विलियम हार्वे की जीवनी -william harvey biography in hindi

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  • जन्म – 1 अप्रैल, 1578
  • जन्म स्थान – फोकस्टोन, इंग्लैंड
  • निधन -1657

विलियम हार्वे ने हृदय की कार्यप्रणाली का सूक्ष्म अध्ययन किया और रक्त संचार की सर्वप्रथम खोज की। उन्होंने गणना की कि हृदय एक मिनट में 72 बार स्पंदन करता है और इसके जरिये एक मिनट में करीब एक गैलन और पूरे दिन करीब 1500 गैलन रक्त शरीर में पम्प करता है।

विलियम हार्वे का जन्म -william harvey born

विलियम हार्वे का जन्म इंग्लैंड के फोकस्टोन शहर में 1578 ई. की पहली अप्रैल को हुआ था। उनके पिता का नाम था टामस हार्वे, जो अपने समय के एक समृद्ध व्यापारी थे तथा अपने कस्बे का ऐल्डरमैन, और फिर मेयर भी रह चुके थे। विलियम के परिवार (William Harvey family) मे सब मिलाकर दस बच्चे थे—तीन लड़कियां, और सात लड़के ।

परिवार में समृद्धि थी, स्वस्थरता थी और खुशहाली थी
1588 में 10 साल की उम्र में विलियम कैन्टरबेरी के किंग्ज स्कूल में दाखिल हुए। यह वही साल था जब स्पेनिश आर्माडा को ब्रिटेन की समुद्री ताकत ने तहस-नहस कर दिया था। जब विलियम( william harvey biography in hindi ) 15 साल के हुए तो उन्हें कैम्ब्रिज के केंस कॉलेज में प्रवेश मिल गया। खुशकिस्मती से दो बड़े अपराधियों के शव कॉलेज को, शल्य-परीक्षा तथा अनुसंधान के लिए मिल गए और स्वभावतः हार्वे की चिकित्सा-शास्त्र में रुचि जाग उठी।

विलियम हार्वे का अध्ययन कार्य -william harvey biography in hindi

कैम्ब्रिज से वह पेदुआ की प्रसिद्ध संस्था में गए, जिसे गैलीलिओ और वैसेलियस के सम्पर्क ने चिकित्साशास्त्रीय तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में जगत-प्रसिद्ध कर दिया था। दुर्भाग्य से वैसेलियस का प्रभाव अब नष्टप्राय हो चुका था। शरीर-संस्थान के सम्बंध में उनके अंवेषणों की उपेक्षा करके गैलेन के वही सदियों पुराने विचार इन दिनों वहां पढ़ाए जा रहे थे। हार्वे (william harvey) पेदुआ में विद्यार्थी बनकर प्रविष्ट हुए । स्वभावतः हार्वे इन सबसे असंतुष्ट थे, किंतु उन्होंने अपने संदेहों को व्यक्तिगत रूप में तब तक नहीं प्रकट नहीं किया जब तक कि उन्हें मैडिकल डिग्री मिल नहीं गई।

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इधर, वह प्रैक्टिस के लिए लंदन लौट गए और उधर उसी समय कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ‘कॉलेज आफ फिजीशन्ज’ में उन्हें आगे पढ़ने की अनुमति भी मिल गई। (william harvey biography in hindi)
उनकी प्रवृत्ति जीवित पशुओं पर शल्य-क्रिया करने की थी।

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विलियम हार्वे और उनके कार्य – william harvey inventions

विलियम हार्वे पशुओं के वक्षस्थल खोलकर उसकी स्पन्दन-क्रिया का प्रत्यक्ष अध्ययन किया करते। उन्होंने देखा कि हृदय गति करता है और अगले ही क्षण गतिविहीन हो जाता है.
और यह गति और यह अगति दोनों, उसी क्रम में निरंतर आवृत्ति करती चलती है। उन्होंने जीवित प्राणी के हृदय को अनुभव किया कि हृदय एक क्षण कठोर हो जाता है

और दूसरे ही क्षण कोमलता ग्रहण कर लेता है। जब हृदय में यह कठोरता आती है
तो वह आकृति में छोटा हो जाता है, और शिथिलता की दशा में उसकी आकृति कुछ बढ़ जाती है। दोनों अवस्थाओं में उसका रंग एक-सा नहीं रहता—जब वह सख्त और सिकुड़ा हुआ होता है, तब निस्बतन कुछ ज्यादा पीला होता है। अनेक प्राणियों में अनेकानेक परीक्षण करके विलियम हार्वे इस परिणाम पर पहुंचे कि हमारा हृदय एक खोखली पेशी की शक्ल का है, और पेशी में जब सक्रियता आती है, कुछ बल आता है तब उसके अंदर का यह रिक्त स्थान सिकुड़ना शुरू कर देता है और खून को बाहर फेंकना शुरू कर देता है और, इसी कारण, उसमें कुछ पीलापन आ जाता है।

