हिन्दी के मूर्धन्य कवि सोहनलाल द्विवेदी ने जिस महान् व्यक्ति का वर्णन करते हुए ऐसा लिखा है वे कोई और नहीं, • बल्कि भारत के ‘राष्ट्रपिता’ मोहनदास करमचन्द गाँधी हैं। सम्पूर्ण विश्व में महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi Biography)के नाम से विख्यात गाँधीजी (Mahatma Gandhi )द्वारा अपनायी गई सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह की नीति ने न केवल भारत, बल्कि विश्व राजनीति को भी नई दिशा एवं दशा प्रदान की।
महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi Biography)का जीवन परिचय
हुआ था। महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi Biography)का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर एक समृद्ध परिवार उनके पिता करमचन्द गाँधी पोरबन्दर के दीवान थे। उनकी माता पुतलीबाई अत्यन्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। घर के धार्मिक परिवेश का प्रभाव मोहनदास पर भी पड़ा इसीलिए उन्होंने राजनीति में आने के बाद भी धर्म का साथ नहीं छोड़ा। गाँधीजी (Mahatma Gandhi )की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर के एक स्कूल में हुई। प्रवेश परीक्षा के बाद उन्हें उच्च शिक्षा के लिए भावनगर के श्यामलदास कॉलेज में भेजा गया, किन्तु वहाँ उनका मन नहीं लगा। बाद में उनके भाई लक्ष्मीदास ने उन्हें बैरिस्टर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड भेज दिया।
इंग्लैण्ड जाने से पहले ही मात्र तेरह वर्ष की आयु में उनका विवाह कस्तूरबा गाँधी से हो गया था। 1891 ई. में गाँधीजी (Mahatma Gandhi )इंग्लैण्ड से बैरिस्टरी पास कर स्वदेश आए और बम्बई में वकालत प्रारम्भ कर दी। गाँधीजी (Mahatma Gandhi )के सामाजिक क्रान्तिकारी जीवन का शुभारम्भ 1893 ई. में तब हुआ, जब उन्हें एक मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने अंग्रेज़ों को भारतीयों एवं वहाँ के मूल निवासियों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते देखा। वहाँ अंग्रेज़ों ने कई बार गाँधीजी (Mahatma Gandhi )को भी अपमानित किया। फलतः उन्होंने अंग्रेज़ों के अपमान के विरुद्ध मोर्चा सँभालते हुए अपने विरोध के लिए सत्याग्रह एवं अहिंसा का रास्ता चुना।
वे जब तक दक्षिण अफ्रीका में रहे, वहाँ बसे हुए भारतीयों एवं अश्वेतों को उनके मानव सुलभ अधिकार दिलाने का प्रयत्न करते रहे। उन्होंने अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अफ्रीका प्रवास के दौरान लोगों को शिक्षित करने के लिए अध्यापक के रूप में, गरीबों की सेवा के लिए चिकित्सक के रूप में, कानूनी अधिकार के लिए अधिवक्ता के रूप में एवं जनता को जागरूक करने के लिए पत्रकार के रूप में कार्य किए। एक्सपेरिमेण्ट्स विद् ट्रुथ’ उनकी विश्वप्रसिद्ध आत्मकथा है। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की। ‘माई
गाँधीजी (Mahatma Gandhi )द्वारा चलाए गए आन्दोलन
दक्षिण अफ्रीका में गाँधीजी (Mahatma Gandhi )के द्वारा किए गए कार्यों की ख्याति भारत में भी फैल चुकी थी, इसलिए जब वे स्वदेश वापस आए, तो उनका गोपालकृष्ण गोखले एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने भव्य स्वागत किया। भारत में गाँधीजी (Mahatma Gandhi )ने जो पहला महत्त्वपूर्ण कार्य किया, वह था-बिहार के चम्पारण जिले के नीलहे किसानों को अंग्रेज़ों से मुक्ति दिलाना। वर्ष 1917 में गाँधीजी (Mahatma Gandhi )के सत्याग्रह के फलस्वरूप ही चम्पारण के किसानों का शोषण समाप्त हो सका।
भारत में अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए गाँधीजी (Mahatma Gandhi )ने गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। इसके बाद अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध उनका संघर्ष प्रारम्भ हुआ और भारतीय राजनीति की बागडोर एक तरह से उनके हाथों में आ गई। वे जानते थे कि सामरिक रूप से सम्पन्न ब्रिटिश सरकार से भारत को मुक्ति, लाठी और बन्दूक के बल पर नहीं मिल सकती, इसलिए उन्होंने सत्य और अहिंसा की शक्ति का सहारा लिया। अपने पूरे संघर्ष के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। अंग्रेज़ों का विरोध करने के लिए वर्ष 1920 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया।
