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मात्रक और विमा : मापन एवं मापों में त्रुटियाँ (UNITS AND DIMENSIONS: MEASUREMENT AND ERRORS IN MEASUREMENTS)

भौतिक राशियाँ (Physical Quantities)

भौतिक राशियाँ वे हैं जिनके पदों (terms) में हम भौतिकी के नियमों को व्यक्त करते हैं; जैसेद्रव्यमान, लंबाई, समय, कार्य, बल, ऊर्जा इत्यादि । भौतिक राशियाँ दो प्रकार की होती हैं

(i) आधारी या मूल राशियाँ (Basic or fundamental quantities) तथा (ii) व्युत्पन्न राशियाँ (Derived quantities)।

(i) आधारी या मूल राशियाँ (Basic or fundamental quantities)

आधारी या मूल राशियाँ वे हैं जो स्वतंत्र (independent) मानी जाती हैं; जैसे- द्रव्यमान, लंबाई, समय इत्यादि । वास्तव में आधारी राशियाँ सात (seven) हैं। इन मूल राशियों को हम भौतिक संसार की सात विमाएँ कह सकते हैं।

(ii) व्युत्पन्न राशियाँ (Derived quantities)

व्युत्पन्न राशियाँ वे हैं जो आधारी राशियों के पदों में व्यक्त की जाती हैं; जैसे— क्षेत्रफल, वेग, बल, संवेग, कार्य इत्यादि ।

मात्रक (Units)

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किसी भी भौतिक राशि की माप के लिए कुछ मानक मापों की आवश्यकता होती है। इसी मानक (standard) को उस राशि का मात्रक (unit) कहते हैं। ऐसे मानक माप (standard measures) एक निश्चित, आधारभूत (basic), मनमाने ढंग से चुने गए ( arbitrarily chosen) तथा अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त (internationally accepted) होते हैं।

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एक बार मात्रक के बन जाने पर किसी भौतिक राशि की माप अर्थात उसका परिमाण, उसके मात्रक के साथ तुलना (comparison) करके ज्ञात की जाती है। तुलना का अर्थ यह है कि उस भौतिक राशि में मात्रक का परिमाण कितनी बार शामिल है। उदाहरणार्थ, जब हम यह कहते हैं कि किसी कमरे की लंबाई पाँच मीटर है तो इसका अर्थ यह है कि पाँच मीटर-स्केलों को एक रेखा में सिरे से सिरा जोड़कर रखने पर वे कमरे की लंबाई के तुल्य होंगे।

यदि हम कहें कि कमरे की लंबाई पाँच है तो उसकी लंबाई का वास्तविक अनुमान नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि लंबाई मीटर, अथवा फुट में हो सकती है। स्पष्टतः केवल संख्या पाँच कहने से कमरे की लंबाई का बोध नहीं हो पाता। अतः, यह आवश्यक है कि हम 5 के आगे मीटर लगाकर कमरे की लंबाई 5 मीटर है, ऐसा कहें। इस प्रकार किसी भी भौतिक राशि के पूर्ण विवरण के लिए हमें निम्नलिखित दो बातों का ज्ञान अति आवश्यक है

(i) एक मात्रक (unit) जिसमें भौतिक राशि को व्यक्त किया गया है, तथा (ii) एक संख्यांक (numeral), जो यह बताता है कि दी गई भौतिक राशि में वह मात्रक कितनी बार शामिल है।

इस प्रकार, किसी भौतिक राशि x की माप को निम्नलिखित व्यंजक से दिखाया जा सकता है—

x = nu,

जहाँ n उस भौतिक राशि की माप का संख्यांक है और उस राशि का मात्रक है।

मात्रकों की पद्धतियाँ (Systems of Units)

> सभी प्रकार की राशियों के लिए मात्रकों, मूल तथा व्युत्पन्न दोनों के पूर्ण समूह को मात्रकों की पद्धति कहते हैं। निम्नलिखित हैं—

