लैंगिक जनन की परिभाषा(What is sexual reproduction)
जनन की उस विधि को, जिसमें दो भिन्न लिंग, अर्थात नर और मादा भाग लेते हैं, लैगिक जनन (sexual reproduction) कहते हैं। नर तथा मादा जनकों द्वाराअलग-अलग प्रकार के युग्मकों (gametes) का निर्माण होता है। जो एककोशिकीय संरचनाएँ होती हैं।
नर युग्मक (male gamete) आकार में अपेक्षाकृत छोटा एवं सचल (motile) होता है, जबकि मादा युग्मक (female gamete) आकार में बड़ा तथा अचल (nonmotile) होता है। नर युग्मक को शुक्राणु या स्पर्म (sperm) और मादा युग्मक को अंडाणु या ओवम (ovum) कहते हैं।
लैंगिक जनन में दो मुख्य क्रियाएँ होती हैं— पहली, युग्मकों का निर्माण एवं दूसरी, युग्मकों का संयुग्मन या संगलन। नर युग्मक का मादा युग्मक से संगलन होता है जिसे निषेचन कहते हैं। निषेचन के फलस्वरूप सर्वप्रथम एककोशिकीय युग्मनज या जाइगोट (zygote) का निर्माण होता है। यही युग्मनज विकसित, विभाजित एवं विभेदित होकर बहुकोशिकीय वयस्क जीव में परिवर्तित हो जाता है जो स्वतंत्र जीवनयापन करता है।
उच्च कोटि के बहुकोशिकीय पादपों एवं जंतुओं में सामान्यतः लैंगिक जनन ही होता है, हालाँकि एककोशिकीय निम्न श्रेणी के जीवों, जैसे पैरामीशियम (Paramecium), शैवाल आदि में भी यह पाया जाता है।
लिंग के आधार पर जीवों को दो वर्गों में बाँटा गया है-(i) एकलिंगी, और (i) द्विलिंगी। एकलिंगी जीव (unisexual organisms) वे होते हैं जिनमें नर और मादा लिंग अलग-अलग जीवों या व्यष्टियों में पाए जाते हैं। जो जीव केवल शुक्राणु (sperms) उत्पन्न करते हैं, उन्हें नर जीव कहते हैं एवं सिर्फ अंडाणु (ova) उत्पन्न करनेवाले जीव को मादा जीब कहते हैं। अधिकांश जीवों में नर और मादा लिंग अलग-अलग व्यष्टियों (individuals) में पाए जाते हैं एवं सुस्पष्ट होते हैं; जैसे पपीता, तरबूज, मनुष्य, घोड़ा, बंदर,मोर, कबूतर, मछली, मेढ़क आदि। कुछ जीवों, जैसे सरसों,गुड़हल, केंचुआ (earthworms), कृमि (worms), हाइड्रा (Hydra) आदि एवं अधिकांश पादपों में सामान्यतः नर और मादा लिंग एक ही व्यष्टि में मौजूद होते हैं। ऐसे जीवों को द्विलिंगी या उभयलिंगी या बाइसेक्सुअल (bisexual) या हर्माफ्रोडाइट (hermaphrodite) कहते हैं।
लैंगिक जनन की सार्थकता
युग्मकों के बनने के पहले अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) होता है जिससे उनमें गुणसूत्र की संख्या जीवों के मूल शरीर में पाई जानेवाली संख्या की ठीक आधी होती है। जब दोनों (नर और मादा) युग्मकों के बीच संयुग्मन होता है तो पुनः गुणसूत्र की संख्या मूल शरीर की संख्या के बराबर हो जाती है और इस प्रकार जीव अपने शरीर में गुणसूत्र की संख्या को स्थिर बनाए रखते हैं।
अगर ऐसा न हो तो प्रत्येक अगली पीढ़ी में DNA की मात्रा पिछली पीढ़ी से दोगुनी होती जाएगी एवं धरती पर केवल DNA ही मिलेंगे एवं जीवों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। जीवों की हर जाति में गुणसूत्र की संख्या अलग-अलग एवं स्थिर रहती है।
जैसा कि आप शुरू में पढ़ चुके हैं, DNA की प्रतिकृति बनने के दौरान कुछ विभिन्नता उत्पन्न होती है। हर एक DNA प्रतिकृति अपने में नयी विभिन्नता के साथ-साथ पहले की पीढ़ियों की विभिन्नताओं को भी संगृहीत करती है। चूंकि लैंगिक जनन में दो जीव (नर एवं मादा) भाग लेते हैं।
