- जन्म – 1550 ई .
- जन्म स्थान – मरचिस्टन कैसल, एडिनबरा
- मृत्यु – 4 अप्रैल, 1617
- मृत्यु स्थान – मरचिस्टन, एडिनबरा
महानतम गणितज्ञ एवं दार्शनिक जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सत्य के खोज एवं लोक भ्रांतियां दूर करने में अर्पित कर दिया। इनके लघुगणक का सिद्धांत आज भी गणितीय गणनाओं के सरलीकरण में आवश्यक है।
जॉन नैपीयर का जन्म -Biography of John Napier in Hindi
इस महान गणितज्ञ का जन्म सन् 1550 में एडिनबरा के पास मरचिस्टन कैसल स्कॉटलैंड में हुआ था। जन्म के समय इनके पिता की आयु केवल 16 वर्ष थी।
नैपीयर 13 वर्ष की उम्र में सेंट एन्डूज विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. लेकिन वे वहां पर ज्यादा दिन नहीं रहे। उन्होंने विश्वविद्यालय बिना डिग्री लिए ही छोड़ दिया।
नैपीयर के आरम्भिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है परंतु ऐसा विश्वास किया जाता है कि उन्होंने विदेशों की यात्राएं की क्योंकि वहां चली हुई एक प्रथा के अनुसार जमींदारों के पुत्रों को विदेशों की यात्राएं करना जरूरी था।
सन् 1571 में नैपीयर ( Biography of John Napier in Hindi) घूमकर वापस स्कॉटलैंड आ गए और जीवनभर या तो मरचिस्टन में या गार्टनेस (Gartness) में रहे। नैपीयर सन् 1572 में विवाह के
बंधन में बंध गए। इनकी पत्नी की मृत्यु सन् 1579 में हो गई। अपनी पहली पत्नी के मरने के कुछ वर्ष बाद नैपीयर ने पुनः विवाह कर लिया। नैपीयर जीवनभर चर्च के विरुद्ध प्रचार कार्यों में ही व्यस्त रहे। उन्होंने सन् 1593 में रोम के चर्च के विरुद्ध एक पुस्तक भी लिखी, जिसमें उन्होंने लिखा कि चर्च के पादरी संसार को सन् 1668 और 1770 के बीच में खत्म कर देंगे। इस पुस्तक के 21 प्रकाशित संस्करणों में से 10 संस्करण लेखक के जीवनकाल के दौरान में ही छपे।इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद नैपीयर युद्ध सम्बंधी यंत्रों के अनुसंधानों में लग गए।
नैपीयर के गणित और विज्ञान सम्बंधी शोध -Napier’s math and science research in hindi
इन्होंने दो प्रकार के आग लगाने वाले दर्पण बनाए। इन्होंने एक धातु का रथ भी बनाया, जिसमें बने छोटे छेदों से गोलियों की बौछार की जा सकती थी। नैपीयर को राजनैतिक और धार्मिक कार्यों से जो भी समय मिलता तो, उसे उन्होंने गणित और विज्ञान पढ़ने में बिताया। इस पढ़ाई का नतीजा यह हुआ कि नैपीयर का नाम गणित की दुनिया में अमर हो गया। इन्होंने एक यंत्र भी खोजा जिसे संख्याओं के गुणा-भाग और वर्गमूल लेने के लिए प्रयोग किया जाता था। इस यंत्र को नैपीयर रोड कहते हैं।
वास्तव में नैपीयर (Biography of John Napier in Hindi )ने कई खोजें की लेकिन जो उनकी प्रमुख खोज थी—वह थी लघुगणक । इस पर नैपीयर ने सन् 1594 में कार्य शुरू किया था। धीरे-धीरे इस तरीके
को प्रयोग में लाकर उन्होंने बताया कि कैसे गुणा, भाग, वर्गमूल आदि की गणनाओं को तीव्रता से हल किया जा सकता है। इसी के आधार पर उन्होंने लघुगणक सारिणी
भी विकसित की। उनका यह आविष्कार इतना महत्त्वपूर्ण और उपयोगी सिद्ध हुआ कि इसने इनके गणित सम्बंधी दूसरे कार्यों पर पर्दा-सा डाल दिया। खगोलविज्ञान, नौचालन, व्यापार, इंजीनियरी और युद्ध आदि जैसे अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें अनेक गणितीय गणनाएं करनी पड़ती हैं। इन कठिन गणितीय गणनाओं को तीव्रता के साथ हल करने का तरीका प्रस्तुत किया था जॉन नैपीयर ने। इस तरीके द्वारा जटिल से जटिल गुणा-भागों को जल्दी और सही तरह से हल किया जा सकता है। नैपीयर द्वारा दी गई विधि को लघुगणक या लॉगरिथम कहते हैं।
लघुगणक क्या है ? – What is logarithm and John Napier in Hindi
लघुगणक या लॉगरिथम एक ऐसा तरीका है, जिसमें बड़ी से बड़ी गुणा की क्रिया को धनात्मक रूप में और भाग की क्रिया को ऋणात्मक रूप में व्यक्त कर लिया जाता है। घातांको (Exponents) वाली संख्याओं को घातांक से गुणा करके लघुगणक में व्यक्त करते हैं। इसके पश्चात मानक सारणी (Standard Tables) से संख्याओं के लघुगणक देख लिए जाते हैं और सारणी से प्राप्त मानों को जोड़-घटा के चिह्नों के अनुसार मान (Value) प्राप्त कर लिया जाता है।
इस मान के अनुसार सारणी से प्रतिलघुगणक (Anti Logarithms) देखकर, दशमलव का चिह्न यथा स्थान लगाकर गणना का परिणाम प्राप्त कर लिया जाता है। लघुगणक और प्रतिलघुगणक की अलग-अलग सारणी (Tables) होती हैं। उन्होंने गोलीय ट्रिगनोमैट्री (Trignometry), नैपीयर एनालोजी (Analogy) आदि पर भी काफी अनुसंधान किए। नैपीयर की 4 अप्रैल, 1617 को मरचिस्टन में मृत्यु हो गई।
नैपीयर के अंतिम पल -Last moment of John napier in hindi
नैपीयर के गणित सम्बंधी शोध Description of the Marvelous Canon of Logarithms, Construction of the Marvelous Canon of Logarithms नामक दो पुस्तकों में संग्रहित हैं। इनमें से पहली पुस्तक 1614 में और दूसरी उनके मरने के कुछ साल बाद सन् 1620 में प्रकाशित हुई थी। यद्यपि आज नैपीयर (Biography of John Napier in Hindi) हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके द्वारा दिया गया तरीका इस आधुनिक युग में भी प्रयोग में लाया जाता है। इस तरीके का हमारे देश में माध्यमिक कक्षाओं में ही विद्यार्थियों को समुचित ज्ञान करा दिया जाता है। यह तरीका विश्व के सभी देशों में प्रयोग किया जाता रहा है। आज के युग में कम्प्यूटरों के विकास से लघुगणक का प्रयोग कुछ कम अवश्य हो गया है लेकिन इस प्रभावशाली तरीके के महत्त्व को भुलाया नहीं जा सकता। निश्चय ही आने वाली पीढ़ियां भी इस महान गणितज्ञ के महानतम् योगदानों को भुला नहीं पाएंगी।
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