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मानव शरीर क्रिया विज्ञान के बारे में संपूर्ण जानकारी-Physiology in Hindi

मानव शरीर अनेक जीवित अंगों द्वारा बनी हुई एक जीवित मशीन है। शरीर का प्रत्येक अंग नियमित रूप से कार्य करता है ।शरीर के कुछ अवयव बाहर से प्रत्यक्ष दिखाई पड़ते हैं, किन्तु कुछ अंग जो शरीर के अन्दर हैं वे दिखाई नहीं देते हैं। शरीर की सबसे छोटी इकाई कोशिका होती है। कई कोशिकाएं मिलकर ऊतक (Tissue) बनाती हैं तथा कई ऊतक मिलकर एक अंग बनाते हैं और कई अंग मिलकर पूरे शरीर का निर्माण करते हैं शरीर को बाहरी बनावट (Physiology in Hindi) के आधार पर 5 भागों में बांटा गया है

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सिर (Head)–

सिर शरीर का सबसे ऊपरी भाग है।इसके एक भाग को आनन (face) तथा दूसरे भाग को खोपड़ी सिर के आगे का भाग होता है। यह कई अस्थियों से मिलकर बना होता है। आनन में ही नेत्र-नासिका, कपोल, मुख कान तथा चिबुक होते हैं। खोपड़ी में मस्तिष्क् (Brain) स्थित रहता है। मस्तिष्क शरीर के सभी कार्यों को नियंत्रित करता है

ग्रीवा (Neck)—

ग्रीवा या गर्दन सिर और धड़ के बीच की कड़ी है। यह मांसपेशियों, अस्थियों तथा तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है इसलिए लचीला होता है। ग्रीवा में ग्रासनली और श्वासनली होती है जिससे क्रमशः भोजन और श्वसन का कार्य होता है । ग्रीवा के पीछे की ओर कशेरुक दंड या रीढ़ होती है जिसके भीतर मेरुरज्जु (Spinal cord) होती है ।

धड़ (Trunk)—

यह शरीर का सबसे बड़ा भाग है। धड़ के ऊपर वाले भाग को वक्ष (Thorax) तथा नीचे वाले भाग को उदर (Abdomen) कहते हैं । उदर के नीचे वाले भाग को श्रोणि कहते हैं । इसी भाग में गर्भाशय, मूत्राशय, अण्डाशय इत्यादि स्थित होते हैं। वक्ष के भीतर फेफड़े, हृदय, श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र का कुछ भाग, महाधमनी तथा महाशिराएं होती है।

उर्ध्व शाखाएँ (Upper extremities)—

धड़ के ऊपर दो शाखाएँ होती हैं जो कंधे से जुड़ी रहती हैं, इन शाखाओं को बाहु (Arms) कहते हैं। प्रत्येक बाहु में कोहनी (Elbow) एवं अग्रबाहु (Fore arm) होता है। अग्रबाहु और हथेली, कलाई (Wrist) द्वारा सम्बन्धित रहती है।

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अधोशाला (Lower extremities)—

धड़ के नीचे की तरफ दोनों पैर लगे रहते हैं। पैर में तीन भाग होते हैं सबसे ऊपर(feet) होता है। प्रत्येक पाँव में पाँच-पाँच उंगलियाँ होती हैं।

शरीर के तंत्र -Systems of the body and Physiology in Hindi

शरीर के अन्दर जितनी भी जैविक क्रियायें होती है और उनके द्वारा सम्पन्न कार्यों को शरीर-क्रिया विज्ञान (physiology in hindi) के अन्तर्गत रखते हैं। प्रत्येक कार्य के लिए कई अंग मिलकर एक तंत्र बनाते हैं जैसे भोजन के पाचन के लिए पाचनतंत्र (digestive system), श्वसन के लिए श्वसन तंत्र इत्यादि ।

शरीर-क्रिया विज्ञान का विकास मूलतः व्यवहारिक चिकित्सा विज्ञान की आवश्यकताओं की पूर्ति के कारण हुआ। विभिन्न रोगों के उपचार के लिए जीव की संरचना तथा प्रकार्य ज्ञान आवश्यक है। शरीर के अंगों को उनकी क्रियाओं के सामूहिक रूप को दृष्टिगत करते हुए कुछ प्रमुख तंत्रों में निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया गया है-

