- जन्म-7 सितम्बर, 1829
- जन्म स्थान-डर्मेस्टेड
- निधन-13 जुलाई, 1896
- निधन स्थान-बॉन
कार्बनिक रसायन विज्ञान में अपने विशिष्ट शोधों के लिए विख्यात इस महान वैज्ञानिक ने मर्करी, फलमीनेट, असंतृप्त अम्लों, और थायो अम्लों पर महत्त्वपूर्ण अनुसंधान किए। इन्होंने ही सर्वप्रथम बैन्जीन की कार्बनिक संरचना प्रस्तुत की थी।
कैकुले का जन्म -Friedrich August Kekule biography
रसायन विज्ञान का शायद ही कोई ऐसा विद्यार्थी हो जो कैकुले के नाम से परिचित न हो । कैकुले के बचपन का नाम फ्रेडरिक ऑगस्ट कैकुले था। बाद में इन्होंने अपने
नाम के आगे बॉन स्ट्रॉडोनिज और जोड़ दिया।
कार्बनिक रसायन को उनकी देन इतनी महत्त्वपूर्ण है कि बिना कैकुले के सिद्धांतों को समझे कार्बनिक रसायन को समझा ही नहीं जा सकता ।
कैकुले(kekulé structure)ने ऐसी बहुत-सी आकृतियों की रचना की जिनसे यह जाना जा सकता है कि कार्बन के परमाणु एक दूसरे से किस प्रकार संयुक्त होते हैं। इन्हीं आकृतियों के आधार पर उन्होंने यह बताया कि कार्बन के परमाणुओं की संयोजकता (Valency) 4 होती है।
उन्होंने यह भी बताया कि कार्बन के परमाणु एक दूसरे के साथ तीन विधियों से बंध सकते हैं—खुली शृंखलाओं में और वलयाकार संरचनाओं में । उनके द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धांत ने दूसरे वैज्ञानिक को नए पदार्थों के निर्माण करने का रास्ता दिखाया। वास्तव में यह अपने-आप में एक महत्त्वपूर्ण अनुसंधान था।
इसके कारण ही बाद में वैज्ञानिक 7,00,000 से भी अधिक कार्बन यौगिकों का निर्माण करने में सफल हो सके। कैकुले के इस सिद्धांत के सम्बंध में एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी है।
इस कहानी से कुछ लोग स्वप्नों की सार्थकता पर विश्वास का दावा भी करते हैं। कहा जाता है कि कैकुले बैन्जीन की संरचना की खोज में लगे हुए थे। उनके मस्तिष्क में यह समस्या बुरी तरह घर कर गई थी। बैन्जीन (benzene discovery)एक जाना-माना कार्बनिक पदार्थ है और औद्योगिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
सन् 1865 में वे यह पता लगाने का प्रयास कर रहे थे कि इस यौगिक में कार्बन के परमाणु किस प्रकार एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। वैज्ञानिकों को तब तक यह तो पता था कि बैन्जीन के एक अणु में कार्बन के 6 परमाणु होते हैं लेकिन वे एक दूसरे से किस प्रकार जुड़े रहते हैं
इसका किसी को भी पता नहीं था। कहा जाता है कि एक रात कैकुले को एक स्वप्न दिखाई दिया। इस स्वप्न में उन्होंने एक सांप देखा, जिसने अपनी पूंछ को मुंह में ले रखा था। इस स्वप्न से इनके मन में विचार आया कि शायद बैन्जीन के अणु में परमाणुओं की व्यवस्था एक वृत्ताकार रूप में है।
इसी स्वप्न के आधार पर बैन्जीन के अणु में कार्बन के 6 परमाणुओं की वृत्ताकार(august kekulé dream)रूप में व्यवस्थित होने की संकल्पना सिद्ध की गई। एक दूसरी कहानी के अनुसार यह माना जाता है कि कार्बन परमाणुओं की संरक्षणा के सम्बंध में कैकुले(Friedrich August Kekule biography)अपनी प्रयोगशाला में काम कर रहे थे।
इनकी प्रयोगशाला में एक अंगीठी भी जल रही थी। दोपहर का समय था, काम करते-करते कैकुले थक गए थे। कुछ देर आराम करने के लिए वे अपनी कुर्सी पर बैठ गए। बैठे-बैठे थोड़ी ही देर में उन्हें नींद की झपकी आ गई। नींद में उन्हें एक स्वप्न दिखाई दिया।
उन्होंने स्वप्न में देखा कि कार्बन के छः परमाणु उनकी प्रयोगशाला की अंगीठी की लपटों में एक दूसरे के साथ चारों ओर नाच रहे हैं। नाचते-नाचते अचानक ही ये परमाणु एक वृत्ताकार संरचना में व्यवस्थित हो गए।
थोड़ी ही देर में जब कैकुले की आंख खुली तो उन्होंने
स्वप्न की घटना के विषय में सोचा। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हो न हो बैन्जीन(benzene ring discovery)में कार्बन के छः परमाणु एक वृत्त में व्यवस्थित हैं। इसके ऊपर उन्होंने प्रयोगात्मक कार्य आरम्भ कर दिया।
प्रयोगों से कैकुले ने निष्कर्ष निकाला कि बैन्जीन(benzene ring)की संरचना बिल्कुल ऐसी ही है जैसी कि उसने स्वप्न में देखी थी। इस प्रकार स्वप्न के आधार पर कैकुले ने बैन्जीन की संरचना स्थापित करके एक बहुत बड़ी समस्या सुलझाई।
इस कहानी में कितना सत्य है उसके विषय में कुछ भी कहना कठिन है लेकिन.इतना निश्चित है कि कैकुले किसी भी समस्या के समाधान में इतने ध्यानमग्न हो जाते थे कि उन्हें उस समस्या के विषय में सपने तक आने लगते थे।
यद्यपि उन्होंने आर्कीटेक्ट (Architect) बनने के इरादे से गीजल विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया था, लेकिन वहां वे जस्टस वान लीबिग (Justus Von Liebig) से बहुत अधिक प्रभावित हुए और रसायनशास्त्र के अध्ययन में लग गए।
सन् 1852 में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने पेरिस में अध्ययन आरम्भ किया। यहीं वे चार्ल्स फ्रेड्रिक बर्नार्ड के सम्पर्क में आए और कार्बनिक पदार्थों की संरचना के विषय में अपने विचारों का विकास किया। सन् 1856 में वे हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय में रसायनशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हुए और सन् 1858 में बेल्जियम के गेन्ट (Ghent) विश्वविद्यालय में रसायनशास्त्र के प्रोफेसर बने । सन् 1864 में बॉन आ गए।
भवन निर्माण कला के क्षेत्र में उनकी आरम्भिक शिक्षा का, निश्चय ही संरचना सम्बंधी सिद्धांतों को विकसित करने में काफी योगदान रहा। उन्होंने बहुत से कार्बनिक पदार्थों की संरचना प्रस्तुत की। उन्होंने मर्करी (Mercury) फलमीनेट, असंतृप्त अम्लों और थायो अम्लों पर महत्त्वपूर्ण अनुसंधान किए। उन्होंने कार्बन रसायनशास्त्र की चार पुस्तकें भी लिखी।
कैकुले की मृत्यु -Friedrich August Kekule death
काफी गौरव प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपने नाम के
साथ वॉन स्ट्रॉडोनिज और जोड़ दिया। कैकुले जीवन भर रसायन विज्ञान के अनुसंधानों में लगे रहे। विज्ञान की सेवा करते-करते 13 जुलाई, 1896 को इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु हो गई।
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