यही पेशी जब शिथिल होती है, उसमें वह तनाव नहीं होता उसकी आंतरिक रिक्तता में बाहर से खून भर जाता है और इसी कारण उसमें कुछ लाली भी आ जाती है।

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यह हमारा दिल इस प्रकार से एक पम्प ही है। इस मूल स्थापना को प्रतिष्ठित करके हार्वे (william harvey biography in hindi ) ने अब शरीर में रक्त-संचार की प्रक्रिया का अध्ययन शुरू कर दिया। उसने देखा कि रक्त की धमनियां स्पंदित हो उठती हैं उस क्षण जब कि हृदय सिकुड़ रहा होता है।

यदि एक सूई चुभो दी जाए तो उनसे खून का एक फव्वारा-सा छूटने और बंद होने लगेगा। यही नहीं, इन धमनियों को शरीर के विभिन्न स्थानों पर अवरुद्ध करते हुए,

वे इस परिणाम पर पहुंचे कि स्पन्दन की यह प्रक्रिया उनकी कोई अपनी प्रक्रिया नहीं है, अपितु सर्वथा हृदय की गति पर ही निर्भर करती है। अब उनकी रुचि इस प्रश्न के समाधान में जाग उठी कि रक्त का कितना परिमाण इन धमनियों के माध्यम से शरीर में पहुंचता है। यह अनुमान करके कि प्रत्येक स्पन्दन में हृदय से दो औंस रक्त का गमनागमन होता है, और एक मिनट में वह 72 स्पंदन करता है,

बड़ी जल्दी ही उसने यह गणना कर ली कि हृदय एक मिनट में एक गैलन से ज्यादा या—शायद विश्वास न आ सके -दिन में 1,500 गैलन से ज्यादा खून जिस्म में पम्प करता है। हार्वे के मन में स्वभावतः यह कुतूहल उठा कि यह हो कैसे सकता है। और अपने प्रश्न का आप उत्तर देते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ऐसा तभी सम्भव है जब कि रक्त का प्रवाह हृदय से ही आरम्भ हो और, सारे शरीर से घूमघाम कर फिर से हृदय में ही वापस लौट आए, अर्थात रक्त-संचार का मार्ग एक ‘परिक्रमा का मार्ग’ होना चाहिए।

विलियम हार्वे और धमनियों से सम्बंधित खोज -william harvey circulation of the blood

हार्वे ने शरीर-रचना की पुनः परीक्षा की, और कुछ परीक्षण और भी किए। शिराओं और धमनियों का, नीली और लाल नसों का, बड़ी सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया और पाया कि उनमें खून के बहने की दिशा हमेशा एक ही रहती है। दोनों में ही एक तरह का कुछ वाल्वों की-सी शक्ल का, एकाधिक द्वार, परदा-सा लगा होता है जो धमनियों में तो (william harvey biography in hindi)
रक्त को हृदय से बाहर ही प्रवाहित होने देता है, और शिराओं में हृदय की ओर ही। इन एकमुखी द्वारों की उपयोगिता भी उन्होंने पशुओं के हृदयों पर परीक्षण करके प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दी। एक शिरा को खोलकर उसमें उन्होंने लम्बी पतली-सी एक सलाख डाल दी।

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यह सलाख बड़े आराम के साथ दिल की ओर तो चलती गई किंतु विपरीत दिशा में उसकी यह गति एकदम अवरुद्ध हो गई, क्योंकि-बीच में वाल्वों ने जैसे अपने दरवाजे बंद कर लिए थे। फिर परीक्षण किए गए और फिर परीक्षण किए गए कि कहीं कुछ गलती रह गई हो। और तब कहीं जाकर, रक्त के संचार का सही चित्र उपस्थित हो सका कि हृदय से निकलकर, धमनियों के मार्ग से प्रवृत्त होता हुआ और शिराओं के मार्ग से प्रत्यावृत्त हुआ,

खून फिर से दिल में ही वापस आ जाता है। शरीर में रक्त-संचार( william harvey circulation of the blood) का प्रथम अंवेषण 78 पृष्ठ का एक निबंध के रूप में 1628 में प्रकाशित हुआ। शीर्षक था ‘पशुओं में हृदय तथा रक्त की गतिविधि के सम्बंध में तात्त्विक विश्लेषण।’ इसके द्वारा वह विज्ञान के क्षेत्र के एक बड़े बद्धमूल अंधविश्वास को उखाड़ फेंकने में सफल रहे थे।

इसके बाद से प्राणियों के शारीरिक कार्यों के सम्बंध में हमारा ज्ञान बहुत ही अधिक स्थिरता के साथ निरंतर आगे ही आगे बढ़ता आया है।

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