- जन्म-6 सितम्बर, 1766
- जन्म स्थान-इंग्लैंड
- निधन-1844 ई.
जॉन डाल्टन(john dalton)को विश्व की महान विभूतियों में गिना जाता है क्योंकि डाल्टन के समय से लेकर आज तक उनके सिद्धांत का निरंतर परीक्षण होता आ रहा है। उनका सिद्धांत है— ‘वस्तुमात्र के मूल निर्माण तत्त्व, जिनका आगे और विभाजन नहीं हो सकता उसे अणु कहते हैं।’ अणुशक्ति की पृष्ठभूमि जॉन डाल्टन(John Dalton)के द्वारा ही तैयार की गई थी।
जॉन डाल्टनका जन्म-john dalton biography in hindi
जॉन डाल्टन(john dalton)का जन्म 6 सितम्बर, 1766 को इंग्लैंड के एक गांव ईगल्सफील्ड में हुआ था। पिता जुलाहा थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा ‘कूकर्ज’ स्कूल में हुई जहां उन्होंने धर्मशिक्षा के अतिरिक्त गणित, विज्ञान, तथा अंग्रेजी ग्रामर भी पढ़ी।
हिसाब-किताब के मामलों में डाल्टन(john dalton schooling)की बुद्धि असाधारण थी। अभी वह बारह साल के ही थे जब गांव के अधिकारियों ने उन्हें अपना एक निजी स्कूल चलाने की अनुमति दे दी। इसी वक्त से उन्हें ऋतु-अध्ययन में एक नया शौक पैदा हो आया जो कि उम्रभर बना रहा।
सतत संघर्ष और प्रकृति के अध्ययन के दौरान वे एक महान विद्वान गफ के सम्पर्क में आए। गफ ने डाल्टन(about john dalton in hindi)को प्रेरित किया कि वह अपने ऋतु-सम्बंधी अध्ययनों को प्रकाशित करा दें जिसके परिणामस्वरूप उन्हें मेंचेस्टर की ‘साहित्यिकों एवं दार्शनिकों की गोष्ठी’ के सदस्य रूप में आमन्त्रित कर लिया गया।
सारा जीवन डाल्टन(Biography of John Dalton in hindi) का सम्बंध इस गोष्ठी के साथ बना रहा, और अपने जीवन के 50 सक्रिय वर्षों में डाल्टन ने 100 से ऊपर वैज्ञानिक निबंध गोष्ठी के सदस्यों के सम्मुख पढ़े।
जॉन डाल्टनका के शोधकार्य-John Dalton experiment
डाल्टन ने मैन्चेस्टर विश्वविद्यालय से इस्तीफा दे दिया कि अब वह एकनिष्ठ होकर वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसंधान में लग सकें।
अमीर वे थे नहीं, कुछ-कुछ प्राइवेट ट्यूटरी वे अब भी करते रहे फालतू दिन में वह सारा वक्त वातावरण का
अध्ययन करते। डाल्टन(John Dalton) ने वायु के कितने ही नमूने इंग्लैंड की विभिन्न जगहों से—पहाड़ों की चोटियों से और घाटियों से, गांवों से और शहरों से इकट्ठे किए।
इन सभी के विश्लेषण उन्होंने किए। पता लगा कि वायु प्रायः इन्हीं अवयवों से और प्रायः इन्हीं अनुपातों में हर कहीं बनती है। डाल्टन के सम्मुख अब एक प्रश्न था__“कार्बन डाई ऑक्साइड भारी होती है, वह नीचे आकर क्यों नहीं टिक जाती? ये गैसें परस्पर इतनी अधिक क्यों घुलमिल जाती हैं?
इनका यह मिश्रण कौन सम्भव करता है—हवाएं या ताप की निरंतर परिवर्तनमान धाराएं? डाल्टन(John Dalton invention)कोई बड़े परीक्षणकर्ता थे नहीं, फिर भी उन्होंने प्रयोगशाला में प्रश्न का कुछ समाधान करने का प्रयत्न किया। एक बोतल में एक हलकी गैस भर के, उसे उलटा कर, दोनों बोतलों के
मुंहों को मिला दिया। बोतलों में भारी और हलकी गैसें अलग-अलग नहीं रहीं—
कुछ ही देर बाद मिलकर एक हो गईं!” डाल्टन ने इस निष्कर्ष को इन शब्दों में अभिव्यक्ति किया (जिसे दुनिया आज गैसों का आंशिक दबावों का सिद्धांत’ करके जानती है)—‘एक गैस के कण, दूसरी गैस के कणों को नहीं, अपनी ही कणों को परे धकेलते हैं।
जिसके आधार पर डाल्टन(John Dalton) ने एक धारणा ही बना ली कि गैसों में बड़े छोटे-छोटे कण होते हैं और उनके दो कणों में विभाजक दूरी भी पर्याप्त होती है।और, यह सिद्धांत विज्ञान-जगत को आज भी मान्य है
डाल्टन(john dalton experiment hindi) ने अणुओं की एक भार-क्रमानुसारी ‘सारणी’ बनाने की कोशिश की।
डाल्टन(Biography of John Dalton in hindi)के निष्कर्ष गलत थे, किंतु उनकी युक्ति-शृंखला सही थी। प्रयोगशाला की कमियों की वजह से ही उनकी गणनाओं में ये गलतियां आ गई थीं। उनके इन आपेक्षिक अणु-भारों का आधार था—हाइड्रोजन के आपेक्षिक भार को ‘एक’ कल्पित कर बैठना। उन्होंने सोचा कि हाइड्रोजन के आपेक्षिक भार को एक ‘विरल’ (सिम्पल) ऑक्सीजन के ‘विरल’ के साथ जब मिलता है, तभी पानी की उत्पत्ति होती है।
