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मैरी क्यूरी की प्रेरणादायक जीवनी हिंदी -Marie Curie biography in hindi

  • जन्म-7 नवम्बर, 1867
  • जन्म स्थान-वासोवा, पोलेड
  • निधन-4 जुलाई, 1934

यूरेनियम से सैकड़ों गुना रेडियोएक्टिव और सोने से हजारों गुना कीमती रेडियम | की खोज करने वाली मैडम क्यूरी(Marie Curie) को एक बार नहीं दो-दो बार नोबेल पुरस्कार मिला। इस महान खोज की कीमत उन्हें अपनी आंखों की रोशनी देकर चुकानी पड़ी। और रेडियोधर्मिता (radioactivity) के सम्पर्क में रहने के कारण इन्हें कैंसर भी हो गया।

मैडम क्यूरी का जन्म-About Marie Curie in hindi

इस विश्वविख्यात प्रतिमा का जन्म उन दिनों हुआ जब पश्चिमी देशों में भी स्त्रियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार न था। इस महिला ने भगीरथ प्रयास करके पुरुषों के समान उच्च शिक्षा ग्रहण की।

इन्होंने रेडियम का आविष्कार करके इतनी ख्याति प्राप्त की जितनी शायद ही किसी और ने की हो मैडम क्यूरी का जन्म पोलैंड की राजधानी वारसा में 7 नवम्बर, 1867 को हुआ था। इनके बचपन का नाम मैरी स्कलोदोवस्का (Marie Sklodowska) था। परंतु बाद में पियरे क्यूरी नामक वैज्ञानिक से विवाह कर लेने के पश्चात ये मैडम क्यूरी के नाम से प्रसिद्ध हो गईं।

मैडम क्यूरी( Marie Curie family)के माता-पिता अध्यापक थे। इसलिए इनका बचपन शिक्षा के वातावरण में बीता। इन्होंने 16 वर्ष की आयु में हाईस्कूल की परीक्षा पास की, जिसमें असाध पारण योग्यता प्रदर्शन करने के लिए इन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।

अब मैरी( About Marie Curie hindi)की इच्छा थी कि वह विज्ञान का विषय लेकर विश्वविद्यालय में अध्ययन करें लेकिन महिला होने के कारण उन्हें दाखिला नहीं मिला। उन दिनों वारसा विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के लिए महिलाओं के लिए दरवाजे बंद थे।

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उनके पिता ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें पेरिस भेजा। साखान विश्वविद्यालय से इन्होंने विज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। परीक्षा पास करने के बाद इनके एक मित्र ने इनकी भेंट प्रसिद्ध वैज्ञानिक पियरे(About pierre curie) क्यूरी से कराई।

पहली मुलाकात में ही वे दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रभावित हुए। दोनों में गहरी मित्रता हो गई और बाद में दोनों विवाह के बंधन में बंध गए। इस विश्वविद्यालय में मैरी ने रेडियोधर्मिता के आविष्कारक प्रोफेसर बैकरैल की सहायिका के रूप में कार्य आरम्भ किया।

रेडियम की खोज -Radium Discovery

बैकरैल ने कई वर्षों से कुछ यूरेनियम के टुकड़ों को एक मेज की दराज में रख छोड़ा था। एक दिन मैरी ने उनमें से कुछ टुकड़े निकाले और उनका उपयोग फोटो प्लेटों को तोलने के लिए किया।

जब इन प्लेटों को विकसित किया तो इन पर विचित्र-सा जाल फैला दिखाई दिया। मैरी को संदेह हुआ कि निश्चय ही यूरेनियम में से ऐसी किरणें निकली हैं जिन्होंने इन प्लेटों पर यह जाल-सा बिछा दिया है।

इन किरणों के रहस्यमय स्रोत को खोज निकालने को दृढ़ निश्चय करके मैरी ने प्रोफेसर बैकरैल की सहायिका के रूप में अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया। एक रात उन्होंने अपने पति के साथ बैठकर यूरोप का मानचित्र देखा और संदर्भ ग्रंथों से पता लगाया कि बोहीमिया के एक छोटे से नगर में यूरेनियम का एक खनिज पिचब्लैंड मिलता है।

क्यूरी दम्पत्ति ने वहां की सरकार को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने 10 हजार किलोग्राम पिचक्लैंड बिना मूल्य प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की थी। वहां की सरकार ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया और उन्हें पिचब्लैंड प्राप्त हो गया।

