Hello दोस्तों नमस्कार आज इस आर्टिकल मे जानेगे ISRO क्या है। ISRO ka full form क्या है। ISRO की स्थापना कैसे हुई। साथ ही ISRO द्वारा निर्मित की गई कुछ satellite के बारे मे जानेगे।(About ISRO full form),ISRO kya hai,
ISRO-Indian Space Research Organisation
ISRO क्या है(About ISRO full form)
दोस्तों भारतीय विज्ञान की सबसे बड़ी जीत ISRO है। जिसका संक्षिप्त रूप में अर्थ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(Indian Space Research Organisation) है। यह भारत की सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है जो राष्ट्रीय अंतरिक्ष संसाधनों का देखरेख और उनके रखरखाव का ध्यान रखती है। ISRO का मुख्य कार्यालय बेंगलुरु में स्थित है।
ISRO का पूरा विभाग भारतीय सरकार के निर्देशानुसार कार्य करता है। ISRO मे होने वाले प्रत्येक कार्य की रिपोर्ट सीधा प्राइम मिनिस्टर के पास पहुंचते हैं। आज के समय ISRO मे लगभग 17000 व्यक्ति काम करते हैं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान ISRO की स्थापना(Everything About ISRO full form)
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति का गठन 1962 में प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई (भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक) की अध्यक्षता में किया गया जिसने परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत कार्य करना प्रारंभ किया।भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत नवम्बर, 1963 में तिरूअनंतपुरम स्थित सेंट मेरी मैकडेलेन चर्च के एक कमरे में हुई थी। 21 नवम्बर, 1963 को देश का पहला साउंडिग रॉकेट ‘नाइक एपाश’ (अमेरिका निर्मित) को थुम्बा भूमध्य रेखीय रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र (TERLS) से प्रक्षेपित किया गया ।
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति को परमाणु ऊर्जा भिभाग से 15 अगस्त, 1969 मे अलग कर दिया गया और एक स्वतंत्र अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की गई। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए अंतरिक्ष आयोग और अंतरिक्ष विभाग का 1972 में गठन किया गया तथा इसरो को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया।
प्रमुख भारतीय उपग्रह(ISRO sattelight )
आर्यभट्ट
स्वदेशी तकनीक से निर्मित प्रथम भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को 19 अप्रैल, 1975 को पूर्व सोवियत संघ के बैकानूर अंतरिक्ष केंद्र से इंटर कॉस्मोस प्रक्षेपण यान द्वारा पृथ्वी के निकट वृत्तीय कक्षा में 594 किमी की ऊँचाई पर सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इसका वजन 360 किग्रा था। इस अभियान के तीन प्रमुख लक्ष्य थे—वायु विज्ञान प्रयोग, सौर भौतिकी प्रयोग तथा एक्स-किरण खगोलिकी प्रयोग। इस उपग्रह में संचार व्यवस्था से जुड़े कुछ प्रयोग किए गए।
विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक उपग्रह के रूप में विकसित ‘आर्यभट्ट’ को सक्रिय कार्य विधि मात्र 6 माह निर्धारित की गयी थी परन्त इसने मार्च, 1980 तक अंतरिक्ष से आँकड़े भेजने का कार्य किया।
भास्कर-1
प्रायोगिक पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह ‘भास्कर-I को 7 जून, 1979 को पूर्व सोवियत संघ के प्रक्षेपण केंद्र बैकानूर से इंटर कॉस्मोस प्रक्षेपण यान द्वारा पृथ्वी से 525 किमी की ऊँचाई पर पूर्व निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इसका लक्ष्य जल विज्ञान, हिमगलन, समुद्र विज्ञान एवं वानिकी के क्षेत्र में भू-पर्यवेक्षण अनुसंधान करना था। इसने 1 अगस्त 1981 को कार्य करना बंद किया।
भास्कर-II
भास्कर-। के संशोधित प्रतिरूप ‘भास्कर-II’ को भी रूसी प्रक्षेपण केंद्र, बैकानूर से ही 20 नवम्बर, 1981 की पृथ्वी से 525 किमी की ऊँचाई पर स्थापित किया गया तथा इसका घूर्णन कक्षा तल के लम्बत् रखा गया। समीर उपकरण के कारण भास्कर-II द्वारा समुद्री सतह का
