ऐंटन वॉन एक ऐसी अद्भुत प्रतिभा का धनी जिसने अथक परिश्रम से 400 मेग्निफाइंग ग्लास बनाए। हर दूसरा लेंस पहले से बेहतर था। उन छोटे-छोटे लेंसों का व्यास इंच के आठवें हिस्से से भी कम था। ऐंटन वॉन के बनाए उन लेंसों को आज तक मात नहीं दी जा सकी।
तथ्य | विवरण |
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जन्म | 14 अक्टूबर, 1632 |
मृत्यु | 26 अगस्त, 1723 |
शिक्षा | स्व-शिक्षित |
व्यवसाय | पंसारी, चौकीदार |
खोज | सूक्ष्मजीव, स्तनधारी शुक्राणु, रक्त कोशिकाएं |
सम्मान | रॉयल सोसायटी का फेलो |
ऐंटन वॉन ल्यूवेनहॉक का जन्म – Antonie van Leeuwenhoek biography in himdi
ऐंटन वॉन ल्यूवेनहॉक ( Antonie van Leeuwenhoek) का जन्म हालैंड के डेल्फ्ट शहर में 1632 में हुआ था। टोकरियां बना-बनाकर, देसी शराब बेचकर परिवार अपना गुजारा कर रहा था।
पिता की मृत्यु के बाद बालक ऐंटन डेल्फ्ट को छोड़कर एम्स्टरडम में आ बसा। यहां पहुंचकर एक पंसारी के यहां वह काम करने लगा। 21 साल की उम्र में वे एम्स्टरडम से फिर घर वापस आ गए और डेल्फ्ट में ही उन्होंने एक अपनी पनसारी की दुकान खोल ली। साथ ही, उन्हें सिटी हाल में चौकीदार की नौकरी भी मिल गई।
ऐंटन वॉन ल्यूवेनहॉक के अविष्कार -Antonie van Leeuwenhoek Discoveries
ऐंटन को एक हवस बड़ी बुरी तरह से चिपटी हुई थी—दिन-रात लेन्स घिसते रहना। एक के बाद दूसरा लेन्स, दूसरा पहले से बेहतर । कुल मिलाकर उन्होंने 40 मेग्निफाइंग ग्लास बनाए ।
छोटे-छोटे लेन्स, जिनका व्यास इंच के आठवें हिस्से से भी कम। किंतु उन्हीं लेन्सों को आज तक मात नहीं दी जा सकी। अपने इन्हीं लेन्सों के जरिये उन्होंने ‘मामूली सूक्ष्मदर्शी यंत्र’ तैयार किए, किंतु उनकी उपयोगिता कितनी अद्भुत थी! कितने अद्भुत शिल्पी थे ऐंटन जिन्होंने इन नन्हें-नन्हें लेन्सों को थामने के लिए नाजुक और ताकतवर स्टैण्ड भी खुद अपने ही हाथों से तैयार किए थे।
ल्यूवेनहॉक (Antonie van Leeuwenhoek biography in hindi) ने अपने लेन्सों का उपयोग सूक्ष्म जगत के अंवेषण पर किया। उन्होंने लगभग हर सामान्य पदार्थ को अपने सूदमदर्शी की मदद से देखा, चाहे वह चमड़ी की दरारे हों या मक्खी की टांगें और बाल।
उनके पड़ोसी उन्हें पागल समझते थे। ल्यूवेनहॉक के क्रियाकलाप उनकी समझ से बाहर थे। परंतु ल्यूवेनहॉक अपने कार्य में लगे ही रहे। उन्होंने आम लोगों की बातों पर कोई ध्यान न दिया। दुनिया को अपने माइक्रोस्कोप के जरिये ही देखते रहे और सदा उन्हें अजीब से अजीब, और नये से नये, नजारे पेश आते।
एक दिन उन्होंने बरिश रुकने पर एक गड्ढे में से कुछ पानी इकट्ठा किया और उसमें बड़े ही छोटे-छोटे जलचरों को तैरते-फिरते पाया, इतने छोटे कि मनुष्य की आंख बगैर इस प्रकार की किसी सहायता के उन्हें देख भी नहीं सकती।
