दोस्तों अपने पानी में तैरती हुई वस्तुओं को जरूर देखा होगा। और आपने यह भी देखा होगा। पानी में किसी वस्तु को डालने पर वह थोड़ी हल्की हो जाती हैं। अब ऐसा क्यों होता है इसके पीछे का विज्ञान क्या है। दोस्तों इस आर्टिकल में अब यही जानेंगे। हम यह भी देखेंगे। आर्किमिडीज का सिद्धान्त (Archimedes principle in hindi) क्या कहता है?
आर्किमिडीज का सिद्धान्त (Archimedes Principle)-
जब कोई वस्तु किसी द्रव में डुबोई जाती है, तो वह द्रव के अन्दर अपने आयतन के बराबर आयतन के द्रव को विस्थापित करके स्वयं उसका स्थान ले लेती है। जैसा कि हमने देखा कि द्रव में डुबोने पर वस्तु के भार में कमी आती है। प्रयोगों से यह पाया गया कि वस्तु के भार में यह आभासी कमी उसके द्वारा अपने आयतन के बराबर हटाये गये द्रव के भार के बराबर होती है।
प्रसिद्ध यूनानी वैज्ञानिक आर्किमिडीज ने सबसे पहले अपने प्रयोगों से इसे ज्ञात किया था। उनके अनुसार “जब कोई वस्तु किसी द्रव में अंशत: या पूर्णतः डुबोई जाती है, तो डुबोने पर वस्तु के भार में कमी प्रतीत होती है तथा वस्तु के भार में यह आभासी कमी उसके द्वारा हटाये गये द्रव के भार के बराबर होती है।“
यदि किसी वस्तु का भार W है तथा उसके द्वारा हटाये गये
द्रव का भार (उत्प्लावन बल, ऊपर की ओर) w है तो द्रव में वस्तु पर कार्यरत परिणामी बल, W~w, होगा।
प्लवन का नियम (Law of floatation)-
“संतुलित अवस्था में तैरने पर वस्तु अपने भार के बराबर द्रव विस्थापित करती है।” इस नियम को ही प्लवन का नियम कहते हैं।
अत: तैरते रहने की अवस्था में वस्तु द्वारा हटाये गये द्रव का भार = उत्प्लावन बल=वस्तु का भार।
स्पष्ट है कि इस अवस्था में वस्तु पर कोई परिणामी बल कार्य नहीं करता है।यदि वस्तु का द्रव में डूबा हुआ आयतन V1 है तथा वस्तु का सम्पूर्ण आयतन V है और वस्तु का घनत्व D तथा द्रव का घनत्व DIहै तो तैरने की अवस्था में,
V1/V=D/D1,
अतः अधिक घनत्व वाले द्रव में तैरने पर वस्तु का कम हिस्सा द्रव के अन्दर डूबेगा तथा कम घनत्व वाले द्रव में वस्तु का अधिक भाग डूबेगा।
आर्किमिडीज के सिद्धान्त का उपयोग-(Archimedes principle in hindi)
आर्किमिडीज के सिद्धान्त (Archimedes principle in hindi)व प्लवन के नियम के दैनिक जीवन में अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। जैसे लोहे का जहाज पानी पर तैरता है, परन्तु लोहे की कील पानी में डूब जाती है।
इसका कारण जहाज की विशेष बनावट है । जहाज का आकार लोहे की चादरों की सहायता से इस प्रकार बनाया जाता है कि इसके अन्दर का बहुत सा भाग खोखला होता है।
जब इसको पानी पर उतारा जाता है तो फैला हुआ आकार व खोखला होने के कारण इसके द्वारा हटाये गये पानी का भार, जहाज के भार से अधिक होता है, जिसके कारण इस पर अधिक उत्प्लावन बल लगता है व जहाज तैरता है। कील द्वारा हटाये गये द्रव का भार कील के स्वयं के भार से कम होता है, फलतः कील पानी में डूब जाती है।
यदि जहाज पर बहुत सारा वजन इस हद तक लाद दिया जाय कि उसके द्वारा हटाये गये द्रव का भार जहाज के भार से कम हो तो जहाज पानी में डूब जायेगा।
जीवन रक्षक पेटी (life belt) भी इसी सिद्धान्त पर कार्य करती है। यह रबर का बना एक खोखला उपकरण होता है, जिसमें हवा भरी रहती है, जिससे इसका बाह्य आकार बहुत अधिक हो जाता है। फलस्वरूप इसके द्वारा हटाये गये द्रव का भार, स्वयं इसके भार से बहुत अधिक होता है। दुर्घटना के समय जब कोई मनुष्य डूबने लगता है तो इस पेटी को उसके पास फेंक देते हैं और मनुष्य इस पेटी को पकड़ लेता है। मनुष्य तथा इस पेटी का भार मिलकर भी पेटी द्वारा हटाये द्रव के भार से कम बना रहता है, जिससे मनुष्य तैरता रहता है व डूबने से बच जाता है ।
पनडुब्बी (submarine) भी इसी सिद्धान्त पर कार्य करती है। इसकी टंकियों में पानी अन्दर व बाहर करके इसे इस प्रकार नियंत्रित करते हैं कि इसके द्वारा हटाये गये पानी का भार इसके भार से कम या ज्यादा होता रहता है, फलस्वरूप ये समुद्र के अन्दर जाती है व बाहर आती रहती है।
आर्किमिडीज का सिद्धान्त (Archimedes principle in hindi)गैसों के लिये भी सत्य है। जब हम किसी गुब्बारे में हवा भरकर उसे छोड़ देते हैं तो वह ऊपर उड़ता जाता है। इसका कारण है कि गुब्बारे द्वारा विस्थापित हवा का भार उसके अन्दर की हवा के भार से अधिक होता है,
जिससे उस पर ऊपर की ओर एक उत्क्षेप कार्य करता है। चूंकि जैसे-जैसे.हम ऊपर जाते हैं, हवा का घनत्व कम होता जाता है, अतः एक निश्चित ऊँचाई पर, जहाँ गुब्बारे द्वारा हटायी गई हवा का भार उसके अन्दर की हवा के भार के बराबर हो जाता है, गुब्बारा रुक जाता है।
यह article “आर्किमिडीज का सिद्धान्त (Archimedes principle in hindi) क्या है लोहे का जहाज पानी में क्यों तैरता है? ” पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया उम्मीद करता हुँ। कि इस article से आपको बहुत कुछ नया जानने को मिला होगा।