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फॉरेंसिक साइंस क्या है। जानिए कैसे पकड़ा जाता है अपराधियों को- Forensic science in Hindi

कहते हैं कि आपराधिक कितना भी चालाक क्यों ना हो वह अपने पीछे अपराध का कोई ना कोई सुराग अवश्य ही छोड़ जाता है। फिल्मों में अक्सर हम देखते हैं कि कैसे एक कोर्ट का टूटा हुआ बटन या सिगरेट का छोटा टुकड़ा पुलिस को अपराधी(forensic science in hindi) तक पहुंचा देता है।

कई बार यह सब चीजें कल्पना लगती है परंतु सच कहूं तो यह सब संभव होता है और इसके पीछे विज्ञान की कई शाखाओं का ज्ञान छुपा है। किसी भी अपराध को समझाने के लिए आमतौर पर विज्ञान के जिस ब्रांच का सहारा लिया जाता है उसका नाम है फॉरेंसिक साइंस। आज के इस आर्टिकल में हम इसी फॉरेंसिक साइंस( everything about forensic science in Hindi)के बारे में जानेगे।

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Police expert examines hard drive in search of evidence, conceptual image

फोरेंसिक विज्ञान एक वैज्ञानिक अनुशासन है जो एक आपराधिक मामले के तथ्यों के विश्लेषण से उसके परिणाम का निर्धारण करता है। इसे क्रिमिनलिस्टिक्स या क्रिमिनोलॉजी भी कहा जाता है।

फोरेंसिक विज्ञान रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिकी और कंप्यूटर विज्ञान सहित कई अलग-अलग विषयों का एक संयोजन है। इसमें कानून प्रवर्तन तकनीक और प्रक्रियाएं भी शामिल हैं जिनका उपयोग आपराधिक जांच में भौतिक साक्ष्य की पहचान करने, एकत्र करने, संरक्षित करने और विश्लेषण करने के लिए किया जाता है।

नई तकनीकों की शुरूआत के साथ समय के साथ फोरेंसिक विज्ञान का अर्थ बदल गया है। यह शब्द अब गैर-आपराधिक मामलों पर लागू किया जा सकता है जैसे उदाहरण के लिए किसी ने आत्महत्या की है या नहीं या प्राकृतिक कारणों से उनकी मृत्यु हुई है या नहीं, इसकी जांच।

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forensic science अर्थ क्या है (What is forensic science Meaning )

फोरेंसिक विज्ञान विज्ञान का एक क्षेत्र है जो कानूनी मामलों में साक्ष्य के आवेदन का अध्ययन करता है। इसका उपयोग अपराधों को सुलझाने और अपराध के बारे में सच्चाई का पता लगाने में मदद के लिए किया जाता है।

फोरेंसिक विज्ञान को पुलिस या एफबीआई जैसी कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कानूनी मामलों में साक्ष्य के आवेदन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसमें क्रिमिनलिस्टिक्स, डीएनए प्रोफाइलिंग, टॉक्सिकोलॉजी, बैलिस्टिक्स और कई अन्य जैसे विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं।

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फॉरेंसिक साइंस क्या है-What is forensic science in Hindi

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A young officer viewing a fingerprint on a computer.

फॉरेंसिक(forensic)शब्द लैटिन भाषा के शब्द फॉरेंसिस से लिया गया है। जिसका अर्थ होता है फोरम के समक्ष। रोमन काल में अपराधिक मामलों को लोगों के एक समूह(फोरम) के सामने रखा जाता था। जहां दोनों पक्षों को अपना अपना पक्ष रखने का मौका मिलता था। फैसला इस बात पर निर्भर करता था कि किसने अपनी बात को सबूत व तर्कसंगत आधार पर रखी है।

वैसे तो फॉरेंसिक साइंस( forensic science) का उपयोग एस्ट्रोनॉमी, आर्कियोलॉजी, बायोलॉजी तथा जियोलॉजी जैसे अन्य विषयों में खोज करने के लिए भी किया जाता है। परंतु मीडिया में आए दिन फॉरेंसिक जांच जैसे शब्दों के प्रयोग के कारण इसे आपराधिक तत्वों व घटनाओं की जांच का विज्ञान माना जाने लगा है।