अपनी प्रयोगशाला में महीनों तक वे दोनों पति-पत्नी(Marie Curie husband)बड़ी बाल्टियों में पिचब्लैंड डालकर और उसमें पानी मिलाकर बड़े-बड़े बांसों से चलाते रहने का घोर परिश्रम करते रहे। उनकी प्रयोगशाला पर पक्की छत न थी केवल एक टूटा हुआ छप्पर था,

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जिसमें से बरसात का पानी टपकता रहता था। इन दोनों ने इन सब कठिनाइयों के बावजूद भी अपना अनुसंधान कार्य( Marie Curie experiment) जारी रखा। नवम्बर, 1898 की एक रात को पिचब्लैंड से प्राप्त पदार्थ को उन्होंने एक परखनली में रख छोड़ा था।

कुछ देर सोने के बाद जब उन्होंने अपनी प्रयोगशाला का दरवाजा खोला तो देखा कि अधेरे कमरे में एक कोने से उनकी उस परखनली से हलका नीला-सा रहस्यमय प्रकाश निकल रहा है।

मैरी ने खुशी से पियरे का हाथ दबाया। जैसे ही उन्होंने मोमबत्ती जलायी प्रकाश की वह चमक लुप्त हो गई। उन्होंने इस तत्त्व का नाम रेडियम रखा। इस कार्य के लिए इन दोनों पति-पत्नी को और बैकरैल को सन् 1903 का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

सन् 1911 में मैरी क्यूरी को रेडियम और पोलोनियम प्राप्त करने तथा तत्त्वों के अध्ययन के लिए रसायन विज्ञान का दूसरा नोबेल पुरस्कार( marie curie nobel prize)प्रदान किया गया।

शादी के दो वर्ष पश्चात इस दम्पती के एक कन्या हुई, जिसका नाम इन्होंने आइरेन क्यूरी रखा। यह कन्या भी अपनी मां की भांति ही विज्ञान में असाधारण प्रतिभा
वाली थी।

इसका विवाह जूलियट क्यूरी से हुआ। इन्होंने सर्वप्रथम कृत्रिम रेडियोधर्मी तत्त्व बनाने का आविष्कार किया। इसके लिए इन पति-पत्नी को संयुक्त रूप से सन् 1935 का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार(marie curie nobel prize) दिया गया।

आधुनिक भौतिक विज्ञान के विकास में फ्रांस के क्यूरी परिवार की दो पीढ़ियों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। विश्व में अभी तक कोई ऐसा परिवार नहीं हुआ, जिसकी दो पीढ़ियों में से पांच ने नोबेल पुरस्कार प्राप्त किए हों।

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क्यूरी परिवार में दो बार मैडम क्यूरी को, एक बार इनके पति पियरे क्यूरी को और एक बार इनकी पुत्री आइरेन क्यूरी (Irene Curie) और उसके पति फ्रैंकरिक जूलियट को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इस तथ्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस परिवार
के लोग कितने विद्वान थे और विज्ञान में उनकी कितनी रुचि थी। सन् 1906 में इनके पति पियरे( about pierre)क्यूरी की सड़क पर करते हुए मोटर दुर्घटना से मृत्यु हो गई।

इससे मैडम क्यूरी को बहुत बड़ा आघात पहुंचा। मैडम क्यूरी ने पेरिस में ‘क्यूरी इंस्टीट्यूट ऑफ रेडियम’ की स्थापना की। इन्हीं के नाम पर रेडियोधर्मिता की इकाई का नाम क्यूरी रखा गया। क्यूरी को सम्मान प्रदान करने के लिए तत्त्व का नाम क्यूरियम रखा गया।

मैडम क्यूरी की मृत्यु-Marie Curie death

मैरी हृदय की बड़ी दयालु थीं। इन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध
में घायलों की बड़ी सेवा की। इस उपलक्ष्य में अमरीका की सरकार ने मैरी को कई सम्मान प्रदान किए। मैरी जीवन भर रेडियोधर्मी पदार्थों के सम्पर्क में रहीं। इससे इनकी आंखें खराब हो चली थीं। इन्हीं विकिरणों से उन्हें रक्त का कैंसर हो गया था।

विज्ञान की यह साधिका 4 जुलाई, 1934 को संसार से सदा के लिए विदा हो गई। इस महिला ने रेडियम की खोज करके मानवता का जो उपकार किया है, उसे निश्चय ही कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।

ये article ” मैरी क्यूरी की प्रेरणादायक जीवनी हिंदी -Marie Curie biography in hindi” पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया. उम्मीद करता हुँ. कि इस article से आपको बहुत कुछ नया जानने को मिला होगा

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