रेडियो एक्टिविटी (Radioactivity in hindi)-1896 में फ्रेंच वैज्ञानिक हेनरी बेकरल (Henry Becquerel) ने देखा कि Uranium तथा plutonium से कुछ अदृश्य विकिरण स्वतः उत्सर्जित होते रहते हैं।
ये विकिरण अपारदर्शी पदार्थों जैसे–कागज आदि को बेधने की क्षमता रखते हैं तथा फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करते हैं। इन विकिरणों को ‘रेडियोऐक्टिव किरणें’ (radioactive rays) या बेकरल के नाम पर ‘बेकरल किरणे (Becquerel rays) कहा गया तथा
पदार्थों के इस गुण को रेडियोऐक्टिवता(Radioactivity in hindi)कहा गया ।
“ऐसे पदार्थों जो ‘रेडियोऐक्टिव किरणें’ उत्सर्जित करते हैं, रेडियोऐक्टिव पदार्थ कहते हैं। यूरेनियम, रेडियम, पोलोनियम, थोरियम और रेडियोऐक्टिव पदार्थों के उदाहरण हैं। “
हेनरी बेकरल के बाद Radioactivity पर राबर्ट पियरे क्यूरी व उनकी पत्नी मैडम क्यूरी ने विशेष कार्य किये। पियरे-दम्पत्ति ने एक नये Radioactive तत्व ‘रेडियम (Radium) की खोज की, जिसको उन्होंने पिच ब्लेण्डी (Pitch-blende) नामक यूरेनियम के खनिज से प्राप्त किया।
1902 में रदरफोर्ड (Rutherford) ने Radioactive पदार्थों से उत्सर्जित किरणों का अध्ययन किया एवं पाया कि ये किरणे भिन्न-भिन्न प्रकार की होती हैं। रदरफोर्ड ने इन किरणों को एक विद्युत क्षेत्र में से गुजारा तथा पाया कि ये किरणें तीन प्रकार की होती हैं।
विद्युत क्षेत्र में जो किरणें ऋणावेशित प्लेट की ओर मुड़ती हैं वे अल्फा किरणें (α-rays) कहलाती हैं तथा जो किरणे धनात्मक प्लेट की ओर मुड़ती हैं उन्हें बीटा किरणें (β-rays) कहते हैं तथा तीसरे प्रकार की किरणें सीधे बिना विक्षेपित हुये निकल जाती हैं उन्हें गामा किरणें (γ-rays) कहते हैं ।
अल्फा (α) किरणों के गुण-Alpha ray properties in hindi
ये किरणें गतिमान धनावेशित कणों से मिलकर बनी होती हैं। इन कणों को अल्फा कण (αparticles) कहते हैं। इन कणों का द्रव्यमान हाइड्रोजन के परमाणु का चार गुना होता है। इनकी बेधन क्षमता (penetrating power) बहुत कम व गैसों की आयनन क्षमता (ionisation) बहुत अधिक होती है।
ये किरणें कुछ पदार्थों जैसे-जिंक सल्फाइड आदि पर पड़ने पर प्रतिदीप्ति (fluorescence) उत्पन्न करती हैं। इन कणों का वेग करीब 2.2 x 10^7 मीटर प्रति सेकेण्ड होता है। अत्यधिक वेग से निकलने के कारण ये कण नाभिकों पर बमबारी करने तथा एक तत्व को दूसरे तत्व में परिवर्तित करने के काम आते हैं।
यदि नाइट्रोजन पर इन कणों की बमबारी की जाये तो आक्सीजन का निर्माण होता है।
बीटा(β) किरणों के गुण-Beta ray properties in hindi
β-किरणें ऋणावेशित कणों से मिलकर बनी होती हैं। इन कणों को बीटा-कण (B particles) कहते हैं।
इन कणों पर इलेक्ट्रॉन के आवेश के बराबर आवेश होता है। इन कणों का वेग बहुत अधिक होता है तथा प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है। इन कणों की वेधन क्षमता α-कणों की अपेक्षा अधिक व आयनन क्षमता अल्फा कणों की अपेक्षा कम होती है। ये कण फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करते हैं ।
गामा (γ) किरणों के गुण-gamma ray properties in hindi
ये किरणें विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं तथा ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों (packets) से मिलकर बनी होती हैं जिन्हें फोटॉन (photons) कहते हैं। इन किरणों का वेग प्रकाश के वेग के बराबर होता है। इनकी वेधन क्षमता अत्यधिक होती है व आयनन क्षमता न्यूनतम होती है ।
