- जन्म-13 अगस्त, 1888
- जन्म स्थान-हैलन्सबर्ग
- निधन-14 जून, 1946
- निधन स्थान-बेक्सहीन ऑन सी, संसेक्स
इस महान वैज्ञानिक ने अनेक संघर्षों के बाद मानव समाज को एक ऐसा उपहार सौंपा जो आज आधुनिक समाज का मुख्य आधार है। वह उपहार था टेलीविजन।
जॉन लॉगी बेयर्ड का जन्म-John Logie Baird biography in hindi
आधुनिक विश्व की जनक्रांति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका से समस्त विश्व को चमत्कृत कर देने वाला यंत्र है दूरदर्शन। आज आधुनिक युग की कोई भी कल्पना दूरदर्शन(television invention hindi)के बिना अर्थहीन है।
यह सत्य है कि इस महत्त्वपूर्ण यंत्र का निर्माण किसी
एक व्यक्ति द्वारा नहीं हुआ लेकिन यह भी सच है इसके विकास में जिस वैज्ञानिक ने अपना सबसे बड़ा योगदान दिया उस वैज्ञानिक का नाम है जॉन लॉगी बेयर्ड(john logie baird born hindi)।
जिन्हें विज्ञान की दुनिया में जे.एल. बेयर्ड के नाम से भी जाना जाता है। ये पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ग्रेट ब्रिटेन में टेलीविजन संदेशों का सफल प्रसारण सन् 1926
में करके दिखाया था। जॉन लॉगी बेयर्ड का जन्म 13 अगस्त, 1888 को ग्लैसगो के पास हैलन्सबर्ग में हुआ था।
इनके पिता एक शिक्षित पादरी थे लेकिन उनकी आय
कम थी। जॉन बचपन में बहुत ही कमजोर थे। इनसे बड़ी इनकी दो बहनें और एक भाई था। स्कूल जाने से पहले का अपना सारा समय इन्होंने पड़ोस में रहने वाले एक माली के लड़के के साथ बिताया।
बेयर्ड की प्रारम्भिक शिक्षा(john logie baird education)पास के एक स्कूल में हुई। इनकी पढ़ने में बहुत रुचि थी। उन दिनों इनके स्कूल में फाटोग्राफी को बहुत महत्त्व दिया जाता था फोटोग्राफी (photography) में इन्होंने इतनी रुचि दिखाई कि वे अपने स्कूल में फोटोग्राफी के अध्यक्ष बन गए।
इतने चतुर थे कि 12 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने अपने साथियों की सहायता से एक टेलीविजन (television) लाइन बनाई और अपने छत वाले कमरे को चार साथियों के घर से जोड़ दिया।
स्कूल छोड़ने के बाद इन्होंने ग्लैसगो में स्थित रॉयल टेक्नीकल कॉलेज में विज्ञान का अध्ययन(john logie baird study)किया। इनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता था इसलिए इनकी पढ़ाई भी अच्छी प्रकार नहीं हो पाई लेकिन फिर भी पांच साल बाद वे सहायक इंजीनियर बन गए।
आधुनिक टेलीविजन का अविष्कार -john logie baird inventions
26 साल की उम्र में 30 शिलिंग प्रति सप्ताह के वेतन पर इन्होंने एक इलैक्ट्रिकल कम्पनी में नौकरी करनी शुरू की। इन्हीं दिनों प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था।
इनके पैरों को बहुत ठंड लगती थी। ठंड से बचने के लिए वे अक्सर अपने पांव से टायलेट पेपर लपेट लेते थे। प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर इन्होंने मोजे बनाने आरम्भ किए। इस काम से इन्होंने 1600 पौंड कमाए।
बाद में इन्होंने जेम और चटनी बनाने का कारखाना खोला। इन वस्तुओं की स्थानीय खपत कम थी इसीलिए उन्होंने यह काम भी बंद कर दिया।
चूंकि इनका स्वास्थ्य बहुत खराब रहता था, इसलिए इन्होंने अपने एक मित्र के पास जाने का निश्चय कर लिया, जो त्रिनिदाद में रहता था। वहां के लोगों को बेचने के लिए वे अनेक वस्तुएं भी अपने साथ ले गए थे।
इस यात्रा के दौरान बेयर्ड के कुछ क्षण बड़े आनंद
से गुजरे। हुआ यह कि वह एक रेडियो केबिन में घुस गए और वहां के आपरेटर से मजाक करने लगे। आपसी बातचीत में इन दोनों ने बिजली द्वारा हवा से तस्वीरें भेजने की समस्या पर विचार किया।