फॉरेंसिक जांच की सहायता से जांच एजेंसी अनेक प्रकार के अपराधों का खुलासा कर अपराधियों तक पहुंच जाती है। इनमें प्रमुख अपराध जैसे मर्डर, आत्महत्या, एक्सीडेंट विस्फोट, चोरी, डकैती किसी भी प्रकार की ठगी शामिल है।

फॉरेंसिक साइंस का इतिहास- History of forensic science in Hindi

अपराध का पता लगाने में विज्ञान का प्रयोग बहुत पुराने समय से होता आ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार आर्कमिडीज जिन्होंने अनियमित आकार की वस्तु का आयतन निकालने के तरीके का पता लगाया था। विज्ञान की सहायता से सोने के मुकुट में चांदी की मिलावट का पता लगाया था।

इसी प्रकार सातवीं शताब्दी में चीनियों ने दस्तावेज की पहचान के लिए फिंगरप्रिंट्स का प्रयोग किया इसके बाद चीन में ही सॉन्ग वंश के शासन काल में सन 1248 मे सॉन्ग सी द्वारा लिखित पुस्तक में औषधि विज्ञान व कीट विज्ञान की सहायता से मर्डर करने वाले का पता लगाने का वर्णन मिलता है।

सन 1773 में एक स्वीडिश वैज्ञानिक Karl wilhelm ने मृतक शरीर में आर्सीनस ऑक्साइड तथा साधारण आर्सेनिक का पता लगाने की विधि निजाद की। जिसे बाद में 1806 में एक जर्मन केमिस्ट वैलेंटाइन रोस ने आगे बढ़ाते हुए पीड़ित के पेट की दीवारों मे मौजूद जहर का पता लगाने की विधि का पता लगाया। इससे toxicology तथा ballistics फॉरेंसिक साइंस का प्रयोग बढ़ा। अपराधों की गुत्थी को सुलझाने में इस विधि का प्रयोग सबसे पहले जेम्स मार्स नामक जांचकर्ता ने किया था।

फॉरेंसिक साइंस में फिंगरप्रिंट का योगदान- Discovery of fingerprints in Hindi

सर विलियम हरसेल ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपराधियों को पहचानने में फिंगरप्रिंट के प्रयोग पर जोर दिया। सन 1858 मे भारतीय सिविल में कार्य करते हुए उन्होंने दस्तावेजों पर अंगूठे व हाथों के निशान लेने प्रारंभ किया। ताकि अपने ही हस्ताक्षर को पहचानने से मना कर देने वाले लोगों के खिलाफ सबूत के रूप में पेश किए जा सके।

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सन 1880 में टोक्यो में काम कर रहे स्कॉटिश सर्जन ने विश्व विख्यात शोध पत्रिका नेचर में पहचान करने के लिए फिंगर प्रिंटिंग की उपयोगिता और इनको रिकॉर्ड करने का तरीका प्रकाशित किया। उन्होंने फिंगरप्रिंट का पहला वर्गीकरण प्रस्तुत किया तथा पहली बार एक शीशे पर छोड़े गए फिंगरप्रिंट को पहचाना।

सन 1886 में इंग्लैंड वापस आकर उन्होंने यह प्रस्ताव मेट्रोपॉलिटिन पुलिस वालों के समक्ष रखा। जिसे उस वक्त अस्वीकार कर दिया गया। उनको इस बात से बहुत निराशा हुई। उसके बाद उन्होंने अपना रिसर्च विश्व विख्यात वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन को एक पत्र लिखकर अपने शोधों से अवगत कराया। और इसे आगे बढ़ाने का अनुरोध भी किया।

चार्ल्स डार्विन ने यह शोध कार्य अपने भतीजे फ्रांसिस गेलटन को सौंप दिया। गिल्टन ने इस विषय पर 10 वर्षों तक शोध करने के बाद फिंगरप्रिंटिंग की जांच और उनकी पहचान पर एक मॉडल विकसित किया। जिसे अपनी पुस्तक” fingerprints” मे छापा।

