दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे female reproductive system के बारे। female reproductive system क्या होता है। बच्चों का जन्म कैसे होता है। females गर्भावस्था कैसे धारण करती हैं। इस दौरान उनके शरीर में होने वाले विभिन्न बदलाव के बारे में भी समझेंगे।
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मादा-जनन अंग क्या है(What is female reproductive system)
मादा-जननांग में ये रचनाएँ पाई जाती हैं— अंडाशय (ovary),फैलोपिअन नलिका (Fallopian tube), गर्भाशय (uterus),योनि (vagina) तथा भग या वल्वा (vulva)। अंडाशय-प्रत्येक स्त्री में एक जोड़ा अंडाशय पाया जाता है। अंडाशय उदरगुहा के निचले भाग में स्थित श्रोणिगुहा (pelvic cavity) में पाए जाते हैं। प्रत्येक अंडाशय एक पतली, पेरिटोनियम की झिल्ली के द्वारा उदरगुहा की पृष्ठीय दीवार से जुड़ी होती है। प्रत्येक अंडाशय संयोजी ऊतक के एक आवरण ट्यूनिका एल्बुजिनिया से ढंका होता है। इस आवरण के नीचे जनन एपिथीलियम पाया जाता है जिससे अंडाणु (ovum) विकसित होते हैं।
फैलोपिअन नलिका(Fallopian tubes function)
ये एक जोड़ी चौड़ी नलिकाएँ हैं जो अंडाशय के ऊपरी भाग से शुरू होकर नीचे की ओर जाती हैं और अंत में गर्भाशय से जुड़ जाती हैं। प्रत्येक फैलोपिअन नलिका का शीर्षभाग एक चौड़े कीप के समान होता है जो अंडाणु को फैलोपिअन नलिका में प्रवेश करने में सहायता करते हैं। फैलोपिअन नलिका की दीवार मांसल एवं संकुचनशील होती है। इसकी भीतरी सतह पर सीलिया लगी होती हैं, जो अंडाणु को फैलोपिअन नलिका में नीचे की ओर बढ़ने में सहायता देती है।इस नलिका के द्वारा अंडाणु गर्भाशय (uterus) में पहुँचते हैं।
गर्भाशय(Uterus)
यह मोटी दीवार वाली पेशीय थैली के समान रचना है जो मूत्राशय तथा मलाशय के बीच श्रोणिगुहा में स्थित होती है। यह लगभग तिकोनी रचना है जिसका ऊपरी भाग ज्यादा चौड़ा होता है। इसके ऊपरी भाग के दाएँ और.बाएँ कोने से उस ओर की फैलोपिअन नलिका जुड़ी होती है। गर्भाशय की गुहा में ही भ्रूण (embryo) का विकास होता है। इसकी गुहा सामान्य स्थिति में 7-8 cm लंबी होती है। परंतु, भ्रूण के विकास के समय यह बढ़ जाती है और गर्भ के आठवें महीने में लगभग 18-20 cm लंबी तथा अंडाकार हो जाती है।
शिशु के जन्म के बाद यह पुनः छोटी हो जाती है, परंतु सामान्य स्थिति में न आकर उससे थोड़ी बड़ी रह जाती है। गर्भाशय का निचला भाग सँकरा होता है। इसे ग्रीवा या सर्विक्स (cervix) कहते हैं। ग्रीवा नीचे की ओर योनि (vagina) में खुलता है।
योनि(Ovum function)
यह एक पेशीय नली के समान रचना है जो 7-10 cm लंबी होती है। इसकी दीवार पेशी तथा तंतुमय संयोजी ऊतक की बनी होती है तथा यह फैलने योग्य होती है। यह बाहर की ओर एक छिद्र भग या वल्वा (vulva) के द्वारा खुलती है। वल्वा एक पतली झिल्ली से ढंकी होती है जो हायमेन (hymen) कहलाती है। इसमें एक बहुत-ही छोटा छिद्र होता है। पहली बार संभोग के समय या चोट आदि लगने से यह झिल्ली टूट जाती है। फिर दुबारा इसका निर्माण नहीं होता है।
योनि संभोग या मैथुन (copulation) के समय नर के शिश्न को ग्रहण करती है जिससे स्खलित वीर्य मादा जननांग के अंदर पहुँचते हैं। जन्म के समय शिशु इसी रास्ते बाहर निकलता है। मासिक स्राव के भी बाहर निकलने का रास्ता यही है।
वल्वा या भग
यह योनि के ठीक बाहर वाह जननेंद्रिय(external genetilia) के रूप में स्थित होता है। निषेचन-संभोग के समय जब नर का वीर्य मादा की योनि में स्खलित (ejaculate) होता है तब वीर्य में स्थित क्रियाशील शुक्राणु (नर युग्मक) पूँछ की गति की सहायता से गर्भाशय तथा फिर आगे फैलोपिअन नलिकाओं के अगले भाग में पहुँच जाते हैं। यहाँ तक कई शुक्राणु एक साथ पहुँचते हैं, परंतु उनमें से केवल एक शुक्राणु ही फैलोपिअन नलिका में पहुँचे अंडाणु (मादा युग्मक) के साथ संयोग करने में सफल हो पाता है।
