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गैल्वेनी सेल क्या है, परिभाषा, उपयोग, कार्य(About Galvanic Cell in hindi)

गैल्वेनी सेल(Galvanic Cell)इसे वोल्टीय सेल भी कहते हैं। इस सेल का विद्युत वाहक बल (e.m.f.) सेल में होने वाली अभिक्रिया की तीव्रता के समानुपाती होती है। सेल अभिक्रिया (cell reaction) वैद्युत अपघटन के ठीक विपरीत होती है।

डेनियल सेल (Daniel cell) गैल्वेनी सेल का एक उदाहरण है, इस सेल में जिंक धातु तथा जलीय CuSO4, विलयन के मध्य रासायनिक क्रियाएँ होती हैं।

Zn(s) + Cu2+ (aq)——>Zn (aq) + Cu(s)

इस सेल में जिंक धातु की एक छड़ (ऐनोड) को जिंक सल्फेट के विलयन में बायें पात्र में तथा कॉपर की एक छड़ (कैथोड) को कॉपर सल्फेट के विलयन में दायें पात्र में रखते हैं। जिंक तथा कॉपर इलेक्ट्रोडों को वोल्टमीटर से होकर संयोजन तार से जोड़ देते हैं, दोनों विलयनों को साल्ट ब्रिज (उत्क्रमित U-नलिका) से जोड़ देते हैं।

साल्ट ब्रिज में कुछ विद्युत अपघट्य जैसे KCI, KNO3, K2SO4 आदि का विलयन भरा जाता है। इनमें जिलेटिन या अगर-अगर को मिश्रित कर देते हैं जो इन्हें अर्द्ध ठोस पेस्ट में बदल देते हैं।

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जब परिपथ में कुंजी लगाकर परिपथ को पूर्ण किया जाता है तो निम्न प्रेक्षण प्राप्त होते हैं।

  1. बाह्य परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
  2. जिंक के छड़ के भार में क्रमिक ह्रास तथा कॉपर के छड़ के भार में वृद्धि होती है।
  3. ZnSo, विलयन में Zn+ आयनों का सान्द्रण बढ़ जाता है तथा Cuso, विलयन में Cu2* आयनों का सान्द्रण घट जाता है।
  4. दोनों पात्रों में रखे विलयन विद्युतीय रूप से उदासीन रहते हैं।

सेल का कार्य(Working of the cell)

  1. जिंक का ऑक्सीकरण Zn2+ आयन में होता है तथा इलेक्ट्रॉन मुक्त होता है।
    Zn(s)→ Zn2+(aq) + 2e- (ऑक्सीकरण)
  2. ऑक्सीकरण के दौरान निर्मुक्त इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ(external circuit) से होकर कॉपर इलेक्ट्रॉड की ओर प्रवाहित होते हैं।
  3. कॉपर आयन (Cu21) कॉपर छड़ की ओर जाकर इन इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण कर अवकृत हो जाते हैं एवं Cu प्राप्त होता है, जो कॉपर छड़ पर जमा होता है।
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Cu2+(aq) + 2e- → Cu (s) (अवकरण)

•लैक्ट्रोड जिस पर ऑक्सीकरण होता है, एनोड तथा जिस पर अपचयन की क्रिया होती है, कैथोड कहलाता है। उपरोक्त सेल में जिक छड़ एनोड तथा कॉपर छड़ कैथोड है ।

•ऐनोड पर ऑक्सीकरण की क्रिया होने के कारण यह इलेक्ट्रॉन का स्रोत बन जाता है तथा इस पर ऋण आवेश उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार, कैथोड पर अपचयन की क्रिया के कारण इसपर धनावेश उत्पन्न होता है तथा यह इलेक्ट्रॉन का ग्राही बन जाता है। अतः विद्युत-रासायनिक सेल में

•ऐनोड ऋणात्मक बिन्दु (Negative terminal) के रूप में कार्य करता है तथा इस पर ऑक्सीकरण होता है।

•कैथोड धनात्मक बिन्दु (Positive terminal) के रूप में कार्य करता है तथा इस पर अपचयन होता है।

•इलेक्ट्रॉन एनोड से कैथोड की ओर प्रवाहित होते हैं।

साल्ट ब्रिज का कार्य(Function of Salt bridge)

साल्ट ब्रिज विद्युत-रासायनिक सेल में दो महत्वपूर्ण कार्य करता है।

  1. यह परिपथ को पूर्ण करके एक अर्द्ध सेल से दूसरे अर्द्ध सेल में विद्युत धारा को प्रवाहित होने देता है।
  2. यह परिपथ को पूर्ण करके एक अर्द्ध सेल से दूसरे अर्द्ध सेल में आयनों को प्रवाहित होने देता है जिसके फलस्वरूप विद्युत उदासीनता(electrical neutrality) प्राप्त होती है।

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