अंग्रेज़ों ने जब नमक पर कर लगाया, तो गाँधीजी (Mahatma Gandhi )ने 13 मार्च, 1930 को अपनी डाण्डी यात्रा आरम्भ की और 24 दिनों की यात्रा के पश्चात् अपने हाथ से डाण्डी में नमक बनाकर कानून तोड़ा तथा ‘सविनय अवज्ञा’ आन्दोलन चलाया। इस बीच वे गाँधी-इरविन समझौते के लिए इंग्लैण्ड भी गए, किन्तु यह समझौता अंग्रेज़ों की बदनीयती के कारण टूट गया, परिणामस्वरूप यह आन्दोलन वर्ष 1934 तक चलता रहा। वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान लोगों को ‘करो या मरो’ का नारा देकर इस आन्दोलन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। गाँधीजी (Mahatma Gandhi )के प्रयत्नों से अन्तत: भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ। वर्ष 1920 से लेकर 1947 तक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधीजी (Mahatma Gandhi )की भूमिका के कारण इस युग को ‘गाँधी युग’ की संज्ञा दी गई है।
गाँधीजी (Mahatma Gandhi )के सुधार
एक राजनेता के अतिरिक्त गाँधीजी (Mahatma Gandhi )ने एक समाज सुधारक के रूप में जातिवाद, छुआछूत, नशाखोरी, बहुविवाह, पर्दाप्रथा तथा साम्प्रदायिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए अनेक कार्य किए। गाँधीजी (Mahatma Gandhi )जीवनभर हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे, किन्तु आज़ादी मिलने के बाद वे इस एकता को बनाए नहीं रख सके, इसलिए धर्म के नाम पर जब भारत के विभाजन की बात शुरू हुई, तो वे बहुत दुःखी हुए। वे नहीं चाहते थे कि विभाजन हो, किन्तु परिस्थितियाँ ऐसी बन गईं कि विभाजन को नहीं रोका जा सका।
दुःख की बात यह है कि गाँधीजी (Mahatma Gandhi )को समझने में हिन्दू और मुसलमान दोनों से ही भूल हुई। कट्टरवादी मुस्लिमों की प्रतिक्रिया में भारत में भी एक कट्टरवादी हिन्दू संगठन पैदा हो गया। पाकिस्तान बनने के बाद भी गाँधीजी (Mahatma Gandhi )पाकिस्तान की आर्थिक मदद करना चाहते थे। कट्टरवादी हिन्दू संगठनों ने गाँधीजी (Mahatma Gandhi )की इस नीति का विरोध किया। 30 जनवरी, 1948 को जब वे प्रार्थना सभा में जा रहे थे, तब नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने गोली मारकर उनकी निर्मम हत्या कर दी। इस तरह, सत्य और अहिंसा के इस महान् पुजारी का दुःखद अन्त हो गया। गाँधीजी (Mahatma Gandhi )ने अपने स्वनिर्भर सिद्धान्त के तहत खादी एवं चरखा को प्रोत्साहित किया। साथ ही लघु एवं कुटीर उद्योग व अन्य ग्रामोद्योग को प्रोत्साहित करने पर बल दिया।
गाँधीजी (Mahatma Gandhi )भले ही आज हमारे बीच न हों, किन्तु उनके विचार प्रासंगिक हैं तथा पूरी दुनिया को रास्ता दिखाते हैं। गाँधीजी (Mahatma Gandhi )के दर्शन के चार आधारभूत सिद्धान्त हैं-सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव। उनका विश्वास था कि सत्य ही परमेश्वर है। उन्होंने सत्य की आराधना को भक्ति माना। मुण्डकोपनिषद् से लिए गए राष्ट्रीय वाक्य सत्यमेव जयते के प्रेरणास्रोत गाँधीजी (Mahatma Gandhi )हैं। गाँधीजी (Mahatma Gandhi )की अहिंसा का अर्थ है-मन, वाणी तथा कर्म से किसी को आहत न करना। उनका विचार था कि अहिंसा के बिना सत्य की खोज असम्भव है। अहिंसा साधन है और सत्य साध्य। शान्ति प्रेमी टॉलस्टाय (रूस) तथा हेनरी डेविड थारो (अमेरिका) उनके आदर्श थे।
गाँधीजी (Mahatma Gandhi )ने अपने सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया। काका कालेलकर के शब्दों में-“गाँधीजी (Mahatma Gandhi )सर्वधर्म समभाव के प्रणेता थे। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सिद्धान्त उनके जीवन का मूलमन्त्र था। उनके हृदय में प्रेम और सभी धर्मों के प्रति आदर भाव था, इसलिए वे ‘बापू’ और ‘राष्ट्रपिता’ कहलाए । “
अल्बर्ट आइंस्टाइन के अनुसार, “सम्भव है आने वाली पीढ़ियाँ, शायद ही विश्वास करें कि महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi Biography)की तरह कोई व्यक्ति इस धरती पर हुआ था।”
गाँधीजी (Mahatma Gandhi )के योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 2 अक्टूबर को पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में तथा भारत में गाँधी जयन्ती के रूप में मनाया जाता है तथा इस दिन को राष्ट्रीय त्योहार की मान्यता प्राप्त है।
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