हेलो दोस्तों आज हम जानने वाले हैं प्रकाश(Light in hindi) के बारे में, आखिर यह प्रकाश होता क्या है, यह कैसे बनता है क्यों अंधेरा हो जाने पर हमें कोई भी चीज दिखाई नहीं देती है, प्रकाश को समझने में ना जाने कितने वैज्ञानिकों ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी। फिर भी आज हम यह नहीं कह सकते कि हम लाइट को अच्छे से समझ चुके हैं। आज के इस आर्टिकल में हम प्रकाश से जुड़े विभिन्न पहलुओं को देखेंगे और उसे समझने की कोशिश करेंगे।
प्रकाश किसे कहते हैं-What is light in hindi
प्रकाश की परिभाषा” प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है। जो विद्युत चुंबकीय तरंगों से मिलकर बना होता है, जब यह किसी वस्तु पर पड़ता है तब उससे परावर्तित होकर उसकी तस्वीर हमारी रेटिना पर बनाता है, जिससे हम चीजों को देख पाते हैं”
जब किसी कमरे में अंधेरा होता है तो वहां रखी वस्तु दिखाई नहीं देती है लेकिन यदि किसी प्रकाश (Light in hindi)स्रोत जैसे मोमबत्ती, लालटेन या विद्युत बल्ब को कमरे में जला देने से यह वस्तु दिखाई देने लगती है।
प्रकाश पहले इन वस्तुओं पर पड़ता है और फिर उनसे लौट कर हमारी आंखों में प्रवेश करता है जिससे हम चीजों को देख पाते हैं। प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा ही है जो हमारी आंखों को उत्तेजित करता है।
प्रकाश की प्रकृति क्या है-Nature of light in hindi
प्रकाश की प्रकृति क्या है? इसको जानने में न्यूटन से लेकर आइंस्टाइन तक सब ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। फिर भी आज तक हम यह सही से नहीं समझ पाए कि प्रकाश की प्रकृति क्या है,
17 वी शताब्दी के मध्य तक यह माना जाता था कि प्रकाश छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है तथा प्रकाश स्रोत से उत्सर्जित होकर यह कण एक धारा के रूप में सीधी रेखा में चलते रहते हैं।
प्रकाश का कणों से संबंधित सिद्धांत सबसे पहले न्यूटन ने दिया था जिसे न्यूटन का कणिका सिद्धांत( Newton’s corpuscular theory) के नाम से जाना जाता है। यह कण पारदर्शक माध्यम को पार कर सकते थे और अपारदर्शक माध्यम से परिवर्तित हो जाते थे।
लेकिन 17 शताब्दी के मध्य में हाइगेंस ने अपना सिद्धांत प्रतिपादित किया- जिसमें उन्होंने बताया था कि प्रकाश तरंगों के रूप में गमन करता है, हाइगेंस का तरंग सिद्धांत प्रकाश के बहुत सारे गुणों की व्याख्या करने में सफल रहा।
लेकिन वैज्ञानिक समुदाय ने इसे तुरंत स्वीकार करने से मना कर दिया। इसके विरोध में कहा गया कि यदि प्रकाश (Light in hindi)की प्रकृति तरंग जैसी है तो इन तरंगों का विवर्तन होना चाहिए। हलाकि बाद मे “ग्रेमाल्डी” ने दिखाया कि प्रकाश तरंगों का विवर्तन होता है।
लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में वैज्ञानिक यंग (Young)ने प्रकाश के व्यतिकरण (Interference) तथा वैज्ञानिक फोकाल्ट(Foucault) ने प्रकाश की द्रवों में चाल ज्ञात करके हाइगेन्स के सिद्धान्त की पुष्टि की कि प्रकाश की प्रकृति तरंग प्रकृति है।
अब व्यतिकरण या फोकाल्ट के प्रयोग न्यूटन के कणिका सिद्धान्त से नहीं समझाये जा सकते थे, अतः ग्रेमाल्डी के ‘विवर्तन’ यंग के ‘व्यतिकरण’ आदि सिद्धान्तों ने प्रकाश के तरंग प्रकृति की पुष्टि की व न्यूटन का कणिका सिद्धान्त अस्वीकार कर दिया गया।
