Jal pradushan nibandh-जल मानव जीवन का मुख्य आधार है। मानव को जीवित रखने के लिए वायु के बाद दूसरा स्थान जल का ही है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है और न ही इसका कोई विकल्प है।
आधुनिक समय में सिंचाई, जल-विद्युत उत्पादन, मत्स्यपालन, जल-यातायात तथा उद्योग आदि के लिए जल का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा जल का इस्तेमाल पीने, नहाने, भोजन बनाने, कपड़ा साफ करने आदि दैनिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। पृथ्वीतल का करीब 72% भाग जल से ढंका हुआ है। जल समुद्रों, नदियों, झीलों,तालाबों आदि में विद्यमान रहता है। पृथ्वीतल पर उपस्थित जलीय भाग को जलमंडल (hydrosphere) कहते हैं।
इसके अतिरिक्त, पृथ्वीतल के नीचे भी जल विद्यमान रहता है, जिसे भूमिगत जल(underground water) कहते हैं। यद्यपि पृथ्वीतल का करीब तीन-चौथाई भाग जल से ढंका हुआ है, तथापि मानव उपयोग के लिए यह तेजी से दुर्लभ होता जा रहा है। समस्त जल संसाधन का 97% भाग खारे जल या कठोर जल का है। 2% भाग बर्फ के रूप में दोनों ध्रुवों पर और बर्फ से ढंके पहाड़ों पर पाया जाता है। 1% भाग ही मीठे जल या मृदु जल के रूप में उपलब्ध है और यही जीवन, विकास और पर्यावरण को कायम रखे हुए है।
जल प्रदूषण(jal pradushan kise kahate hain)
आधुनिक समय में तकनीकी विकास के कारण जल का उपयोग सिंचाई, जल-विद्युत उत्पादन, मत्स्यपालन, जल-यातायात तथा उद्योग आदि के लिए किया जा रहा है। आज जल की खपत मानव की प्रगतिशीलता का द्योतक बन गया है।
फलतः, जल की माँग में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है, साथ ही जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट भी आ रही है दिन-प्रतिदिन जल प्रदूषित होता जा रहा है। भारत में उपलब्ध कुल जल का लगभग 70% जल प्रदूषित है। प्राकृतिक या मानव-जनित कारणों से जल की गुणवत्ता में गिरावट को जल प्रदूषण(water pollution) कहा जाता है।
जल प्रदूषण के कारण(jal pradushan ke karan)
- जल का प्रदूषण कृषि-क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से होता है। वर्षा-जल इन रसायनों को अपने में घुलाकर समीप में स्थित झीलों, तालाबों तथा नदियों में पहुँचा देता है, जिससे इनका जल भी प्रदूषित(water pollution)हो जाता है। रासायनिक उर्वरकों में मुख्य रूप से यूरिया (NH2,CONH2,), अमोनियम सल्फेट [(NH4)2, SO4] आदि का.प्रयोग होता है। जल में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ने से जल में शैवाल (algae) की वृद्धि होती है।
शैवाल के मरने पर यह बैक्टीरिया द्वारा सड़ता है। इस सड़न (decay) प्रक्रिया में जल में घुले ऑक्सीजन का उपयोग होता है, जिससे जल में घुले ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। सड़न प्रक्रिया में कार्बनिक पदार्थों को ऑक्सीकृत (विघटित) करने में लगे ऑक्सीजन की मात्रा को बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड(biochemical oxygen demand, BOD) कहते हैं। जल में ऑक्सीजन की मात्रा घटने से जीव-जंतुओं की मृत्यु हो जाती है।
- नगरीय क्षेत्रों से सीवेज, भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा,में अवस्थित कारखानों के गंदे जल की नालियों से, जल का प्रदूषण(jal pradushan) होता है। प्रदूषित जल के सेवन से हैजा, पीलिया, टायफायड आदि रोग होते हैं।
- विभिन्न कारखानों से निकलनेवाले रासायनिक प्रदूषक तथा कई प्रकार के धात्त्विक पदार्थ, जैसे सीसा (Pb) और मरकरी (Hg) आदि नदियों, झीलों एवं तटीय सागर के जल को प्रदूषित(water pollution) करते हैं। जल में उपस्थित सीसा तथा मरकरी एन्जाइम से अभिक्रिया कर एन्जाइम की कार्य-क्षमता को कम करता है, जिससे कई बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। सीसा तंत्रिका तंत्र (nervous system)को भी प्रभावित करता है।
