- जन्म-31 जुलाई, 1800
- जन्म स्थान-फ्रैंकफर्ट
- निधन-23 सितम्बर, 1882
इस महान वैज्ञानिक ने प्रयोगशाला में कृत्रिम यूरिया (Artificial urea)का निर्माण करके सबको चकित कर दिया। इनकी प्रेरणा से ही एल्यूमीनियम बनाने का मार्ग खोजा गया।
फ्रीड्रिख वायलर का जन्म -Biography of Friedrich Wöhler
फ्रीड्रिख वायलर (Friedrich Wöhler )का जन्म जर्मनी में फ्रैंकफोर्त-अम्मेन के निकट एक गांव में हुआ था। बालक की आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। घर में पिता से शिक्षा लेते हुए ही वायलर की अभिरुचि खनिजों में तथा रसायन में उत्पन्न हुई ।
सौभाग्य से घर पर ही एक अच्छा पुस्तकालय भी था और एक निजी रासायनिक प्रयोगशाला भी थी। बालक वायलर(about Friedrich Wöhler) यहां वोल्टाइक पाइलें बनाता रहता और तरह-तरह के रासायनिक परीक्षण करता रहता, इनमें कुछ परीक्षण तो ऐसे होते जिनमें जान चली जाने का खतरा रहता था।
बीस वर्ष की आयु में जब वायलर मारबुर्ग विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुए, उनका जीवन-ध्येय एक डॉक्टर बनना था। कुछ होनहार ही था कि उन्होंने अपने अध्ययन के लिए शुरू से ही पेशाब को चुन लिया, यह कि शरीर में संचित गंद किस प्रकार एक ‘उपयोगी द्रव्य’ बन जाता है। और, साथ ही साथ, वे रसायन शास्त्र का अध्ययन भी करते रहे जिसके लिए उनका आवास एक छोटी-सी प्रयोगशाला बन गया।
किंतु होटल के अधिकारियों ने इसे अपनी अवहेलना समझा। एक सख्त झाड़ पड़ी, और वायलर (about Friedrich Wöhler )ने वह स्थान छोड़ दिया। चिकित्सा सम्बंधी अपनी इस शिक्षा का दीक्षान्त उन्होंने अस्पताल में हाउस-सर्जन या फिजीशियन बनने की बजाय स्टाकहोम के प्रसिद्ध रसायनशास्त्री बेर्जेलियस की छत्रछाया में कुछ अनुसंधान करके ही किया।
फ्रीड्रिख वायलर का विज्ञान के क्षेत्र मे योगदान -what did friedrich wöhler discover
स्टाकहोम में रहते हुए वायलर ने नाइट्रोजन, कार्बन, सिल्वर और ऑक्सीजन के एक नए यौगिक सिल्वर सायनेट के निर्माण में सफलता प्राप्त की। इस खोज को प्रकाशित किया गया।
एक और अन्य जर्मन रसायन शास्त्री युस्तस लीबिश ने वायलर(Friedrich Wöhler ) की इस खोज से प्रेरणा पाकर एक नया यौगिक तैयार किया। उसका यह यौगिक वायलर के सिल्वर सायनेट के जैसा ही था। अवयवों के तत्त्व वही, अनुपात भी वही, किंतु फिर भी कहीं कुछ अंतर रह गया लगता था। दो द्रव्य जिनकी रासायनिक रचना(chemical structure) तो वही थी किंतु प्रतिक्रियाएं भिन्न थीं!
यह एक बड़ी ही महत्त्वपूर्ण खोज थी। तब तक रासायनिक लोग किसी भी समास को गणित के सूत्र में अर्पित करके अपनी इतिकर्तव्यता समाप्त समझ लेते थे किंतु अब स्पष्ट था कि यह सूत्रार्पण ही पर्याप्त नहीं है।
वायलर (Friedrich Wöhler) ने समस्या पर बेर्जेलियस के साथ मिलकर इसका विमर्श किया, और एक नई परिभाषा उसके परिणामस्वरूप सामने आई—’आइसोमर’। वे यौगिक जिन के कणों में अवयव-तत्त्वों के अणु एक ही अनुपात में, किंतु भिन्न व्यवस्था क्रम में आते हैं रसायनशास्त्र में आइसोमर (‘समावयवी’) कहलाते हैं।
इस एक खोज के फलस्वरूप एक रासायनिक विश्लेषण-सूत्र के प्रसंग से दो युवा वैज्ञानिकों में (लीबिश 21 का था, और वायलर 23 का) आजीवन मैत्री हो गई।
अब से वे हर काम में परस्पर सहयोगी ही होते। लीबिश तो पहले से ही ग्नीरसेन विश्वविद्यालय में रसायन का प्रोफेसर था। स्वीडन से वापसी पर वायलर को भी बर्लिन के एक ट्रेंड स्कूल में कुछ अध्यापन कार्य मिल गया।
अब भी सायनेट्स के सम्बंध में वायलर के परीक्षण खत्म नहीं हुए थे। उन्होंने पोटैशियम सायनेट बना भी लिया और तभी पोटैशियम सायनेट का अमोनियम सल्फेट के साथ परीक्षण करते हुए उसके जीवन का वह महान अंवेषण जैसे अवतरित हो आया ।
मिश्रण में से सूचिका-जैसे अमोनियम सायनेट के टूटकर निकले–अर्थात यूरिआ, जिसका निर्माण किसी भी प्रयोगशाला में पहले कभी नहीं हो सका था और इन स्फटिकों ने मनुष्य जाति के सम्मुख जैसे एक बिल्कुल ही नई दुनिया खोलकर रख दी। यह पहला मौका था जब इन्सान ने एक ऐसे यौगिक की रचना खुद अपनी प्रयोगशाला में कर दिखाई थी जो पहले जीवित प्राणियों के शरीर में ही सम्भव समझी जाती थी।
कृत्रिम यूरिया की खोज -friedrich wöhler urea invention
1828 में फ्रीड्रिख वायलर (friedrich wöhler) ने जब कृत्रिम यूरिया तैयार कर दिखाया तो उसने विज्ञान की एक नई शाखा का ही प्रवर्तन कर दिखाया था जिसे हम आज ‘ऑर्गेनिक कैमिस्ट्री’ या कार्बनिक रसायन कहते हैं।
वायलर यदि ऑर्गेनिक कैमिस्ट्री अथवा कार्बन रसायन का जनक(father of organic chemistry) न भी होते तो भी उनके एक मान्य रसायनशास्त्री होने में उससे जरा भी अंतर नहीं आता। 1827 में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने एल्यूमीनियम को पृथक् कर दिखाया था।
वायलर के ऋण का मूल्यांकन हमारे लिए कर सकना कठिन है। यूरिआ,(friedrich wöhler urea) वह द्रव्य जो उन्होंने अपनी परीक्षणशाला में तैयार करके दिखा दिया था, आज इसका प्रयोग व्यापक पैमाने पर गोंद वगैरह में और खेती-बाड़ी में कृत्रिम द्रव्यों के निर्माण में और साज-सिंगार की चीजों में, दवाइयों में और मिश्रणों में, प्लास्टिकों और टैक्स्टाइलों आदि में इस्तेमाल होता है।
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