- जन्म-25 अप्रैल, 1874
- जन्म स्थान-बोलोग्ना, इटली
- निधन-20 जुलाई, 1937
- निधन स्थान–इटली
33 वर्ष की छोटी-सी आयु में ही भौतिक-विज्ञान में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले इस महान वैज्ञानिक ने बेतार के तार और रेडियो का आविष्कार(Radio wave invention) कर आधुनिक दूर-संचार व्यवस्था की नींव रखी।
मारकोनी का जन्म -Biography of Guglielmo Marconi in hindi
आज सम्पूर्ण विश्व जिस संचार माध्यम से एक दूसरे से जुड़ा है। जिस यंत्र की वजह से दूरियों का अर्थ खत्म हो गया है उसके मूल प्रणेता थे, मारकोनी। उन्हें बेतार के तार का जन्मदाता भी कहा जाता है। इस आविष्कार के लिए उन्हें सन् 1909 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था।
मारकोनी का जन्म इटली में हुआ था। बचपन से ही मारकोनी की रुचि विज्ञान में थी। वह अक्सर विज्ञान के विभिन्न प्रयोगों में लगा रहते थे। पारिवारिक रूप से ये काफी समृद्ध थे। इनका मकान बहुत बड़ा था। वे मकान के ऊपर वाले कमरे में अपने प्रयोग करते रहते थे।
इनके पिता इनके क्रिया-कलापों से खुश नहीं थे लेकिन
इनकी मां का सहयोग सदा ही रहता था। मारकोनी अपने कार्यों में इतने व्यस्त रहते थे कि वे खाना-खाने भी कमरे से नीचे नहीं आते थे। इनकी मां इन्हें खाना इनकी प्रयोगशाला में ही देकर आती थीं।
मारकोनी की उम्र जब लगभग वर्ष की थी तब उन्हें हीनरिख ह द्वारा खोजी गई रेडियो तरंगों(Radio wave in hindi)के विषय में जानकारी प्राप्त हुई। उनका विचार था कि इन तरंगों को संदेश ले जाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। उस समय संदेशों को तार की सहायता से मोर्स कोड (Morse Code) प्रयोग में लाकर भेजा जाता था। मारकोनी ने इसी दिशा में काम आरम्भ किया।
रेडियो का आविष्कार-Marconi radio invention
सितम्बर, 1894 में एक रात की बात है कि मारकोनी(Guglielmo Marconi biography )अपने कमरे से नीचे आए और अपनी सोई हुई मां सिनोरा मारकोनी को जगाया। उन्होंने अपनी मां से प्रयोगशाला वाले कमरे में चलने के लिए आग्रह किया। वे अपनी मां को कुछ महत्त्वपूर्ण वस्तु दिखाना चाहते थे।
सिनोरा मारकोनी चूंकि नींद में थीं इसलिए पहले
तो कुछ बड़बड़ाई किंतु अपने पुत्र के साथ ऊपर कमरे में चली गईं। उस कमरे में पहुंच कर गुग्लीम्मो ने अपनी मां को एक घंटी दिखाई जो कुछ उपकरणों के बीच लगी हुई थी।
वे स्वयं कमरे के दूसरे कोने में गए और वहां जाकर उन्होंने एक मोर्स कुंजी को दबाया। चिंगारियों की चटचट हुई और तीस फुट पर रखी हुई घंटी बज उठी।
बीच में बिना किसी तार के इतनी दूरी पर रखी घंटी का रेडियो तरंगों(radio wave invention hindi) से बजना एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। नींद में ऊंघती हुई उनकी मां ने इस प्रयोग के लिए उत्साह तो दिखाया लेकिन वह यह नहीं समझ सकी कि बिजली की इस घंटी को बनाना क्या इतनी बड़ी चीज थी कि इसके लिए उनकी रात को नींद खराब की जाए।
यह बात उस महिला की समझ में तभी आई जब मारकोनी ने बेतार द्वारा अपने संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा। सफलता ही किसी भी व्यक्ति का उत्साह बढ़ाती है। यही बात गुग्लील्मो के साथ
हुई।
उन्होंने अपने छोटे भाई की सहायता से अपने संकेतों को भेजने और प्राप्त करने की दूरी अपनी कोठी के बाग के आर-पार तक कर ली। एक दिन की बात है कि मारकोनी( about Guglielmo Marconi hindi)ने अपने बताए हुए ट्रांसमिटर को पहाड़ी के एक ओर रखा और रिसीवर को दूसरी ओर। रिसीवर के पास संदेश ग्रहण करने के लिए उनका भाई खड़ा था।
