- जन्म – 15 अक्टूबर, 1608
- जन्म स्थान – फैजा, इटली
- निधन – 25 अक्टूबर, 1647
भौतिक तथा गणित टोरिसेली ने वायुदाबमापी यंत्र (बैरोमीटर) का आविष्कार किया जो उनकी पहचान बन गया। वस्तुतः उस प्रतिभाशाली व्यक्ति ने कई महत्त्वपूर्ण आविष्कार किए थे उसमें से एक था 10,000 वें भाग की सत्यता के साथ बनाया गया एक अद्भुत लेंस। जबकि उस समय आज की तरह के आधुनिक उपकरण उपलब्ध नहीं थे।
इवानजेलिस्टा टोरिसेली का जन्म – Evangelista Torricelli born
इवानजेलिस्टा टोरिसेली गैलीलियो के योग्य शिष्यों में से एक थे। इनका जन्म 15 अक्टूबर, 1608 में, इटली के फैजा नामक शहर में हुआ था। बचपन से ही टोरिसेली (Evangelista Torricelli biography in hindi )का झुकाव भौतिक विज्ञान की तरफ था। वे प्रकृति में घटने वाली घटनाओं को देखते और बड़ी सूक्ष्मता से उसका विश्लेषण करने का प्रयास करते। 19 वर्ष की अवस्था में ही इन्हें रोम विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया था और बाद में ये इसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने। हालांकि विश्व में अधिकतर लोग इन्हें केवल वायुदाबमापी (बैरोमीटर) के आविष्कारक के रूप में जानते हैं। जबकि सच यह है कि
उन्होंने वायुदाबमापी के अलावा और भी कई महत्त्वपूर्ण आविष्कार किए थे।
इटली के फ्लोरेंस नामक शहर में विज्ञान के इतिहास के सम्बंधित एक संग्रहालय है। इसमें रखे बहुत-से वैज्ञानिक साजो-सामान के बीच चार इंच व्यास से कुछ अधिक का एक लेंस रखा हुआ है। इस लेंस की सत्यता को देखकर आज के लेंस निर्माता विशेषज्ञ भी आश्चर्यचकित हो जाते हैं। यह लेंस 1 मिमी. के 10,000वें भाग की सत्यता के साथ बना हुआ है। सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि इसे सन् 1646 में बनाया गया था। उस समय तक लेंस-निर्माण के लिए न तो आज की तरह के आधुनिक उपकरण उपलब्ध थे और न ही इस प्रकार की कोई तकनीक विकसित हो पाई थी। इस लेंस के निर्माणकर्ता थे टोरिसेली (Evangelista Torricelli biography in hindi ) । इससे हम सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि इस वैज्ञानिक की प्रतिभा किस ऊंचे दर्जे की थी।
इवानजेलिस्टा टोरिसेली और वायुदाबमापी यंत्र का अविष्कार – Evangelista Torricelli biography in hindi
जिस वायुदाबमापी के आविष्कारक के रूप में आज सम्पूर्ण विश्व टोरिसेली को जानता है उस वायुदाबमापी के आविष्कार की कहानी भी बड़ी रोचक है बहुत कम लोग ही ऐसे हैं जो इस कहानी से वाकिफ हैं।
यह कहानी कुछ इस प्रकार है सन् 1640 में टसकानि के ग्रेड ड्यूक ने अपने महल के अहाते में एक कुआं खुदवाया। कुआं खुद गया और पानी लगभग 40 फुट की गहराई पर मिला । पानी को ऊपर लाने के लिए एक पम्प लगाया गया, जिसकी नली पानी में डूबी हुई थी। पम्प के हैंडल को बार-बार ऊपर-नीचे करने पर भी पानी टूटी से बाहर नहीं आया। यह केवल 33 फुट की ऊंचाई तक ही चढ़ पा रहा था। सोचा गया कि पम्प में कुछ खराबी है लेकिन काफी जांच करने पर भी उसमें कोई गड़बड़ नहीं मिली।
इस घटना की सूचना ड्यूक को दी गई। उनकी समझ में भी यह बात नहीं आ पाई कि आखिर पम्प काम क्यों नहीं कर रहा है। गैलीलियो उन दिनों ड्यूक के विशिष्ट दार्शनिक और गणितज्ञ थे। अतः यह समस्या सुलझाने के लिए उन्हें ही दी गई। गैलीलियो ने इस समस्या की कुछ व्याख्या तो की लेकिन वे स्वयं इस व्याख्या से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। वृद्ध होने के कारण गैलीलियो ने इस समस्या को अपने होनहार शिष्य टोरिसेली को सुलझाने के लिए दे दिया । टोरिसेली (Evangelista Torricelli biography in hindi )उन दिनों गैलीलियो के सचिव के रूप में कार्य कर रहे थे।