मात्रकों की पद्धतियाँ

(a) फुट-पाउंड-सेकंड पद्धति (Foot-Pound-Second System) – इस पद्धति को संक्षेप में fps पद्धति कहते हैं। इस पद्धति में लंबाई का मात्रक फुट, द्रव्यमान का मात्रक पाउंड तथा समय का मात्रक सेकंड होता है। इस पद्धति को ब्रिटिश पद्धति (British System) भी कहते हैं।

(b) सेंटीमीटरर-ग्राम- सेकंड पद्धति (Centimetre-Gram-Second System) – इस पद्धति को संक्षेप में cgs पद्धति कहते हैं। इस पद्धति में लंबाई का मात्रक सेंटीमीटर, द्रव्यमान का मात्रक ग्राम तथा समय का मात्रक सेकंड होता है। इस पद्धति को मीटरी पद्धति (Metric System) भी कहते हैं।

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(c) मीटर-किलोग्राम सेकंड पद्धति ( Metre-Kilogram-Second System) -इस पद्धति को संक्षेप में mks पद्धति कहते हैं। इसमें लंबाई का मात्रक मीटर, द्रव्यमान का मात्रक किलोग्राम तथा समय का मात्रक सेकंड होता है।

विद्युत एवं चुम्बकत्व में परिमेयित मीटर-किलोग्राम-सेकंड-ऐम्पियर पद्धति (Rationalised Metre-Kilogram-Second- Ampere System) जिसे संक्षेप में rmksa पद्धति कहते हैं, का उपयोग किया जाता है।

(d) SI मात्रक (SI Units) – 1960 में तौल एवं माप के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (International Committee on Weights and Measures) ने मात्रकों की अंतरराष्ट्रीय पद्धति (System International d’Unites, संक्षेप में SI Units) के उपयोग की सिफारिश की। इसमें छह आधारी मात्रक (basic units) तथा दो संपूरक मात्रक (supplementary units) होते हैं। इस पद्धति के मात्रक SI मात्रक कहे जाते हैं। 1970 में सातवाँ आधारी मात्रक ‘मोल’ जोड़ा गया।

SI मात्रक : एक संसक्त पद्धति (SI units: a coherent system) – -उन सभी आधारी मात्रकों (basic units) के एक सेट (set) को जिनके द्वारा सभी व्युत्पन्न मात्रक साधारण गुणा या भाग द्वारा प्राप्त हो जाते हैं— संसक्त पद्धति (coherent system) कहा जाता है। SI मात्रक, मात्रकों की एक संसक्त पद्धति है।

मात्रकों की cgs पद्धति संसक्त पद्धति नहीं है।

आधारी तथा व्युत्पन्न मात्रक (Basic and Derived Units)

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Close up of yellow white rolled up tape measure for tailoring measurement on white background

वह मात्रक जो किसी अन्य मात्रक पर निर्भर नहीं करता, उसे आधारी (basic) या मूल (fundamental) मात्रक कहते हैं। ये मात्रक एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।

mass, लंबाई (length) तथा समय (time) आदि सात मूल भौतिक राशियाँ हैं। इन राशियों के मात्रक को आधारी मात्रक (basic units) या मूल मात्रक (fundamental units) कहते हैं। अन्य सभी मात्रक जो इन आधारी मात्रकों के पद (term) में व्यक्त किए गए हैं, मात्रक (derived units) कहे जाते हैं। अतः, उस मात्रक को जो आधारी मात्रकों पर निर्भर करता व्युत्पन्न है, अर्थात जिसे आधारी मात्रकों के पद में व्यक्त किया जा सके, व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं। व्युत्पन्न मात्रकों में एक या एक से अधिक आधारी मात्रकों के भिन्न-भिन्न घात (powers) हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, क्षेत्रफल मापने के लिए वर्गमीटर मात्रक का व्यवहार किया जाता है। यह मात्रक उस वर्ग का क्षेत्रफल है जिसकी प्रत्येक भुजा एक मीटर है। इसी प्रकार आयतन मापने के लिए घन मीटर मात्रक का व्यवहार किया जाता है। यह मात्रक उस घन का आयतन है, जिसकी प्रत्येक भुजा एक मीटर है। वर्ग मीटर तथा घन मीटर आदि मात्रक आधारी (मूल) मात्रक अर्थात ‘मीटर’ पर निर्भर करते हैं, अतः ये व्युत्पन्न मात्रक कहे जाते हैं। इसी प्रकार वेग, त्वरण, बल, कार्य आदि के मात्रक व्युत्पन्न मात्रक हैं।

