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अलैक्जेंडर फ्लेमिंग की जीवनी हिंदी-Biography of Alexander Fleming in hindi

  • जन्म-6 अगस्त, 1881
  • जन्म स्थान-लॉक फील्ड फार्म, स्कॉटलैंड
  • निधन-11 मार्च, 1955
  • निधन स्थान-लंदन

इस महान वैज्ञानिक ने पेनिसिलिन का आविष्कार करके मानवता को संक्रामक रोगों की भयानकता से मुक्त किया। इन्हीं की बदौलत आज करोड़ों जिंदगियां बचाई जा सकी हैं।

अलैक्जेंडर फ्लेमिंग का जन्म-Biography of Alexander Fleming in hindi

अलैक्जेंडर फ्लेमिंग का जन्म लॉक फील्ड फार्म पर दक्षिण-पश्चिमी स्कॉटलैंड में 6 अगस्त, 1881 में हुआ था। इनके पिता का नाम हफ फ्लेमिंग था।

अलैक्जेंडर फ्लेमिंग बहन-भाइयों में वे सबसे छोटे थे। अभी वह आठ साल के ही थी उनके पिता की मृत्यु हो गयी परन्तु उनकी मां एक जिंदादिल तबीयत की महिला थीं।

एक बार के लिए तो लगा कि फ्लेमिंग(Alexander Fleming family) परिवार मुखिया के मर जाने से बिखर जायेगा लेकिन उन्होंने बड़ी आसानी से परिवार को सम्भाल लिया।

वही खेती-बारी की देखभाल भी करने लगीं और उन्हीं की बदौलत इतने बड़े परिवार में प्रेमभाव यथावत बना रहा। उनके तीन सौतले पुत्र भी उनके प्रति उतने ही प्रेम रखते थे जितने उनके सगे चार पुत्र।

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अलैक्जेंडर(Alexander Fleming hindi ) की प्राथमिक शिक्षा लूइन मूर स्कूल में सम्पन्न हुई। उसके बाद उन्हें डार्वेल स्कूल में दाखिल करा दिया गया। यहीं उनके बड़े भाई शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।

उनके शुरुआती दिन काफी संघर्ष पूर्ण थे। स्कूल जाते वक्त उन्हें चार मील पैदल पहाड़ी पर चढ़ना-उतरना पड़ता था। परंतु इस दैनिक पैदल यात्रा ने उन्हें प्रकृति को काफी करीब से देखने और परखने का मौका दिया।

उनकी बुद्धि काफी कुशाग्र थी। बारह साल का होते-होते उन्हें किलमरनॉक एकेडमी भेज दिया गया। धीरे-धीरे उनकी पारिवारिक स्थिति उन्नत हुई। दो बड़े भाई जॉन और हाबर्ड सबसे बड़े भाई टॉमस के साथ नेत्र-चिकित्सा का कार्य कर रहे थे।

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उन्होंने चश्मे का एक कारखाना भी खोल लिया था अलेक्जेंडर ने चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करने का निश्चय किया।

स्कूल के रिकाडों में आज भी दर्ज है कि वे अपने समय में अपनी श्रेण में सदैव प्रथम रहे। पढ़ाई लिखाई के अतिरिक्त और कार्यों में भी उनकी दिलचस्पी कम नहीं थी।

वे राइफल टीम के मेम्बर थे तो स्विमिंग और वाटर पोलो भी उनके शौक में शामिल थे। यही नहीं बल्कि शौकिया नाट्य-प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए भी वे वक्त निकाल लिया करते।

पेनिसिलिन का अविष्कार-Alexander fleming penicillin discovery

वे विश्व के पहले वैज्ञानिक थे, जिन्होंने सन् 1928 में पेनिसिलिन का आविष्कार करके संक्रामक रोगों से लड़ने और उन पर काबू पाने का रास्ता दिखाया।

स्कॉटलैण्ड में जन्मे इस वैज्ञानिक ने सन् 1906 में सेंट मैरी हास्पिटल मैडिकल स्कूल से डिग्री प्राप्त करने के बाद प्रतिजीवी (Anti-bacterial) पदार्थों पर काम करना आरम्भ किया।

इसके बाद वे रॉयल आर्मी मैडिकल कॉप्स में चले गए प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर सन् 1918 में वे फिर सेंट मैरी मैडिकल स्कूल लौट आए। सन् 1928 की बात है कि जब वे रोगों के जीवाणुओं के साथ कुछ प्रयोग कर रहे थे तो आकस्मिक रूप से उन्होंने पेनिसिलिन (penicillin Discovery in hindi) जैसी जीवनदायी औषधि का आविष्कार कर डाला।

पेनिसिलिन के आविष्कार(penicillin Discovery)की कहानी बड़ी दिलचस्प है। फ्लेमिंग अपने प्रयोगों के लिए एक पैट्रीडिश काम ला रहे थे। एक दिन फोड़ों प्राप्त पीप में मौजूद जीवाणुओं पर प्रयोग करते समय प्रोफेसर फ्लेमिंग ने एक आश्यर्चजनक बात देखी।