उन्हें कुछ एहसास-सा था कि ये जीवाणु आकाश से जमीन पर नहीं उतरे। जिसे सिद्ध करने के लिए उन्होंने वर्षा-जल को इस बार एक निहायत ही साफ प्याले में इकट्ठा किया। माइक्रोस्कोप (microscope) फिट किया गया—किंतु इस बार उसी पानी में कोई जीवाणु नहीं थे। किंतु कुछ दिन तक पानी को उसी प्याले में रहने दिया गया तो
‘छोटे-छोटे जानवर’ उसी में खुद-ब-खुद फिर से पैदा होने लग गए। ल्यूवेनहॉक इस परिणाम पर पहुंचे कि हवा जो धूल उड़ाकर अपने साथ ले आती है उसी के साथ ये भी कहीं से आ जाते हैं।
ऐंटन वॉन ल्यूवेनहॉक और रॉयल सोसायटी -Antonie van Leeuwenhoek and Royal society
1674 में, उन्होंने अपने इन सभी प्रत्यक्षों का एक यथार्थ विवरण रॉयल सोसायटी को भेज दिया। जिसे पढ़कर रॉयल सोसायटी के सदस्य इस नई दिशा में सोचने को मजबूर हो गए। उस जमाने में तब मैग्निफाईंग ग्लास का उपयोग किया जाता था
जिसकी क्षमता ज्यादा बेहतर नहीं थी, उनके लिए ल्यूवेनहॉक के माइक्रोस्कोप (Antonie van Leeuwenhoek microscope) किसी वरदान से कम नहीं थे। रॉबर्ट हुक और नेहीमिया ने ल्यूवेनहॉक के दावों की सच्चाई परखने के लिए एक माइक्रोस्कोप तैयार किया और तब रॉयल सोसायटी ने ल्यूवेनहाँक के परिश्रम-प्रयासों का लोहा मान लिया।
तीन साल बाद उन्होंने कुत्तों तथा अन्य पशुओं के बीजाणुओं को ब्यौरा भी सोसायटी को लिख भेजा।
1680 में ऐंटन वॉन ल्यूवेनहॉक को रॉयल सोसायटी का फेलो चुन लिया गया।
1683 में वॉन ल्यूवेनहाँक (Antonie van Leeuwenhoek) ने इन जीवाणुओं के रेखाचित्र बनाए। अंधविश्वासों के उस युग में, जबकि साधारण जनता की आस्था थी कि मक्खियां वगैरह किस्म के प्राणी स्वयंभू होते हैं और सड़ती मिट्टी से, गोबर से, खुद-ब-खुद पैदा हो आते हैं, ल्यूवेनहॉक ने प्रत्यक्ष सिद्ध कर दिखाया कि इनकी उत्पत्ति के नियम भी वही कुछ खाससामान्य प्रजनन-सिद्धांत हैं।
रॉयल सोसायटी के नाम, तथा पेरिस की एकेडमी आफ साइन्सेज के नाम, लिखे पत्रों की जहां-तहां चर्चा होने लगी और, परिणामतः, ल्यूवेनहॉक (Antonie van Leeuwenhoek) की कीर्ति विश्वभर में फैल गई।
ऐंटन वॉन ल्यूवेनहॉक की मृत्यु – Anton von leuvenhawk died
इन वर्णनों को पढ़-पढ़कर रूस का जार और इंग्लैण्ड की महारानी तक अपने कुतूहल को संभाल नहीं सके। उन्हें भी उत्सुकता थी कि ऐंटन के माइक्रोस्कोप में से कुछ खुद प्रत्यक्ष कर सकें। वे खुद चलकर उनके यहां आए। उनकी दैनिक गतिविधियों में अंत तक कुछ परिवर्तन नहीं आया। उन्होंने स्वास्थ्य असाधारण पाया था।
91 साल की उम्र तक वह उसी तरह काम में लगे रहे।
उसके कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो गयी.
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