Lemon grass क्या है और lemon grass की खेती कैसे की जाती है(lemon grass how to grow)
About Lemon grass-आज भारत में कई ऐसे किसान हैं जो खेती से दूर भागते जा रहे हैं। उनका मानना है कि खेती में मेहनत करने के बाद भी कुछ नहीं बचता, तो कई ऐसे भी किसान हैं जिनकी भूमि बंजर हो गई है।
ऐसे किसानों और देश में किसान की जाय को बढ़ाने के लिए भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) की ओर से वर्ष 2016 में एक मिशन लॉन्च किया गया है, जिसका नाम ‘एरोमा मिशन’ रखा गया है। एरोमा मिशन में सुगंध फसलों की खेती के
लिये किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। ऐसे किसानों के लिये जिनकी खेती बंजर या अभी तक कुछ नहीं उगता है,
लेमनग्रास(lemon grass in hindi) की खेती की जा सकती है। Lemon grass सुगन्धित तेल उत्पादन के लिए मुख्य रूप से जानी जाती है)। सीएसआईआर-सीमैप की ओर से किसानों को लेमनग्रास की खेती के लिये उन्नतशील किस्मों, कृषि प्रौद्योगिकियों और विशिष्ट जलवायु क्षेत्रों के लिए उनकी उपयुक्तता का आकलन एवं जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से उत्पादन तकनीक और बाजार की उपलब्धता की जानकारी दी जा रही है।
पौधों में जो गुण पाए जाते हैं, उनके चलते इससे निकलने वाले तेल की कीमत 1200 से 1500 रुपए के बीच वर्तमान में चल रही है, ऐसे में यह पौधा उगाना घाटे का सौदा नहीं होगा। पौधे से साल में 4 बार फसल की कटाई ली जा सकती है और बिना पानी वाले स्थानों पर भी इस फसल की 2 बार कटाई की जा सकती है।
Lemon grass का.जीवन काल 4 से 6 साल तक रहता है अर्थात् एक बार खेत में रोपाई कर देने के बाद फसल खेत में 6 वर्ष तक रहती है। भारत वर्ष के सुगंध तेल के उत्पादन उद्योग में Lemon grass तेल का एक महत्वपूर्ण स्थान है। भारत विश्व व्यापार में लेमनग्रास का सबसे बड़ा उत्पादक रहा है।
वर्तमान समय में देश के विभिन्न प्रांतों में Lemon grass की व्यापक स्तर पर सफलतापूर्वक खेती की जा रही है। इसे साधारणतः.’नींबू घास’ या ‘लेमनग्रास’ के नाम से जाना जाता है, जिसका वानस्पतिक नाम सिम्बेपोगोन लक्सुओसस है।
Lemon grass एक उष्णकटिबंधीय बहुवर्षीय पौधा है, जो सुगंधित तेल उत्पादन करने के लिए जाना जाता है। Lemon grass फसल को एक बार लगा देने के बाद 5-6 वर्ष तक इसफसल से तेल की प्राप्ति की जा सकती है। इसकी पत्तियो में एक मधुर तीक्ष्ण गंध होती है। इस मधुर तीक्ष्ण गंध के कारण ही इसकोLemon grass कहा जाता है। लेमनग्रास के अच्छी उपज के लिए साल भर अच्छी धूप के साथ 20 से 30 सेल्सियस तापमान अनुकूल माना जाता है।
Lemon grass की पत्तियाँ रेखीय, लगभग 150 सेमी. लम्बी और 1.7 सेमी. चौड़ी होती हैं। लेमनग्रास पौधे की ऊँचाई 1-3 मी. तक होती है। इसमें ‘सिट्रॉल’ नामक रासायनिक अवयव 75 से 85 प्रतिशत तक पाया जाता है। भारत सालाना करीब 700 टन नींबू घास के तेल का उत्पादन करता है,
जिसकी एक बड़ी मात्रा निर्यात की जाती है। इसके सुगन्धित तेल को पारंपरिक रूप से पश्चिमी यूरोप, यू.एस.ए. और जापान में निर्यात किया जा रहा है।
Lemon grass के लिए अनुकूल वातावरण क्या होना चाहिए
About Lemon grass-लेमनग्रास की खेती के लिए उष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है। जहाँ जलवायु गर्म तथा आई होती है, पर्याप्त धूप पड़ती है, वर्षा 800-1000 सेंमी. तक होती है, वे क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त
होते हैं।
Lemon grass की फसल सभी प्रकार की भूमियों के लिए उपयुक्त होती है। सभी प्रकार की भूमियों में उपजाऊ दोनट से लेकर अनुपजाऊ लेटराइट भूमि में इसकी खेती की जा सकती है। रेतीली दोमट मिट्टी, जिसका पीएच मान 7.0-8.5 के मध्य हो, उपयुक्त रहती है।
इस प्रकार विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में Lemon grass को लगाया जा सकता है। लेमनग्रास की खेती के लिए ऐसी मृदाओं का चुनाव नहीं करना चाहिए, जहाँ जल भराव की अधिक समस्या हो ।Lemon grassकी खेती के लिये ऐसे क्षेत्र उत्तम रहते है, जहां पर वार्षिक वर्षा 100 से 150 सेमी होते हैं लेकिन इसकी लंबाई विभिन्न जलवायु के कारण बढ़ती घटती रहती है।