 SI मात्रक के गुण (Merits of SI Units) SI हैं—

मात्रक के गुण निम्नलिखित

(a) SI मात्रक का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है और यह पूरे विश्व में विज्ञान तथा शिल्पविज्ञान (technology) की सभी शाखाओं के लिए उपयुक्त है।

(b) SI मात्रक निरपेक्ष (absolute) होते हैं।

(c) इसमें आधारी (मूल) मात्रकों की संख्या न्यूनतम है, जो काफी सुविधाजनक है।

(d) इसमें सभी व्युत्पन्न मात्रकों (derived units) को, बिना किसी संख्यात्मक गुणांक अथवा स्वेच्छ नियतांक ( arbitrary constant) के उपयोग के, आधारी (मूल) मात्रकों से प्राप्त किया। जाता है।

विमा (Dimensions )

अधिकांश भौतिक राशियों को प्रायः मूल मात्रकों, अर्थात लंबाई, द्रव्यमान, समय आदि के मात्रको में, जिन्हें क्रमशः L, M, T आदि से व्यक्त किया जाता है, प्रदर्शित करते हैं।

किसी भौतिक राशि (physical quantity) का मात्रक प्राप्त करने के लिए, मूल मात्रकों पर लगाए जानेवाले घातों (powers) को उस भौतिक राशि की विमाएँ (dimensions) कहते हैं।

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उदाहरणार्थ, वेग= (लंबाई ) x (समय)^-1

अतः वेग की विमा लंबाई में 1 और समय में -1 है। किसी भौतिक राशि की विमा व्यक्त > करने के लिए उस राशि को बड़े कोष्ठ (big bracket), अर्थात [ ] के अंदर लिखते हैं। जैसे[वेग] = वेग की विमा, [क्षेत्रफल] = क्षेत्रफल की विमा इत्यादि ।

विमीय समघातता का सिद्धांत (Principle of Homogeneity Dimensions)

इस सिद्धांत के अनुसार, किसी भी विमीय समीकरण के प्रत्येक पद (term) की विमाएँ समान (बराबर) होती हैं। दूसरे शब्दों में, भौतिक समीकरण विमीय रूप से समघातीय (homogeneous) होते हैं। किसी समीकरण में दोनों ओर की समान प्रकृति की राशियाँ ही समीकृत (equate) की जा सकती हैं।

उदाहरणार्थ, 3m + 2 m = 5 m, परंतु 3m + 2 kg का कोई अर्थ नहीं है।

विमीय समीकरणों के उपयोग (Uses of Dimensional Equations)

विमीय समीकरण के निम्नलिखित उपयोग हैं(a) किसी भी भौतिक राशि के मात्रक को एक पद्धति (system) से दूसरी पद्धति में बदलना (b) भौतिकी के विभिन्न सूत्रों की सत्यता की जाँच करना (c) विभिन्न भौतिक राशियों के बीच संबंध स्थापित करना.