1.पाचन तंत्र (Digestive System), 2. श्वसन-तंत्र (Respiratory System), 3. उत्सर्जन-तंत्र (Excretory System), 4. परिसंचरण-तंत्र (Circulatory System), 5. अंत: स्रावी-तंत्र (Endocrine System), 6. प्रजनन-तंत्र(Reproductive System), 7. कंकाल-तंत्र (Skeletal System), 8. विशिष्ट ज्ञानेन्द्रिय-तंत्र (Special sense organs System), 9. लसीका-तंत्र (Lymphatic System), 10. त्वचीय-तंत्र (Cutaneous System), 11. पेशी-तंत्र (Muscular System), 12. तंत्रिका तंत्र (Nervous System)।

पाचन तंत्र (Digestive System in Hindi)—

पाचन-तंत्र में भोजन के पचने की क्रिया होती है। भोजन में हम मुख्य रूप से प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट (Physiology in Hindi)और वसा लेते हैं । इनका पाचन पाचन तंत्र में उपस्थित एन्जाइम और पाचन अम्ल की सहायता से होता है। पाचनतंत्र में मुख, ग्रासनली, आमाशय, पक्वाशय, यकृत, ग्रहणी छोटी आँत, बड़ी आँत इत्यादि होती है।

श्वसन तंत्र (Respiratory System in Hindi)-

जीव एवं बाह्य वातावरण के बीच गैसों का विनिमय निरंतर होता रहता है। श्वसन तंत्र में नासा कोटर कंठ, श्वासनली, श्वसनी, फेफड़े आते हैं। श्वास के माध्यम से शरीर के प्रत्येक भाग में आक्सीजन पहुँचती है तथा कार्बनडाईआक्साइड बाहर निकलती है। रक्त श्वसन तंत्र में सहायता करता है। शिरायें अशुद्ध रक्त का वहन करती है तथा धमनी शुद्ध रक्त विभिन्न अंगों में पहुँचाती है ।

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उत्सर्जन तंत्र-

शरीर क्रिया(Physiology in Hindi) में उत्पन्न निकृष्ट पदार्थ और आहार का बिना पचा हुआ भाग उत्सर्जन तंत्र द्वारा शरीर से बाहर निकलते रहते है। भोजन के उपापचय के फलस्वरूप कार्बनडाई आक्साइड (CO,), जल तथा कुछ अपाच्य भोजन निकलता है। उत्सर्जन तंत्र में मलाशय, फुस्फुस, यकृत, त्वचा तथा वृक्क होते हैं। फुस्फुस द्वारा हानिकारक गैसें निकलती है। त्वचा के द्वारा पसीने की ग्रंथियों से पानी तथा लवणों का विसर्जन होता है। वृक्क में मूत्र का निर्माण होता है । मलाशय से ठोस उत्सर्जी पदार्थों का उत्सर्जन होता है।

परिसंचरण-तंत्र (Circulatory System in Hindi)—

शरीर के विभिन्न भागों में रक्त का विनिमय (exchange) परिसंचरण-तंत्र के द्वारा होता है। रक्त परिसंचरण की खोज सन् 1628 में विलियम हार्वे ने किया था। रक्त परिसंचरण-तंत्र में हृदय, रक्तवाहिनी नलियाँ (Blood vessels) धमनी (Artery) शिरायें (Veins) कोशिकाएँ (Capillaries) आदि सम्मिलित हैं। रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन (Haemoglobin)
आक्सीजन धारण करता है। हृदय में रक्त का शुद्धीकरण होता है। धमनी शुद्ध रक्त शरीर के सभी अंगों तक पहुँचती है तथा शिरायें अशुद्ध-रक्त विभिन्न अंगों से वापस हृदय में लाती हैं।

हृदय की धड़कन से रक्त का संचरण होता है। सामान्य व्यक्ति में एक मिनट में 72 बार हृदय में धड़कन होती है।

अंत-स्रावी-तंत्र (Endocrine System in Hindi)—

शरीर की कुछ ग्रंथियाँ ऐसी हैं जिनका स्राव सीधे किसी अंग में नहीं पहुँचता है तथा वे नलिकाविहीन होती हैं। शरीर के विभिन्न भागों में उपस्थित नलिका विहीन ग्रथियों को अंतःस्रावी तंत्र कहते हैं। इनमें हॉर्मोन बनता है और शरीर की सभी रासायनिक क्रियाओं(Physiology in Hindi) का नियंत्रण इन्हीं हार्मोनों द्वारा होता है। शरीर में सात महत्वपूर्ण ग्रंथियाँ हैं-