नर युग्मक शुक्राणु तथा मादा युग्मक अंडाणु का संयोजन या संयुग्मन (fusion) ही निषेचन (fertilization) कहलाता है। बचे हुए शुक्राणु नष्ट हो जाते हैं। अधिकांश शुक्राणु फैलोपिअन नलिका में ऊपर की ओर गति करते समय ही नष्ट हो जाते हैं। फैलोपिअन नलिका में शुक्राणुओं की गति की दर लगभग 100 माइक्रॉन प्रति मिनट है। सामान्यतः शुक्राणु फैलोपिअन नलिका में करीब 12 घंटे तक जीवित रहते हैं।
इसी अवधि के दौरान ये अंडाणु से संयोग कर सकते हैं। स्त्रियों में लैंगिक चक्र तथा अंडाणु के निषेचित न होने के बाद की क्रिया-स्त्रियों में यौवनारंभ या प्यूबर्टी (puberty) सामान्यतः 10 से 12 वर्ष की आयु में होता है, अर्थात इस उम्र में नारी में जनन-क्षमता प्रारंभ हो जाती है तथा आंतरिक जननांगों में कुछ चक्रीय क्रियाएँ (cyclical events) होती हैं। जिसे मासिक चक्र (menstrual cycle) अथवा मासिक धर्म या रजोधर्म या मासिक स्राव (menses or menstruation) कहते हैं। यह चक्र 28 दिनों तक चलता है। सामान्य स्थिति में प्रत्येक 28 दिन पर इसकी पुनरावृत्ति होती है।
मासिक चक्र के प्रारंभ में ग्राफी पुटक या ग्राफियन फॉलिकिल में स्थित अंडाणु परिपक्व होने लगते हैं। यह क्रिया पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा स्रावित हॉर्मोन के प्रभाव में प्रारंभ होता है। ग्राफियन फॉलिकिल के परिपक्व होते ही अंडाशय से हॉर्मोन ऐस्ट्रोजेन निकलता है जो गर्भाशय की दीवार में कुछ आवश्यक परिवर्तन लाता है। गर्भाशय की दीवार की सबसे भीतरी सतह जिसे अंतःस्तर या एंडोमीट्रियम (endometrium) कहते हैं, रक्त केशिकाओं तथा ग्रंथियों के विकास के कारण मोटी हो जाती है।
गर्भाशय में इस तरह की तैयारी अंडाणु के निषेचन के बाद भ्रूण के विकास के लिए आवश्यक होती है।मासिक चक्र के करीब बीच में यानी करीब 14वें दिन केवल एक परिपक्व अंडाणु अंडाशय से बाहर (अंडोत्सर्ग) निकलता है। यह अंडाणु फैलोपिअन नलिका में पहुँच जाता है।
अंडोत्सर्ग के बाद फॉलिकिल का बचा भाग पीले रंग का हो जाता है। अब इसे पीतपिंड या कॉर्पस ल्यूटियम (corpus luteum) कहते हैं। कॉर्पस ल्यूटियम एक अंतःस्रावी ग्रंथि है। इससे एक हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन (progesterone) स्रावित होता है। इस हॉर्मोन के प्रभाव से गर्भाशय की दीवार और मोटी हो जाती है।
36 घंटे के भीतर अगर यह अंडाणु शुक्राणु के द्वारा निषेचित नहीं होता है तब यह नष्ट हो जाता है। इसके साथ-साथ कॉर्पस ल्यूटियम भी निष्क्रिय होकर विकृत होने लगता है। इसके कारण हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन का स्राव भी बंद हो जाता है। प्रोजेस्टेरॉन की कमी से गर्भाशय की दीवार का अंतःस्तर अलग हो जाता है तथा अंडोत्सर्ग के करीब 2 सप्ताह बाद यानी चक्र के प्रारंभ होने के 28वें दिन रक्त, म्यूकस, गर्भाशय की दीवार से अलग हुई टूटी कोशिकाएँ तथा अंडाणु योनि से स्राव के रूप में बाहर आ जाते हैं।
इसी क्रिया को मासिक स्राव कहते हैं। यह स्राव करीब 3 से 5 दिनों में समाप्त हो जाता है तथा अंडाशय में फिर से नए अंडाणु का निर्माण कार्य शुरू हो जाता है, अर्थात मासिक चक्र पुनः प्रारंभ हो जाता है। अगर अंडाणु शुक्राणु से निषेचित होने में सफल हो जाता है तब निषेचित अंडे का आगे विकास गर्भाशय में होने लगता है। गर्भधारण की संपूर्ण अवधि में अंडाणु का निर्माण नहीं होता है तथा कॉर्पस ल्यूटियम सक्रिय रहकर हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन तथा रिलैक्सिन (relaxin) स्रावित करता है। इन दोनों हॉर्मोनों के प्रभाव से गर्भावस्था में होनेवाली अन्य क्रियाएँ संपन्न होती हैं।
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