इससे बननेवाले जीवों में दो विभिन्न जीवों से प्राप्त DNA समाहित रहते हैं। इसके फलस्वरूप दो जीवों से प्राप्त DNA की विभिन्नताओं के संयोजन से नए संयोजन पैदा होते हैं। इससे धीरे-धीरे जीवों की नई स्पीशीज की उत्पत्ति होती है। प्रत्येक स्पीशीज की समष्टि से उत्पन्न होनेवाली विभिन्नता उस स्पीशीज के अस्तित्व को कायम रखने में सहायक होती है। इस प्रकार, लैंगिक जनन से जीवों में विविधता पैदा होती है जो जैव विकास के लिए आवश्यक है।
पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन
लैंगिक जनन के लिए पुष्पी पौधों में फूल या पुष्प ही वास्तविक जनन भाग हैं; क्योंकि इनमें जनन अंग उपस्थित होते हैं जो जनन-क्रिया के लिए आवश्यक हैं। अतः , पादप-जनन अंगों को जानने के लिए एक सामान्य पुष्प की रचना का अध्ययन जरूरी है। पुष्प एवं इसके जनन माग सामान्यतः फूल एक डंठल (stalk) के द्वारा तने से जुड़ा रहता है, जिसे वृंत या पेडिसेल (pedicel) कहते हैं। वृंत के सिरे पर स्थित फूला हुआ तथा चपटा भाग पुष्पासन या थैलेमस (thalamus) कहलाता है।
पुष्प के विभिन्न पुष्पीय भाग (floral parts) पुष्पासन के ऊपर एक निश्चित प्रकार के चक्र में व्यवस्थित रहते है। एक प्ररूपी फूल (typical flower) में चार प्रकार के पुष्पपत्र होते हैं—1. बादलपुंज (calyx), 2. दलपुंज (corolla), 3. पुमंग (androecium), और 4. जायांग
(gynoecium)। इनमें से बाहरी दो चक्रों यानी बाह्यदलपुंज एवं दलपुंज को सहायक अंग (accessory organs) एवं भीतरी दो चक्रों यानी पुमंग और जायांग को आवश्यक अंग (essential organs) कहा जाता है। सहायक अंग फूल को आकर्षक बनाने के साथ आवश्यक अंगों की रक्षा भी करते हैं तथा आवश्यक अंग जनन का कार्य करते हैं।
जब फूल में सिर्फ पुमंग या जायांग रहते हैं तो उन्हें एकलिंगी एवं दोनों की उपस्थिति होने पर उन्हें उभयलिंगी कहते हैं।
पुमंग (Androecium):
यह पुष्प का नर भाग है। इसमें कई लंबी-लंबी रचनाएँ होती हैं जिन्हें पुंकेसर (stamens) कहते हैं। पुष्य का वास्तविक नर भाग पुंकेसर ही है। प्रत्येक पुंकेसर के दो मुख्य भाग होते हैं-(i) तंतु (filament), जो लचीला, पतला, लंबा तथा डोरे के समान होता है और पुष्पासन से जुड़ा रहता है, तथा (ii) परागकोश(anther), जो तंतु के अग्रभाग में अवस्थित रहता है। जब आप किसी फूल के पुंकेसर को स्पर्श करते हैं तो आपके हाथ में पीला पाउडर की तरह परागकण लग जाता है जो परागकोश से निकलता है।
जायांग या गाइनोशियम या पिस्टिल (Gynoecium or pistil)
-यह एक या एक से अधिक स्त्रीकेसर या काल्स (carpels) का बना होता है। जायांग पौधों का मादा भाग है। स्त्रीकेसर या तो अकेले (solitary) या अनेक और एक-दूसरे से पृथक या जुड़े हुए भी हो सकते हैं। प्रत्येक स्त्रीकेसर में तीन भाग होते हैं- अंडाशय, वर्तिका एवं वर्तिकाग्र।
अंडाशय (Ovary)
यह स्त्रीकेसर का आधारीय भाग है जो पुष्पासन से जुड़ा रहता है। अंडाशय सामान्यतः फूली हुई रचना होती है जिससे एक लंबी एवं पतली वृंत जैसी रचना निकली रहती है, जिसे वर्तिका या स्टाइल (style) कहते हैं। वर्तिका के शिखर पर फूली हुई, छोटी, चिपटी एवं चिपचिपी रचना होती है, जिसे वर्तिकाग्र या स्टिग्मा (stigma) कहते हैं। अंडाशय के भीतर बीजांड या ओव्यूल (ovule) रहते हैं जिनकी संख्या विभिन्न पौधों में निश्चित रहती है। ये बीजांड अंडाशय की अंदरूनी भित्ति से जुड़े रहते हैं, जो एक(सूर्यमुखी और घासों) से लेकर सहस्रों (कुकरबिट पौधों) तक हो सकती है। बीजांड के भीतर भ्रूणकोष (embryo sac) होता है जिसमें मादा युग्मक या अंडाणु होते हैं।
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