(i) अवटु ग्रंथि (Thyroid gland)
(ii) पराअवटु ग्रंथि (Parathyroid gland)
(iii) अग्न्याशय (Pancreas)
(iv) पीयूष ग्रंथि (Pituitory Gland)
(v) अधिवृक्क (Adrenal)
(vi) थाइमस ग्रंथि (Thymus gland)
(vii) लिंग ग्रंथि (Sex glands)

6)प्रजनन तंत्र- reproductive system in Hindi

सभी जीवो में अपने ही जैसे संतान उत्पन्न करने का गुण होता है। प्रजनन के द्वारा पुरुष और स्त्री के जननांगों से स्रावित शुक्राणु और अण्डाणु मिलकर नया भ्रूण बनाते हैं। पुरुष और स्त्री के प्रजनन-तंत्र भिन्न-भिन्न अंगों से मिलकर बना होता है। पुरुष जननांग में बृषण, अधिवृषण (Epididymis), शुक्र वाहिका(Vas deterens), शुक्राशय (Seminal Veside), शिश्न (Penis) आदि प्रमुख अंग हैं। शिश्न पुरुष का संभोग करने वाला अंग है। स्त्री जननांग में रति-शेल (Mons Veneris), वृहतभगोष्ठ (Labium Major), भगशिश्निका (Clitoris), योनि (Vagina) अण्डाशय (Ovary), डिम्बवाहिनी नली,गर्भाशय (Uterus) आदि अंग होते हैं। गर्भाशय में भ्रूण का विकास होता है । भ्रूण को पोषक तत्व स्त्री के गर्भाशय से विकसित अपरा (Placenta) के माध्यम से स्त्री से ही मिलता है।

कंकाल-तंत्र (Skeletal System in Hindi)—

मानव शरीर छोटी-बड़ी कुल 206 अस्थियों से मिलकर बना हुआ है। अस्थियों से बने ढाँचे को कंकाल-तंत्र कहते हैं। अस्थियाँ आपस में संधियों के द्वारा जुड़ी रहती है। सिर की हड्डी को कपाल गुहा कहते हैं।

विशिष्ट ज्ञानेन्द्रिय तंत्र (Special Sense Organs
System in Hindi)—

वातावरण के परिवेश का ज्ञान हमें ज्ञानेन्द्रियों द्वारा होता है । देखने के लिए आँख, सुनने के लिए कान, सूंघने के लिए नाक, स्वाद लेने के लिए जिहा तथा संवेदन के लिए त्वचा ज्ञानेन्द्रियों का काम करती हैं। इनका सम्बन्ध मस्तिष्क से बना रहता है।

लसीका-तंत्र (Lymphatic System in Hindi)—

शरीर में जैवरासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप बहुत से हानिकारक पदार्थ बनते रहते हैं अथवा विभिन्न बाह्य सूक्ष्मजीवों के द्वारा शरीर पर आक्रमण करते हैं । लिम्फोसाइट्स ग्रंथियाँ विषैले तथा हानिकारक पदार्थों को नष्ट कर देती हैं और शुद्ध रक्त में मिलने से रोकती हैं । लसीका तंत्र छोटी-छोटी पतली वाहिकाओं का जाल होता है।

त्वचीय-तंत्र (Cutaneous System in hindi)–

शरीर की रक्षा करने के लिए संपूर्ण शरीर त्वचा से ढंका रहता है। त्वचा का बाहरी भाग उपकला के कड़े लेयर से बना रहता है बाहरी स्पर्श को अनुभव करने के लिए तंत्रिका के पास स्पर्शकण (Tactile-buds) होते हैं।

पेशी-तंत्र (Muscular System in hindi)—

पेशियाँ त्वचा के नीचे का माँस होती हैं। संपूर्ण शरीर में 500 से अधिक पेशियाँ हैं। पेशियाँ प्रेरक उपकरण का सक्रिय भाग हैं। इनके संकुचन के फलस्वरूप विभिन्न गतिविधियाँ होती हैं। कार्य के आधार पर पेशियों को दो वर्गों में बाँटा गया है।

