तेल व वसा का मतलब क्या है (Oil meaning in hindi)
तेल या वसा रंगहीन पदार्थ हैं । ये ठोस या द्रव हो सकते हैं। साधारणतय: ये पदार्थ रंगहीन नहीं होते तथा अशुद्धियों के कारण इनका रंग पीला हो जाता है। ये जल में अविलेय परन्तु कार्बनिक पदार्थों जैसे ईथर, एल्कोहल आदि में विलेय होते हैं । तेल व वसा प्रकृति में जीव-जन्तुओं व वनस्पतियों से प्राप्त किये जाते हैं।
जन्तुओं में पाये जाने वाले तेलों में सुअर का तेल,ह्वेल का तेल,हट्टी का तेल व मछली का तेल प्रमुख हैं । वनस्पतियों में सरसों,अलसी,जैतून, तिल्ली का तेल प्रमुख हैं । इसी प्रकार वसाओं में कॉर्ड,टैलो अदि जन्तु वसा हैं, जबकि नारियल का तेल आदि वनस्पति वसा है।
तेल व वसा उच्च वसीय अम्लों (fatty acids) व अंसतृप्त अम्लों के ग्लिसराल के साथ बनने वाले एस्टर हैं। अधिकतर तेल व वसा पामिटिक, स्टिऐरिक, व औलिइक अम्लों के ग्लिसराल के मिश्रण के फलस्वरूप बनते हैं । वास्तव में तेल व वसाओं में अन्तर इनकी भौतिक अवस्थाओं में पाया जाता है तथा ये दोनों एक ही वर्ग के सदस्य हैं।
साधारण ताप पर जो ग्लिसराइड ठोस अवस्था में पाये जाते हैं ‘वसा’ कहलाते हैं व जो ग्लिसराइड द्रव अवस्था में पाये जाते हैं तेल कहलाते हैं। तेल व वसा में अन्तर उनके गलनाँको के आधार पर भी किया जाता है । इसके अनुसार जिन ग्लिसराइडों का गलनाँक 20°C से कम होता है वे तेल कहलाते हैं तथा जिनका गलनाँक इससे अधिक होता हैं, वसा कहलाते हैं।
कुछ तेलों, जैसे अलसी का तेल आदि में ग्लिसराइड की मात्रा अधिक पायी जाती है, जिसके फलस्वरूप ऐसे तेल वायु की उपस्थिति में शीघ्र आक्सीकृत होकर जम जाते हैं। ये पेन्ट, वार्निश आदि बनाने के काम आते हैं । विभिन्न तेलों व वसाओं की भौतिक अवस्था उनमें पाये जाने वाले स्टिऐरिन पामिटिन व ओलिइन, ग्लिसराइडों की मात्रा पर निर्भर करती है।
जिनमें स्टिऐरिन व पामिटिन की मात्रा अधिक होती है वे ठोस अवस्था में पाये जाते हैं तथा जिनमें ओनिइन की मात्रा अधिक पायी जाती है वे द्रव अवस्था में पाये जाते हैं। कुछ वनस्पति तेलों, जैसे खजूर का तेल आदि में अंसतृप्त ग्लिसराइडों की मात्रा अधिक पायी जाती है।
जब इन तेलों में हाइड्रोजन गैस किसी उचित उत्प्रेरक की उपस्थिति में प्रवाहित करते हैं तो ये ग्लिसराइड ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं। वनस्पति घी इसी प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है। तेलों का वायु की उपस्थिति में सूखना या न सूखना उनमें उपस्थित असंतृप्त ग्लिसराइडों की मात्रा पर निर्भर करता है।
जिन तेलों में इन ग्लिसराइडों की मात्रा अधिक पायी जाती है वे वायु की उपस्थिति में आक्सीकृत होकर शीघ्र सूख जाते हैं । इस श्रेणी में अलसी का तेल आदि आते हैं। जिन तेलों में असंतृप्त ग्लिसराइडों की मात्रा बहुत कम पायी जाती है वे आक्सीकृत नहीं होते तथा बहुत कम सूखते हैं । सरसों का तेल,जैतून का तेल आदि इसी श्रेणी में आते हैं ।
तेल व वसाओं का मुख्य उपयोग खाद्य पदार्थों के रूप में किया जाता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि वसा का गलनाँक हमारे शरीर के ताप (37°C) से कम होना चाहिये । इसके अतिरिक्त विभिन्न पेन्ट, वार्निश बनाने में, विभिन्न प्रकार के साबुन बनाने में मोमबत्ती बनाने में व विभिन्न प्रकार की औषधियाँ बनाने में भी इनका प्रयोग किया जाता है।