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जल प्रदूषण क्या है। परिभाषा,उपयोग और कारण के बारे मे जाने-Everything about water pollution in hindi

आज मनुष्य प्रगति की सर्वोत्तम ऊंचाई पर आ खड़ा हुआ है जब तक यह प्रकृति के कार्य में बाधा नहीं डालता तब तक इसका जीवन स्वाभाविक गति से चलता है अब जैसे-जैसे हम विकास की ओर आगे बढ़ रहे हैं प्रकृति से हमारा तालमेल समाप्त होता जा रहा है। आज प्रकृति में जल प्रदूषण(water pollution in hindi) इतनी तेजी से बढ़ता जा रहा है कि यह एक दिन खतरे की घंटी बन जाएगा। आज के इस आर्टिकल में हम जल प्रदूषण से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में जानेंगे

जल प्रदूषण क्या है-What is water pollution in hindi

जल प्रदूषण की समस्या वास्तव में कोई नई समस्या नहीं है लेकिन धरती पर जल प्रदूषण की समस्या लगातार बढ़ती ही जा रही है जल प्रदूषण का मतलब “जब जल में उपस्थित रसायनिक भौतिक और जैविक विशेषता बिगड़ जाएं तब हम उसे प्रदूषित जल कहते हैं”

जल प्रदूषण के कारण-Causes of water pollution in hindi

पृथ्वी पर उपस्थित पीने योग्य जल धीरे-धीरे प्रदूषित होता जा रहा है। जल प्रदूषण के कुछ मुख्य कारणों के बारे में जानें।

1)औद्योगिकरण-

बड़ी-बड़ी कंपनियों या कारखाना से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ को नदियों, तालाबों आदि में बहा दिया जाता है। यह अपशिष्ट पदार्थ पूरे नदी के पानी को खराब कर देते हैं जिसे पीने से स्वास्थ्य संबंधित बहुत सी बीमारियां उत्पन्न हो जाती है।

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2) जनसंख्या-

जिस प्रकार पूरी दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है दिन प्रतिदिन जल की आपूर्ति भी बढ़ती जा रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण जल प्रदूषण भी दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है। और अगर अभी इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन हमारे पास अथह महासागर होते हुए भी जल आपूर्ति की कमी हो जाएगी।

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3)उर्वरकों का प्रयोग-

दिन प्रतिदिन खेतों में उर्वरकों का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग किया जा रहा है। जिससे यह रासायनिक यौगिक मिट्टी में मिलकर जमीन द्वारा सोख लिए जाते हैं। और जल प्रदूषण का कारण बनते हैं। अत्यधिक मात्रा में इनका प्रयोग करने से जल में इनकी मात्रा बढ़ने लगती है इस दूषित जल को पीने से तरह-तरह की बीमारियां हो सकती हैं।

3)प्लास्टिक-

जल प्रदूषण में प्लास्टिक का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है क्योंकि समय के साथ यह जल्दी नष्ट नहीं होते हैं। यह विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थों से मिलकर बने होते हैं। जो जल के अणु के साथ मिलकर उसकी स्ट्रक्चर में धीरे-धीरे बदलाव करते हैं। और उसे दूषित कर देते हैं।

4)वनों की कटाई-

औद्योगिकरण के इस दौर में मनुष्य के रहने के लिए, सड़क निर्माण के लिए, रेल की पटरी बिछाने के लिए बड़े-बड़े जंगलों को काटा जा रहा है। वनो की कटाई का सीधा असर हमारे वायुमंडल पर पड़ता है। जिससे वर्षा दर में कमी आती है। अब इस कम वर्षा के कारण हमारा जल चक्र खराब हो जाता है। जो जल प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण कारण बनता है।

जल प्रदूषण पर नियंत्रण-How to control water pollution in hindi

भारत सरकार ने जल प्रदूषण को रोकने के लिए सन 1974 में जल प्रदूषण अधिनियम लागू किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जल का ph मान 2 से 8.5 के बीच होना चाहिए।