द्रव्यमान और इसकी माप (Mass and its Measurement )

किसी वस्तु में निहित पदार्थ के परिमाण को उसका द्रव्यमान (mass) कहा जाता है। यह पदार्थ का में एक मौलिक गुण है, जो उसके ताप, दाब और स्थान परिवर्तन पर निर्भर नहीं करता है।

– जड़त्वीय एवं गुरुत्वीय द्रव्यमान – यदि दो वस्तुओं पर समान परिमाण के बल लगाए जाएँ तो उनमें उत्पन्न त्वरण के अनुपात से उन वस्तुओं के द्रव्यमानों का अनुपात प्राप्त होता है। इनमें यदि एक का द्रव्यमान मानक किलोग्राम (standard kilogram) हो, तो दूसरी वस्तु का द्रव्यमान ज्ञात किया जा सकता है। इस प्रकार मापे गए द्रव्यमान को जड़त्वीय द्रव्यमान (inertial mass) कहा जाता है। एक अन्य प्रकार से परिभाषित द्रव्यमान को गुरुत्वीय द्रव्यमान (gravitational mass) कहा जाता है। इसमें दो वस्तुओं के भार (weight) का अनुपात इनके गुरुत्वीय द्रव्यमानों के अनुपात के बराबर होता है। परंतु, दोनों ही प्रकार से परिभाषित द्रव्यमान बराबर होते हैं।

साधारण तुला या कमानीदार तुला (spring balance) से गुरुत्वीय द्रव्यमान की माप की जाती है। इन तुलाओं की सुग्राहिता (sensitivity) उतनी अधिक नहीं होती है। अधिक सुग्राहिता के लिए सूक्ष्ममापी तुला (microbalance) प्रयुक्त होते हैं जिसमें 10^9 ग्राम की कोटि के द्रव्यमान मापे जा सकते हैं, परंतु इनकी भार क्षमता (load capacity) मिलिग्राम के कोटि से अधिक की नहीं होती है।

मात्रक और विमा : मापन एवं मापों में त्रुटियाँ (UNITS AND DIMENSIONS: MEASUREMENT AND ERRORS IN MEASUREMENTS)

अतिसूक्ष्म आवेशित कणों (जैसे आयन, इलेक्ट्रॉन, अल्फा कण आदि) के द्रव्यमान परोक्षविधि (indirect method) से द्रव्यमान स्पेक्ट्रमलेखी (mass spectrograph) द्वारा ज्ञात किए जाते हैं। इसके लिए आवेशित कणों के गति-पथ के लंबवत चुंबकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है, जिससे ये कण वृत्तीय पथ में घूमने लगते हैं। कणों के वेग एवं वृत्तीय पथों की त्रिज्या ज्ञात करने पर इन कणों के द्रव्यमान का परिकलन किया जाता है। विशाल आकाशीय पिंडों (celestial bodies); जैसे— ग्रहों, तारों आदि के द्रव्यमान ज्ञात करने के लिए न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम का उपयोग किया जाता है।

लंबाई की माप (Measurement of Length)

किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की दूरी को दो विभिन्न विधियों से मापा जा सकता है(a) सीधी विधि (direct method) (b) परोक्ष विधि (indirect method)

(a) सीधी विधि (Direct method) – सीधी विधि से लंबाई की माप एक मानक मीटर ( standard metre) की छड़ से की जाती है। यदि किसी वस्तु की लंबाई इस मानक लंबाई की सात गुनी है तो कहा जाता है कि अमुक लंबाई सात मीटर है।

(b) परोक्ष विधि (Indirect method) – परोक्ष विधि का उपयोग बहुत ही सूक्ष्म या लंबी दूरियों के आकलन में किया जाता है। इनके लिए मानक मीटर के सापेक्ष सीधी तुलना संभव नहीं होती है। उदाहरण के लिए यदि किसी परमाणु का साइज (व्यास) अथवा पृथ्वी से किसी तारे की दूरी ज्ञात करनी हो, तो इन्हें मानक मीटर से सीधी तुलना (direct comparison) कर नहीं ज्ञात किया जा सकता है। इन दूरियों को मापने के लिए परोक्ष विधि प्रयुक्त होती है।

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समय की माप (Measurement of Time)