सन् 1922 में जब वे वापस लंदन पहुंचे तो उनकी उम्र 34 वर्ष की हो चुकी थी। उनके पास इस समय कोई रोजगार नहीं था और पैसा भी बहुत कम था।
इन्हीं दिनों इनके मन में टेलीविजन के आविष्कार(invention of television) करने का विचार आया। इस समय तक विश्व में और भी लोग इस क्षेत्र में काफी प्रयोग कर चुके थे। बेयर्ड ने पहले सभी प्रयोगों के सम्बंध में जांचा-परखा फिर अपने उपकरण की रूपरेखा बनाई।
उन्होंने चाय का एक पुराना डिब्बा तथा टोप रखने का गत्ते का डिब्बा खरीदा । जिसमें से एक वृत्ताकार चकती (Disk) काटी। बिजली वाले कबाड़िये से एक पुरानी मोटर ली, जिसमें अनेक छेदों वाली यह चकती लगा दी।
जब यह चकती घूमती थी तो प्रकाशित किए जाने वाले समूचे दृश्य को अपने छेदों द्वारा तीव्र और मंद बिंदुओं में खंडित कर देती थी।
बिस्कुट के खाली डिब्बे में प्रोजैक्शन लैम्प लगा था।
सिलेनियम सैल, निऑन लैम्प रेडियो वाल्व आदि टूटे-फूटे उपकरणों की सहायता से उन्होंने अपना प्रयोग आरम्भ किया। बेयर्ड(john logie baird biography) कभी अपने उपकरण में कुछ जोड़ते तो कभी कुछ खोलते।
कभी कुछ बिगाड़ते तो कभी कुछ सुधारते महीनो तक बहुत मेहनत करने के बाद उनका प्रथम टेलीविजन ट्रांसमिटर और रिसीवर बना जो अभी बहुत ही प्रारम्भिक अवस्था में था।
काफी परीक्षण के बाद सन् 1924 के वसंत में वे एक माल्टिस क्रोस की छाया को तीन गज की दूरी तक प्रसारित करने में सफल हो गए।
बेयर्ड(About john logie baird)के पास धन नहीं था इसलिए अखबारों में इन्होंने विज्ञापन छपवाए। इन विज्ञापनों के फलस्वरूप उन्हें कुछ धनराशि प्राप्त हुई। सन् 1925 में, एक बहुत बड़े दुकानदार के मालिक का लड़का गोर्डन सैलफ्रिज उनसे मिलने आया ।
उसने भी इस कार्य के लिए उन्हें धन का प्रलोभन दिया। बेयर्ड ने उसकी दुकान में अपने कार्य का एक छोटा-सा प्रदर्शन किया। यह भी एक प्राथमिक कोटि का ही प्रदर्शन था, जिसमें धुंधली आकृतियां ही प्रेषित हो पाती थीं।
2 अक्टूबर, 1925 को बेयर्ड के जीवन की सबसे रोमांचकारी घटना घटी। उन्होंने अपने उपकरण में प्रकाश को विद्युत किरणों में बदलने के लिए एक नई चीज लगाई।
उन्होंने अपने उपकरण का स्विच दबाया तो उन्हें सहसा अपनी आंखों पर विश्वास न रहा। वे देखते क्या हैं कि उनके उपकरण में दृश्य का पूरा चेहरा उभर आया है।
इसे देखकर बेयर्ड(baird invention)उछल पड़े। इस प्रकार सन् 1925 में उन्होंने मानव के चेहरे का प्रसारण करने में सफलता प्राप्त की। सन् 1926 में लंदन के रॉयल इन्स्टीट्यूशन में उन्होंने चलते-फिरते टेलीविजन चित्रों के प्रेषण का प्रदर्शन किया।
सन् 1929 में जर्मन पोस्ट आफिस में टेलीविजन(television discoveries) सेवा विकसित करने के लिए उन्होंने सेवाएं प्रदान की। इससे पहले सन् 1928 में उन्होंने रंगीन टेलीविजन के प्रेषण पर भी प्रयोग करने आरम्भ कर दिए थे।
सन् 1936 में बी.बी.सी. ने टेलीविजन(television) सेवा बेयर्ड द्वारा विकसित उपकरण से आरम्भ कर दी थी। उन्हीं दिनों मारकोनी का तरीका भी विकसित हो चलाथा।
जॉन लॉगी बेयर्ड की मृत्यु-john logie baird death
बेयर्ड जीवनभर टेलीविजन(television) से सम्बंधित अनुसंधान करते रहे। पैसे के अभाव और खराब स्वास्थ्य होने पर भी जीवन के अंतिम वर्षों में सन् 1945 तक वे रंगीन टेलीविजन के क्षेत्र में काफी कार्य करते रहे। ठंड लग जाने के कारण तीन महीने बाद सन् 1946 में उनका देहांत हो गया।
उनके मरने के बाद उनकी याद में स्मृति स्तंभ बनाए गए और अनेकानेक तरीकों से श्रद्धांजलियां समर्पित की गई लेकिन दुर्भाग्य से वे जीवनभर संघर्ष ही करते रहे और अपने जीवनकाल में कोई सम्मान प्राप्त न कर पाए।
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