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वर्तमान समय में तेजी से हो रहे औद्योगिक विकास, जनसंख्या में वृद्धि, जल स्रोतों का दुरुपयोग, वर्षा की मात्रा में कमी इन सभी कारणों से जल प्रदूषण ने एक विकराल रूप धारण कर लिया है। अब हमें जल प्रदूषण को रोकने के लिए इन चीजों पर रोक लगानी चाहिए। और जल प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए।

जल संरक्षण के उपाय-Water conservation in hindi

प्राचीन काल से ही मनुष्य पीने तथा सिंचाई के लिए जल भंडार तलाब बनाता आ रहा है। गांव में एक या अनेक तालाब साझे के होते थे। स्त्रियों को दूर से जल ढोकर लाना पड़ता था। उस समय जल बहुत ही सीमित मात्रा में था जिस कारण जल का दुरुपयोग नहीं किया जाता था तथा तथा घरों में जल संरक्षण के बड़े अच्छे प्रयास किए गए थे। आज हम कुछ ऐसे ही जल संरक्षण प्रयासों के बारे में जानेंगे।

वर्षा जल का संचय(Harvesting of water in hindi)-

जनसंख्या में वृद्धि और विकास के इस दौर में शुद्ध भूमिगत जल भंडारों में कमी आ गई है। जिसके कारण अधिकांश बड़े शहरों में जलापूर्ति की समस्या बढ़ती ही जा रही है इन क्षेत्रों में मृदु जल,सतही जल के साथ-साथ भूमिगत जल का भी दोहन तेजी से किया जा रहा है। जिसके कारण भूमिगत जल स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है।

इस भूमिगत जल की भरपाई वर्षा जल से होती है अतः में वर्षा जल का अधिक से अधिक संचयन करके उपयोग करना चाहिए ताकि भूमिगत जल का स्तर बना रहे।

वर्षा जल संचयन की व्यवस्था-

प्राचीन समय से मनुष्य छोटे-छोटे मिट्टी के बांध बनाकर या छत पर वर्षा जल का संचयन तंत्र लगाकर जल का संचयन करते आ रहे हैं। भारत में जल संचयन की प्राचीन विधि को अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

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इन सब में मकान से गिरने वाले जल का संचयन एक पुरानी विधि है। इस विधि में एक लंबे बॉस को बीच से चीरकर खुले नाली का स्वरूप दिया जाता है। वर्षा का जल छत के तीरछे सतह पर गिरकर बांस की नली से होकर संचयन पात्र में एकत्रित हो जाता है।

शहरों में खुले रिक्त स्थानों की कमी होती है जल संचयन की प्रारंभिक विधि में जल जमीन की सतह के नीचे रखा जाता है। इस भूमिगत जल के अनेक लाभ है। इसके अंदर जल वाष्पीकृत नहीं होता है। भूमिगत जल फेलकर कुएं के जल को परिपूर्ण बनाते हैं तथा खेतों में नमी बनाए रखते हैं। यह भूमिगत जल मनुष्य तथा जानवरों द्वारा दूषित नहीं होते है।

छोटे स्तर पर जल प्रबंधन के अनेक उपाय हैं जैसे-बाढ़ के जल को रोकने के लिए तटबंध बनाना।

जल प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव-Adverse effects of water pollution in hindi

1) विशाक्त रसायनों से दूषित जल के कारण जलीय पौधे और उनको पीने वाले जंतुओं की मृत्यु हो जाती है।
2) पारायुक्त जल पीने से मीनेमेटा रोग हो जाता है।
3) जल में नाइट्रेट की अधिकता होने के कारण “ब्लू बेबी सिंड्रोम” तथा केडियम की अधिकता से इटाई इटाई रोग हो जाता है।
4) दूषित जल पीने से कई प्रकार के संक्रमण रोग जैसे पीलिया, हैजा, तपेदिक, अतिसार आदि बीमारियां हो जाती हैं।

ये article ” जल प्रदूषण क्या है। परिभाषा,उपयोग और कारण के बारे मे जाने-Everything about water pollution in hindi ” पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया. उम्मीद करता हुँ. कि इस article से आपको बहुत कुछ नया जानने को मिला होगा

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