उन्होंने देखा कि पैट्रीडिश में पड़ी जैली में फंफूद उग आई थी। जहां पर भी यह फंफूद उगी थी, वहां सभी बैक्टीरिया(Bacteria) मर गए थे। इस फंफूद का जन्म शायद हवा में उड़ कर आए हुए उन बीजाणुओं से हुआ था जो उनकी प्रयोगशाला में खुली खिड़की से प्रवेश करके खुली पैट्रीडिश पर जम गए थे।

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उन्होंने इस फंफूद का पता लगाया और पाया कि यह पेनिसिलियम नोटाङम (Penicillium Notadum) थी। यह फंफूद परिवार की एक विरल किस्म थी।

इस अकस्मात हुई घटना को फ्लेमिंग(Alexander Fleming biography hindi)ने कई बार दोहराया। सबसे पहले उन्होंने पेनिसिलियम की उस विरल किस्म के नमूने उगाये। फिर उस फंफूदी से निकाले गए रस द्वारा रोग जीवाणुओं पर प्रभाव का अध्ययन किया।

प्रयोग को कई प्रकार के जीवाणुओं के साथ दोहराकर उन्होंने पता लगाया कि इस फंफूद से निकले रस का
रोग-जीवाणुओं पर घातक प्रभाव पड़ता है। वे इस रस से मर जाते हैं।

यह अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण आविष्कार था क्योंकि उन्होंने एक ऐसा द्रव प्राप्त कर लिया था, जो रोगाणुओं को पैदा होने से रोकता था। चूंकि यह रस पेनिसिलियम (Penicillium invention hindi) फंफूद से प्राप्त किया गया था इसलिए इसका नाम पेनिसिलिन रखा। फ्लेमिंग ने पेनिसिलिन(Penicillin)घोल के साथ अनेक प्रयोग किए।

उन्होंने पाया कि इस घोल को हलका कर लेने पर भी इसका प्रभाव जीवाणुओं पर पड़ता है। अपने प्रयोगों के दौरान उन्होंने देखा कि पेनिसिलिन एक विचित्र पदार्थ है, जो प्रयोग करते समय दूसरे पदार्थ में बदल कर स्वयं प्रभावहीन हो जाता है।

इसके इस गुण विशेष के कारण कई वर्षों तक इसके
अध्ययन में प्रगति न हो पाई। अंत में इस समस्या का समाधान किया सन् 1938 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हॉवार्ड फ्लोरे (Howard Florey) और अर्नस्ट चेन (Ernest Chain) ने। उन दोनों ने एक जटिल प्रक्रम द्वारा इस औषधि को स्थिर कर दिया।

इस प्रक्रम को ‘फ्रीज ड्राइंग’ (Freeze Drying) कहते हैं। सन् 1941 के अंतिम दिनों में फ्लेमिंग अमरीका गए और वहां उन्होंने पेनिसिलिन (penicillin meaning in hindi) को अलग करने की विधि के विषय में अनेक वैज्ञनिकों से विचार-विमर्श किए।

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अमरीका के औषधि निर्माताओं ने इस दिशा में उन्हें भरपूर सहयोग किया। अनेक महीनों की सक्रियता और प्रयासों के बाद पेनिसिलिन(penicillin in hindi)को बहुत अधिक मात्रा में पृथक करने की विधि मालूम कर ली गई। शीघ्र ही इस औषधि का निर्माण और प्रयोग विस्तृत रूप से होने लगा।

देखते ही देखते यह औषधि चिकित्सा जगत की
रीढ़ बन गई। डिपथीरिया, निमोनिया, रक्त विषाक्तता, गले का दर्द, फोड़े और गम्भीर घावों के लिए पेनिसिलिन(penicillin) को आदमी के खून में इन्जेक्ट किया जा सकता है। सामान्यतः ऑपरेशन के समय सर्जन इसे रोगियों को देते हैं

पेनिसिलिन(penicillin) कई प्रकार के जीवाणुओं को पैदा होने या फैलने से रोकता है। यौन रोगों पर नियंत्रण करने के लिए यह बहुत ही प्रभावकारी औषधि है।

अलैक्जेंडर फ्लेमिंग की मृत्यु-Alexander Fleming death

पेनिसिलिन के आविष्कार(alexander fleming contribution in hindi) के बाद स्ट्रेप्टो माइसिन, टैरामाइसिन आदि अनेक एण्टीबॉयोटिक औषधियों का आविष्कार हुआ। आज इन एण्टीबॉयोटिक औषधियों
द्वारा लाखों लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जाता है।

इस आश्चर्यजनक और आकस्मिक खोज और विश्लेषण के लिए सन् 1945 का चिकित्सा क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार(alexander fleming nobel prize)फ्लेमिंग, फ्लोरे और चेन को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया। इस खोज से फ्लेमिंग का नाम विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया। 11 मार्च, 1955 को लंदन में फ्लेमिंग की मृत्यु हुई।

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