ये विद्युत या चुम्बकीय क्षेत्र से प्रभावित नहीं होती लेकिन प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती हैं। इन किरणों में ऊर्जा की मात्रा बहुत अधिक संचित रहती है।
रेडियोऐक्टिवता के अनुप्रयोग (Application of radioactivity in hindi)
कृत्रिम Radioactivity द्वारा प्राप्त रेडियो ऐक्टिव समस्थानिकों का प्रयोग निम्न क्षेत्रों में किया जाता है-
(1) नाभिकीय खोजों में रेडियो समस्थानिकों का नाभिकीय अनुसंधानों में बहुत उपयोग होता है। नाभिकीय विघटन, प्रकाश संश्लेषण आदि के अध्ययन के लिये ये सूक्ष्म विधियाँ उत्पन्न करते हैं।
(2) जीव विज्ञान व औषधियों में रेडियो ऐक्टिव समस्थानिकों का प्रयोग जैविक अनुसंधानों (Biological researches) एवं औषधियों में अनुरेखकों (Tracess) की भाँति होता है। रेडियो ऐक्टिव सोडियम का मानव शरीर में औषधि के परिसंचरण (circulation) के अध्ययन के लिये प्रयोग किया जाता है।
रेडियो समस्थानिकों(Radioactivity in hindi) का प्रयोग पाचन-तन्त्र का अध्ययन करने में भी किया जाता है। इस प्रक्रिया में रोगी को रेडियोऐक्टिव मिला हुआ कोई पदार्थ खिलाया जाता है। इनके द्वारा शरीर में खून की मात्रा भी ज्ञात की जाती है।
(3) कृषि में रेडियो समस्थानिकों को अनुरेखकों की भाँति प्रयोग करके, पौधों द्वारा विभिन्न उर्वरकों के ग्रहण करने की क्षमता का अध्ययन किया जाता है। उर्वरकों को प्रयोग में लाने के पहले उनमें थोड़ी मात्रा में रेडियो ऐक्टिव पदार्थ की मात्रा मिला दी जाती है। जब पौधे बढ़ना शुरू करते हैं तो गइगेर मुलर गणक (Geiger Muller Counter) की सहायता से पौधों द्वारा ली गई उर्वरक की मात्रा ज्ञात करते हैं।
इससे किसानों को यह ज्ञात करने में सुविधा होती है कि कितनी मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना है। गामा-किरणों का उपयोग कीटाणुओं आदि हानिकारक जीवों को नष्ट करने में किया जाता है।
(4) रोगों के उपचार में रेडियोऐक्टिव(Radioactivity in hindi) समस्थानिकों का उपयोग बहुत से रोगों का उपचार करने में भी किया जाता है। रेडियोऐक्टिव कोबाल्ट का प्रयोग कैन्सर को ठीक करने में किया जाता है । रेडियो आयोडीन अवटु ग्रन्थि (Thyroid gland) के उपचार में भी काम आती है।
(5) उद्योगों में रेडियोऐक्टिव समस्थानिकों का प्रयोग जमीन के अन्दर पाइपों द्वारा दूरस्थ स्थानों को तेल भेजने में किया जाता है। कोबाल्ट व टंगस्टन के समस्थानिक मशीनों व अन्य यन्त्रों में खराबी या टूटन को ज्ञात करने में प्रयोग किये जाते हैं।
(6) प्राचीन तत्वों की आयु ज्ञात करने में रेडियो समस्थानिकों का प्रयोग अत्यधिक प्राचीन तत्वों की आयु ज्ञात करने में बहुत होता है। इसकी सहायता से जीवाश्मों, प्राचीन पेड़-पौधों व पृथ्वी की आयु ज्ञात किया जाता है। जीवाश्मों, मृत पेड़-पौधों आदि की आयु का अंकन (carbon dating) कार्बन के द्वारा किया जाता है। इसे कार्बन द्वारा आयु-अंकन (carbon dating) कहते हैं ।
इस विधि में मृत जीवाश्म या पौधों में प्राप्त कार्बन के दो समस्थानिकों C-12 व C-14 का अनुपात ज्ञात करके आयु का निर्धारण किया जाता है। इन दो समस्थानिकों में C-14 रेडियोऐक्टिव होता है। निर्जीव वस्तुओं जैसे—पृथ्वी, पुरानी चट्टानों आदि की आयु ज्ञात करने के लिये यूरेनियम का प्रयोग किया जाता है। इसे यूरेनियम द्वारा आयु अंकन (dating by uranium) कहते हैं।
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