- जन्म-18 फरवरी, 1745
- जन्म स्थान-कोमो शहर, इटली
- निधन-1827 ई.
वोल्टा(Alessandro Volta)की उपलब्धियों को सम्मान देने के लिए वैज्ञानिको ने इलेक्ट्रोमोटिक फोर्स की इकाई का नाम ‘वोल्ट’ निर्धारित किया। पहला इलैक्ट्रॉनिक सेल बनाने का श्रेय वोल्टा को ही जाता है जिसके कारण मानव जाति ने विद्युत युग के नए संसार में प्रवेश किया।
ऐलेस्सैण्ड्रो वोल्टा जन्म -Alessandro Volta biography in hindi
ऐलेस्सैण्ड्रो वोल्टा(Alessandro Volta)का जन्म इटली के कोमो शहर में 18 फरवरी, 1745 में हुआ था। वोल्टा का परिवार कोई बहुत धनी परिवार नहीं था। किंतु उनकी प्रतिभा के कारण और चर्च में कुछ प्रतिष्ठित सम्बंधियों के प्रभाव से उनकी शिक्षा का प्रबंध हो गया।
विश्वविद्यालय की शिक्षा पूर्ण करके 17 साल की उम्र में ही ग्रेजुएट होकर, वोल्टा को कोमो के हाई स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिल गई। १७७६ तक वह एक शिक्षक ही रहे और तब, 34 वर्ष की आयु में, पाविया विश्वविद्यालय में उन्हें भौतिकी विभाग की स्थापना के लिए बुलावा आया। वहां काम की अधिकता थी फिर भी वोल्टा(Alessandro Volta biography in hindi )कुछ न कुछ वक्त अनुसंधान के लिए निकाल ही लेते थे।
ऐलेस्सैण्ड्रो वोल्टा के अविष्कार -Alessandro Volta invention
कोमो में स्कूल-टीचरी करते हुए ही वोल्टा ने ‘इलेक्ट्रोफोरस’ का आविष्कार (Alessandro Volta discoveries) कर लिया था जिसका उल्लेख इंग्लैंड में, जोजेफ प्रीस्टले को लिखे उनके एक खत में मिलता है। इलेक्ट्रोफोरस कोई बहुत काम की चीज नहीं है किंतु आज भी उसका इस्तेमाल हम कक्षा में स्थिर विद्युत के प्रदर्शन में करते हैं।
किंतु वोल्टा(Alessandro Volta)ने इलेक्ट्रोफोरस का प्रयोग विद्युत-निर्माण में कैपेसिटर अथवा कण्डेन्सर के कार्य में कौन-से नियम काम में आते हैं, यह जानने के लिए किया था।
वोल्टा ने इस उपकरण का नाम ‘कंडेंसेटर’ रखा था किंतु लंदन की रॉयल सोसायटी के ‘ट्रान्जेक्शन्ज’ के अनुवादक ने संक्षिप्त करते हुए—कण्डेन्सर’ कर दिया। वोल्टा ने इसके प्रयोग में एक और कुशलता यह भी दिखाई कि बिजली को नापने के लिए उन दिनों जो स्थूलयंत्र (इलेक्ट्रोस्कोप तथा इलेक्ट्रोमीटर) इस्तेमाल में आते थे उन्हें क्रियाशील करने के लिए विद्युत के आवेश को प्र-गुणित भी किया जा सकता है।
इलेक्ट्रोस्कोप को चार्ज करके उन्होंने उसकी प्लेटों को अलग कर दिया, जिससे हुआ यह कि प्लेटों की पोटेंशल या वोल्टेज बढ़ गई। इस उपकरण के लिए उन्होंने एक नया नाम भी सुझाया—माइको-इलेक्ट्रो-स्कोप अर्थात सूक्ष्म-विद्युत-प्रदर्शक(Alessandro Volta invented the battery)। 1791 में वे बोलोना विश्वविद्यालय में प्राणी-शास्त्र तथा शरीरतंत्र के प्राध्यापक लुइजि गैल्वेनि विश्वविद्यालय की परीक्षणशाला में कुछ मेढकों का चीर-फाड़ी करके अध्ययन कर रहे थे।
पीतल के एक नुकीले हुक को जबरदस्ती मेढक की रीढ़ में घुसेड़ दिया गया, और एक सहायक ने लोहे के स्केल्पल द्वारा उसकी टांग को छुआ। ज्योंही हुक और स्केल्पल, अंदर पहुंचकर परस्पर स्पर्श में आए—मेढक की जांघ बड़ी बुरी तरह से सिकुड़ने लगी। गैल्वेनि ने फिर वही प्रयोग करके देखा-फिर वही कुछ, मेढक की जांघ फिर झटक गई।