समय (वास्तव में समयांतराल) की माप में ऐसी गति का उपयोग किया जाता है जो बार-बार स्वतः दुहराई जाती है, अर्थात प्रक्रिया आवर्त (periodic) होती है। पृथ्वी की दैनिक गति ऐसी ही एक आवर्त प्रक्रिया है जिसमें हम 1 दिन का समयांतराल ज्ञात करते हैं और इसे घंटा, मिनट और सेकंड में बाँटते हैं। पूर्व काल में किसी ऊर्ध्वाधर छड़ की छाया की लंबाई देखकर समय का अनुमान लगाया जाता था। इस सिद्धांत के आधार पर धूपघड़ी (sundial) का निर्माण हुआ। गैलीलियो ने दोलक की गति से

यह निष्कर्ष निकाला कि छोटे आयाम (amplitude) के दोलन के लिए आवर्तकाल समान रहता है। समयांतराल ज्ञात करने के लिए उन्होंने अपनी नब्ज की धड़कन (pulse beat) का उपयोग किया। यांत्रिक घड़ियों (mechanical clocks) में इसी प्रकार के दोलक प्रयुक्त होते हैं जो प्रत्येक प्रदोल (swing) में एक सेकंड का समय लेते हैं। हाथघड़ी में संतुलन पहिया (balance wheel) के आवर्त कंपन से समयांतराल की गणना की जाती है। यांत्रिक घड़ियों में आवर्तकाल, दोलक की लंबाई पर निर्भर करता है (Tox √I), अतः लंबाई कम रहने पर समयांतराल के अल्प मान की गणना की जा सकती है। परंतु, समयांतराल की एक न्यूनतम सीमा होती है, क्योंकि दोलक की लंबाई गोलक की त्रिज्या से कम नहीं की जा सकती। स्ट्रोवोस्कोपी विधि (stroboscopic method) द्वारा 10^-3 सेकंड की कोटि के समयांतराल ज्ञात किए जा सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों से समय की माप के लिए विद्युत दोलन के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।

मात्रक और विमा : मापन एवं मापों में त्रुटियाँ (UNITS AND DIMENSIONS: MEASUREMENT AND ERRORS IN MEASUREMENTS)

पृथ्वी अपने अक्ष पर एक बार घूमने में जितना समय लेती है उसे सौर दिन (solar day) कहते हैं, परंतु सूर्य से पृथ्वी की दूरी बदलने के कारण सौर दिन पूरे वर्ष में एकसमान नहीं रहता। अधिक परिशुद्धता (precision) के लिए क्वार्ट्ज क्रिस्टल घड़ियाँ प्रयुक्त होती हैं जिनकी यथार्थता (accuracy) 10^-9 होती है। इससे भी अधिक परिशुद्धता परमाणविक घड़ियों (atomic clocks) में होती है जो सीजियम परमाणु में उत्पन्न आवर्त कंपनों पर आधारित है।

वृहत कोटि के समय की माप (Measurement of Large Order Time)

मानव इतिहास में समयांतराल की गणना शतकों (centuries) में की जाती है जबकि भूवैज्ञानिक (geologists) काल (era) की गणना सैकड़ों लाखों वर्षों के क्रम में करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड का निर्माण लगभग 5×10^9 वर्ष पहले हुआ था। चट्टानों और जीवाश्मों (rocks and fossils) की आयु का आकलन रेडियोऐक्टिव विधि से किया जाता है। इतने बड़े समयांतराल की माप कार्बन काल-निर्धारण (carbon dating) से की जाती है जिसमें कार्बन के समस्थानिक 14C का उपयोग होता है। 14C की अर्ध-आयु 5600 वर्ष है तथा यूरेनियम-238 (238U) की अर्ध-आयु 4.5 x 10^9 वर्ष है। रेडियोऐक्टिव प्रक्रमों में किसी चट्टान में उपस्थित 238 U अंततः 206Pb में बदल जाता है और 238U तथा 206Pb के सापेक्षिक परिमाण की माप से चट्टान की आयु का आकलन होता है। पृथ्वी के विभिन्न भागों से प्राप्त चट्टानों की आयु ज्ञात करने से पृथ्वी की आयु का अनुमान (लगभग 4×10^9 वर्ष) लगाया जाता है।

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