- स्थान-इंग्लैंड
- जन्म स्थान -13 मार्च, 1733
- निधन-6 फरवरी, 1804
प्रीस्टले (Joseph Priestley), विज्ञान के एक ऐसे दिग्गज जिन्होंने पानी में कार्बन डाइक्साइड मिलाकर सोडा वाटर का आविष्कार किया। उनकी सबसे महान खोज प्राण संजीवन आक्सीजन को पहचानकर उसे प्रयोगशाला में तैयार करना है।
जोजेफ प्रीस्टले का जन्म -Joseph Priestley biography in hindi
जोजेफ प्रीस्टले (Joseph Priestley ) का जन्म इंग्लैंड के लीड्स शहर के पास एक छोटे से कस्बे में 13 मार्च, 1733 में हुआ था। उनके पिता एक जुलाहा थे। जोजेफ अभी सात साल के ही थे कि उनके पिता चल बसे।
बच्चे का लालन-पालन उनकी एक चाची ने ही किया।
वहां वातावरण ही कुछ ऐसा था कि हर किसी को हर मामले पर अपने विचार प्रकट करने की छूट थी। चाची ने बालक जोजेफ को ईसाइयत में दीक्षित होने के लिए एक संस्था में भेज दिया। वहां पहुंचकर जोजेफ ने पर्याप्त योग्यता दिखाई—विशेषकर भाषा के अध्ययन में। उन्होंने फ्रेंच, इटैलियन, जर्मन, अरबी और एरामाईक सभी भाषाओं में एक-सी निपुणता प्राप्त कर ली। किंतु उनकी वाणी में कुछ खराबी थी,
जिसका नतीजा यह हुआ कि ग्रेजुएट हो जाने के बाद भी उन्हें एक बहुत ही छोटे चर्च में नौकरी मिली, जहां उनकी तनख्वाह 15 रुपए प्रति सप्ताह से भी कम थी। इसके अतिरिक्त वे सारा दिन गांव के स्कूल में बच्चों को पढ़ाते और वहां से लौटकर भी प्राइवेट ट्यूशनें करते रहते।
इस सबके बावजूद उन्होंने इतना समय निकाल लिया कि एक अंग्रेजी व्याकरण भी वे लिख गए। कुछ ही दिनों बाद उन्हें एकेडमी में भाषा-अध्यापक की नौकरी मिल गई। यहां पढ़ाते हुए वे रसायनशास्त्र की क्लास में भी जाने लगे। उनकी गिनती स्थानीय वैज्ञानिकों में होने लगी।
जोजेफ प्रीस्टले का निजी जीवन – Private life of Joseph Priestley in hindi
बेंजामिन फ्रैंकलिन से भी वे मिले और उनसे प्रभावित होकर ‘विद्युत की वर्तमान स्थिति का इतिहास’ लिखा जिसमें कई मौलिक परीक्षण भी संग्रहीत थे।
अब भी वे चर्च के एक पादरी ही थे। दिन के फालतू समय में ही वैज्ञानिक परीक्षण किया करते। उन्होंने शराबखाने के मालिकों से इजाजत ली और उनके भारी ड्रमों से उठती गैस को वह अपने परीक्षणों के लिए इस्तेमाल करने लगे। उन्होंने इस गैस का सूक्ष्म अध्ययन किया, और देखा कि एक जलती तीली उसमें जाकर बुझ जाती है।
प्रीस्टले (Joseph Priestley) ने वैज्ञानिकों के ग्रंथों की छानबीन की और इस ‘स्थिर गैस’ को बनाने के और ढंग भी खोजे। आज सभी इसका नाम जानते हैं—कार्बन डाइऑक्साइड। प्रीस्टले ने कार्बन डाइक्साइड को सफलतापूर्वक पानी में घोल दिया जिसकी बदौलत उन्हें एक स्वर्ण पदक भी मिला था।
इस तरह उन्होंने एक नए पेय की खोज कर दी जिसे आज हम सोडावाटर के नाम से जानते हैं। उनकी इस सफलता को फ्रांस तक में सम्मानित किया गया। फ्रेंच एकेडमी ने उन्हें अपना सदस्य मनोनीत कर लिया। और विज्ञान के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण चीज यह हुई कि उन्हें चर्च के कामों में अब अपना वक्त बरबाद करने से एकदम मुक्ति मिल गई।
एक अध्ययनशील राजनीतिज्ञ लार्ड शेलबर्न ने प्रीस्टले को अपना लाइब्रेरियन बना लिया। पुस्तकालय के साथ एक परीक्षणशाला भी थी। शेलबर्न ने ऐसा इंतजाम कर दिया कि सर्दियों में तो प्रीस्टले लंदन रहा करें और गर्मियों में उसके कैलने स्थित निजी महल में।
विज्ञान में अनुसंधान करने के लिए दोनों जगह परीक्षणशालाएं भी थीं, और इस सबके साथ 250 पौंड सालाना तनख्वाह भी।