Lemon grass का उपयोग(Benefits of Lemon grass in hindi)
भारत में इसकी विधिवत एवं व्यावसायिक खेती केरल, कर्नाटक, आंध्र.प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, नागालैंड, जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल में विशेष रूप से की जा रही है।
Lemon grass की व्यावसायिक खेती भारत के आलावा पूर्वी अफ्रीका के देशों, इंडोनेशिया, ब्राजील, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, पाकिस्तान, क्यूबा, ग्वाटेमाला और होंडुरास में की जा रही है।Lemon grassके तेल का प्रयोग विभिन्न प्रकार के पदार्थों को सुगंधित करने में किया जाता है। Lemon grass के तेल का प्रयोग साबुन, शैम्पू, डिटर्जेन्ट, घरेलू सफाई में प्रयुक्त होने वाले सामान, अगरबत्ती, धूपबत्ती, क्रीम एवं अन्य सौन्दर्य प्रसाधनों में किया जाता है।
इसके अलावा इसकी हरी अथवा सूखी पत्तियों का प्रयोग हर्बल चाय बनाने में भी किया जाता है।तेल का उपयोग शराब तथा चटनी को स्वादिष्ट बनाने में भी किया जाता है। भूमि संरक्षण में भी लेमनग्रास(lemon grass uses) का उपयोग किया जाता है। दनिया की एक बड़ी आबादी इसकी पत्तियों से बनी चाय यानी लेमन-टी पीने लगी है।
Lemon grass का कीटो-पतंगों से बचाव(How to protect Lemon grass)
About Lemon grass in hindi-लेमनग्रास एक बहुवर्षीय पौधा है तथा एक बार लगा देने के बाद 4.6 वर्ष तक अधिक पैदावार देता है। अतः रोपाई से पूर्व खेत को भली-भांति तैयार करना अति आवश्यक है।
इसके लिए खेत को 23 बार जोता जाता है एवं सभी खूटी और घास की जड़ों को हटा देना चाहिए। आखिरी जुताई के समय सड़ी हुई गोबर की खाद 10-15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से भली-भांति मिट्टी में मिला देनी चाहिए। खेत में दीमक के हमले से बचाने के लिए मिट्टी में अंतिम जुताई के समय 5% लिन्डेन पाउडर 25.30 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए।
Lemon grass का प्रवर्धन बीज तथा स्लिप्स के द्वारा किया जाता है। स्लिप्स तैयार करने के लिए एक वर्ष पुराने पौधे अथवा पुरानी फसल के झुण्ड निकालकर उसमें से एक-एक कलम अलग कर ली जाती है। इन कलमों को ‘स्लिप्स’ कहते हैं।
स्लिप्स को तैयार करते समय हरी पत्तियों को काटकर अलग कर देना चाहिए, साथ ही नीचे की सूखी पत्तियों को एवं लम्बी जड़ों को काटकर अलग कर देना चाहिए, स्लिप की लंबाई 15.20 सेंमी. रखनी चाहिए। Lemon grass की सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था होने पर फरवरी से मार्च तक रोपाई की जा सकती है। रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई अतिआवश्यक है। असिंचित दशा में उपयुक्त समय जुलाई से अगस्त होता है।
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 50,000-55,000 स्लिप्स पर्याप्त माना जाता है, स्लिप्स को 5 सेंमी. की गहराई पर 60 सेंमी, पंक्ति से पंक्ति की दूरी एवं 45 सेमी. पौधे से पौधे की दूरी पर रोपित किया जाता है। कुछ उन्नतशील किस्मों को सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय तथा सगंध पौधा संस्थान (सीमैप), लखनऊ द्वारा विकसित की गयी हैं,
जिनमें मुख्य प्रजातियाँ प्रगति, प्रमान,कृष्णा, चिरहरित, टी-1, सुवर्ण, कावेरी, नीमा और जी आर एल-1 है। जिसमें कृष्णा प्रजाति किसानों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है। हाल ही में सीमैप द्वारा एक उन्नत किस्म सिम-शिखर विकसित की गयी है, जिससे कृष्णा प्रजाति की अपेक्षा तेल की उपज अधिक प्राप्त की जा सकती है।
Lemon grass को वर्षा ऋतु में उगाये जाने के कारण खरपतवारों से काफी अधिक स्पर्धा करनी पड़ती है। ऐसी परिस्थिति में Lemon grass की रोपाई के 35-10 दिनों में खरपतवार का नियंत्रण किया जाना अतिआवश्यक कार्य है।
