- जन्म – 9 february, 1473
- जन्म स्थान -तौरून, पोलैंड
- निधन – 1542 ई .
कोपर्निकस एक ज्योतिर्विद, गणितज्ञ, चिकित्सक, पादरी और एक सुलझे हुए. राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने ग्रह-नक्षत्रों की जटिल गतिविधियों की व्याख्या करते हुए.कहा था कि-‘यदि हम सूर्य को एक अचल बिंदु मान लें और पृथ्वी नक्षत्रों आदि को उसकी परिक्रमा करने वाले तारों के रूप में स्वीकार कर लें. तो सब कुछ आसानी से समझा जा सकता है। उनके इसी विचार ने आधुनिक खगोल विज्ञान की नींव डाली थी।
निकोलस कोपर्निकस का जन्म -Biography of Nicolaus Copernicus in Hindi
निकोलस कोपर्निकस (nicolaus copernicus) का जन्म, 19 फरवरी, 1473 के दिन, पोलैंड के तौरून नामक शहर में हुआ था। कोपर्निकस निकोलस कोप्परनिङ् तथा बार्बरा वाक्जेनरोद के दो पुत्रों और दो पुत्रियों में सबसे छोटे थे। निकोलस ( Biography of Nicolaus Copernicus in Hindi ) जब दस साल के हुए, उनके पिता की मृत्यु हो गई और घर के लोगों ने मिलकर फैसला किया कि बच्चों का पालन-पोषण
अब उनके मामा पादरी ल्यूकस वाक्जेनरोद के यहां ही होना चाहिए। ल्यूकस के प्रभाव में—क्योंकि वह खुद एक पादरी था, और स्वाध्यायशील व्यक्ति था—निकोलस ने
भी यही निश्चय किया कि मैं भी बड़ा होकर धर्म-प्रचार करूंगा।
निकोलस कोपर्निकस की शिक्षा -nicolaus copernicus information
उनकी शिक्षा-दीक्षा भी इस प्रकार, , निर्धारित कर दी गई। 18 वर्ष की आयु में निकोलस पोलैंड के क्रैको विश्वविद्यालय में दाखिल हो गए। लैटिन पर अधिकार प्राप्त करके निकोलस ने दर्शन, ज्योतिर्विज्ञान, ज्यामिति तथा भूगोल आदि. विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया। कैको विश्वविद्यालय छोड़कर वह इटली के बोलोना स्कूल ऑफ लॉ में जाकर दाखिल हो गए। और बोलोना के बाद वह पेदुआ विश्वविद्यालय
में पहुंचे, जहां उनकी पढ़ाई बदस्तूर चलती रही। आखिर 1503 में फैरारा विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टर ऑफ लॉज की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद निकोलस पोलैंड घर वापस आ गए.
पर वहां बहुत दिन नहीं रहे। वह मैडिकल स्कूल में और पढ़ाई करने के लिए पेदुआ वापस लौट आए। 33 वर्ष की उम्र में कोपर्निकस की शिक्षा-दीक्षा आखिर समाप्त हो
ही गई, और वह अपने बूढ़े और बीमार मामा के सेवा के लिए पोलैंड वापस लौट आए।
निकोलस कोपर्निकस और उनके खोज -nicolaus copernicus inventions
शुरू-शुरू में ग्रह गणना करते हुए और नक्षत्र-मंडल का अध्ययन करते हुए. कोपर्निकस( nicolaus copernicus) ने भी प्राचीन ग्रीक तथा अरबी गणनाओं को ही सही स्वीकार कर लिया।
किंतु उनके मन में अब भी यह था कि कुछ नई गणनाएं अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं.
क्योंकि लोगों में एक संदेह-सा उत्पन्न हो चुका था. कि उस जमाने से इस जमाने तक पहुंचते-पहुंचते ब्रह्मांड की स्थिति में कुछ न कुछ परिवर्तन आ चुके हैं। कोपर्निकस (nicolaus copernicus )के यंत्र कोई सूक्ष्म यंत्र न थे, उनके द्वारा की गई आकाशीय गणनाओं में यूनानियों द्वारा की गई 1,500 साल पुरानी गणनाओं की अपेक्षा कोई अधिक सत्यता आने की उम्मीद न थी. और आज जो विश्व में एक महावैज्ञानिक के रूप में उनकी ख्याति है.