लार्ड शेलबर्न के सम्पर्क में आकर ही प्रीस्टले ने अपने वैज्ञानिक जीवन के मुख्य परीक्षण सिद्ध किए। शेलबर्न के साथ वह फ्रांस गए जहां लेवॉयजिए से उनकी मुलाकात हुई। और इस बात का श्रेय लेवॉयजिए को ही मिलना चाहिए कि प्रीस्टले (Joseph Priestley) की ‘फ्लोजिस्टन-रहित’ गैस एक नया तत्त्व है—यह वह एकदम पहचान गया, और उसने उसका नाम भी रख दिया-ऑक्सीजन।
1780 में ल्यूनर सोसायटी ने प्रीस्टले (Joseph Priestley biography in hindi)को अपना सदस्य मनोनीत कर लिया। ल्यूनर सोसायटी की सभा पूर्णिमा के निकट सोमवार के दिन लगा करती थी। इस तिथि का चुनाव ही इसलिए किया गया था कि छः घंटे के अधिवेशन, और भोजन के पश्चात घर लौटते वक्त रास्ते में चांदनी हो। प्रीस्टले को यहां आकर अच्छा खाना मिलता और चिंतन के लिए कुछ नये विचार मिलते।
जोजेफ प्रीस्टले (about Joseph Priestley hindi) की शांत जिंदगी ज्यादा देर नहीं चल सकी। उनकी रग में ही पादरीपन था, कुछ आदर्शवाद था—जिसकी बदौलत वह फ्रांसीसी क्रांति की झपेट में आ गए। 14 जुलाई, 1751 के दिन जब फ्रांसीसी क्रांति की दूसरी बरसी मनाई जा रही थी, जनता ने जोश में आकर प्रीस्टले के घर पर हमला बोल दिया।
खुशकिस्मती से डॉक्टर प्रीस्टले और उनका परिवार वहां से बच निकले थे। बर्मिंघम छोड़कर वे लंदन आ गए। डॉक्टर प्रीस्टले जब न्यूयॉर्क शहर में उतरे तो जनता ने खुले दिल से उनका अभिनन्दन किया। देश के धार्मिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक नेताओं ने उनका स्वागत किया। सभी तरह के पद और सम्मान उन्हें दिए जाने लगे—यूनिटेरियन चर्च का पादरी, पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में रसायन का प्रोफेसर। उन्हें व्याख्यानों के लिए आमंत्रित किया जाने लगा।
बेंजामिन फ्रैंकलिन ने फिलाडेल्फिया के दरवाजे खोल दिए, और प्रीस्टले ने टॉमस जेफरसन के साथ मुलाकात की और जार्ज वाशिंगटन के साथ चाय पी। पर उनकी खुद की पसन्द थी कि नार्थम्बरलैण्ड के ही शान्त वातावरण में एक परीक्षणशाला में खुद को खपा दे।
जोजेफ प्रीस्टले के अविष्कार -Joseph Priestley invention in hindi
वे कौन-से आविष्कार हैं जिनके आधार पर हम प्रीस्टले को विश्व के वैज्ञानिकों एवं रसायनशास्त्रियों में इतना ऊंचा स्थान देते हैं? प्रथम तो, उन्होंने अद्भुत तत्त्व, ‘ऑक्सीजन’ का अंवेषण किया।
प्रीस्टले (Joseph Priestley discoveries)ने यह भी देखा कि ये फूल-पत्ते और पौधे ‘पशुओं की प्राण-प्रक्रिया को.उल्टा देते हैं, जिससे वातावरण में एक प्रकार की संतुलित मधुरिमा बनी रहती है। उन्होंने एक पौधा लिया और उसे एक ऐसी बोतल में रख दिया जिससे कि ऑक्सीजन बिलकुल निकाली जा चुकी थी। और कुछ दिन बाद नोट किया कि मोमबत्ती को इसमें ले जाकर फिर से जलाया जा सकता है।
इस प्रकार प्रकृति की ऑक्सीजन तैयार करने की विधि का भी पता लग गया।.एक और महत्त्वपूर्ण खोज प्रीस्टले ने पेनसिल्वेनिया में अपनी नई परीक्षणशाला
स्थापित करने के बाद की। यहां उनके हाथों एक और उपयोगी, किंतु जहरीली,.गैस-कार्बन मोनोक्साइड का आविष्कार सम्भव हुआ। जोजेफ प्रीस्टले ने एक और गैस नाइट्रस ऑक्साइड भी खोज निकाली थी जिसका प्रथम अनुभव सर हम्फ्री डेवी ने किया। डेवी इस गैस को सूंघने के बाद खुद की हंसी पर काबू न रख सके।
इस गैस को अक्सर ‘हंसानेवाली गैस'(laughing gas) भी कहते हैं, और.दांतों के डॉक्टर दुखती दाढ़ को निकालने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं कि बीमार को तकलीफ कम हो। 6 फरवरी, 1804 में 71 साल की उम्र में उनका देहावसान हो गया।
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