ताप, सामुद्रिक स्थिति, बर्फ गिरने व पिघलने आदि जैसी अनेक घटनाओं का व्यापक विश्लेषण किया गया।
रोहिणी श्रृंखला
रोहिणी उपग्रह शृंखला के अंतर्गत भारतीय प्रक्षेपण केंद्र (श्री हरिकोटा) से भारतीय प्रक्षेपण यान (एस.एल.वी-3) द्वारा चार उपग्रह प्रक्षेपित किए गए। इस शृंखला के उपग्रहों के प्रक्षेपण का मुख्य उद्देश्य भारत के प्रथम उपग्रह प्रक्षेपण यान एस.एल.वी.-3 का परीक्षण करना था।
इस अभियान का प्रथम एवं तृतीय प्रायोगिक परीक्षण असफल रहा था। इस अभियान के द्वितीय प्रायोगिक परीक्षण में रोहिणी आरएस-1 को 18 जुलाई, 1980 को श्री हरिकोटा से एस.एल..वी-3 प्रक्षेपण यान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस प्रकार रोहिणी आर.एस.-I भारतीय भूमि से भारतीय प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित प्रथम भारतीय उपग्रह बना।
चतुर्थ प्रायोगिक परीक्षण में रोहिणी आर.एस.डी-2 को 17 अप्रैल, 1983 को श्री हरिकोटा से एस.एल.वी.-3 डी. 2 द्वारा सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस सफलता ने एस.एल.वी-3 को एक प्रामाणिक प्रक्षेपण यान सिद्ध कर दिया तथा भारत को छोटे प्रक्षेपण यानों को विकसित करने वाले देशों की श्रेणी में ला दिया।
प्रायोगिक संचार उपग्रह : एप्पल
एप्पल भारत का पहला संचार उपग्रह था, जिसे भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया गया। भारत के प्रथम प्रायोगिक संचार उपग्रह ‘एप्पल’ को 19 जून, 1981 को के कोरु अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एरियन-4 प्रक्षेपण यान द्वारा भू-स्थिर कक्षा में लगभग 36,000 किमी की ऊंचाई पर स्थापित किया गया।
इस उपग्रह का उपयोग राष्ट्रीय संचार व्यवस्था को आधुनिक बनाने, घरेलू संचार व्यवस्था, रेडियो नेटवर्क डाटा संप्रेषण, दूर दराज के क्षेत्रों में संचार व्यवस्था स्थापित करने, भू-स्थैतिक कक्षा में उपग्रहों के प्रक्षेपण की तकनीक का ज्ञान प्राप्त करने तथा संचार के लिए प्रयुक्त सी-बैंड ट्रांसपोडर के प्रयोग आदि में किया गया।
एप्पल से प्राप्त तकनीकि अनुभव ने इनसैट श्रृंखला के निर्माण एवं विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।विस्तारित रोहिणी उपग्रह श्रृंखला (स्रास-SROSS) : इस श्रृंखला का उद्देश्य 100 से 150 किग्रा वर्ग के उपग्रहों का निर्माण करना था, जिन्हें संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (Augmented Satellite Launch Vehicle-ASLV) द्वारा छोड़ा गया था।
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसैट)
प्रणाली भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली अर्थात् इनसैट प्रणाली एक बहुउद्देशीय कार्यरत उपग्रह प्रणली है, जो एशिया प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार उपग्रह प्रणालियों में से एक है।
इसका उपयोग लम्बी दूरी के घरेलू दूरसंचार, ग्रामीण क्षेत्रों में उपग्रह के माध्यम से सामुदायिक दूरदर्शन के सीधे राष्ट्रव्यापी प्रसारण को बेहतर बनाने, भू स्थित ट्रांसमीटरों के माध्यम से पुनः प्रसारण हेतु आकाशवाणी तथा दूरदर्शन कार्यक्रमों को देशभर में प्रसारित करने, मौसम संबंधी जानकारी, वैज्ञानिक अध्ययन हेतु भू-सर्वेक्षण तथा आँकड़ों के संप्रेषण में किया जाता है।
इनसैट प्रणाली अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारतीय मौसम विभाग, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन का संयुक्त प्रयास है, जबकि इनसैट अंतरिक्ष कार्यक्रमों की व्यवस्था, निगरानी और संचालन का पूर्ण दायित्व अंतरिक्ष विभाग को सौंपा गया है।
इनसैट प्रणाली के प्रथम पीढ़ी में चार उपग्रह (इनसैट-1A, 1B, 1C, 1D)। द्वितीय पीढ़ी में पाँच उपग्रह(इनसैट 2A, 2B, 2C, 2D, 2E), तृतीय पीढ़ी में भी पाँच उपग्रह (3A, 3B, 3C, 3D, 3E) तथा चौथी पीढ़ी में सात उपग्रहों के प्रक्षेपण की योजना बनाई गयी है। चौथी पीढ़ी के उपग्रह 4A, 4C, 4B तथा 4CR का प्रक्षेपण हो चुका है।
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