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नील्स बोर की सम्पूर्ण जीवनी-Biography of Niels Bohr in hindi

  • जन्म-7 अक्टूबर, 1885
  • जन्म स्थान-डेनमार्क
  • निधन-18 सितम्बर, 1962

नील्स बोर ने अणु की प्रकृति सम्बंधी बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारियां संसार को दीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि इलेक्ट्रॉन समान्यतः तो अपने विनिश्चित वृत्तों में ही चक्कर काटते हैं किंतु जब अणु में से विद्युत गुजारी जाती है तब ये अपनी लीक से हटकर कुछ बड़ी परिधि में पहुंच जाते हैं और पुनः वापिस लौटते हैं।
जिससे उनमें चमक पैदा होती है। नील्स की अणु कल्पना(niels bohr atomic theory)ने हमारी दुनिया ही बदल डाली थी। वो अणु शक्ति का प्रयोग विश्वशांति के लिए करने का समर्थन करते थे।

नील्स बोर का जन्म-Biography of Niels Bohr in hindi

नील्स बोर का जन्म 7 अक्टूबर, 1885 को डेनमार्क में हुआ था। उनके पिता क्रिश्चन बोर, कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में शरीर-तंत्र (फीजियॉलोजी) के प्रोफेसर थे। नील्स बोर शुरू से ही एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे, और उनकी सम्पूर्ण शिक्षा-दीक्षा(niels bohr education hindi) कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में ही हुई।

22 वर्ष की आयु में डेनिश विज्ञान सोसायटी ने उन्हें ‘सर्फेस-टेंशन’ सम्बंधी उनके मौलिक अध्ययनों पर, एक स्वर्ण पदक भी दिया था।

नील्स और उनके भाई हैरल्ड—जो आगे चलकर एक प्रसिद्ध गणितज्ञ बन गए—दोनों, जहां-जहां भी स्कैण्डेनेविया का तंत्र है (उन सभी देशों में), फुटबाल के
अद्वितीय खिलाड़ी मशहूर हो चुके थे, और दोनों ही आल-डेनिश टीम के सदस्य भी थे।

1911 में बोर ने भौतिकी में पी.एच.डी. हासिल की और, उसके बाद, इंग्लैंड की कैवेंडिश लेबोरेटरीज में, इलेक्ट्रॉन के जनक जे.जे. टॉमसन की छत्रछाया में अनुसंधान करने की पिपासा से निकल पड़े।

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भौतिकी मे नोबल पुरस्कार-Niels bohr contributions in physics

सर अर्नेस्ट रदरफोर्ड के साथ काम करते हुए दोनों वैज्ञानिकों में आजीवन मैत्री हो गई। 1913 में बोर ने अणु की ‘अंतःकरण’ सम्बंधी अपनी मौलिक कल्पना विज्ञान जगत के सम्मुख प्रस्तुत कर दी।

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अणु-अर्थात किसी भी द्रव्य का छोटे से छोटा भाग, एक कण, जिसमें उस द्रव्य की निजी विशिष्टताएं ज्यों की त्यों बनी रहती हैं, नष्ट नहीं हो जातीं।

अणु का और अधिक विभाजन उसकी प्रकृति को बदल सकता है। अणु( niels bohr model hindi)दो अंशों का बना होता है—एक, अंतःकरण’ जिसे न्यूक्लियस अथवा केंद्रक कहते हैं और, दूसरा, इस नाभि-संस्थान से पृथक्, दूर-स्थित इलेक्ट्रॉन नाम के कणों का समुच्चय ‘बाह्य प्रावरण’ ।

अणु की बोर द्वारा प्रस्तुत कल्पना(niels bohr atomic theory) में—’न्यूक्लियस’ केंद्र अथवा नाभि रूप में स्थिर रहता है, जबकि ये इलेक्ट्रॉन उस केंद्रबिंदु के गिर्द वृत्ताकार परिधियों में निरंतर परिक्रमा काटते रहते हैं।

अणु के संधान की इस कल्पना की तुलना प्रायः सौरमंडल के साथ की भी जाती है, क्योंकि सौरचक्र में भी तो ग्रह-नक्षत्र सूर्य के गिर्द, अपनी-अपनी परिधियों में ही घूमा करते हैं।

अणु का सरलतम रूप है—हाइड्रोजन । हाइड्रोजन प्राकृतिक तत्त्वों में सबसे हलका तत्त्व है। इसके न्यूक्लियस में केवल एक प्रोटॉन होता है। प्रोटॉन में, मात्रा में इलेक्ट्रॉन के समान ही, आवेश होता है किंतु प्रोटॉन में यह (चार्ज) ऋण न होकर धन होता है।

और, साथ ही, प्रोटॉन भारी भी इलेक्ट्रॉन की अपेक्षा 2,000 गुणा होता है। साधारणतया, हाइड्रोजन के न्यूक्लियस के गिर्द एक ही इलेक्ट्रॉन परिक्रमा किया करता है।