किंतु ऑक्सीजन की आपेक्षिक गुरुता हाइड्रोजन की अपेक्षा सात-गुना होती है, इसलिए ऑक्सीजन के एक
अणु का भार भी हाइड्रोजन के अणु की अपेक्षा सात-गुना होना चाहिए। उन्हें यह मालूम नहीं था कि जल-निर्माण में ऑक्सीजन के अणु के साथ हाइड्रोजन के दो अणु मिला करते हैं।
दूसरी गलती वह दोनों गैसों को तोलने में भी कर गए, क्योंकि ऑक्सीजन के अणु का भार हाइड्रोजन से 16 गुना होता है सात-गुना नहीं। डाल्टन का सिद्धांत(john dalton theory hindi)इतने वक्त से निरंतर परीक्षित होता आ रहा है। सिद्धांत के मूल तत्त्व ये हैं—वस्तुमात्र के मूल निर्माण तत्त्व, जिनका आगे और विभाजन नहीं हो सकता, अणु कहलाते हैं,
भिन्न-भिन्न वस्तुओं के अणुओं की भिन्न-भिन्न विशेषताएं होती हैं, किंतु एक ही तत्त्व अथवा द्रव्य के अणु सभी एक-से ही होते हैं । रासायनिक प्रक्रियाओं(chemical reaction)में सारा-का-सारा अणु ही सक्रिय हुआ करता है। रासायनिक यौगिकों में इन अणुओं की आंतरिक रचना में कोई परिवर्तन नहीं आता।
अणुओं का न निर्माण हो सकता है न विनाश।
यह स्पष्ट करने के लिए कि किस प्रकार एक द्रव्य ‘विरल’ मिश्रण की प्रक्रियाओं में अवतरित होते हैं उन्होंने छोटे-छोटे वृत्त खींचकर उनमें तत्त्व-तत्त्व की आंतरिक संरचना मानो, संकलित कर दी।
डाल्टन के परमाणु सिद्धांत की परिभाषा (dalton’s atmoic theory definition in hindi)
डाल्टन के परमाणु सिद्धांत के अनुसार, “प्रत्येक पदार्थ छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है जिन्हें परमाणु कहते हैं और परमाणु को किसी भी भौतिक या रासायनिक विधि से विभाजित नहीं किया जा सकता है।”
डाल्टन का परमाणु सिद्धान्त (Dalton’s Altomic Theory)
जॉन डॉल्टन ने सन् 1808 ई. में पदार्थ की रचना संबंधी अपने विचारों को सिद्धांत का रूप दिया, जिसे डाल्टन का परमाणुवाद या परमाणु सिद्धांत कहा जाता है। इस सिद्धांत को निम्नलिखित रूप में व्यक्त कर सकते है-
(i) पदार्थ (तत्त्व) सूक्ष्म अविभाज्य कणों से बने हैं, जिसे परमाणु कहते हैं। परमाणु का न तो विनाश होता है और न ही निर्माण होता है।
(ii) एक ही तत्त्व के सभी परमाणु हर तरह (आकार, भार आदि) से समान होते हैं तथा भिन्न-भिन्न तत्त्वों के परमाणु के द्रव्यमान एवं आकार भिन्न-भिन्न होते हैं।
(ii) दो या दो से अधिक तत्त्व भार के विचार से सरल अनुपात में संयोग कर यौगिक का निर्माण करते हैं।
(iv) यौगिक के सूक्ष्मतम कण को यौगिक-परमाणु कहते हैं। किसी यौगिक के सभी परमाणु सब प्रकार से समान होते हैं।
डाल्टन के परमाणु सिद्धांत( dalton’s atmoic theory)को उनके सहयोगियों ने स्वीकार करने में जरा देर नहीं लगाई। मुक्तकण्ठ से उसका स्वागत किया। फ्रांस के वैज्ञानिकों ने उन्हें अपनी एकेडमी आफ साइन्सेज का सदस्य चुन लिया और पेरिस में उनका अद्भुत आतिथ्य भी किया।
1826 में उन्हें इंग्लैंड की रॉयल सोसायटी का मेडल मिला। शुरू से ही उनकी आंख में कुछ नुक्स था, जिसकी वजह से रंगों में फर्क कर सकने में वे असमर्थ थे और आंख के इस नुक्स के बारे में उन्होंने कुछ परीक्षण भी किए थे। वर्णान्धता(Color blindness) को आज भी ‘डाल्टनिज्म’ ही कहा जाता है।
डाल्टन के अणु सिद्धांत( John Dalton molecule theory )का एक परिणाम तो यह हुआ कि विज्ञान में, विशेषतः रसायन में, इससे गणनाओं में सही-सही नाप-तोल की प्रवृत्ति आ गई। दूसरे, भौतिकी और रसायन दोनों एक-दूसरे के नजदीक आ गए।
इसका एक परिणाम यह हुआ कि द्रव्यमात्र के प्रति हमारी दृष्टि विद्युन्मूलक बन गई—हर वस्तु मूल में विद्युन्मय है, विद्युत विनिर्मित है।
अणु-बम बना तो वह भी इसी को एक क्रियात्मक रूप देकर। और अणुशक्ति के शांतिप्रिय प्रयोगों के मूल में प्रेरिका पृष्ठभूमि भी तो इसी की ही है। 1844 में उनका निधन हो गया।
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