्ध मान प्राप्त करने के लिए सूत्र भी खोजें। इंग्लैंड में उन्हें रॉयल सोसाइटी का सदस्य नियुक्त किया गया। यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह पहले भारतीय थे।
सन 1919 में रामानुजन भारत लौट आए। तब उनको टीवी की बीमारी थी जो इंग्लैंड में हुई थी। इसी बीमारी के कारण 26 अप्रैल 1920 को उनकी मृत्यु हो गई। इनकी जन्म तिथि 22 दिसंबर को हमारे देश में गणित दिवस मनाया जाता है।
गणित की जादूगरनी शकुंतला देवी का संख्याओं में योगदान- contribution of Shakuntala Devi in numbers in Hindi
शकुंतला देवी कोई महान गणितज्ञ नहीं थी लेकिन इनकी गणना करने की क्षमता काबिले तारीफ थी। इसलिए इसमें मैं इनका नाम लिख रहा हूं क्योंकि यह संख्याओं के ऊपर calculation बहुत तेजी से करती थी।
जिस गन्ना को करने में किसी सामान्य व्यक्ति को घंटों लग सकते हैं उन्हें शकुंतला देवी मात्र कुछ सेकंड में कर दिया करती थी। उनका एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध है। बात 1977 की है अमेरिका में एक कंप्यूटर और शकुंतला देवी दोनों को 188138517 का घनमूल निकालने दिया गया। इससे पहले कि कंप्यूटर उत्तर दे पाता। शकुंतला देवी ने उत्तर देकर उसे पराजित कर दिया।
इसी साल अमेरिका की Methodist University मैं उन्हें एक 201 अंको की संख्या का 23 वा मूल निकालने को कहां गया। उन्होंने मात्र 50 सेकंड में इसका हल प्रस्तुत कर दिया। बाद में एक शक्तिशाली कंप्यूटर”यूनिवक 1101″ द्वारा इस प्रश्न को हल करके देखा गया। इससे वही हल प्राप्त हुआ जो शकुंतला देवी ने दिया था।
चलिए अब शकुंतला देवी के बारे में जानते हैं- शकुंतला देवी का जन्म 4 नवंबर 1929 को कर्नाटक प्रांत के बेंगलुरु शहर में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता एक सर्कस में काम करते थे।
शकुंतला देवी का अंको को याद रखने की क्षमता उनके पिता ने ही सबसे पहले पहचाना। जब वह मात्र 3 वर्ष की थी। पिता ने सर्कस छोड़ दिया और अपनी बेटी की इस अद्भुत कला का प्रदर्शन सड़कों पर करने लगे।
6 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी गणना का प्रदर्शन मैसूर विश्वविद्यालय में किया। सन 1944 में शकुंतला अपने पिता के साथ लंदन चली गई। 1950 तक उन्होंने संपूर्ण यूरोप में घूम घूम कर अपनी गणितीय क्षमता का प्रदर्शन किया। 1960 के मध्य में वह भारत लौट आई और कोलकाता के एक आईएएस अधिकारी से शादी कर ली। परंतु सन 1979(Numbers in Hindi) में उनका अपने पति से तलाक हो गया।
1988 में अमेरिकी के कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान के एक प्रोफेसर Arthur Jason ने शकुंतला की क्षमताओं का गहन अध्ययन किया। उन्होंने कई प्रकार की गणनाओ के माध्यम से शकुंतला के मस्तिष्क की जांच की।
इस जांच में प्रोफेसर ने पाया कि उनके द्वारा प्रश्नों को नोटबुक में लिखने से पहले ही शकुंतला ने उनका जवाब दे दिया। जैसे उन्होंने पूछा कि 61, 629, 875 का घनमूल और 170859375 का सातवां मूल क्या है? इससे पहले कि प्रोफेसर इन संख्याओं को लिख पाते। शकुंतला देवी ने उनके उत्तर 395 और 15 बता दिए। जो बिल्कुल सही थे उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट 1990 में प्रकाशित की।
अप्रैल 2013 में श्वास नली में तकलीफ के कारण बेंगलुरु के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। दो हफ्तों तक हृदय और किडनी की समस्याओं से लड़ती रही और अंत में 21 अप्रैल 2013 को 83 वर्ष की आयु में इनका का देहांत हो गया।
1 से 100 तक सम्पूर्ण गिनती(1 to 100 ginti in hindi)
1- एक | 11- ग्यारह | 21-इक्कीस | 31- इकतीस | 41- इकतालीस | 51- इक्याबन | 61- इकसठ | 71- इकहत्तर | 81- इक्यासी | 91- इक्यानबे |
2- दो | 12- बारह | 22- बाईस | 32- बत्तीस | 42- बयालीस | 52- बावन | 62- बासठ | 72- बहत्तर | 82- बयासी | 92- बानवे |
3- तीन | 13- तेरह | 23- तेईस | 33- तैंतीस | 43- तैंतालीस | 53- तिरेपन | 63- तिरसठ | 73- तिहत्तर | 83- तिरासी | 93- तिरानवे |
4- चार | 14- चौदह | 24- चौबीस | 34- चौंतीस | 44- चौंतालीस | 54- चौबन | 64- चौंसठ | 74- चौहत्तर | 84- चौरासी | 94- चौरानवे |
5- पांच | 15- पंद्रह | 25- पच्चीस | 35- पैंतीस | 45- पैंतालीस | 55- पचपन | 65- पैंसठ | 75- पचहत्तर | 85- पचासी | 95- पचानवे |
6- छः | 16- सोलह | 26- छब्बीस | 36- छ्त्तीस | 46- छियालीस | 56- छप्पन | 66- छियासठ | 76- छिहत्तर | 86- छियासी | 96- छियानवे |
7- सात | 17- सत्रह | 27- सत्ताईस | 37- सैंतीस | 47- सैंतालीस | 57- सत्तावन | 67- सड़सठ | 77- सतहत्तर | 87- सतासी | 97- सत्तानवे |
8- आठ | 18- अट्ठारह | 28- अट्ठाईस | 38- अड़तीस | 48- अड़तालीस | 58- अट्ठावन | 68- अड़सठ | 78- अठहत्तर | 88- अठासी | 98- अट्ठानवे |
9- नौ | 19- उन्निस | 29- उनतीस | 39- उनतालीस | 49- उनचास | 59- उनसठ | 69- उनहत्तर | 79- उनासी | 89- नवासी | 99- निन्यानवे |
10- दस | 20- बीस | 30- तीस | 40- चालीस | 50- पचास | 60- साठ | 70- सत्तर | 80- अस्सी | 90- नब्बे | 100- सौ |
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