सन् 1873 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक मैक्सवेल (Maxwell) ने अपने सिद्धान्त में बताया कि प्रकाश एक प्रकार की ‘विद्युत चुम्बकीय तरंगें’ है तथा इस सिद्धान्त से उन्होंने प्रकाश के कई गुणों की व्याख्या भी की। लेकिन मैक्सवेल का सिद्धान्त भी प्रकाश विद्युत प्रभाव (photoelectric effect) की व्याख्या करने में असफल रहा।
1905 में आइन्स्टीन (Einstein) ने अपने सिद्धान्त में बताया कि प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों(packets) के रूप में चलता है तथा इन बण्डलों को फोटान (photons) कहा जाता है, आइन्सटीन के इस सिद्धान्त से प्रकाश विद्युत प्रभाव की सफल व्याख्या की गई।
आइन्सटीन के इस फोटान सिद्धान्त की पुष्टि आगे चलकर 1921 में कॉम्पटन (Compton) ने “काम्पटन प्रभाव” के द्वारा की।
आज प्रकाश के कुछ गुणों जैसे-व्यतिकरण, विवर्तन ,ध्रुवीकरण आदि की व्याख्या प्रकाश की प्रकृति को तरंग मानकर की जाती है जबकि कुछ अन्य गुणों जैसे ‘प्रकाश विद्युत प्रभाव’, ‘कॉम्पटन प्रभाव’ आदि की व्याख्या यह मान कर की जाती है कि प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे पैकटों से मिलकर बना है। अत:“प्रकाश की प्रकृति दोहरी है” (Light is dualistic in nature)। शायद यही कारण है कि प्रकाश आज भी रहसयमई बना हुआ है।
प्रकाश के स्रोत (Sources of light in hindi)–
प्रकाश के स्रोत से हमारा तात्पर्य है वैसी चीजें जैसे प्रकाश उत्सर्जित होता है जैसे-तारा, सूर्य व अन्तरिक्ष के अन्य प्रकाश के स्रोत प्राकृतिक हैं ।
तारों के अन्दर हाइड्रोजन परमाणु लगातार हीलियम (Helium) परमाणु में बदलते रहते हैं। इस प्रक्रिया में अपार ऊर्जा की उत्पत्ति होती है तथा इस ऊर्जा का एक भाग पृथ्वी को प्रकाश (Light in hindi)के रूप में प्राप्त होता है। सूर्य लगभग 4 x 10^26 जूल प्रति सेकेण्ड की दर से ऊर्जा दे रहा है तथा आइन्सटीन के द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध (E=mc) के अनुसार सूर्य से इतनी ऊर्जा निकलने से इसका द्रव्यमान 4 x 10^9 किग्रा. प्रति सेकेण्ड की दर से कम हो रहा है।
इस प्रकार सूर्य तीव्र गति से नष्ट हो रहा है। एक अनुमान के अनुसार सूर्य लगभग एक हजार करोड़ वर्षों तक इसी दर से ऊर्जा देता रहेगा। उल्कापात या टूटा हुआ तारा जब वायुमण्डल से गुजरता है तो घर्षण के कारण गर्म होकर प्रकाश देता है।
इस प्रकार के प्रकाश को, जो ऊष्मा के द्वारा गर्म पिण्डों से निकलता है चमकदार प्रकाश (Incandescent light) कहलाता है। कुछ जीवित प्राणी जैसे जुगनू (Firefly) भी प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं। इस प्रकार का जो प्रकाश जीव-जन्तुओं से प्राप्त होता है उसे जैव प्रकाश (Bioluminescence) कहते हैं।
इसके अतिरिक्त प्रकाश के कुछ कृत्रिम स्रोत (Artificial source) भी हैंजैसे-विद्युत बल्ब, माचिस, मोमबत्ती आदि । प्रकाश के आधार पर वस्तुओं को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) प्रदीप्त वस्तुयें (Luminous bodies)—
प्रदीप्त वस्तुयें वे वस्तुयें हैं, जो अपने स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होती हैं। जैसे—सूर्य, विद्युत बल्ब आदि ।