गैलीलियो की कुछ ही दिनों में मृत्यु हो गई और उनके स्थान पर टोरिसेली की नियुक्ति कर दी गई। इसके बाद टोरिसेली ने इस समस्या पर काम करना आरम्भ किया।
वायु मापी यन्त्र /वायुदाब लेखी (बैरोग्राफ) का — द्वारा आविष्कार किया गया था।
टोरिसेली का विश्वास था कि पम्प द्वारा भारी द्रव को इतनी ऊंचाई तक नहीं उठाया जा सकता, जितना कि किसी हलके द्रव को। इसलिए उन्होंने अपने प्रयोग के लिए पारे को चुना। पारा, पानी की तुलना में साढ़े तेरह गुना कम ऊंचाई तक ही उठाया जा सकता है। चूंकि पम्प से पानी को 33 फुट की ऊंचाई तक उठाया जा सकता था,
इसलिए पारे को केवल 30 इंच की ऊंचाई तक ही उठा पाना सम्भव था। यह संख्या 33 फुट को 13.5 से विभाजित करने पर प्राप्त होती है। पानी के स्थान पर पारे को इस्तेमाल करने में सबसे बड़ी सरलता यह थी कि 33 फुट लम्बी नली के स्थान पर केवल 1 गज लम्बी नली ही पर्याप्त थी।
टोरिसेली ने कांच की एक नली ली। इसकी लम्बाई लगभग एक गज थी और उसका एक सिरा बंद था। पहले उन्होंने इस नली को पारे से भरा और उसके खुले सिरे को अंगूठे से दबाकर और नली को उलटा करके पारे से भरे कटोरे में डुबा दिया ताकि खुला सिरा पारे की सतह के नीचे रहे। जब उन्होंने अपने अंगूठे को नली के खुले सिरे से हटाया तो नली में पारा कुछ नीचे की ओर खिसका और पारे के स्तम्भ
की लम्बाई 30 इंच रह गई। नली के ऊपरी भाग में जहां पहले पारा भरा था वहां खाली स्थान हो गया। बाद में इसी खाली स्थान का नाम ‘टोरिसेली निर्वात’ के नाम से पुकारा जाने लगा। इस प्रयोग से यह सिद्ध हो गया कि पानी को पम्प द्वारा मात्र इतनी ऊंचाई तक उठाया जा सकता है, जो 30 इंच x 13.6 के बराबर हो। यह ऊंचाई लगभग 33 फुट के करीब होती है। इस प्रयोग से कुएं में लगे पम्प की विफलता का कारण तो स्पष्ट हो ही गया, साथ ही साथ टोरिसेली (Evangelista Torricelli biography in hindi ) की यह नली वायुदाबमापी (बैरोमीटर) के रूप में प्रयोग होने लगी।
आज भी विज्ञान के विद्यार्थी साधारण बैरोमीटर इसी तरह से बनाते हैं। टोरिसेली के बनाए इस वायुदाबमापी को जब पहाड़ की चोटी पर ले जाया गया. तो यह देखा गया कि ऊंचाई बढ़ने के साथ पारे के स्तंभ की ऊंचाई कम होती जाती है। इससे यह सिद्ध हुआ कि ऊंचाई के साथ-साथ वायुदाब घटता है। इसी प्रयोग के आधार पर ब्लेज पास्कल नामक वैज्ञानिक ने गैलीलियो के इस कथन की पुष्टि की
कि वायु में भार होता है।
आज वायुदाबमापी मौसम विज्ञान का एक अत्यावश्यक अंग बन गया है। आज अनेक प्रकार के उन्नत तकनीक के वायुदाबमापी बनने लगे हैं। इस महान वैज्ञानिक ने कई प्रकार के दूरदर्शी, सूक्ष्मदर्शी और दूसरे प्रकाशीय उपकरणों के नमूने बनाए, जो बहुत ही शुद्धता के साथ बनाए गए थे। टोरिसेली न केवल प्रयोगात्मक वैज्ञानिक थे बल्कि एक अच्छे गणितज्ञ भी थे।
इन्होंने इंटीग्रल कैलकुलस में भी कई महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। सन् 1641 में इनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसमें इन्होंने अपने गुरु गैलीलियो के सिद्धांतों का विवरण दिया था। इनके समय में हार्वे, बेकन, पास्कल आदि प्रसिद्ध वैज्ञानिक मौजूद थे . दुर्भाग्य से इस वैज्ञानिक की मृत्यु 39 साल की आयु मे हो गयी.
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