(i) ऐच्छिक पेशियाँ-

ये रेखित पेशी ऊतक से बनी होती हैं तथा मनुष्य के इच्छानुसार संकुचित हो जाती हैं। इस वर्ग में सिर, कांड तथा अग्रागों की सभी पेशियाँ एवं कुछ आंतरिक अंग जैसे जिह्वा-कंठ आदि आते हैं।

(ii) अनैच्छिक पेशियाँ—

ये अरेखित (चिकनी) पेशी ऊतक से बनी होती हैं । ये आन्तरिक अंगों, रुधिर वाहिकाओं तथा त्वचा की दीवारों में पायी जाती हैं। इन पेशियों का संकुचन मनुष्य की
इच्छा द्वारा नियंत्रित नहीं होता है।

तंत्रिका तंत्र (Nervous System in hindi ) –

तंत्रिका तंत्र विभिन्न अंगों एवं सम्पूर्ण जीव की क्रियाओं का नियंत्रण करता है। पेशी संकुचन, ग्रन्थि स्राव, हृदय कार्य, उपापचय तथा जीव में निंरतर घटने वाली अनेक क्रियाओं का नियंत्रण तंत्रिका तंत्र करता है। तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क, मेरु रज्जु और तंत्रिकाएं आती है।

मस्तिष्क तथा मेरु रज्जु तंत्रिका तंत्र का केन्द्रीय भाग बनाते हैं यहाँ से छोटी-छोटी पतली तंत्रिकाएँ पूरे शरीर(Physiology in Hindi) में फैली रहती हैं तंत्रिका तंत्र की क्रिया की प्रतिवर्त प्रकृति होती है। उद्दीपक की अनुक्रिया से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा जीव की प्रतिक्रिया प्रतिवर्त कहलाती है। तंत्रिकाओं में आवेग विद्युत-रासायनिक संवेगों के रूप में फैलता है।

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पाचन-क्रिया-Digestion and Physiology in Hindi

मानव शरीर को जीवित रहने के लिये भोजन नितांत आवश्यक है मानव भोजन के अनेक प्रकार के पोषक तत्वों में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, खनिज लवण, जल और विभिन्न प्रकार के विटामिन लेता है। मानव शरीर के इन पोषक तत्वों के द्वारा विभिन्न प्रकार के ऊतकों का निर्माण, टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत और शरीर के भीतर चलने वाली विभिन्न क्रियाओं के लिये आवश्यक ऊर्जा मिलती रहती है।

पाचन की इस प्रक्रिया में कुछ यांत्रिक क्रियायें(Physiology in Hindi)होती हैं जिनके फलस्वरूप भोजन को चबाने, निगलने एवं पीसने की क्रियायें होती है तथा कुछ रासायनिक प्रक्रियाएँ होती है जिसमें जटिल कार्बनिक पदार्थों जैसे-प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा को सरल अणुओं में तोड़ा जाता है। यह प्रक्रिया एन्जाइम की उपस्थिति में होती है। इस प्रक्रिया में जल का अपघटन (Hydrolysis) होता है। शरीर इन सभी पदार्थों को अवशोषित कर शरीर के विभिन्न अवयवों को वितरित कर देता है। आहार-नाल में भोजन को शरीर में इस प्रकार खपने योग्य दशा में बदलने की प्रक्रिया को ही पाचन-क्रिया कहते हैं।

भोजन के पाचन की सम्पूर्ण प्रक्रिया पाँच प्रावस्थाओं में
होती है—(1) अन्तर्ग्रहण, (2) पाचन, (3) अवशोषण, (4)स्वांगीकरण तथा (5) मल परित्याग ।

अन्तर्ग्रहण-Ingestion in hindi

भोजन को मुख-गुहा में ले जाना अन्तर्ग्रहण कहलाता है। यह प्रक्रिया मानव को भूख लगने के कारण होती है । भूख भोजन की शरीर में कमी पड़ने पर लगती है । पर्याप्त मात्रा में भोज्य पदार्थ लेने से भूख समाप्त हो जाती है ।

