शरद ऋतु[विषय-प्रवेश-प्रकृति-नव-जीवन का आरम्भ, त्योहारों की ऋतु, स्वास्थ्य, उपसंहार](Essay about autumn Hindi )
“वर्षा विगत शरद ऋतु आई।” -तुलसीदास (रामचरितमानस) वर्षा ऋतु के जाते ही शरद ऋतु का आगमन होता है। स्वच्छ नीले आकाश में हवा के झोंकों पर उजले धूसर बादल भागे चले आते हैं। प्रकृति नये रंगों में रंग जाती है। कास और कमल-फूल खिल उठते हैं, हरसिंगार, कुमुद, केतकी मस्ती में झूमने लगती हैं, भौरे गूंजने लगते हैं।
पावस की कठिनाइयों से ऊब कर भागे हुए खंजन पक्षी पुनः लौट कर शरद के आगमन की पुष्टि करते हैं। नदियों और तालाबों का गन्दा पानी निर्मल हो जाता है। मछलियाँ मग्न हो कुलेल करने लगती हैं। दूबों पर मोती जैसे ओसकण चमकने लगते हैं, धूप सुहानी लगने लगती है। शाम सपने जगाती है। खेतों में धान की सुनहली बालियाँ अटखेलियाँ करती हैं।
शरद ऋतु में रास्ते सूख जाते हैं और ग्रामवासियों के अनेक संकट हो जाते हैं। वे वर्षा से जर्जर अपने मकानों की मरम्मत करने में जुट जाते हैं। रबी की बुआई शुरू हो जाती है, रुका हुआ व्यापार आवागमन की सुविधा से फिर शुरू हो जाता है, देहात तथा शहरों की मंडियों में चहल-पहल फिर बढ़ जाती है।
शहर और गाँव सजने लगते हैं। क्यों न सजें? दुर्गापूजा, लक्ष्मीपूजा, दीपावली, गोवर्धन पूजा, सूर्य व्रत (छठ व्रत) और कार्तिक पूर्णिमा जैसे पर्व-त्योहार भी तो इन्हीं दिनों पड़ते हैं। सर्वत्र हँसी-खुशी का ही आलम नजर आता है। इस ऋतु में स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। तन और मन ठीक हो तो और क्या चाहिए? जो हो, लेकिन शरद ऋतु के आगमन के साथ ही हमें जाड़े का डर सताने लगता है जो गरीबों के लिए दु:खदायी होता है। गलीचा, गुलगुले कपड़े कहाँ से लाएँगे?
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