- समुद्र में खनिज तेल के उत्पादन से, खुदाई से एवं अन्य विभिन्न दुर्घटनाओं से जल में तेल का फैलाव बढ़ता जा रहा है तथा समुद्री जल प्रदूषित(water pollution) होता जा रहा है, जिससे अधिकांश समुद्री जीव मर जाते हैं।
- आणविक एवं नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग से रेडियोसक्रिय पदार्थ जल को प्रदूषित कर देते हैं।
जल प्रदूषण का नियंत्रण(jal pradushan rokne ke upay)
जल जीवनदायी है, लेकिन धीरे-धीरे प्रदूषण के कारण यह मृत्यु का कारण बनता जा रहा है। अत:, हमें इसे दूषित होने से बचाना है, जिसके लिए निम्नांकित उपाय अपेक्षित हैं।
- हर व्यक्ति को घरों से निकलनेवाले कचरे को निर्धारित स्थानों पर फेंकना चाहिए।
- कारखानों से निकलनेवाले गंदे जल को बिना शोधित किए नदियों, झीलों या तालाबों में विसर्जित नहीं करना चाहिए।
प्रकृति में जल के स्रोत(Natural source of water)
द्रव के रूप में जल प्रकृति में वर्षा-जल, सतही जल और भूमिगत जल के रूप में पाया जाता है।
वर्षा-जल(Rainy water)
भारत में कुल वर्षा 3.7 x 1012 घन मीटर प्रतिवर्ष होती है। इसका लगभग 80% अंश दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण होता है, जो चार माह की अवधि में ही इतना जल दे देता है। वर्षा-जल स्वच्छ वायु में शुद्ध होता है।
सतही जल(Surface water)
वर्षा का जल पृथ्वीतल पर गिरता है और तालाबों, झीलों, एवं नदियों को भरता है। नदियाँ समुद्रों में आकर गिरती हैं। समुद्र जल का विशाल भंडार है। समुद्र-जल में अन्य जल की तुलना में घुले हुए लवणों (विशेषकर साधारण लवण) का अनुपात काफी अधिक रहता है।
भूमिगत जल(Spoil water)
वर्षा का जल(water pollution) प्राकृतिक रूप से रिसकर मिट्टी में समा जाता है और जमीन की निचली परत में स्वत: ही सुरक्षित हो जाता है, जिसे हम भूमिगत जल कहते हैं। चूँकि यह जल पृथ्वी के सछिद्र तलों से छनकर आता है, अत: इसमें निलंबित अपद्रव्य नहीं पाए जाते और इसका उपयोग पीने के लिए किया जाता है। नलकूप द्वारा भूमिगत जल को पृथ्वी तल के ऊपर लाया जाता है।
जल का महत्त्व(Benefit of water)
- जैविक प्रक्रियाओं में-जल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, जो जीवन को स्थल पर निर्धारित करता है। हम जानते हैं कि पशुओं और पौधों की कोशिकाओं में जल प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहता है। जल की अनुपस्थिति में ये कोशिकाएँ जीवित नहीं रह सकती हैं।
- मानव जीवन के लिए-मानव शरीर में होनेवाली विभिन्न प्रक्रियाओं (पाचन-क्रिया, रक्त-संचार आदि) के लिए जल परम.आवश्यक है। हमारे भोजन में उपस्थित लवण और पौष्टिक पदार्थ जल में आसानी घुल जाते हैं। बाद में शरीर इन्हें अवशोषित कर लेता है।
रक्त, जिसमें जल की प्रधानता रहती है, घुले हुए पदार्थों को शरीर की कोशिकाओं (cells) तक पहुँचाने का कार्य करता है। इसलिए जीवित प्राणी जीवित रहने के लिए अपने शरीर में जल की मात्रा को संतुलित बनाए रखता है। यह शरीर के ताप को संतुलित रखता है।
- पौधों के लिए-पौधों के लिए भी जल उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि अन्य जीव-जंतुओं के लिए। बीजों के अंकुरण (germination) और पौधों की वृद्धि में जल अतिसहायक होता है। हरे पौधे प्रकाशसंश्लेषण प्रक्रिया द्वारा अपना भोजन (ग्लूकोस) स्वयं तैयार करते हैं।
सूर्य-प्रकाश
—->6H2O + 6CO2———>C6H12O6 + 6O2
मिट्टी और उर्वरक में उपस्थित पौष्टिक तत्त्वों को जल घुला लेता है जिसे पौधे आसानी से अवशोषित कर लेते हैं। जीवन को स्थल पर निर्धारित करने में जल की उपलब्धता के साथ-साथ तापमान और मिट्टी की प्रकृति भी महत्त्वपूर्ण होती है।
नदी,तालाब या झील के समीप पाए जानेवाले विभिन्न पौधों और जंतुओं की संख्या ज्यादा होती है। उपयोगी पेड़-पौधे मरुभूमि में नहीं पाए जाते, सिर्फ काँटेदार पौधे (कैक्टस) ही पाए जाते हैं।
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