पाचन-Digestion in hindi

भोजन की पाचन क्रिया मुख से ही आरम्भ हो जाती है। भोजन के मुख में पहुँचने पर दाँतों द्वारा चबाया जाता है साथ ही लार ग्रंथियों से लार (Saliva) का स्राव होता है जिसे जीभ द्वारा मिलाकर भोजन लुग्दी के रूप में फेरिंक्स (Pharynx) में पहुँचता है। लार स्वायत्त तन्त्रिका-तन्त्र द्वारा नियन्त्रित होता है। मनुष्य में लगभग 1.5 लीटर लार प्रतिदिन निकलता है। इसकी प्रकृति अम्लीय (pH 6.8) होती है।

लार में दो प्रकार के एन्जाइम-टायलिन और माल्टोज पाये जाते हैं। ये भोजन के श्वेत-सार वाले अंश को सरल शर्करा में परिवर्तित कर पचने लायक बना देते हैं। इस प्रकार भोजन का कुछ भाग मुख में ही पच जाता है। इसके बाद भोजन आहार नली के माध्यम से अमाशय में आ जाता है। अमाशय में (Physiology in Hindi)अनेक छोटी-छोटी ग्रंथियाँ रहती हैं जिससे अनेक प्रकार का तीव्र अम्लिक रस निकलता है

जैसे-जठर रस (Gastric Juice), हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl), रेनिन, पेप्सिन, लाइपेज (Lipase), एमाइलेज, पित्त रस इत्यादि । भोजन के अमाशय में पहुँचने पर पाइलोरिक ग्रंथियों से जठर रस निकलता है। यह हल्के पीले रंग का अम्लीय (pH 0.9-15) होता है। आक्सिन्टिक कोशिकाओं से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल निकलता है। यह अम्ल एन्जाइम की क्रिया को तीव्र कर देता है तथा निष्क्रिय प्रोपेप्सिन को सक्रिय पेप्सिन तथा प्रोरेनिनको रेनिन में बदल देता है।

यह भोजन के साथ आये हुये जीवाणुओं को नष्ट कर देता है तथा क्षारीय भोजन का माध्यम अम्लीय कर देता है जिससे लार के टायलिन की क्रिया समाप्त हो जाती है। पेप्सिन प्रोटीन को खण्डित कर सरल पदार्थों में परिवर्तित कर देता है । रेनिन एन्जाइम दूध की धुली हुई प्रोटीन केसीन को ठोस प्रोटीन कैल्शियम पैराकेसीनेट में दही के रूप में बदल देता है।

अमाशय में एन्जाइम की मात्रा बहुत कम होती है। लाइपेज इमल्सीकृत वसाओं को वसा अम्लों तथा ग्लिसरॉल में बदलता है। एमाइलेज कार्बोहाइड्रेट का पाचन करता है। ट्रिप्सिन प्रोटीन को पचाता है। अमाशय में भोजन चार घण्टे रहता है इस बीच अमाशय में मंथन एवं क्रमाकुंचन गतियाँ आरम्भ हो जाती है। इस प्रकार भोजन पक्वाशय में पहुँच जाता है।

पक्वाशय से भोजन छोटी आंत में आता है। इसमें पचे भोजन का शोषण तथा अनपचे भाग का पाचन दोनों होता है। इसकी दीवारों से आंत्रिक रस निकलता है। आंत्रिक रस क्षारीय (pH 8) होता है । स्वस्थ मनुष्य में लगभग 2 लीटर आंत्रिक रस स्रावित होता है। आंत्रिक रस से अनेक एन्जाइम निकलते है

जैसे–माल्टेज, शुक्रोज, लैक्टोज, लाइपेज, इरैप्सिन । माल्टेज शर्करा को ग्लूकोज में बदलता है, शुक्रोज शर्करा को फ्रक्टोज तथा ग्लूकोज में बदलता है, लैक्टोज शर्करा को ग्लैक्टोज तथा ग्लूकोज में बदलता है, लाइपेज वसा का पाचन करता है तथा इरैप्सिन प्रोटीन के अनपचे भाग को अमीनो अम्ल में परिवर्तित कर देता है।

अवशोषण (Absorption in hindi)—

भोजन का अवशोषण छोटी आंत में होता है । इस आँत में पाचन होने के बाद भी भोजन शरीर का भाग उस समय तक नहीं बन सकता जब तक यह आहार-नाल की दीवारों में शोषित होकर रुधिर परिसंचरण द्वारा शरीर के विभिन्न भागों(Physiology in Hindi) में न पहुँच जाये। पचे हुये भोजन का रुधिर में पहुँचना ही अवशोषण कहलाता है