वह उनके साधनों एवं उनकी गणनाओं के कारण नहीं, बल्कि गणित तथा दर्शन के आधार पर, तथा सूक्ष्म चिंतन के द्वारा ब्रह्मांड को एक नये ढंग से समझने के कारण ही है। कोपर्निकस (nicolaus copernicus) के बाद भी—ताइको ब्राहे तथा योहेन्नीज कैपलर जैसे अन्य ज्योतिर्विद आए और उन्होंने उनकी भविष्यवाणियों’ में कुछ
संशोधन भी किए, किंतु-इस दिशा में उपक्रम तथा प्रेरणा स्वयं कोपर्निकस ही दे गए थे। 1539 में कोपर्निकस की मुलाकात रैटिकस से हुई। रैटिकस के अनुरोध पर
ही कोपर्निकस का मूल हस्तलेख छपने के लिए जर्मनी भेजा गया। इस पुस्तक का पूरा नाम है ‘रैवोल्यूशनिबस आर्विअम सिलेस्टिअस’ (ब्रह्मांड की दैवी प्रदक्षिणाएं) जिसको संक्षेप में आज हम रैवोल्यूशन्स’ (प्रदक्षिणाएं) के नाम से जानते हैं।
कोपर्निकस( nicolaus copernicus )के सिद्धांत का केंद्र-बिंदु यह है कि ब्रह्मांड को यदि एक सामान्य चित्र द्वारा प्रस्तुत करना हो तो सूर्य को केंद्र मानते हुए. यह मानना होगा कि हमारी पृथ्वी एक ग्रह की तरह उसकी परिक्रमा कर रही है। पृथ्वी की इन्हीं परिक्रमाओं में हमारे ऋतु-परिवर्तन का रहस्य छिपा हुआ है। कोपर्निकस ने ही पहली बार यह बात स्पष्ट की कि आसमान में तारों की स्थिति, उन्हें इटली से देखी जा सकती वो मिस्र से देखने समान नहीं होगी। North poles से हम उन्हीं तारों को नहीं देख सकते जिन्हें कि हम South poles से देख सकते हैं।
जहाज के पर अगर एक दीपक रख दिया जाए. तो ज्यों-ज्यों जहाज समुद्र की ओर बढ़ेगा दीपक की लौ मद्धिम पड़ती-पड़ती कुछ देर बाद अदृश्य हो जाएगी—ऐसा मालूम पड़ेगा जैसे वह पानी में प्रविष्ट होती जा रही है। इन तथ्यों को उन्होंने एक प्रयोग में बांधा और सिद्ध कर दिखाया कि जमीन गोल है।
कोपर्निकस (nicolaus copernicus) इस बात की गहराई में भी, विवेचना करते-करते जा पहुंचे कि ये तारे और नक्षत्र कभी-कभी क्यों अपने परिक्रमापथ से विचलित होते नजर आते हैं-कभी एकदम से आगे बढ़ जाते हैं, और कभी बिना किसी वजह के जैसे पीछे की ओर मुड़ आते हैं और बीच-बीच में जैसे चलना बिलकुल बंद कर देते हैं। उन्होंने स्पष्ट कर दिखाया कि यदि सूर्य को नक्षत्रों की इस गतिविधि का केंद्र मान लिया जाए, तो उनकी परिक्रमाओं में यह अनियमितता जैसे एकदम छूमंतर हो जाती है।
कोपर्निकस ने रैवोल्यूशन्ज’ में पृथ्वी, चंद्रमा तथ अन्य नक्षत्रों की गतिविधि का बड़ा सूक्ष्म विवेचन अंकित किया है। पुस्तक में पृष्ठ-पृष्ठ पर रेखाचित्र हैं जिनमें हर नक्षत्र का मार्ग अंकित है। और साथ ही गणना-सारणियां प्रस्तुत हैं जिनके द्वारा पाठक नक्षत्रों की पृथ्वी से, आपेक्षिक दूरी तथा स्थिति के विषय में बहुत-कुछ सही भविष्यवाणी’ कर सकता है। इन ‘भविष्यवाणियों’ में सचमुच कुछ गलतियां भी रह गई थीं जिन्हें कैपलर ने आकर दुरुस्त किया।
इसके दो कारण थे। एक तो यह कि कोपर्निकस (Biography of Nicolaus Copernicus in Hindi) के यंत्र कुछ अत्याधुनिक नहीं थे। दूसरा यह कि जैसा कि कैपलर ने सिद्ध कर दिखाया कि नक्षत्रों के परिक्रमामार्ग वास्तव में शुद्ध वृत्ताकार न होकर कुछ-कुछ अंडाकार हैं। फिर भी, इन गणनाओं में पर्याप्त यथार्थता थी. जिसके आधार पर एक नया और ज्यादा सही, कलैंडर ग्रेगोरियन कलेंडर -निर्मित किया जा सकता था। कोपर्निकस बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अर्थशास्त्र के सम्बंध में भी अपने विचार प्रतिपादित किए और अर्थशास्त्र को ‘ग्रेशम का नियम’ मिल गया। बदकिस्मती से जब किताब छपकर पहले-पहल कोपर्निकस (nicolaus copernicus) के हाथ में पहुंची.
जिसको विज्ञान-जगत मे न्यूटन की’प्रिंसीपिया‘ (मूल सिद्धांत) के समकोटि रूप में स्मरण करता है, तब वे इस हालत में नहीं थे कि किसी भी मामले पर साफ-साफ कुछ भी सोच सकें। वे मर रहे थे।
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