उन्होंने अपने इस शोध कार्य के माध्यम से बताया की किन्ही दो लोगों के हाथों के निशान एक दूसरे से नहीं मिलते हैं यदि मिलते भी है तो यह संभावना 64 बिलियन लोगों में से एक व्यक्ति के निशान मिलने की है। 19वीं शताब्दी के अंत तक फोरेंसिक विज्ञान अपराध जगत की रहस्य सुलझाने के लिए बड़े बड़े पैमाने पर उभर कर सामने आया। इसके बाद से लेकर आज तक फॉरेंसिक विज्ञान में एक से बढ़कर एक नई चीजों का खोज होता चला गया।

कैसे पकड़ा जाता है अपराधियों को

जब किसी स्थान पर कोई अपराध होता है।तो जरूरी नहीं कि उसका कोई चश्मदीद गवाह हो। ऐसी परिस्थितियों में अपराधिक घटना की तस्वीर बनाना और उसे समझना जांच एजेंसियों के लिए सबसे बड़ा चैलेंज होता है।

परंतु वैज्ञानिक सिद्धांत और तकनीकों के सहायता से यह कर पाना काफी हद तक संभव है। जब कोई घटना घटता है तो जांच एजेंसी और सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंचकर तरह-तरह के सबूत एकत्रित करती है।

जांच एजेंसियों में घटना के प्रकृति के अनुसार संबंधित एक्सपर्ट होते हैं जो अपने अपने विषय से संबंधित सबूत घटनास्थल से एकत्रित कर उनकी जांच करते हैं। सभी का मकसद यह पता लगाना होता है कि घटना के पीछे कौन है। घटना कैसे घटी तथा कब घटी।

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DNA से बनेंगे अपराधियों के चेहरे

इस तकनीक पर विश्व की कई प्रयोगशालाओं में अनुसंधान हो रहे हैं वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले 5 से 10 वर्षों में इस तकनीक से अपराधियों के डीएनए से उनके चेहरे का सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा।

इतना ही नहीं बल्कि हमारे पूर्वज जो हजारों साल पहले विलुप्त हो गए थे उनके चेहरों का भी अनुमान लगाया जा सकेगा। ऐसे अपराध जिनमें मृत व्यक्ति का मात्र कंकाल ही मिल पाता है इस तकनीक से उनके चेहरे का आकलन कर व्यक्ति की पहचान की जा सकती है।

2012 में नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने पांच अनुवांशिक विभिनता के बारे में पता लगाया जिनका चेहरे की बनावट पर प्रभाव पड़ता है। पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय के मार्ग श्राईवर एवं उनके साथ ही वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में 3D इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया।

उन्होंने ऐसा मॉडल भी बनाया जिसमें 700 बिंदु को चेहरे पर सुपर इंपोज भी किया जा सकता है। इसके आधार पर डीएनए के अनुसार चेहरे का चित्र बनाया जा सकता है।

स्वेद प्रिंट-sweat print

यदि आने वाली तकनीक की बात करें तो अपराधियों का पसीना भी उनका पसीना छुड़ा सकता है। अप्रैल 2014 में वैज्ञानिकों ने एक नए पदार्थ का विकास किया है जो पानी की अल्प मात्रा में वाष्प की उपस्थिति में अपना रंगी स्थाई रूप से बदल सकता है।

इसका रंग वाष्प या अल्प मात्रा में जल भी उपस्थिति में नीले से लाल हो जाता है। nature communication मे वैज्ञानिक मानते हैं कि भविष्य में पसीनो के बिंदुओं को हम लोग उंगलियों के निशान की तरह प्रयोग किया जा सकता है।

हमारे शरीर में स्वेद ग्रंथियां होती है जिससे पसीना निकलता रहता है यदि उपरोक्त पदार्थ को उन निशानों पर डाला जाए तो छोटे बिंदुओं की रूपरेखा बन जाती है। इस स्वेद ग्रंथि का ठीक उसी प्रकार चित्र बनता है जैसे यह उंगलियों के ही निशान हो।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि श्वेत ग्रंथों की सहायता से उंगलियों के छोटे से छोटे निशानों से व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। विज्ञान में हो रहे यह सभी खोज किसी क्रांति से कम नहीं है।

यह article “फॉरेंसिक साइंस क्या है। जानिए कैसे पकड़ा जाता है अपराधियों को- Forensic science in Hindi” पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया उम्मीद करता हुँ। कि इस article से आपको बहुत कुछ नया जानने को मिला होगा

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