सामान्यतः वर्ष में 2-3 बार निराई एवं गुड़ाई की आवश्यकता होती है। खरपतवार से रक्षा के लिए 1.5 किग्रा.प्रति हेक्टेयर की दर से ड्योरान या ऑक्सीफ्लूरोफेन का प्रयोग करना चाहिए, बाद में जब Lemon grass खेत में अच्छी तरह स्थापित हो जाती है तब खेत में खरपतवारों की अधिक समस्या नहीं रहती है।
Lemon grass की फसल पर कुछ कीटों एवं रोगों का प्रकोप देखा गया है। जिसमे स्पिनडल बग नमक कीट प्रमुख रूप से फसल को नुकसान पहुंचाता है जिसकी रोकथाम के लिए मेलाथिऑन (0.2%) का छिड़काव करना चाहिए।Lemon grass फसल में मुख्यतः लीफ ब्लाइट/ब्लाच
एवं कोलेटोट्राइकम ब्लाइड कवक जनित रोगों का आक्रमण देखा गया है। जिसकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 0.2-0.3% फफूंदीनाशी रसायन का 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
Lemon grass की कटाई कब करनी चाहिए
About Lemon grass-लेमनग्रास फसल की पहली कटाई लगभग 110-130 दिन बाद की जाती है, पहली कटाई के बाद की लगभग सभी फसल की कटाई 80 से 95 दिनों के अंतराल के बाद की जाती है। मिट्टी के उपजाऊपन और उर्वरक की मात्रा के आधार पर कटाई की संख्या बढ़ जाती है।
पहले वर्ष में लगभग 3 कटाई की जा सकती हैं। उसके बाद में प्रत्येक वर्ष में चार कटाई की जाती हैं। Lemon grass फसल की कटाई जमीन 10-15 सेमी. की ऊँचाई से करनी चाहिए। लेमनग्रास के सभी हरे भागों में तेल पाया जाता है परंतु पौधे की पत्तियों में आवश्यक तेल की मात्रा ज्यादा पायी जाती है।
इसलिए पूरा ऊपरी भाग आसवन के लिए उपयोगी होता है। जिससे सिंचित परिस्थितियों में, 200-250 किग्रा. तेल प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है। असिंचित परिस्थितियों में, प्रति वर्ष दो कटाई के आंकड़ों के आधार पर, तेल की उपज 100-120 किग्रा. प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष तक प्राप्त की जा सकती है।
Lemon grass का आसवन
Lemon grass से संगध तेल की आसवन प्रक्रिय जल-वाष्प अथवा जल आसवन विधि के द्वारा की जाती है। फसल को काटने के पाण्यात एक दिन धूप में सुखाकर या दो दिन तक छाया में सूखने के पश्चात आसवन करने से कम खर्च में अधिक तेल की प्राप्ति होती है। फसल को काटकर ढेर लगाकर नहीं रखना चाहिए। आसवन इकाई स्वच्छ, जंग मुक्त और किसी अन्य गंध से मुक्त होना चाहिए।
Lemon grass के तेल की गुणवत्ता का निर्धारण भौतिक रासायनिक गुणों रासायनिक रूपरेखा के माध्यम से किया जाता है। भारतीय मानक के अनुसार लेमनग्रास के तेल की गुणवत्ता का विशेष उल्लेख सारणी में दिया गया है।
Lemon grass oil का शुद्धिकरण कैसे किया जाता है
तेल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए आसवन प्रक्रिया के उपरांत तेल से अवांछनीय पदार्थों को निकालना एवं तेल को साफ करना बहुत ही जरूरी होता है। आसवित तेल को पात्र में एकत्र करके रुई द्वारा अतिरिक्त अशुद्धियों को छान लेना चाहिए। लेमनग्रास में से कुल पानी की मात्रा को अलग करने के लिए उसमें 2.3 ग्राम प्रति किग्रा. तेल के हिसाब से एनाहाइड्रस सोडियम सल्फेट डालकर लगभग 8 से 10 घंटे के लिए रख दिया जाता है।
इसके बाद तेल को छान लिया जाता है। Lemon grass के सगंध तेल में नमी, हवा और सूर्य के प्रकाश का तेल की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, इसीलिए तेल को स्टील या एल्युमिनियम के हवाबंद पात्र में एकत्र करके किसी छायादार स्थान पर सामान्य तापक्रम पर रखना चाहिए।
क्या lemon grass की खेती से पैसा कमाया जा सकता है?
About Lemon grass in hindi-लेमनग्रास फसल से चार वर्ष तक तेल की उपज अच्छी प्राप्त होती है तत्पश्चात् तेल की मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों में कमी आने लगती है। इस फसल से प्रथम वर्ष में लगभग 120,000 से 130,000 रुपये प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है, जबकि आगामी वर्षों में लाभ की मात्रा लगभग प्रथम वर्ष की अपेक्षा अधिक हो जाती है।
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