जब भाई को संदेश प्राप्त होने लगे तो वह खुशी के मारे पहाड़ी पर चढ़कर नाचने लगा। उसकी इस खुशी को देखकर गुग्लील्मो को यह विश्वास हो गया कि उनका यंत्र काम कर रहा है।
अब क्या था गुग्लील्मो मारकोनी(Guglielmo Marconi radio invention hindi)जहाज पर सवार होकर इंग्लैंड के लिए रवाना हो गए। वहां सन् 1896-97 के बीच उन्होंने अपने द्वारा निर्मित उपकरण से बेतार के तार से सम्बंधित कई सफल प्रदर्शन किए। लंदन के प्रधान डाकघर के मुख्य इंजीनियर सर विलियम प्रींस ने उनके प्रयोगों में काफी दिलचस्पी दिखाई ।
सन् 1897 में वे बारह मील की दूरी तक रेडियो संदेश भेजने में सफल हुए। इससे सारे यूरोप में मारकोनी(Guglielmo Marconi discovery hindi)के नाम की धूम मच गई। बिना तार के संदेश भेजने का मानव का चिरसंचित स्वप्न पूरा हो गया।
इसी साल मारकोनी ने अपनी कंपनी आरम्भ की। सन् 1898 की बात है कि इंग्लैंड का युवराज एक द्वीप के पास अपने छोटे से जहाज में बीमार पड़ गया। उन दिनों रानी विक्टोरिया भी उसी द्वीप में रह रही थीं।
मारकोनी(Guglielmo Marconi)ने रानी को अपने पुत्र के स्वास्थ्य के विषय में जानकारी देने के लिए बेतार के तार द्वारा दोनों स्थानों को जोड़ दिया। 16 दिन की अवधि में दोनों स्थानों से 150 तार भेजे गए ।
सन् 1899 में वे इंग्लिश चैनल के आर-पार 31 मील की दूरी तक रेडियो संदेश भेजने में सफल हुए। सन् 1899 में ही मारकोनी ने अमरीका के दो जलयानों पर रेडियो उपकरण लगाए, जो नौका दौड़ के विषय में समाचार पत्रों को सूचना दे सकते थे।
12 दिसम्बर, 1901 को मारकोनी ने एक महान धमाका किया। पहली बार अंग्रेजी के एस (s) अक्षर को मोर्स कोड द्वारा अटलांटिक सागर के आर-पार भेजने में सफलता प्राप्त की। इससे विश्व भर में उनकी प्रसिद्धि का डंका बज गया।
33 वर्ष की छोटी-सी आयु में सन् 1909 में मारकोनी को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया लेकिन इस सफलता के कारण उनसे बहुत से लोग ईर्ष्या करने लगे। उन पर यह आरोप लगाया गया कि वे सारे संसार में अपने ही यंत्र बेचना चाहते हैं लेकिन यह आरोप असत्य था।
सन् 1915 में मारकोनी ने रेडियो से सम्बंधित परीक्षण आरम्भ किए।
सन् 1920 के आरम्भ में उन्होंने अपनी नौका पर अपने मित्रों को एक भोज पर निमंत्रित किया। नौका पर संगीत का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था।वह कार्यक्रम लंदन रेडियो से प्रसारित किया जा रहा था। मारकोनी अपने अनुसंधानों में लगे रहे और अंततः उन्हीं के द्वारा बनाए गए यंत्रों से इंग्लैंड में 14 फरवरी, 1922 को रेडियो प्रसारण सेवा आरम्भ हुई।
गुग्लील्मो मारकोनी की मृत्यु – Guglielmo Marconi death
सन् 1930 में मारकोनी को रॉयल इटैलियन अकादमी का प्रेसीडेंट चुना गया। मारकोनी लगभग 63 वर्ष की उम्र तक जीवित रहे और उन्होंने उन सभी महान परिवर्तनों को अपनी आंखों से देखा, जिन्हें लाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा था।
20 जुलाई, 1937 में जब उनका देहांत हुआ तो टेलीविजन के विकास का युग आरम्भ हो चुका था। आधुनिक युग को रेडियो संचार का आधार प्रदान करने वाले इस वैज्ञानिक को हम कभी भी नहीं भुला सकते।
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