स्वांगीकरण (Assimilation in hindi)-

अवशोषित भोजन को शरीर द्वारा उपयोग में लाया जाना स्वांगीकरण कहलाता है । अमीनो अम्ल कोशिकाओं में पहुँचकर प्रोटीन संश्लेषण में प्रयुक्त होते है जिसके फलस्वरूप नया जीव-द्रव्य (Protoplasma) बनता है । यकृत में पहुँचकर आवश्यकता से अधिक अमीनोअम्ल अमोनिया में विखण्डित हो जाते हैं जिनसे यूरिया बनता है जो मूत्र के साथ उत्सर्जित होता है।

मल परित्याग (Defaecation in hindi)

अनपचा भोजन बड़ी आँत में पहुँचता है जहाँ जीवाणु इसे मल में बदल देते हैं। बड़ी आँत में मल का अवशोषण नहीं होता बल्कि यह कोलन के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। मनुष्य के मल दो प्रकार के पदार्थों से बने होते हैं। जीवाणुओं द्वारा ट्रिप्टोफान (tryptophan) के आक्सीकरण द्वारा एवं पित्त लवण तथा कोलेस्ट्राल द्वारा । इन्डोल एवं स्कैटोल नामक अमीनों अम्ल के कारण मल में दुर्गन्ध होता है।

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मल में अनेक लवण, आयरन, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्निशियम तथा अनेक गैसें जैसे-अमोनिया, मीथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, कार्बन डाई आक्साइड होती हैं। पाचक नाल-पाचक नाल का विस्तार मुख से मलद्वार तक होता है। यदि इसे लम्बाई में नापा जाय तो यह लगभग 33 फीट(feet) टेढ़ी-मेढ़ी नली बनेगी। इस नली के भिन्न-भिन्न भाग से
विभिन्न अंग मुख, गला,नाक,ग्रासनली, अमाशय, पक्वाशय, छोटी आँत, बड़ी आँत, मलाशय इत्यादि जुड़े होते हैं।

इस नली का सम्पर्क अग्नाशय और यकृत से भी है जिससे अनेक प्रकार के रस एवं हार्मोन स्रावित (Physiology in Hindi)होते हैं।

यकृत -Liver in hindi

यकृत मानव-शरीर (Physiology in Hindi)की सबसे बड़ी ग्रंथि है जो उदर-गुहा (Abdominal Cavity) के ऊपरी भाग में दाहिनी ओर स्थित होता है। इसका वजन लगभग 1.5-2 किo ग्रा. होता है तथा यह गहरे धूसर रंग का होता है। यह एक गहरे गर्त द्वारा दो खण्डों में बँटा रहता है। इसके निचले भाग में नाशपाती के आकार की एक छोटी सी थैली होती है जिसे पित्ताशय कहा जाता है। यकृत द्वारा स्रावित पित्त इस थैली में संचित होता है। यह पित्त आँत में उपस्थित एन्जाइमों की क्रिया को तीव्र कर देता है । इसके अतिरिक्त यकृत, कार्बोहाइड्रेट, वसा (fat) और प्रोटीन उपापचय (Metabolism) में सक्रिय भाग लेता है तथा शरीर में उत्पन्न जीवविषों (Toxins) को प्रभावहीन कर इसकी रक्षा करता है।

यकृत के प्रमुख कार्य- How does work lever in Hindi

प्रोटीन उपापचय (Protein matabolism in hindi)-

यकृत प्रोटीन उपापचय में सक्रिय रूप से भाग लेता है। शरीर के अवयवों में प्रोटीन विघटन (Protein Decomposition) के फलस्वरूप अन्य वस्तुओं के साथ-साथ जल, कार्बन-डाई आक्साइड और अन्य नाइट्रोजनीय पदार्थ अमोनिया, यूरिक अम्ल इत्यादि उत्पन्न होते हैं। अमोनिया विषैला पदार्थ है जिसे यकृत यूरिया में परिवर्तित कर देता है। इसके अतिरिक्त यह प्रोटीन की अधिकतम मात्रा को कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर देता है।