(2) अप्रदीप्त वस्तुयें (Nonluminous bodies)-
अप्रदीप्त वस्तुयें वे वस्तुयें हैं, जिनका अपना स्वयं का प्रकाश नहीं होता लेकिन उन पर प्रकाश डालने पर वे दिखायी देने लगती है। जैसे-मेज, किताब, कुर्सी आदि ।
(3) पारदर्शक वस्तुयें (Transparent bodies)-
पारदर्शक वस्तुयें वे वस्तुयें हैं जिनमें होकर प्रकाश की किरणें निकल जाता है। जैसे—काँच ।
(4) अर्धपारदर्शक वस्तुयें (Translucent bodies)-
कुछ वस्तुयें ऐसी होती हैं, जिन पर प्रकाश की किरणें पड़ने से उनका कुछ भाग तो अवशोषित हो जाता है तथा कुछ भाग बाहर निकल जाता है। ऐसी वस्तुओं को अर्धपारदर्शक वस्तुयें कहते हैं। जैसे-तेल लगा हुआ कागज ।
(5) अपारदर्शक वस्तुयें (Opaque bodies)-
अपारदर्शक वस्तुयें वे वस्तुयें हैं जिनमें होकर प्रकाश की किरणें बाहर नहीं निकल पातीं । जैसे -धातुयें आदि।
छाया (Shadow)—जब किसी अपारदर्शक वस्तु को किसी प्रकाश स्रोत के सामने रखते हैं तो वस्तु के पीछे जो काली आकृति बनती है, उसे छाया कहते हैं।
छाया का बनना प्रकाश स्रोत की आकृति पर निर्भर करता है। यदि प्रकाश स्रोत कोई बिन्दु स्रोतn(point-source) है तो इसके द्वारा बनी छाया को प्रच्छाया(Umbra) कहते हैं और यदि स्रोत कोई वृहत् स्रोत (extended source) है तो इसके द्वारा बनी छाया को उपछाया (Penumbra) कहते हैं।
प्रकाश का रेखीय संचरण (Rectilinear propagation of light in hindi)-
जब प्रकाश किसी अपारदर्शक वस्तु पर पड़ता है ,तो उसके पीछे बनी छाया यह दर्शाती है कि प्रकाश का संचरण एक सीधी रेखा में होता है। वस्तु के पीछे बनने वाली इस छाया से यह सिद्ध होता है कि प्रकाश तरंगें ध्वनि तथा जल तरंगों की भाँति अवरोधों के किनारों पर नहीं मुड़ती हैं ।
लेकिन सूक्ष्म प्रयोगों से यह ज्ञात होता है कि प्रकाश तरंगे(Light in hindi) भी अवरोधों के किनारों पर मुड़ती है। लेकिन प्रकाश की तरंग दैर्ध्य अत्यन्त छोटी होने के कारण यह प्रभाव महसूस नहीं होता। लेकिन ये किरणें अवरोधों पर मुड़ती जरूर हैं।
“प्रकाश तरंगों के इस प्रकार अवरोधों के किनारों पर मुड़ने की घटना को ‘प्रकाश का विवर्तन'(Diffraction of light) कहते हैं।” अत: प्रकाश का कुछ भाग छाया में भी प्रवेश कर जाता है। यदि हम छोटी सी चकती (disc) द्वारा बनी छाया को देखें तो हमें छाया केन्द्र पर चमकदार ध्वजा दिखलाई पड़ती है। अत: प्रकाश तरंगें सीधी रेखा में तो गमन करती हैं लेकिन यह गमन लगभग एक रेखीय होता है।
प्रकाश की चाल (Velocity of light in hindi)—
वायु तथा निर्वात(Space) में प्रकाश की चाल सबसे अधिक होती है। निर्वात में प्रकाश की चाल तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकेण्ड होती है।
भिन्न-भिन्न माध्यमों में प्रकाश की चाल भिन्न-भिन्न होती है तथा यह माध्यम के अपवर्तनाँक (refractive index) पर निर्भर करती है। जिस माध्यम का अपवर्तनाँक जितना अधिक होता है उसमे प्रकाश की चाल उतनी ही कम होती है।
यदि किसी माध्यम का अपवर्तनाँक μ (म्यू) है तो उसमें प्रकाश की चाल को निम्न सूत्र से व्यक्त किया जा सकता है-
•u=C/μ,
जहाँ u उसे माध्यम में प्रकाश का वेग है। C निर्वात् में प्रकाश की चाल है तथा μ उस माध्यम का अपवर्तनाँक है
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