सरलता की दृष्टि से, हाइड्रोजन के बाद प्रसिद्ध गैरविस्फोटक हलकी गैस हीलियम का नम्बर आता है। हीलियम के न्यूक्लियस में दो न्यूट्रॉन होते हैं और दो ही प्रोटॉन, और उसकी परिधि में भी दो ही इलेक्ट्रॉन गतिशील हुआ करते हैं।

और यूरेनियम में 92 इलेक्ट्रॉन 7 साफ-सुथरी परिधियों में चक्कर पर चक्कर काट रहे होते हैं। इस प्रकार, प्रत्येक तत्त्व में इन प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों की अलग-अलग संख्या होती है जिनके गिर्द विभिन्न आकार एवं संख्या की परिधियों में इलेक्ट्रॉन निरंतर घूम रहे होते हैं।

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बोर ने अपनी अणुकल्पना(niels bohr atomic theory)के आधार पर, तथा कुछ क्वांटम सिद्धांत के आधार पर अणु की प्रकृति-सम्बंधी इस समस्या का समाधान उपस्थित करने की कोशिश की कि क्या सचमुच विभिन्न द्रव्यों द्वारा विसर्जित प्रकाश के वर्ण-रूपों की पूर्व-कल्पना हम कुछ कर सकते हैं

इन वर्ण-रूपों के आधार पर क्या वस्तु के स्वरूप की कुछ कल्पना, कुछ पूर्वाभास, कर सकते हैं? बोर ने एक नया विचार इस सम्बंध में इस प्रकार अभिव्यक्त किया कि ये इलेक्ट्रॉन सामान्यतः तो अपने विनिश्चित वृत्तों में ही चक्कर काटते हैं

किंतु जब अणु में से बिजली गुजारी जाती है तब झट से कूदकर, ये अपनी लीक में से अगली, और पहले से कुछ बड़ी, परिधि में पहुंच जाते हैं और वहां से फिर वापस-उसी पुरानी परिधि में आ जाते हैं।

अर्थात परिधि-परिवर्तन की इस उछल-कूद का ही परिणाम होती है यह अद्भुत चमक-दमक जो एक प्रकार से अणु-अणु का एक और लक्षण-सा ही बन जाती है।

अणु की आंतर रचना, तथा उसके इलैक्ट्रॉनों द्वारा यह परिधि व्यतिक्रमण इन दो विलक्षणताओं के आधार पर, अब, बोर को अणु-अणु की वर्ण-भंगिमा का पूर्वाभ्यास
देने में भी कुछ मुश्किल पेश नहीं आई।

बोर की इस आन्वीक्षिकी को शुरू-शुरू में बहुत ही कम लोग ग्रहण कर पाए थे—यहां तक कि नोबल पुरस्कार समिति की आंखें भी इस विषय में कहीं नौ साल बाद 1922 में खुलीं। लेकिन, इस देरी के बावजूद, 37 वर्ष
की छोटी आयु में बोर(Niels bohr discoveries)से पहले कोई भी भौतिकीविद तब तक नोबल-विजेता न बन सका था।

पुरस्कृत होने से पूर्व ही उन्हें कोपेनहेगन के ‘समीक्षात्मक भौतिकी संस्थान’ का अध्यक्ष नियुक्त किया जा चुका था। 1939 में लिजे और उसके भतीजे के शोध पत्रों को पढ़कर उन्हें लगा कि यूरेनियम का विभाजन सम्भव है।

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वे अमरीका पहुंचे और आइंस्टाइन और एनरीको फेर्मि आदि से मिले। कुछ ही दिनों में माइतनर-फ्रीश के अनुमानों की सत्यता सामने आने लगी। उसके बाद तो परमाणु बम की कहानी जन विदित ही है।

बोर डेनमार्क लौट गए और फिर से अपने अनुसंधानों में लग गए। किंतु 1940 के अप्रैल में कुछ ही घंटों की मार में जर्मनी ने डेनमार्क पर कब्जा कर लिया।

नील्स(Niels bohr biography)बोर नात्सियों के चंगुल में आने से पहले ही पत्नी-समेत मछली पकड़ने की एक छोटी-सी किश्ती में सवार होकर स्वीडन पहुंच गए।

स्वीडन से वे अमरीका पहुंचे और वहां वे लोस अलामास के एटामिक प्रोजेक्ट में अपने पुत्र से आ मिले। लड़ाई जब खत्म बोर कोपेनहेगन और अपनी प्रिय इंस्टीट्यूट में लौट आए।

बोर को दो चीजों में दिलचस्पी थी—विज्ञान में तथा विश्व शान्ति में। ज्यों ही अणु के विस्फोट की खबरें दुनिया में फैलने लगी, उन्होंने तुरंत अपील की कि इसके प्रयोग पर अविलम्ब अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण हो जाना चाहिए, किंतु सुनता कौन था? डेनिश

परमाणु शक्ति कमीशन का अध्यक्ष होने के नाते वे 1952 में आयोजित जिनेवा के शांति सम्मेलन में शामिल होने गए और उन्हें उस अधिवेशन का अध्यक्ष चुन लिया गया अक्टूबर, 1957 में नील्स बोर को ‘फोर्ड एटम्स फॉर पीस’ पुरस्कार मिला।

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