कार्बोहाइड्रेट उपापचय ( carbohydrate metabolism in hindi )—

कार्बोहाइड्रेट उपापचय के अन्तर्गत यकृत ग्लाइकोजिन का निर्माण एवं संचय करता है। रक्त पोषक तत्वों का अवशोषण छोटी आंत में करता है और निर्वाहिका शिरा (Portalvein) के माध्यम से यकृत में ले आता है। यकृत रक्त उपापचय के (Glycogen).के ग्लूकोज (Glucose) वाले भाग को ग्लाइकोजिनmमें परिवर्तित कर देता है जो संचित पोषक तत्वों के रूप में यकृत कोशिका (Hepatic Cell) में संचित हो जाता है। रक्त को विभिन्न अवयवों के लिये ग्लूकोज की आवश्यकता(Physiology in Hindi) होने पर, यकृत संचित ग्लाइकोजिन को खण्डित कर ग्लूकोज में परिवर्तित कर देता है। इस प्रकार यह रक्त में ग्लूकोज की मात्रा नियमित बनाये रखता है।

वसा उपापचय (Fat metabolism in hindi )

भोजन में वसा की कमी होने पर यकृत कार्बोहाइड्रेट का कुछ भाग वसा में परिवर्तित कर देता है।

रक्षात्मक कार्य (Defensive function in hindi)-

सामान्यतः बडी आंत में प्रोटीन के पूतीभवन (Putrefication) के कारण कुछ विषैले पदार्थ उत्पन्न हो जाते हैं जिन्हें रक्त निर्वाहिका शिरा के माध्यम से यकृत में ले आता है। यकृत इन्हें अविषैले यौगिक (Non-toxic Compound) में परिवर्तित कर प्रभावहीन कर देता है जो मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाता है।

पित्ताशय -Gall bladder in hindi

पित्ताशय नाशपाती के आकार की एक थैली होती है जो यकृत के नीचे स्थित होती है। पित्त-नलिका यकृत से जुड़ी होती है। यकृत में जो पित्त बनता है वह पित्त-नलिका के माध्यम से. पक्वाशय में आ जाता है। पित्त का पक्वाशय में गिरना प्रतिवर्ती क्रिया (रिफ्लेक्स action) द्वारा होता है।

पित्त क्या है -What is bile in hindi

यह पीले-हरे रंग का क्षारीय द्रव (Alkaline fluid) है इसका pH मान 7.7 होता है। पित्त में जल 85%, पित्त वर्णक(bile pigment) 12%, पित्त लवण 0.7%, कोलेस्ट्राल0.28%, मध्यम वसाएँ 0.3% तथा लेसीथिन (lecithin)0.15% होते हैं। पित्त लवणों में सोडियम ग्लाइकोलेट तथा सोडियम टॉरोकोलेट नामक कार्बनिक लवण तथा सोडियम क्लोराइड एवं सोडियम बाइकार्बोनेट अकार्बनिक(Physiology in Hindi) लवण पाये जाते हैं। मनुष्य में 700-1000 मिली लीटर पित्त प्रतिदिन बनता है।

पित्त के कार्य -Functions of Bile in hindi

पित्त में कोई एन्जाइम नहीं होता किन्तु यह अनेक महत्वपूर्ण कार्य करता है। पित्त में उपस्थित अकार्बनिक लवण अमाशय से आये भोजन का माध्यम क्षारीय (alkaline) कर देता है जिससे अग्न्याशयी रस क्रिया कर सके। यह भोजन के साथ आये हानिकारक जीवाणुओं को भी नष्ट करता है।

पित्त वसाओं का इमल्सीकरण (Emlsification of fat) करता है। पित्त आँत की क्रमाकुंचन गतियों को बढ़ाता है जिससे भोजन में पाचक रस भली-भाँति मिल जाते हैं। पित्त (about Bile in hindi) अनेक उत्सर्जी एवं विषैले पदार्थों तथा धातुओं के उत्सर्जन का कार्य करता है। यह वसा (Physiology in Hindi)अवशोषण में भी सहायक है। यह विटामिन K तथा वसाओं में घुले और विटामिनों के अवशोषण में सहायक होता है।

यदि यकृत कोशिकायें रुधिर से विलिरूबिन लेना बन्द कर दे तो रूधिर द्वारा विलिरूबिन सम्पूर्ण शरीर में फैल जाता है इसे हा पीलिया कहते हैं। ऐसा पित्त वाहिनी में अवरोध आ जाने से होता है। इस रोग में त्वचा, नेत्र तथा मूत्र पीला हो जाता है।

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