पुस्तक : सच्ची मित्र(Book Essay hindi)
क) भूमिका-
“मैं नरक में भी रहूँगा, पुस्तकों का स्वागत करूँगा,क्योंकि इसमें वह शक्ति है कि जहाँ ये होंगी वहाँ अपने-आप ही स्वर्ग बन
जाएगा।” लोकमान्य तिलक की पंक्तियाँ साबित कर देती हैं कि मानव जीवन में पुस्तकों का कितना बड़ा योगदान है। पुस्तकों से ज्यादा सच्ची मित्र कोई हो ही नहीं सकता। गुरु हमें ज्ञान देते हैं। कुछ समय तक ही हम उनके पास रह पाते हैं, ज्ञानामृत पी सकते हैं। लेकिन पुस्तकें सदैव हमारे साथ रहती है। अत: यह गुरुओं की गुरु भी है।
(ख) सभ्यता-
संस्कृति के विकास में-अनादिकाल से मनुष्य ज्ञान परिष्करण हेतु प्रयासरत रहा है। सभ्यता के विकास के पहले मानव पशुवत्
जीवन यापन करता था। आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। अत: लोगों ने आपसी समझ से भाषा बनाने का प्रयास किया। कालान्तर में सभ्यता के विकास में उस भाषा के बदौलत बहुत तेजी से अभिवृद्धि हुई और लिपि का आविष्कार, छापाखानों का निर्माण तथा पुस्तकों की रचनाएँ एक कड़ी की तरह है। जो हमारी सभ्यता-संस्कृति के विकास में अहम बनी।
(ग) जीवन की सफलता में-
बाल्यावस्था में जीवनशक्ति की तरह ही इच्छा भी पनपती रहती है। उस इच्छा शक्ति को पूरा करने और बल प्रदान करने में पुस्तकें सबसे महत्त्वपूर्ण और उचित माध्यम बन जाती है। वैज्ञानिकों, महापुरुषों, साहित्यकारों और दार्शनिकों आदि की कृतियों, उनकी जीवन शैली, आत्मकथाएँ आदि का अध्ययन कर ही हम उच्च कोटि की सफलता प्राप्त कर सकते हैं। जब हम इन लोगों का अध्ययन करते हैं तो हमारा विकास होता है।
(घ) ज्ञान की अभिवृद्धि में-
गाँधीजी पर गीता की टालस्टॉय, थारो आदि की महानकृतियों की महती छाप थी। उन्होंने अपने ज्ञान की अभिवृद्धि के लिए उन पुस्तकों का अध्ययन किया, मार्क्स की रचनाओं का अध्ययन किया,मार्क्स की रचनाओं का अध्ययन कर क्रान्ति की भी शिक्षा प्राप्त की। किसी ने कहा कि “मानव जाति ने जो कुछ किया, सोंचा या पाया है, वह पुस्तकों के जादू भरे पृष्ठों में सुरक्षित हैं” थामस ए. केम्पिस ने कहा कि “बुद्धिमानों की रचनाएँ ही एक मात्र ऐसी अक्षय निधि है जिन्हें हमारी संतति नष्ट नहीं कर सकती है। मैंने प्रत्येक स्थान पर विश्राम खोजा, किन्तु वह एकांत कोने में बैठकर पुस्तक पढ़ने के अतिरिक्त कहीं प्राप्त न हो सका।” अत: ज्ञान की अभिवृद्धि पुस्तकों में ही है।
(ङ) उपसंहार-
इस प्रकार पुस्तकें सर्वोत्तम साथी है। हमारे साथ रहनेवाली, सुख-दुःख सहायक होती है। चूंकि पुस्तकें पढ़ना समय का सवोत्तम उपयोग है, उच्चकोटि का मनोरंजन है। गाँधीजी ने कहा है कि यदि आप खूब पढ़े-लिखे हैं और रोज पुस्तकों का अध्ययन नहीं करते हैं तो आप मूर्ख समान हैं। अतः पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र और जीवन-पथ की संरक्षिका है।
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