विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की परिभाषा- “किसी बंद कुंडली और चुंबक के बीच सापेक्षिक गति के कारण कुंडली में विद्युत वाहक बल के प्रेरित होने की घटना को विद्युत चुंबकीय प्रेरण(Electro magnetic induction in hindi) कहा जाता है”
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की खोज-Electro magnetic induction Discovery in hindi
ओस्टेंड (oersted) ने 1832 में यह निष्कर्ष निकाला कि जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर एक चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है।
विद्युत धारा के इस चुम्बकीय प्रभाव से प्रभावित होकर फैराडे(Faraday) ने विचार प्रस्तुत किया कि इसका विपरीत प्रभाव भी सम्भव है अर्थात् चुम्बकीय क्षेत्र(Electro magnetic induction) से विद्युत धारा भी उत्पन्न हो सकती है।
अपने प्रयोगों से फैराडे ने यह निष्कर्ष निकाला कि जब किसी चुम्बक को, किसी धारा मापी से जुड़ी कुण्डली के पास लाते हैं, या दूर ले जाते हैं तो धारामापी में विक्षेप होता है।कुण्डली में एक विद्युतवाहक बल उत्पन्न होता है जिससे धारा प्रवाहित होती है ।
धारा मापी में विक्षेप तभी तक होता है जब तक चुम्बक गतिशील रहता है । चुम्बक को स्थिर कर देने पर धारामापी में विक्षेप बन्द हो जाता है। चूंकि कुण्डली में कोई अन्य विद्युत स्रोत नहीं जुड़ा है,
इसमें धारा चुम्बक के गति के कारण ही उत्पन्न होती है। धारामापी में विक्षेप केवल चुम्बक की गति के कारण ही नहीं होता। चुम्बक को स्थिर करके कुण्डली को चुम्बक से दूर ले जाने या पास लाने से भी धारामापी में विक्षेप होता है।
धारामापी में हुआ विक्षेप चुम्बक व कुण्डली के बीच आपेक्षिक गति (relative motion) पर निर्भर करता है। इससे फैराडे ने निष्कर्ष निकाला कि जब किसी कुण्डली व चुम्बक के बीच आपेक्षिक गति होती है तो कुण्डली में एक विद्युत वाहक बल(electromotive force) उत्पन्न हो जाती है जिसे प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते हैं।
इस विद्युत वाहक बल के कारण कुण्डली में एक धारा बहती है जिसे प्रेरित धारा कहते हैं। इस घटना को ही विद्युत चुम्बकीय प्रेरण(Electro magnetic induction in hindi) कहते हैं।
फैराडे के वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी प्रथम नियम- Faraday First Law of Electromagnetic Induction in hindi
जब किसी परिपथ के चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो परिपथ में एक प्रेरित वैद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। यदि परिपथ एक बन्द परिपथ है तो इसमें एक धारा प्रवाहित होती है जिसे प्रेरित धारा कहते हैं। यह धारा केवल तभी तक बहती है जब तक चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है।
फैराडे के वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी द्वितीय नियम-Faraday Second Law of Electromagnetic Induction in hindi
प्रेरित वैद्युत वाहक बल, फ्लक्स परिवर्तन की ऋणात्मक दर के बराबर होता है।
•यदि dt समय में फ्लक्स परिवर्तन dp हो तो प्रेरित वैद्युत वाहक बल =-dp/dt जहाँ ऋणात्मक चिन्ह लेंज के नियम को प्रदर्शित करता है।
लेंज का नियम (Lenz’s law in hindi)-
लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण को प्रदर्शित करता है। इसके अनुसार किसी परिपथ में प्रेरित धारा की दिशा सदैव इस प्रकार होती है, कि वह कारण का विरोध करती है जिसके कारण वह उत्पन्न होती है।
चुम्बकीय क्षेत्र में प्रेरित विभवान्तर–
जब कोई चालक किसी चुम्बकीय क्षेत्र में, चुम्बकीय फ्लक्स रेखाओं को काटते हुए गति करता है तो उसके सिरों के बीच एक प्रेरित विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है।
यदि L लम्बाई का कोई चालक, v वेग से, किसी चुम्बकीय क्षेत्र B में, क्षेत्र की दिशा मे θ कोण पर गति करे तो उसके सिरोंके बीच प्रेरित विभवान्तर
•e = BVL sinθ
पृथ्वी पर चलती हुयी रेलगाड़ी, इसके चुम्बकीय क्षेत्र के उर्ध्व घटक (vertical component) की फ्लक्स रेखाओं को काटती है। जिससे धुरी के बीच एक प्रेरित विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है।
नीचे उतरते समय यदि हवाई जहाज के पंखे पूर्व-पश्चिम दिशा में हो तो यह क्षैतिज घटक (horizontal component) को काटता है।
अन्योय प्रेरण (Mutual induction in hindi)-
जब पास-पास स्थित दो कुण्डलियों में से किसी एक में प्रवाहित धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है तो दूसरी कुण्डली में एक धारा प्रवाहित होने लगती है। इस घटना को ही अन्योन्य प्रेरण कहते हैं। अन्योन्य प्रेरण, वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण(Electro magnetic induction in hindi)की घटना पर आधारित है ।
स्वप्रेरण (self-induction in hindi)—
जब किसी कुण्डली में प्रवाहित मुख्य धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है तो कुण्डली में मुख्य धारा के अतिरिक्त एक प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है ।
इस प्रेरित धारा की दिशा सदैव इस प्रकार होती है कि वह मुख्य धारा में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है। इस घटना को स्वप्रेरण कहते हैं। स्वप्रेरण भी वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण की घटना पर आधारित है।
भंवर धारायें (Eddy current in hindi)—
जब कोई चालक किसी परिवर्ती (variable) चुम्बकीय क्षेत्र में गति करता है तो उसके सम्पूर्ण आयतन में प्रेरित धारायें उत्पन्न हो जाती हैं। ये धारायें चालक की गति का विरोध करती हैं। इन्हें ही भंवर धारायें कहते हैं। इनके कारण ऊर्जा का अनावश्यक ह्रास होता है।
भवर धाराओं को क्षीण करने के लिये ही ट्रॉसफार्मर, मोटर आदि क्रोड (laminated) बनायी जाती है। इससे प्रतिरोध बढ़ जाता है व भंवर धाराओं का प्रभाव कम हो जाता है।
विद्युत रेलगाड़ियों में पहिये की धुरी के साथ एक ड्रम लगा रहता है जो पहिये के साथ घूमता है। जब ब्रेक लगाने होते हैं तो ड्रम पर एक प्रबल चुम्बकीय क्षेत्र(Electro magnetic induction in hindi) लगा दिया जाता है जिससे ड्रम में भंवर धारायें उत्पन्न हो जाती हैं और ड्रम पहिये को रोक देता है।
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