उसका विचार था कि खुद मेढक में ही एक किस्म की विलक्षण बिजली पैदा हो जाती है। वोल्टा ने भी परीक्षण (Alessandro Volta experiment)के निष्कर्षों को पढ़ा, किंतु उसे उनपर विश्वास नहीं आया।
उन्होंने वस्तुस्थिति का और गहन अध्ययन किया और 20 मार्च, 1800 को उन्होंने एक प्रसिद्ध पत्र रॉयल सोसायटी के नाम लिखा जिसमें एक प्रकार की ‘वोल्टाइक पाइल’ (Voltaic pile) का वर्णन था। कोई भी इस पाइल को बना सकता है। वोल्टा ने चांदी और जस्ते के कुछ सूखे तवे लिए और कुछ गत्ते के कटे हुए तवे खूब नमकघुले पानी में गीले किंतु टपकते हुए नहीं लिए और उन्हें चांदी-गत्ता-जस्त-चांदी के निरंतर-क्रम में रख दिया।
पाइल के सिरों से विद्युत का अबाध संचार सम्भव था वोल्टा ने इस प्रकार पहला इलेक्ट्रिक सेल(electric battery)तैयार कर लिया—जो हमारे रेडियो वगैरह में प्रयुक्त ड्राई-सेल ‘बैटरी’ का एक प्रकार से पूर्वाभास है। विज्ञान के इतिहास में विद्युत के निरन्तरित प्रवाह का यह प्रथम प्रदर्शन था। और जब वह टिन और चांदी के दो चमचों को एक साथ अपने मुंह में ले गया तो उनसे भी बिजली पैदा होने लगी। यहां भी तो वही दो धातुएं थीं,
और विद्युत के संचरण के लिए एक द्रव्य माध्यम था।
इस अनुसंधान का फल यह हुआ कि विद्युत और रसायन में शोध के कितने ही नये क्षेत्र एकदम खुल आए। एक चीज तो यह हुई, शायद सबसे पहली, कि वोल्टाइक पाइलों का प्रयोग करके वैज्ञानिक पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में फाड़ने में सफल हो गए; और इसके अतिरिक्त डेवी ने सोडियम और पोटैशियम की खोज कर ली, और विद्युत तथा चुम्बकशक्ति-विषय के अध्ययन में अब कुछ असाधारण प्रगति आ गई।
देश-देश से वोल्टा(Alessandro Volta biography in hindi)को सम्मानित किया जाने लगा नेपोलियन ने उन्हें पेरिस की इंस्टीट्यूट में एक व्याख्यानमाला देने के लिए निमंत्रण भेजा। एक स्वर्ण-पदक उनके सम्मान में तैयार किया गया।
बढ़ती उम्र के कारण जब वोल्टा ने त्यागपत्र देने की इच्छा जाहिर की तो उनसे प्रार्थना की गई कि, वर्ष में एक ही लैक्चर देने के लिए सही, वह विश्वविद्यालय में ही बदस्तूर प्रोफेसर पद पर बने रहें, तब भी उन्हें वही तनख्वाह मिलती रहेगी।
यही नहीं, लम्बार्दी के प्रतिनिधि रूप में उन्हें सेनेट का सदस्य भी चुन लिया गया। आस्ट्रिया के बादशाह ने वोल्टा( Alessandro Volta biography in hindi )को पेदुआ के दर्शन-विभाग का महा-निदेशक बन जाने के लिए प्रार्थना की।
ऐलेस्सैण्ड्रो वोल्टा की मृत्यु -Alessandro Volta death
1819 में 74 साल की उम्र में क्रियात्मक जीवन से निवृत्त होकर वोल्टा(Alessandro Volta)अपनी जन्मभूमि कोमो में लौट आए जहां 1827 में उनकी मृत्यु हुई। कोमो में वोल्टा की एक भव्य मूर्ति, स्थापित की गई। 1893 में विद्युत-विशारदों की कांग्रेस ने इलेक्ट्रोमोटिव फोर्स का इकाई का नाम ही ‘वोल्ट’ निर्धारित कर दिया। ये वोल्टा के लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि थी।
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